(14) The vision of brother and sister on the festival of Rakshabandhan

(14)दृष्टी बहन-भाई की,त्याेहार रक्षाबंधन का

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“रक्षाबंधन का आध्यात्मिक रहस्य | दृष्टि बदलो, सृष्टि बदलो |


 प्रारंभ

ओम शांति।
आज हम सभी एक बहुत ही पवित्र पर्व की चर्चा करेंगे – रक्षाबंधन
यह त्यौहार सिर्फ धागा बांधने की रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा आध्यात्मिक रहस्य छुपा हुआ है।
बाबा कहते हैं – असली रक्षाबंधन तब होता है जब हमारी दृष्टि शुद्ध और आत्मिक हो।


 बाह्य दृष्टि बनाम अंतर्दृष्टि

दो प्रकार की दृष्टि होती है –

  • बाह्य दृष्टि (नजर, जो शरीर को देखती है)

  • अंतर्दृष्टि (वह जो आत्मा को देखती है)।

जैसी दृष्टि वैसा ही व्यवहार।
उदाहरण के लिए –
एक बेटा अपनी माँ को आदर की दृष्टि से देखता है तो चरण छूता है।
वही बेटा अपने मित्र को मस्ती की दृष्टि से देखता है तो हंसी-मजाक करता है।

मुरली में बाबा ने कहा:
“बच्चे, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। तुम्हें आत्म दृष्टि रखनी है। सब आत्माएं भाई हैं।”


 सही दृष्टि ही रक्षाबंधन को शक्तिशाली बनाती है

आज रक्षाबंधन केवल एक परंपरा बनकर रह गया है।
लेकिन असली राखी तब होती है जब हम आत्मा को आत्मा के रूप में देखें।

जब बहन राखी बांधती है, तो वह भाई के शरीर को नहीं, उसकी आत्मा को संबोधित करती है।
यही है इस पर्व का असली रहस्य।

मुरली का वचन:
“यह राखी है सच्चा ब्रह्मचर्य का रक्षा सूत्र।”


 पवित्रता की दृष्टि ही राखी का मूल संदेश

परमात्मा शिव कहते हैं –
काम ही सबसे बड़ा शत्रु है।
इस पर विजय पाने की युक्ति है – आत्मिक दृष्टि।

जैसे एक डॉक्टर ऑपरेशन करते समय रोगी को केवल एक केस समझकर देखता है,
वैसे ही हमें भी सबको आत्मा समझकर देखना है।
यही दृष्टि हमें विकारों से बचाती है।


 राखी – अलौकिक भाई-बहन का रिश्ता

संसार में राखी लौकिक बहन-भाई के रिश्ते की याद दिलाती है।
लेकिन परमात्मा शिव आकर हमें याद दिलाते हैं कि –
हम सब आत्माएं, एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हैं।
इसलिए हम सब आपस में भाई-भाई हैं।

जब यह दृष्टि स्थिर हो जाती है, तो पवित्रता स्वतः हमारे जीवन में आ जाती है।


 बाह्य दृष्टि और अंतर्दृष्टि का संतुलन

  • बाह्य दृष्टि – पहचान दिखाती है (भाई, बहन, पति, पत्नी)।

  • अंतर्दृष्टि – रूहानी नाता दिखाती है (सब आत्माएं परमात्मा की संतान)।

उदाहरण:
नवरात्रि में कन्याओं के चरण धोना –
यदि बाह्य दृष्टि से करें तो यह केवल सेवा है।
यदि अंतर्दृष्टि से करें तो यह मां शक्ति की पूजा बन जाती है।


 निष्कर्ष

प्रिय भाईयों और बहनों,
रक्षाबंधन का असली रहस्य है – आत्मिक दृष्टि
जब हम सब आत्माओं को भाई समझते हैं, तभी यह पर्व सार्थक होता है।
तभी पवित्रता हमारे जीवन में आती है और यही है असली रक्षा सूत्र।

“रक्षाबंधन का आध्यात्मिक रहस्य | दृष्टि बदलो, सृष्टि बदलो |”


 प्रश्न 1:रक्षाबंधन का असली रहस्य क्या है?

उत्तर:रक्षाबंधन केवल राखी बांधने की रस्म नहीं है, बल्कि इसका असली रहस्य है आत्मिक दृष्टि
जब हम सब आत्माओं को भाई मानते हैं और शुद्ध दृष्टि से देखते हैं, तभी असली रक्षा सूत्र बंधता है।


 प्रश्न 2:बाबा ने दृष्टि के बारे में क्या कहा है?

उत्तर:बाबा कहते हैं –
“जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। तुम्हें आत्म दृष्टि रखनी है। सब आत्माएं भाई हैं।”
इसका अर्थ है कि अगर दृष्टि आत्मिक होगी तो व्यवहार भी पवित्र होगा।


 प्रश्न 3:बाह्य दृष्टि और अंतर्दृष्टि में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • बाह्य दृष्टि – शरीर और लौकिक पहचान पर आधारित होती है (भाई, बहन, पति, पत्नी आदि)।

  • अंतर्दृष्टि – आत्मा और परमात्मा के रूहानी रिश्ते पर आधारित होती है।
    सिर्फ बाह्य दृष्टि से संबंध पवित्र नहीं रह सकता, लेकिन अंतर्दृष्टि से पवित्रता स्वतः आती है।


 प्रश्न 4:सही दृष्टि से ही रक्षाबंधन क्यों शक्तिशाली बनता है?

 उत्तर:क्योंकि असली राखी धागे में नहीं, बल्कि शुद्ध दृष्टि में है।
जब बहन राखी बांधती है, तो वह भाई की आत्मा को संबोधित करती है, शरीर को नहीं।
यही सही दृष्टि है, जो आत्मा को विकारों से बचाती है।


 प्रश्न 5:रक्षाबंधन और पवित्रता का आपस में क्या संबंध है?

 उत्तर:परमात्मा शिव कहते हैं –
काम ही सबसे बड़ा शत्रु है।
इस पर विजय पाने का साधन है – आत्मिक दृष्टि।
जैसे डॉक्टर रोगी को केवल एक केस समझकर देखता है, वैसे ही हमें भी सबको आत्मा समझकर देखना चाहिए। यही दृष्टि हमें पवित्र रखती है।


 प्रश्न 6:अलौकिक राखी का क्या अर्थ है?

 उत्तर:अलौकिक राखी का अर्थ है –
सब आत्माएं एक ही परमपिता परमात्मा की संतान हैं और हम सब भाई-भाई हैं।
जब यह दृष्टि स्थिर हो जाती है, तो मनुष्य विकारों से सुरक्षित हो जाता है और जीवन पवित्र बन जाता है।


 प्रश्न 7:क्या बाह्य दृष्टि और अंतर्दृष्टि दोनों का संतुलन जरूरी है?

 उत्तर:हाँ।

  • बाह्य दृष्टि हमें लौकिक व्यवहार सिखाती है।

  • अंतर्दृष्टि हमें रूहानी मर्यादा और संयम सिखाती है।
    दोनों का संतुलन ही जीवन को आदर्श और दिव्य बनाता है।

Disclaimer (अस्वीकरण)

यह वीडियो/लेख केवल आध्यात्मिक अध्ययन और जागरूकता के उद्देश्य से बनाया गया है।
इसमें व्यक्त विचार मुरली, आध्यात्मिक ज्ञान और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित हैं।
इसका उद्देश्य किसी धर्म, संस्कृति या परंपरा की आलोचना करना नहीं है, बल्कि सबको पवित्र दृष्टि और आत्मिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
दर्शकों से विनम्र निवेदन है कि इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही ग्रहण करें।

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