The ultimate knowledge of Raja Yoga

अध्याय 1 : राजयोग का परम ज्ञान


राजयोग क्या है?

‘राजयोग’ का अर्थ है — अपने ऊपर राज्य करना, अपनी कर्म इन्द्रियों पर राज्य करना।
यह वह ज्ञान है जो केवल परमपिता परमात्मा स्वयं देते हैं।

“राजयोग किसे कहते हैं?”
आत्मा और परमात्मा का साक्षात मिलन।

राजयोग का मतलब केवल ध्यान या साधना नहीं,
बल्कि आत्मा का अपने मूल स्वरूप में स्थित होकर परमात्मा से जुड़ना है।


राजयोग का अर्थ

‘राज’ + ‘योग’ = राजयोग

  • राज का अर्थ है स्वराज्य — आत्मा स्वयं की मालिक बने।

  • योग का अर्थ है मिलन — परमात्मा से संबंध।

अर्थात ऐसा योग जिससे आत्मा स्वयं पर विजय पाती है और परमात्मा से शक्ति प्राप्त करती है।

मुरली: 15 जुलाई 1969
“बच्चे, यह है राजयोग जो तुम्हें आत्मा का राज्य और रावण पर विजय दिलाता है।”


स्वराज्य का रहस्य

आत्मा के पास तीन मुख्य शक्तियाँ हैं —
मन, बुद्धि और संस्कार।
जब ये तीनों परमात्मा की श्रीमत पर चलते हैं, तभी आत्मा स्वराज्य अधिकारी बनती है।

रावण पर विजय का अर्थ है —
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार पर जीत प्राप्त करना।

बिना स्वराज्य के, रावण पर विजय असंभव है।


परम ज्ञान क्यों कहा गया?

क्योंकि यह ज्ञान किसी मानव ने नहीं बनाया।
यह स्वयं परमपिता परमात्मा शिव द्वारा दिया गया है।

मुरली: 18 जनवरी 1970
“बच्चे, यह योग और ज्ञान परमपिता से ही मिलता है। यह किसी शास्त्र में नहीं मिलता।”

परम ज्ञान इसलिए कहा गया क्योंकि —

  • यह आत्मा और परमात्मा दोनों का साक्षात परिचय देता है।

  • यह ज्ञान आत्मा को पुनः सतोप्रधान बनाता है।


राजयोग का उद्देश्य

क्यों करें राजयोग?
क्योंकि आत्मा को चाहिए —

  • पापमुक्ति और शक्ति

  • शांति, पवित्रता, आनंद और प्रेम

  • स्वधर्म में स्थित होना

राजयोग से आत्मा पुनः देवी गुणों से संपन्न बनती है।

मुरली: 22 फरवरी 1969
“योग की ज्वालामुखी में आत्मा के पाप भस्म होते हैं और स्वराज्य प्राप्त होता है।”


राजयोग की विशेषता — सहज साधना

राजयोग कोई कठिन तपस्या नहीं है।
यह सहज मिलन है — जैसे बच्चे का अपने माता-पिता से प्रेम।

सहज योग वही जो प्रेम से भरा हो।

मेहनत किसे करनी पड़ती है?
जिसे बाबा से सच्चा प्यार नहीं है।
अगर मोहब्बत है तो योग कठिन नहीं लगता।


मोहब्बत की कमी क्यों होती है?

  1. प्राप्ति का अनुभव न होना

  2. निश्चय की कमी

  3. माया के प्रति आकर्षण

बुद्धि एक समय में केवल एक ओर लग सकती है — या बाबा पर या माया पर।


सच्चा संबंध क्या है?

जैसे बच्चे का माता-पिता से सहज संबंध होता है,
वैसे ही आत्मा का परमात्मा से संबंध है —
इसमें किसी विशेष साधना की आवश्यकता नहीं।

यह प्रेम का सहज योग है।


राजयोग में आने वाली रुकावटें

  1. ध्यान और कल्पना में फँस जाना

    • ध्यान का अर्थ है किसी रूप या मूर्ति में बुद्धि फँसा लेना।

    • यह ऐसा है जैसे तार पर रबड़ चढ़ी हो — करंट नहीं आएगा।

  2. देहभाव

    • जब तक आत्मा स्वयं को देह समझती है, परमात्मा से कनेक्शन नहीं बनता।

इसलिए बाबा कहते हैं — “अपने को अशरीरी आत्मा समझो।”


राजयोग का फल

राजयोग से आत्मा में आती है —

  • निर्मल शांति

  • सच्चा आनंद

  • पवित्रता और शक्ति

मुरली: 12 अप्रैल 1971
“यह राजयोग तुम्हें विषयों से विजयी बनाता है और पवित्र विश्व का मालिक बना देता है।”


याद की शक्ति (योगबल)

मुरली: 18 जुलाई 1969
“बाप को याद करना ही योग है। याद से ही आत्मा पवित्र बनती है, पाप कटते हैं और शक्तियाँ मिलती हैं।”

याद ही पाप नाशक है।
याद की ज्वालामुखी में आत्मा के पाप भस्म होते हैं।
यह योग की आग आत्मा को कंचन (24 कैरेट सोना) बना देती है।


सारांश (Essence)

  • राजयोग = आत्मा का परमात्मा से सहज मिलन।

  • परम ज्ञान = परमात्मा द्वारा दिया गया सर्वोच्च ज्ञान।

  • उद्देश्य = आत्मा का पुनः दिव्यता और स्वराज्य प्राप्त करना।

  • साधन = बाबा की याद (योग)।

  • परिणाम = शांति, शक्ति, और स्वर्णिम भविष्य।

“याद में ही बल है — योगबल से असंभव संभव हो जाता है।”
“योगबल से विजय का ताज मिलता है।”


 उदाहरण

  1. जैसे राजा अपने राज्य पर शासन करता है,
    वैसे आत्मा अपने मन, बुद्धि, संस्कार पर शासन करे — यही राजयोग है।

  2. जैसे सूर्य की किरणें गंदे पानी को सुखा देती हैं,
    वैसे बाबा की याद आत्मा के पापों को भस्म कर देती है।


 निष्कर्ष

राजयोग का अर्थ केवल ध्यान नहीं — यह आत्मा का परमात्मा से साक्षात प्रेम मिलन है।
जब आत्मा बाबा को याद करती है,
तब वही याद आत्मा को पवित्र, शक्तिशाली और स्वराज्य अधिकारी बना देती है।

डिस्क्लेमर

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के मुरली ज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन के लिए है।
इसका उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के सच्चे संबंध को समझना है, न कि किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति की आलोचना करना।
स्रोत: शिवबाबा की साकार और अव्यक्त मुरलियाँ।

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