(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“गीता का भगवान कौन? | (102)गीता में वेदों का निषेध | असली गुतम शास्त्र कौन सा?”
प्रस्तावना
आज हम गीता पाठ के 102वें हिस्से में चर्चा करेंगे।
विषय है – गीता में वेदों का निषेध और असली गुतम शास्त्र कौन सा है?
गीता और वेद – कौन पहले?
भाषा और इतिहास के आधार पर देखा जाए तो:
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वेद लिखे गए लगभग 2100–2300 वर्ष पहले।
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महाभारत लिखी गई लगभग 2000 वर्ष पहले।
इसका अर्थ है कि वेद महाभारत से 200–300 वर्ष पुराने हैं।
परंतु गीता यह कहती है कि वेद बाद में लिखे गए।
महाभारत और पंचम वेद
महाभारत के आदि पर्व में व्यास लिखते हैं:
“मैं समाज में प्रचलित कथाओं और घटनाओं को एकत्र कर पंचम जय ग्रंथ लिख रहा हूं,
जो आगे चलकर पंचम वेद कहलाएगा।”
इसका अर्थ है कि उससे पहले चार वेद पहले से मौजूद थे।
लेकिन – जय ग्रंथ को किसी ने भी पंचम वेद नहीं माना।
बल्कि यह निषेध कर दिया गया कि इस ग्रंथ को घर में रखना या पढ़ना दोनों वर्जित है।
गीता – सर्वशास्त्र शिरोमणि
गीता को शास्त्रों का शिरोमणि कहा गया है।
इसमें लिखा है कि स्वयं भगवान शिव ने ब्रह्मा के तन में आकर ब्राह्मणों को ज्ञानवान बनाया।
साकार मुरली (18 मई 1967):
“गीता ही है गुतम शास्त्र।”
यह गीता वह है जो परमात्मा शिव स्वयं सुनाते हैं – न कि वह जो व्यास ने लिखी।
वेदों का निषेध – गीता श्लोक
गीता अध्याय 2, श्लोक 45:
“त्रिगुण विषया वेदा, निस्त्रैगुण्यो भव अर्जुन।”
अर्थ: वेद तीनों गुणों (सतो, रजो, तमो) का विशद करते हैं।
हे अर्जुन! तू उनसे ऊपर उठकर आत्मवान बन।
वेद बनाम गीता
गीता अध्याय 2, श्लोक 46:
“जिस प्रकार बड़े सरोवर के होते हुए छोटे कुएं का प्रयोजन नहीं रहता,
वैसे ही ब्रह्म को जानने वाले के लिए वेदों का प्रयोजन नहीं है।”
मुरली (23 फरवरी 1971):
“ज्ञानवान आत्माओं के लिए वेद निरर्थक हैं।
योग और ज्ञान केवल परमात्मा से मिलता है।”
वेदवादियों पर भगवान का मत
गीता अध्याय 2, श्लोक 42–44:
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वेदवादी भोग और ऐश्वर्य की बातें करते हैं।
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परंतु भोग–ऐश्वर्य में आसक्ति रखने वालों की बुद्धि स्थिर नहीं रहती।
बाबा की मुरली (15 दिसम्बर 1986):
“सच्ची बुद्धि केवल परमात्मा से जुड़ती है, शास्त्रों से नहीं।”
योगी की श्रेष्ठता
गीता अध्याय 8, श्लोक 28:
“वेद, यज्ञ, तप और दान – इन सबके फल से योगी ऊपर उठ जाता है।”
अव्यक्त मुरली (11 नवम्बर 1968):
“योगी वही हैं जो परमात्मा से योग सीखकर
अपने ज्योति स्वरूप, शांत स्वरूप और आनंद स्वरूप में स्थित हों।”
वेद – कल्पवृक्ष के पत्ते
गीता अध्याय 15, श्लोक 1:
संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष की जड़ परमधाम में है,
शाखाएं नीचे फैली हैं और उसके पत्ते वेद कहलाते हैं।
निष्कर्ष
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वेद केवल त्रिगुणों का विस्तार हैं।
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गीता है सर्व शास्त्रों में शिरोमणि।
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सच्चा ज्ञान और योग केवल परमात्मा से मिलता है।
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इसलिए असली गुतम शास्त्र वही है जिसे परमात्मा स्वयं सुनाते हैं।
“गीता का भगवान कौन? | गीता में वेदों का निषेध | असली गुतम शास्त्र कौन सा?”
प्रस्तावना
आज हम गीता पाठ के 102वें हिस्से में चर्चा करेंगे।
मुख्य विषय:-
गीता में वेदों का निषेध
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गीता और वेद – कौन पहले?
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असली गुतम शास्त्र कौन सा है?
प्रश्नोत्तर शैली
प्रश्न 1: वेद और महाभारत में कौन पहले लिखे गए?
उत्तर:
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वेद लिखे गए लगभग 2100–2300 वर्ष पहले।
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महाभारत लिखी गई लगभग 2000 वर्ष पहले।
इसलिए वेद महाभारत से 200–300 वर्ष पुराने हैं।
प्रश्न 2: महाभारत में “पंचम वेद” का उल्लेख क्यों है?
उत्तर:
महाभारत के आदि पर्व में व्यास लिखते हैं:
“मैं समाज की कथाओं और घटनाओं को एकत्र कर पंचम जय ग्रंथ लिख रहा हूं,
जो आगे चलकर पंचम वेद कहलाएगा।”इसका अर्थ है कि उस समय चार वेद पहले से मौजूद थे।
लेकिन जय ग्रंथ को किसी ने भी पंचम वेद नहीं माना।
बल्कि इसे घर में पढ़ना और रखना दोनों निषेध कर दिया गया।
प्रश्न 3: गीता को “सर्वशास्त्र शिरोमणि” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
गीता में लिखा है कि स्वयं भगवान शिव ने ब्रह्मा के तन में आकर ब्राह्मणों को ज्ञानवान बनाया।
साकार मुरली (18 मई 1967):
“गीता ही है गुतम शास्त्र।”इसका अर्थ है कि असली गीता वही है जो परमात्मा शिव स्वयं सुनाते हैं,
न कि वह जो व्यास ने लिखी।
प्रश्न 4: गीता में वेदों का निषेध कहाँ मिलता है?
उत्तर:
गीता अध्याय 2, श्लोक 45:
“त्रिगुण विषया वेदा, निस्त्रैगुण्यो भव अर्जुन।”
वेद केवल तीन गुणों (सतो, रजो, तमो) का वर्णन करते हैं।
भगवान कहते हैं – उनसे ऊपर उठकर आत्मवान बनो।
प्रश्न 5: ज्ञानी आत्माओं के लिए वेद क्यों निरर्थक हैं?
उत्तर:
गीता अध्याय 2, श्लोक 46:
“जैसे बड़े सरोवर के होते हुए छोटे कुएं का प्रयोजन नहीं रहता,
वैसे ही ब्रह्म को जानने वाले के लिए वेदों का प्रयोजन नहीं है।”मुरली (23 फरवरी 1971):
“ज्ञानवान आत्माओं के लिए वेद निरर्थक हैं।
योग और ज्ञान केवल परमात्मा से मिलता है।”
प्रश्न 6: गीता में वेदवादियों के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
गीता अध्याय 2, श्लोक 42–44:
वेदवादी भोग और ऐश्वर्य की बातें करते हैं।
परंतु भोग–ऐश्वर्य में आसक्ति रखने वालों की बुद्धि स्थिर नहीं रहती।मुरली (15 दिसम्बर 1986):
“सच्ची बुद्धि केवल परमात्मा से जुड़ती है, शास्त्रों से नहीं।”
प्रश्न 7: योगी वेद, यज्ञ, तप और दान से कैसे श्रेष्ठ हैं?
उत्तर:
गीता अध्याय 8, श्लोक 28:
“वेद, यज्ञ, तप और दान – इन सबके फल से योगी ऊपर उठ जाता है।”अव्यक्त मुरली (11 नवम्बर 1968):
“योगी वही हैं जो परमात्मा से योग सीखकर
अपने ज्योति स्वरूप, शांत स्वरूप और आनंद स्वरूप में स्थित हों।”
प्रश्न 8: गीता में वेदों को किससे तुलना दी गई है?
उत्तर:
गीता अध्याय 15, श्लोक 1:
संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष की जड़ परमधाम में है,
शाखाएं नीचे फैली हैं और उसके पत्ते वेद कहलाते हैं।
निष्कर्ष
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वेद केवल त्रिगुणों का विस्तार हैं।
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गीता है सर्व शास्त्रों में शिरोमणि।
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सच्चा योग और ज्ञान केवल परमात्मा से मिलता है।
इसलिए असली गुतम शास्त्र वही है जिसे परमात्मा स्वयं सुनाते हैं। -
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