(79) In the Gita, non-violent war is the real war against evil.

(79)गीता में अहिंसक युध्द विकारों से असली धर्मयुध्द

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“ओम शांति। गीता का भगवान कौन है? | पाठ 79 | युद्ध में इंद्रियों पर विजय कैसे पाए?”


Speech with Main Headings

1. प्रस्तावना

  • गीता का भगवान कौन है?

  • असली युद्ध क्या है – बाहरी या आंतरिक?

  • आज का विषय: इंद्रियों पर विजय।


2. गीता का गहरा रहस्य

  • युद्ध बाहरी शस्त्रों से नहीं,

  • बल्कि अपनी इंद्रियों और मन से लड़ा जाता है।


3. श्लोक उद्धरण (अध्याय 2, श्लोक 60)

  • संस्कृत:
    यतः ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः।
    इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः॥

  • भावार्थ:
    विवेकी पुरुष की इंद्रियां भी उसके मन को बलपूर्वक भटका लेती हैं यदि उसने उन पर विजय न पाई हो।


4. भगवान का नाम ‘ऋषिकेश’ क्यों?

  • ऋषिकेश = इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला।

  • कृष्ण ने इंद्रियों को जीत लिया, इसलिए वे सारथी कहलाए।


5. अर्जुन ने भगवान को सारथी क्यों बनाया?

  • युद्ध केवल हथियारों से नहीं, इंद्रियों को जीतने का पुरुषार्थ है।

  • सारथी = मार्गदर्शक, सही दिशा देने वाला।

  • मुरली (12 मई 1981):
    “यदि ईश्वर को सारथी नहीं बनाओगे तो माया जीत लेगी।”


6. असली युद्ध का क्षेत्र: शरीर

  • शरीर = कर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र।

  • हर आत्मा का संग्राम – इंद्रियों और विकारों से।

  • उदाहरण:

    • स्वाद इंद्रिय पर विजय → संयमित भोजन।

    • दृष्टि, वाणी, विचार → संयमित व्यवहार।


7. जीवन रथ का रहस्य

  • इंद्रियां = घोड़े, मन = सारथी, बुद्धि = लगाम।

  • यदि मन दुर्बल है → रथ खाई में गिरता है।

  • परमात्मा सारथी बने तो रथ सुरक्षित चलता है।

  • मुरली (21 जुलाई 1982):
    “मेरी याद से ही तुम इंद्रियों पर विजय पा सकते हो।”


8. निष्कर्ष

  • असली युद्ध बाहर नहीं, भीतर है।

  • दुश्मन कोई और नहीं, अपने विकार और इंद्रियां हैं।

  • सच्चा योद्धा वही जो भगवान को सारथी बनाकर
    अपने जीवन रथ को नियंत्रित करे।

“ओम शांति। गीता का भगवान कौन है? | पाठ 79 | युद्ध में इंद्रियों पर विजय कैसे पाए?”


प्रश्नोत्तर प्रारूप (Q&A Style)

1. प्रस्तावना

प्रश्न: गीता का भगवान कौन है और असली युद्ध क्या है?
उत्तर: गीता का भगवान वही है जिसने इंद्रियों पर पूर्ण विजय प्राप्त की है – जिन्हें ‘ऋषिकेश’ कहा जाता है। असली युद्ध बाहरी शस्त्रों का नहीं बल्कि आंतरिक – अपनी इंद्रियों, मन और विकारों से है।


2. गीता का गहरा रहस्य

प्रश्न: गीता किस प्रकार के युद्ध की शिक्षा देती है?
उत्तर: गीता हमें बताती है कि यह युद्ध किसी और व्यक्ति से नहीं, बल्कि स्वयं से – अपनी चंचल इंद्रियों और मन से लड़ा जाता है।


3. श्लोक उद्धरण (अध्याय 2, श्लोक 60)

प्रश्न: गीता का कौन सा श्लोक इंद्रियों पर विजय का रहस्य खोलता है?
उत्तर:संस्कृत:

यतः ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः॥

यतः ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः॥

भावार्थ:
विवेकी पुरुष की इंद्रियां भी उसके मन को बलपूर्वक भटका लेती हैं यदि उसने उन पर विजय न पाई हो।


4. भगवान का नाम ‘ऋषिकेश’ क्यों?

प्रश्न: कृष्ण को ‘ऋषिकेश’ क्यों कहा गया है?
उत्तर: ऋषिकेश का अर्थ है – इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला। कृष्ण ने अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण पाया था, इसलिए उन्हें ‘ऋषिकेश’ कहा गया।


5. अर्जुन ने भगवान को सारथी क्यों बनाया?

प्रश्न: अर्जुन ने भगवान को सारथी क्यों बनाया?
उत्तर: क्योंकि युद्ध केवल हथियारों का नहीं, बल्कि इंद्रियों को जीतने का पुरुषार्थ है। सारथी वह होता है जो सही दिशा दिखाए।
मुरली (12 मई 1981):
“यदि ईश्वर को सारथी नहीं बनाओगे तो माया जीत लेगी।”


6. असली युद्ध का क्षेत्र: शरीर

प्रश्न: असली युद्ध कहाँ होता है?
उत्तर: असली कुरुक्षेत्र हमारा शरीर है। हर आत्मा का संग्राम – अपनी इंद्रियों और विकारों से है।

उदाहरण:

  • स्वाद इंद्रिय पर विजय → संयमित भोजन।

  • दृष्टि, वाणी, विचार → संयमित व्यवहार।


7. जीवन रथ का रहस्य

प्रश्न: जीवन रथ को कैसे नियंत्रित करें?
उत्तर:

  • इंद्रियां = घोड़े

  • मन = सारथी

  • बुद्धि = लगाम

यदि मन दुर्बल है तो रथ (जीवन) खाई में गिर सकता है। परमात्मा को सारथी बनाने से जीवन सुरक्षित चलता है।
मुरली (21 जुलाई 1982):
“मेरी याद से ही तुम इंद्रियों पर विजय पा सकते हो।”


8. निष्कर्ष

प्रश्न: गीता का असली संदेश क्या है?
उत्तर: असली युद्ध बाहर नहीं, भीतर है। दुश्मन कोई और नहीं, हमारी इंद्रियां और विकार हैं। सच्चा योद्धा वही है जो भगवान को सारथी बनाकर अपने जीवन रथ को नियंत्रित करे।

डिस्क्लेमर

यह वीडियो गीता के आध्यात्मिक अर्थों को ब्रह्माकुमारीज़ के दृष्टिकोण से समझाने हेतु बनाया गया है।
यह किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने का उद्देश्य नहीं रखता।

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