(05) “Shiva Baba is the ocean of love, Brahma Baba is the mother like Jagat Amba.

शिवबाबा :ब्रह्मा बाबा का रिश्ता-(05)“शिव बाबा सागर ममता का, ब्रह्मा बाबा जगत अंबा समान मां।”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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प्रस्तावना : एक अलौकिक रिश्ता

शिव बाबा — ममता का सागर,
और ब्रह्मा बाबा — जगत अंबा समान मां

यह कोई सामान्य वाक्य नहीं, बल्कि एक दिव्य रहस्य है।
ब्रह्मा बाबा हमारी मां हैं, और शिव बाबा हमारे बाप
परंतु यह रिश्ता देह का नहीं — आत्मा और परमात्मा का है।

शिव बाबा निराकार हैं — जो देह में नहीं आते।
ब्रह्मा बाबा साकार हैं — जिनके माध्यम से परमात्मा ने हम आत्माओं को adopt किया।
इसलिए कहा गया —
“शिव बाबा हैं पिता, और ब्रह्मा बाबा हैं मां।”


 मातृभाव का अर्थ : प्रेम, ममता और सुरक्षा

“मां” शब्द सुनते ही मन में उठती है —
स्नेह, करुणा और सुरक्षा की भावना।
मां वह होती है जो बिना कहे समझ जाए, बिना मांगे दे,
और अपने बच्चे को अपने आंचल में संभाले रखे।

लेकिन ब्रह्मा बाबा वह अलौकिक मां हैं
जिनका प्रेम देह से नहीं, आत्मा से जुड़ा हुआ है।


 शिव बाबा — ममता का सागर

शिव बाबा के लिए कहा गया —
“त्वमेव माता पिता त्वमेव।”
वे ही हमारी मां, बाप, शिक्षक, सखा, गुरु — सब कुछ हैं।

साकार मुरली: 16 फरवरी 1969

“मैं मां के समान स्नेह से पालता हूं और बाप के समान शिक्षा देता हूं।”

जब शिव बाबा ज्ञान देते हैं,
तो केवल शिक्षा नहीं — ममता और करुणा भी झलकती है।
वे हमारी गलतियों को दंड से नहीं, प्रेम से सुधारते हैं।
यह वही ममता है जो किसी देहधारी मां में भी नहीं मिलती।


 ब्रह्मा बाबा — शिव की ममता का साकार स्वरूप

निराकार शिव की ममता,
ब्रह्मा बाबा के माध्यम से साकार रूप में प्रकट हुई।

साकार मुरली: 3 जून 1970

“शिव बाबा तो निराकार है, इसलिए ब्रह्मा है मां।”

शिव बाबा ब्रह्मा के मुख से बोलते हैं,
हम आत्माओं को ब्राह्मण रूप में अडॉप्ट करते हैं।
इस प्रक्रिया में
ब्रह्मा बाबा बन जाते हैं — शिव की मातृ ममता का माध्यम।


 ब्रह्मा बाबा — मां और बाप दोनों का संयुक्त रूप

ब्रह्मा बाबा ने केवल शिक्षा नहीं दी,
बल्कि अपने व्यवहार से सिखाया कि स्नेह कैसे जिया जाता है।

अव्यक्त मुरली: 24 जनवरी 1979

“ब्रह्मा ने हर बच्चे को अपने समान समझकर संवारा।
इसलिए वे मात–पिता कहे जाते हैं।”

उन्होंने कभी क्रोध नहीं किया,
केवल ममता से हर आत्मा को संभाला।
हर बच्चा उनके पास आता और भूल जाता कि वह बूढ़ा है या बच्चा।
उनके स्नेह में सभी समान थे।

इसलिए कहा गया —
“ब्रह्मा बाबा जगदंबा समान मां बन गए।”


 मातृभाव का उदाहरण

एक छोटी बच्ची रात में डर गई।
मां आई और बस अपने हाथ से स्पर्श दिया — डर मिट गया।
क्योंकि मां के स्पर्श में सुरक्षा होती है।

इसी प्रकार जब हम योग में जाते हैं,
तो अनुभव करते हैं —
शिव बाबा की गोद, ब्रह्मा बाबा का स्नेह, और आत्मा की शांति।

साकार मुरली: 8 अप्रैल 1970

“शिव बाबा बच्चों को मां–बाप दोनों के समान पालते हैं —
मां की ममता से संभालते हैं, बाप की शक्ति से सिखलाते हैं।”

अव्यक्त मुरली: 3 जनवरी 1983“ब्रह्मा बाबा ने अपने बच्चों को हर स्थिति में ममता से संभाला।

वे सच्चे अर्थों में जगदंबा समान मां थे।”


 आध्यात्मिक अर्थ : ममता और ज्ञान का संगम

इस संबंध का गूढ़ अर्थ यह है —
परमात्मा का प्रेम केवल ज्ञान या न्याय नहीं,
बल्कि करुणा और ममता से भरा हुआ है।

शिव बाबा हमारी आत्मा की देखभाल ऐसे करते हैं
जैसे मां अपने बच्चे की पीड़ा पहले ही समझ जाए।
ब्रह्मा बाबा उस ममता का साकार रूप हैं,
जिसके द्वारा परमात्मा की शक्ति आत्माओं तक पहुँचती है।


 निष्कर्ष : मात-पिता शिव ब्रह्मा का अद्भुत संगम

यह अलौकिक संगम है —
जहाँ निराकार शिव का प्रेम
और साकार ब्रह्मा की ममता
मिलकर बनते हैं — “मात-पिता शिव ब्रह्मा।”

यह वही रिश्ता है
जो इस संसार में कहीं नहीं मिलता —
क्योंकि यह रिश्ता आत्मा और परमात्मा के बीच का है।

प्रश्न 1:शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा के बीच का रिश्ता “मात-पिता” क्यों कहा गया है?

उत्तर:
शिव बाबा निराकार हैं — वे देह में नहीं आते।
ब्रह्मा बाबा साकार हैं — जिनके माध्यम से शिव बाबा ने हम आत्माओं को adopt किया।
इसलिए कहा गया —
“शिव बाबा हैं पिता, और ब्रह्मा बाबा हैं मां।”

साकार मुरली, 3 जून 1970:

“शिव बाबा तो निराकार है, इसलिए ब्रह्मा है मां।”

यह रिश्ता देह का नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव का है —
जहाँ शिव बाबा ज्ञान का स्रोत हैं और ब्रह्मा बाबा ममता का माध्यम।


प्रश्न 2:“मां” शब्द सुनते ही मन में कौन-सी भावनाएँ उठती हैं?

उत्तर:
“मां” का अर्थ है — प्रेम, ममता और सुरक्षा।
मां वह होती है जो बिना कहे समझ जाए, बिना मांगे दे,
और अपने बच्चे को अपने आंचल में संभाले रखे।

लेकिन ब्रह्मा बाबा वह अलौकिक मां हैं
जिनका प्रेम देह से नहीं, आत्मा से जुड़ा हुआ है।


प्रश्न 3:

शिव बाबा को “ममता का सागर” क्यों कहा गया है?

उत्तर:
क्योंकि शिव बाबा ही वह हैं
जो हमें मां के समान स्नेह और बाप के समान शिक्षा दोनों देते हैं।

साकार मुरली, 16 फरवरी 1969:

“मैं मां के समान स्नेह से पालता हूं और बाप के समान शिक्षा देता हूं।”

शिव बाबा हमारे हर गलती को दंड से नहीं,
बल्कि प्रेम और करुणा से सुधारते हैं।
उनकी ममता देहधारी माओं से भी गहरी है —
क्योंकि वह आत्मा के प्रति प्रेम है।


प्रश्न 4:ब्रह्मा बाबा शिव की ममता का साकार रूप कैसे बने?

उत्तर:
निराकार शिव की ममता ब्रह्मा बाबा के द्वारा ही अनुभव होती है।
शिव बाबा ब्रह्मा के मुख से बोलते हैं और हमें ब्राह्मण रूप में adopt करते हैं।

साकार मुरली, 3 जून 1970:

“शिव बाबा तो निराकार है, इसलिए ब्रह्मा है मां।”

इसलिए ब्रह्मा बाबा बन गए शिव की मातृ ममता के साकार माध्यम।


प्रश्न 5:ब्रह्मा बाबा को “मात-पिता” क्यों कहा गया?

उत्तर:
क्योंकि उन्होंने हर बच्चे को अपने समान समझकर संवारा,
कभी क्रोध नहीं किया, केवल ममता से संभाला।

अव्यक्त मुरली, 24 जनवरी 1979:

“ब्रह्मा ने हर बच्चे को अपने समान समझकर संवारा।
इसलिए वे मात–पिता कहे जाते हैं।”

उनके स्नेह में सभी समान थे —
हर आत्मा उनके पास आती और भूल जाती कि वह बूढ़ा है या बच्चा।
इसलिए कहा गया —
“ब्रह्मा बाबा जगदंबा समान मां बन गए।”


प्रश्न 6:मातृभाव का उदाहरण क्या है?

उत्तर:
जैसे एक छोटी बच्ची रात में डर जाती है,
मां आती है और बस स्पर्श देती है — डर मिट जाता है।

मां के स्पर्श में सुरक्षा होती है।
इसी प्रकार जब हम योग में जाते हैं,
तो अनुभव करते हैं —
शिव बाबा की गोद, ब्रह्मा बाबा का स्नेह, और आत्मा की शांति।

साकार मुरली, 8 अप्रैल 1970:

“शिव बाबा बच्चों को मां–बाप दोनों के समान पालते हैं —
मां की ममता से संभालते हैं, बाप की शक्ति से सिखलाते हैं।”

अव्यक्त मुरली, 3 जनवरी 1983:

“ब्रह्मा बाबा ने अपने बच्चों को हर स्थिति में ममता से संभाला।
वे सच्चे अर्थों में जगदंबा समान मां थे।”


प्रश्न 7:इस संबंध का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर:
परमात्मा का प्रेम केवल ज्ञान या न्याय नहीं,
बल्कि करुणा और ममता से भरा हुआ है।

शिव बाबा हमारी आत्मा की देखभाल ऐसे करते हैं
जैसे मां अपने बच्चे की पीड़ा पहले ही समझ जाए।
ब्रह्मा बाबा उस ममता का साकार रूप हैं,
जिसके द्वारा परमात्मा की शक्ति आत्माओं तक पहुँचती है।


प्रश्न 8:“मात-पिता शिव ब्रह्मा” का संगम क्या दर्शाता है?

उत्तर:
यह संगम दर्शाता है —
निराकार शिव का ज्ञानमय प्रेम
और साकार ब्रह्मा की ममत्वपूर्ण करुणा का मिलन।

यह रिश्ता किसी देह का नहीं,
बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच का है।
इसलिए इसे कहा गया —
“मात-पिता शिव ब्रह्मा का अद्भुत संगम।”

Disclaimer:

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुरलियों और शिक्षाओं पर आधारित आध्यात्मिक व्याख्या है। इसका उद्देश्य किसी धार्मिक मत या व्यक्तित्व की तुलना करना नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के पवित्र संबंध को समझाना है। कृपया इसे एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण करें।

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