(02)”Five deep secrets of Diwali that no one has told till date.


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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

दीपावली का असली अर्थ-:(02)”दीपावली के पांच गहरे रहस्य जो आज तक किसी ने नहीं बताया।

अध्याय: दीपावली — बाहरी रोशनी से अंदरूनी ज्योति तक

(परिचय)
दिवाली केवल बाहरी दीपकों, पटाखों और सजावट का त्यौहार नहीं — यह आत्मिक परिवर्तन, पवित्रता और चरित्र‑प्रकाश का सूचक है। नीचे दिए गए पाँच रहस्य हमें इस दिवाली को केवल बाहरी उत्सव नहीं बल्कि अंदरूनी जीत — विकारों पर विजय और आत्मा की शुद्धि — के अवसर के रूप में देखने का तरीका सिखाते हैं।


रहस्य संख्या 1 — दिवाली = आत्मिक ज्योति का प्रज्वलन

सार: दिवाली तब सच्ची होती है जब बाहरी दीपक के साथ‑साथ आत्मा का दीपक भी जले — यानी स्मृतियाँ, संस्कार और बुरे विचारों की धूल हटे और आत्मा में सत्य‑ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित हो।
उदाहरण: जैसे घर की दीवारें साफ़ करके पेंट की रोशनी वापस लाते हैं, वैसे ही ध्यान और सत्संग से आत्मा के अंदर पड़े नकारात्मक संस्कारों को साफ़ करो।
Murli नोट: अव्यक्त मुरली — 27 अक्टूबर 2016: “परमपिता परमात्मा शिव आकर कहते — बच्ची, अपने अंदर की अंधियारी को मिटाओ। आत्मा दीपक प्रज्वलित करो। वही सच्ची दिवाली है।”
क्रिया‑सूत्र (प्रॅक्टिकल): रोज कम से कम 5‑10 मिनट चुप्पी में आत्म‑चिंतन — उस एक आदत/सांसारिक सोच को पहचानो और उसे प्रकाश से बदलने का संकल्प करो।


रहस्य संख्या 2 — लक्ष्मी पूजन = पवित्रता का पूजन

सार: लक्ष्मी‑पूजन केवल धन की कामना नहीं; इसका असली अर्थ आत्मिक पवित्रता और सात्विकता का सत्कार है — वही आत्मा जो निर्मल होकर सतो‑प्रधान बनती है, वही सच्ची लक्ष्मी है।
उदाहरण: अगर घर में कोई बर्तन गंदा है तो उस पर लक्ष्मी का फूल रखने से क्या फायदा? पहले बर्तन साफ़ करो — तभी फूल‑सज्जा अर्थ देती है।
Murli नोट: परमात्मा के महावाक्य — 14 नवम्बर 2018: “लक्ष्मी नारायण का राज्य पवित्रता से प्राप्त होता है। धन से नहीं। पवित्र आत्मा ही सच्ची लक्ष्मी कहलाती है।”
क्रिया‑सूत्र: हर दिन एक छोटी आदत पर काम करो (सत्य बोलना, चेष्टा में संयम, वचन का पालन) — ये छोटी पवित्रताएँ ही लक्ष्मी‑राह बनाती हैं।


रहस्य संख्या 3 — दशहरे ⇄ दिवाली: रावण वध का गहरा अर्थ (पाँच विकारों की पराजय)

सार: दशहरा जहाँ बाहरी रूप में रावण के वध का प्रतीक है, वहीं असल में दिवाली बाद में आती है ताकि रावण के भीतर बसे विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि) को पूरा तरह से पिखाया जा सके — केवल पुतला जलाना पर्याप्त नहीं; रावण को अपने अंदर से निकालना होगा।
उदाहरण: हर बार बाहर पुतला जलाने से बुराई दिखती है पर असली जीत तब होगी जब आप वही दोष अपनी प्रतिक्रियाओं में न देखें — उदाहरण: क्रोध में बोलने से पहले तीन गहरी सांसें लें और सोचें।
स्पष्टीकरण: रावण के दस सिर — पुरुष के पाँच और नारी के पाँच विकारों का प्रतीक — कहते हैं कि कलियुग में ये विकार बड़ी तीव्रता से चल पड़ते हैं।
क्रिया‑सूत्र: हर सप्ताह एक विकार (जैसे लोभ) चुनें, उसके विरोधी गुण (दान, सन्तोष) पर अभ्यास करें और छोटे‑छोटे प्रयोगों से उसे कम करें।


रहस्य संख्या 4 — परमात्मा = सबसे बड़ा दिया (ज्ञान का सागर)

सार: दिवाली के समय परमात्मा को “बड़ा दिया” कहा गया है — वह ज्ञान का सागर है जो आकर सभी आत्माओं में ज्योति जगाता, पतित को पावन बनाता और चरित्रवान बनाना सिखाता है।
उदाहरण: जैसे एक बड़े दीये से छोटे‑छोटे दीयों को ज्वाला मिलती है, वैसे ही परमात्मा का दिया ज्ञान से सभी आत्माओं में प्रकाश भरता है।
Murli सार: (उपरोक्त 27‑10‑2016 मुरली में) परमात्मा कहता है — “मैं आकर सबकी सच्ची ज्योति जगाने के लिए आया हूं। ज्ञान घृत देकर सबको चरित्रवान बनाना मेरा कार्य है।”
क्रिया‑सूत्र: परमात्मा के दिए गए ज्ञान (मुरली/सत्संग) को रोज़ पढ़ना/सुनना और एक वचन‑प्रतिज्ञा अपनाना — जैसे “आज मैं किसी के बारे में निन्दा नहीं करूँगा” — ऐसा रोज़ का अभ्यास।


रहस्य संख्या 5 — सच्ची दिवाली = पुरुषार्थ + अधिकार

सार: दिवाली मनाने का अधिकार हमें दिया गया है — पर अधिकार तभी उपयोगी जब हम पुरुषार्थ करें: लक्ष्मी‑नारायण बनने के लिए कर्म, चिन्तन और साधना करें। केवल पूजा‑वंदन से कार्य नहीं होगा; बनने की मेहनत (पुरुषार्थ) करनी होगी।
उदाहरण: केवल लक्ष्मी की मूर्ति के सामने बैठकर धन माँगना उस किसान की तरह है जो खेत न जोते पर फिर भी फसल चाहे; पहले पुरुषार्थ फिर फल।
क्रिया‑सूत्र: तीन‑चरण योजना — (1) पहचान (कौन‑सा दोष है), (2) अभ्यास (विराम/प्रतिबन्ध/नया कर्म), (3) समीक्षा (साप्ताहिक आत्म‑जाँच)। इसे लिखकर रोज़ पालन करें।


सारांश (Conclusion)

दीपावली बाहरी रोशनी का त्यौहार है पर उसकी गहराई आत्मिक परिवर्तन में है — आत्मा की पवित्रता, चरित्र का उदय, विकारों की पराजय, परमात्मा द्वारा दिया गया ज्ञान और हमारा पुरुषार्थ — इन पाँच कदमों से ही दिवाली सच्ची बनती है। ये रहस्य मुरली के वचनों से पुष्ट हैं और इन्हें आत्मारोहण करके ही हमने “सच्ची दिवाली” मनानी है।

दीपावली — बाहरी रोशनी से अंदरूनी ज्योति तक

परिचय:
दिवाली केवल बाहरी दीपकों, पटाखों और सजावट का त्यौहार नहीं — यह आत्मिक परिवर्तन, पवित्रता और चरित्र‑प्रकाश का सूचक है। नीचे दिए गए पाँच रहस्य हमें इस दिवाली को केवल बाहरी उत्सव नहीं बल्कि अंदरूनी जीत — विकारों पर विजय और आत्मा की शुद्धि — के अवसर के रूप में देखने का तरीका सिखाते हैं।


प्रश्न 1: दिवाली का असली अर्थ क्या है?

उत्तर:
दिवाली तब सच्ची होती है जब बाहरी दीपक के साथ‑साथ आत्मा का दीपक भी प्रज्वलित हो। इसका मतलब है कि स्मृतियाँ, संस्कार और नकारात्मक विचार हटें और आत्मा में सत्य‑ज्ञान की ज्योति जाग्रत हो।

उदाहरण: जैसे घर की दीवारें साफ़ करके पेंट की चमक वापस लाते हैं, वैसे ही ध्यान और सत्संग से आत्मा के भीतर पड़े नकारात्मक संस्कारों को साफ़ करें।

Murli नोट: 27 अक्टूबर 2016 – “बच्ची, अपने अंदर की अंधियारी को मिटाओ। आत्मा दीपक प्रज्वलित करो। वही सच्ची दिवाली है।”

क्रिया‑सूत्र: रोज़ कम से कम 5‑10 मिनट चुप्पी में आत्म‑चिंतन करें और एक आदत/सांसारिक सोच को प्रकाश में बदलने का संकल्प लें।


प्रश्न 2: लक्ष्मी पूजन का असली अर्थ क्या है?

उत्तर:
लक्ष्मी‑पूजन केवल धन की कामना नहीं है। इसका असली अर्थ आत्मिक पवित्रता और सात्विकता का सत्कार करना है। वही आत्मा जो निर्मल होकर सतो‑प्रधान बनती है, वही सच्ची लक्ष्मी है।

उदाहरण: घर में गंदे बर्तन पर लक्ष्मी का फूल रखने से क्या फायदा? पहले बर्तन साफ़ करें, तभी सजावट अर्थपूर्ण होगी।

Murli नोट: 14 नवंबर 2018 – “लक्ष्मी नारायण का राज्य पवित्रता से प्राप्त होता है। धन से नहीं। पवित्र आत्मा ही सच्ची लक्ष्मी कहलाती है।”

क्रिया‑सूत्र: हर दिन एक छोटी आदत पर ध्यान दें (सत्य बोलना, संयम रखना, वचन का पालन करना)। ये छोटी पवित्रताएँ ही लक्ष्मी‑राह बनाती हैं।


प्रश्न 3: दशहरे और दिवाली का आपसी संबंध क्या है?

उत्तर:
दशहरा रावण वध का प्रतीक है। रावण के भीतर बसे पांच पुरुष और पांच स्त्री विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि) को बाहर निकालना ही दिवाली का असली उद्देश्य है।

उदाहरण: केवल बाहर पुतला जलाने से बुराई दिखती है, पर असली जीत तब होगी जब आप वही दोष अपनी प्रतिक्रियाओं में न देखें। जैसे क्रोध में बोलने से पहले तीन गहरी सांसें लें।

क्रिया‑सूत्र: हर सप्ताह एक विकार चुनें और उसके विरोधी गुण (दान, संतोष, संयम) पर अभ्यास करें।


प्रश्न 4: परमात्मा को “सबसे बड़ा दिया” क्यों कहा गया है?

उत्तर:
परमात्मा ज्ञान का सागर हैं जो आकर सभी आत्माओं में ज्योति जगाते हैं, पतित को पावन बनाते हैं और चरित्रवान बनाना सिखाते हैं।

उदाहरण: जैसे एक बड़े दीये से छोटे‑छोटे दीयों को ज्वाला मिलती है, वैसे ही परमात्मा का दिया ज्ञान से सभी आत्माओं में प्रकाश भरता है।

Murli सार: 27 अक्टूबर 2016 – “मैं आकर सबकी सच्ची ज्योति जगाने के लिए आया हूं। ज्ञान घृत देकर सबको चरित्रवान बनाना मेरा कार्य है।”

क्रिया‑सूत्र: परमात्मा के ज्ञान को रोज़ पढ़ें/सुनें और एक वचन‑प्रतिज्ञा अपनाएँ। उदाहरण: “आज मैं किसी के बारे में निन्दा नहीं करूँगा।”


प्रश्न 5: सच्ची दिवाली कैसे मनाई जाती है?

उत्तर:
सच्ची दिवाली मनाने का अधिकार हमें दिया गया है, लेकिन अधिकार तभी उपयोगी है जब हम पुरुषार्थ करें

  • लक्ष्मी‑नारायण बनने के लिए कर्म, चिन्तन और साधना करना आवश्यक है।

  • केवल पूजा‑वंदन से दिवाली पूरी नहीं होती।

उदाहरण: केवल लक्ष्मी की मूर्ति के सामने बैठकर धन माँगना उस किसान की तरह है जो खेत न जोते पर फसल चाहता है। पहले पुरुषार्थ, फिर फल।

क्रिया‑सूत्र: तीन‑चरण योजना अपनाएँ –

  1. पहचान: कौन-सा दोष है?

  2. अभ्यास: विराम/प्रतिबन्ध/नया कर्म

  3. समीक्षा: साप्ताहिक आत्म‑जाँच
    इसे लिखकर रोज़ पालन करें।


सारांश:

दीपावली बाहरी रोशनी का त्यौहार है, लेकिन उसकी गहराई आत्मिक परिवर्तन, चरित्र का उदय, विकारों की पराजय, परमात्मा द्वारा दिया गया ज्ञान और हमारा पुरुषार्थ में है।
इन पाँच कदमों को अपनाकर ही हम सच्ची दिवाली मना सकते हैं।

Disclaimer (डिस्क्लेमर)

यह सामग्री ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक मुरली और साधना के संदर्भ पर आधारित है। इसका उद्देश्य आत्मिक समझ बढ़ाना है — किसी धर्म या व्यक्ति के खिलाफ प्रचार नहीं। मुरली के उद्धरणों को जहाँ तारीख दी गई है वहीँ तारीख दर्शायी गई है। (वीडियो में उद्धृत मुरलियों का मूल सन्दर्भ Avyakt Vani/सकर मुरली स्रोत देखें।)

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