(14)”Sita Parvati, the consort of Shankar – no, why not?

शिवबाबा :ब्रह्मा बाबा का रिश्ता:-(14)”शंकर की युगल पत्नी सीता पार्वती — नहीं क्यों नहीं?

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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शंकर की युगल पत्नी सीता पार्वती — रहस्य

 प्रस्तावना

हमने भक्ति मार्ग में हमेशा सुना — शंकर की पत्नी पार्वती हैं, उनकी शक्ति दुर्गा, कात्यायनी, भवानी आदि हैं।
परंतु 4 नवम्बर 2025 की मुरली में शिव बाबा ने इस धारणा को गहराई से पलटते हुए कहा —

“शंकर की कोई युगल नहीं।”
अब प्रश्न उठता है — क्यों नहीं?
जबकि हर देवता का युगल होता है — ब्रह्मा की सरस्वती, विष्णु की लक्ष्मी।
तो फिर शंकर अकेले क्यों?


1. विषय का संबंध — सृष्टि चक्र का सूक्ष्म भाग

यह विषय सृष्टि चक्र के सूक्ष्म भाग से जुड़ा है।
सारी सृष्टि आत्मा और देह के संयोजन से चलती है।
परंतु हर आत्मा का एक सूक्ष्म कार्य भी होता है — जो सूक्ष्म लोक में घटित होता है।
इसीलिए कहा जाता है — “शंकर सूक्ष्म लोक का वासी है।”

उदाहरण:
जैसे हम नींद में शरीर से अलग होकर सपने देखते हैं — वैसे ही सूक्ष्म लोक में आत्मा अपने उच्च कार्य करती है।
शंकर का कार्य भी ऐसा ही सूक्ष्म कार्य है — देह से नहीं, योगबल से।


 2. शिव और शंकर — दोनों अलग हैं

मुरली 4 नवम्बर 2025:

“शिव और शंकर अलग हैं।”

  • शिव — निराकार, ज्योति बिंदु, परमात्मा।

  • शंकर — सूक्ष्म लोक निवासी, तपस्वी देवता।

तीन प्रमुख अंतर:

  1. रूप में: शिव लिंग स्वरूप हैं, शंकर देहधारी रूप में दिखाए जाते हैं।

  2. नाम में: “शिवलिंग” कहा जाता है, “शंकरलिंग” नहीं।

  3. कार्य में: शिव कल्याणकारी हैं, शंकर विनाश के योगी प्रतीक।

भक्ति में भी प्रमाण:

  • शिवरात्रि मनाई जाती है, “शंकररात्रि” नहीं।

  • शिवजयंती मनाई जाती है, “शंकरजयंती” नहीं।

निष्कर्ष:
शिव — परमात्मा।
शंकर — योगबल द्वारा परिवर्तन का प्रतीक।


 3. शंकर और शिव की भक्ति में अंतर

भक्ति मार्ग में शंकर को हमेशा ध्यानमग्न योगी के रूप में दिखाया गया है —
उनके सामने शिवलिंग रखा होता है।
वे “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हैं।

अब सोचिए —
जो “ॐ नमः शिवाय” कह रहा है, क्या वही शिव हो सकता है?
नहीं।
इसका अर्थ है —
नमस्कार करने वाला (शंकर) और जिसे नमस्कार किया जा रहा है (शिव) — दोनों अलग हैं।

“मैं आत्मा शिव को नमस्कार करती हूँ।”

अतः स्पष्ट है —
शंकर योगी हैं, शिव उनके इष्ट।


 4. शंकर की युगल क्यों नहीं?

शंकर तपस्वी आत्मा का प्रतीक हैं।
उनका कार्य है —
रावण राज्य का अंत करना,
विकारों का रूपांतरण करना,
और आत्माओं को शिव से जोड़ना।

भक्ति मार्ग में उन्हें पार्वती के साथ गृहस्थ देवता बनाया गया,
परंतु ज्ञान मार्ग में शिव बाबा कहते हैं —

“शंकर की कोई युगल नहीं, क्योंकि वे योगी हैं, गृहस्थ नहीं।”

उदाहरण:
जैसे अग्नि केवल जलाती है, पर सृजन नहीं करती।
वैसे ही शंकर का कार्य केवल विनाश अर्थात परिवर्तन का है — न कि सृजन या पालन का।


 5. भक्ति दृष्टिकोण बनाम ज्ञान दृष्टिकोण

भक्ति दृष्टिकोण:

  • “शिव बिना शक्ति के शून्य है।”

  • इसलिए शक्तियों को पार्वती, दुर्गा, कात्यायनी, अन्नपूर्णा कहा गया।

ज्ञान दृष्टिकोण:

  • शिव निराकार हैं — वे किसी के पति नहीं।

  • शंकर सूक्ष्म रूप हैं — उनका कोई देह या पत्नी नहीं।

भक्तों ने शंकर को देह में दिखाया, परंतु शास्त्रों में कहा गया —

“शंकर नंगा है, ना अंगा है।”
अर्थात् — शरीर रहित, सूक्ष्म स्वरूप।


 6. शंकर — तपस्वी और रूपांतरण का प्रतीक

शंकर का कोई गृह नहीं, कोई पत्नी नहीं, कोई संतान नहीं।
वे वनवासी, योगी, वैराग्य की मूर्ति हैं।
उनका कार्य है —
योग की अग्नि से विकारों का रूपांतरण।

भक्ति में विनाशक,
ज्ञान में परिवर्तक।

इसलिए शंकर की कोई युगल नहीं,
क्योंकि युगल वही होता है जो सृजन या पालन में भाग ले —
शंकर तो केवल योगबल से परिवर्तन का कार्य करते हैं।


 7. ब्रह्मा, विष्णु, शंकर — तीन सूक्ष्म भूमिकाएँ

मुरली 4 नवम्बर 2025:

“ब्रह्मा द्वारा स्थापना,
विष्णु द्वारा पालन,
शंकर द्वारा विनाश।”

  • ब्रह्मा — सृष्टि की स्थापना करते हैं। उनकी शक्ति सरस्वती है।

  • विष्णु — पालनकर्ता हैं। वे युगल रूप — लक्ष्मी-नारायण हैं।

  • शंकर — तपस्वी योगी, एकाकी। उनका कोई युगल नहीं।

शिव इन तीनों के मास्टर निर्देशक हैं —
स्वयं कार्य नहीं करते, परंतु शक्तियों के माध्यम से कराते हैं।


 8. निष्कर्ष

शंकर कोई देहधारी या गृहस्थ देवता नहीं।
वे योगबल और वैराग्य की मूर्ति हैं।
उनका कोई युगल इसलिए नहीं —
क्योंकि वे सृजन या पालन नहीं करते, बल्कि रूपांतरण का प्रतीक हैं।

शिव — परमात्मा।
शंकर — शिव की याद में स्थित तपस्वी योगी।

“शंकर विनाश नहीं, परिवर्तन का प्रतीक है।” — मुरली 4 नवम्बर 2025


 Murli Reference Notes

मुरली दिनांक: 4 नवम्बर 2025
विषय: शिव-शंकर रहस्य
मुख्य वाक्य:

“शिव और शंकर अलग हैं।”
“शंकर की कोई युगल नहीं।”
“शंकर योगबल से परिवर्तन का कार्य करते हैं।”

प्रश्न 1:
हमने हमेशा सुना है कि शंकर की पत्नी पार्वती हैं, फिर शिव बाबा ने 4 नवम्बर 2025 की मुरली में क्यों कहा — “शंकर की कोई युगल नहीं”?

उत्तर:
भक्ति मार्ग में हर देवता के युगल का वर्णन है — जैसे ब्रह्मा की सरस्वती, विष्णु की लक्ष्मी।
परंतु ज्ञान मार्ग में शिव बाबा बताते हैं कि शंकर कोई गृहस्थ देवता नहीं, बल्कि योगी और तपस्वी प्रतीक हैं।
उनका कार्य सृष्टि का पालन या सृजन नहीं, बल्कि विनाश अर्थात परिवर्तन का है।
इसीलिए उनका कोई युगल नहीं।


1. विषय का संबंध — सृष्टि चक्र के सूक्ष्म भाग से

प्रश्न 2:
शंकर का “सूक्ष्म भाग” क्या है?

उत्तर:
शंकर का कार्य देह के माध्यम से नहीं होता, वह सूक्ष्म लोक में घटित होता है।
जैसे हम नींद में शरीर से अलग होकर सपने देखते हैं, वैसे ही शंकर आत्मिक स्तर पर कार्य करते हैं।
वे योगबल से परिवर्तन का कार्य करते हैं, न कि देह या शक्ति के सहयोग से।

मुरली बिंदु:

“शंकर सूक्ष्म लोक का वासी है।” — 4 नवम्बर 2025


2. शिव और शंकर — दोनों अलग हैं

प्रश्न 3:
क्या शिव और शंकर एक ही हैं?

उत्तर:
नहीं।
मुरली 4 नवम्बर 2025 में स्पष्ट कहा गया —

“शिव और शंकर अलग हैं।”

  • शिव — निराकार, ज्योति बिंदु, परमात्मा।

  • शंकर — सूक्ष्म लोक निवासी, तपस्वी योगी।

तीन प्रमुख अंतर:

  1. रूप में: शिव लिंग स्वरूप हैं, शंकर आकारी रूप में दिखाए जाते हैं।

  2. नाम में: “शिवलिंग” कहा जाता है, “शंकरलिंग” नहीं।

  3. कार्य में: शिव कल्याणकारी हैं, शंकर विनाश अर्थात परिवर्तन का प्रतीक हैं।

भक्ति प्रमाण:

  • शिवरात्रि मनाई जाती है, “शंकररात्रि” नहीं।

  • शिवजयंती मनाई जाती है, “शंकरजयंती” नहीं।


3. शंकर और शिव की भक्ति में अंतर

प्रश्न 4:
भक्ति मार्ग में शंकर को शिवलिंग की पूजा करते दिखाया गया है, इसका क्या अर्थ है?

उत्तर:
भक्ति में शंकर को हमेशा ध्यानमग्न योगी के रूप में दिखाया गया है, जिनके सामने शिवलिंग रखा रहता है।
वे “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हैं।
इसका अर्थ है — जो शिव को नमस्कार कर रहा है, वह स्वयं शिव नहीं हो सकता।

“मैं आत्मा शिव को नमस्कार करती हूँ।”
अतः स्पष्ट है —
शंकर योगी हैं, और शिव उनके इष्ट देवता हैं।


4. शंकर की युगल क्यों नहीं?

प्रश्न 5:
यदि शंकर देवता हैं, तो उनकी पत्नी या युगल क्यों नहीं?

उत्तर:
शंकर का कार्य है — विकारों का रूपांतरण करना और आत्माओं को शिव से जोड़ना।
वे योगी, संयमी, और वैराग्य की मूर्ति हैं।
उनका कोई गृहस्थ जीवन नहीं, इसलिए उनका कोई युगल भी नहीं।

उदाहरण:
जैसे अग्नि केवल जलाती है, सृजन नहीं करती —
वैसे ही शंकर का कार्य भी विनाश अर्थात परिवर्तन का है, न कि सृजन या पालन का।

“शंकर की कोई युगल नहीं, क्योंकि वे योगी हैं, गृहस्थ नहीं।” — मुरली 4 नवम्बर 2025


5. भक्ति दृष्टिकोण बनाम ज्ञान दृष्टिकोण

प्रश्न 6:
भक्ति और ज्ञान दृष्टिकोण में शंकर के विषय में क्या अंतर है?

उत्तर:
भक्ति दृष्टिकोण में: कहा गया — “शिव बिना शक्ति के शून्य है।”
इसलिए पार्वती, दुर्गा, भवानी, अन्नपूर्णा को शिव की शक्तियां माना गया।

ज्ञान दृष्टिकोण में:
शिव निराकार हैं — वे किसी के पति नहीं।
शंकर सूक्ष्म रूप हैं — उनका कोई शरीर या पत्नी नहीं।

शास्त्रीय प्रमाण:

“शंकर नंगा है, ना अंगा है।”
अर्थात — वे शरीर रहित, सूक्ष्म स्वरूप हैं।


6. शंकर — तपस्वी और रूपांतरण का प्रतीक

प्रश्न 7:
शंकर का वास्तविक कार्य क्या है?

उत्तर:
शंकर योगबल और तपस्या की शक्ति से विकारों का रूपांतरण करते हैं।
वे गृहस्थ नहीं, योगी और वैराग्य की प्रतिमूर्ति हैं।

भक्ति मार्ग में: शंकर को विनाशक कहा गया।
ज्ञान मार्ग में: वे परिवर्तन का प्रतीक हैं।

“युगल वही होता है जो सृजन या पालन में भाग ले,
पर शंकर तो केवल परिवर्तन का कार्य करते हैं।” — मुरली 4 नवम्बर 2025


7. ब्रह्मा, विष्णु, शंकर — तीन सूक्ष्म भूमिकाएँ

प्रश्न 8:
तीनों सूक्ष्म देवताओं की भूमिकाओं में क्या भेद है?

उत्तर:
मुरली 4 नवम्बर 2025 में कहा गया:

“ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालन, शंकर द्वारा विनाश।”

  • ब्रह्मा: स्थापना करते हैं, उनकी शक्ति सरस्वती है।

  • विष्णु: पालनकर्ता हैं, उनका युगल स्वरूप लक्ष्मी-नारायण है।

  • शंकर: तपस्वी योगी हैं, उनका कोई युगल नहीं।

शिव तीनों के निर्देशक हैं —
वे स्वयं कार्य नहीं करते, बल्कि शक्तियों के माध्यम से कराते हैं।


8. निष्कर्ष

प्रश्न 9:
संक्षेप में शंकर और उनकी स्थिति को कैसे समझें?

उत्तर:
शंकर कोई देहधारी या गृहस्थ देवता नहीं।
वे योगबल, वैराग्य, और परिवर्तन के प्रतीक हैं।
उनका कोई युगल नहीं क्योंकि वे सृजन या पालन में नहीं, बल्कि विनाश अर्थात परिवर्तन के कार्य में हैं।

“शंकर विनाश नहीं, परिवर्तन का प्रतीक है।” — मुरली 4 नवम्बर 2025

निष्कर्ष:

  • शिव — परमात्मा, निराकार, कल्याणकारी।

  • शंकर — तपस्वी योगी, शिव की याद में स्थित आत्मा।


 Disclaimer

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित है।
इसका उद्देश्य किसी देवी-देवता, धर्म या परंपरा की तुलना या आलोचना करना नहीं है।
यह केवल ज्ञान मार्ग के दृष्टिकोण से आध्यात्मिक रहस्यों का स्पष्टीकरण है।

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