(02)”14-01-1984 “Double servants automatically conquer Maya”

अव्यक्त मुरली-(02)”14-01-1984 “डबल सेवाधारी स्वत: ही मायाजीत”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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(02)”14-01-1984 सतयुग की स्थापना के बारे में कुछ जानकारी

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14-01-1984 “डबल सेवाधारी स्वत: ही मायाजीत”

आज दिलाराम बाप अपने दिल तख्तनशीन बच्चों से वा अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों से दिल की लेन-देन करने आये हैं। बाप की दिल में क्या रहता और बच्चों की दिल में क्या रहता है, आज सभी के दिल का हाल-चाल लेने आये हैं। खास दूरांदेशी डबल विदेशी बच्चों से दिल की लेन-देन करने आये हैं। मुरली तो सुनते रहते हो लेकिन आज रुह-रुहान करने आये हैं कि सभी बच्चे सहज सरल रुप से आगे बढ़ते जा रहे हो? कोई मुश्किल, चलने में थकावट तो नहीं लगती, थकते तो नहीं हो? किसी छोटी बड़ी बातों में कन्फ्यूज़ तो नहीं होते हो? जब किसी न किसी ईश्वरीय मर्यादा वा श्रीमत के डायरेक्शन को संकल्प में, वाणी में वा कर्म में उल्लंघन करते हो तब कन्फ्यूज होते हो। नहीं तो बहुत खुशी-खुशी से, सुख चैन आराम से बाप के साथ-साथ चलने में कोई मुश्किल नहीं। कोई थकावट नहीं। कोई उलझन नहीं। किसी भी प्रकार की कमजोरी सहज को मुश्किल बना देती है। तो बापदादा बच्चों को देख रुह-रुहान कर रहे थे कि इतने लाडले, सिकीलधे श्रेष्ठ आत्मायें, विशेष आत्मायें, पुण्य आत्मायें, सर्व श्रेष्ठ पावन आत्मायें, विश्व के आधारमूर्त आत्मायें और फिर मुश्किल कैसे? उलझन में कैसे आ सकते हैं? किसके साथ चल रहे हैं? बापदादा स्नेह और सहयोग की बाँहों में समाते हुए साथ-साथ ले जा रहे हैं। स्नेह, सहयोग के बांहों की माला सदा गले में पड़ी हुई है। ऐसे माला में पिरोये हुए बच्चे और उलझन में आवें यह हो कैसे सकता! सदा खुशी के झूले में झूलने वाले सदा बाप की याद में रहने वाले मुश्किल वा उलझन में आ नहीं सकते! कब तक उलझन और मुश्किल का अनुभव करते रहेंगे? बाप की पालना की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले उलझन में कैसे आ सकते हैं। बाप का बनने के बाद, शक्तिशाली आत्मायें बनने के बाद, माया के नॉलेजफुल बनने के बाद सर्वशक्तियों, सर्व खजानों के अधिकारी बनने के बाद क्या माया वा विघ्न हिला सकते हैं? (नहीं) बहुत धीरे-धीरे बोलते हैं। बोलो, सदाकाल के लिए नहीं। देखना – सभी का फोटो निकल रहा है। टेप भरी है आवाज की। फिर वहाँ जाकर बदल तो नहीं जायेंगे ना! अभी से सिर्फ स्नेह के, सेवा के, उड़ती कला के विशेष अनुभवों के ही समाचार देंगे ना। माया आ गई, गिर गये, उलझ गये, थक गये, घबरा गये, ऐसे-ऐसे पत्र तो नहीं आयेंगे ना! जैसे आजकल की दुनिया में समाचार पत्रों में क्या खबरें निकलती हैं? दु:ख की, अशान्ति की, उलझनों की।

लेकिन आपके समाचार पत्र कौन से होंगे? सदा खुशखबरी के। खुशी के अनुभव – आज मैंने यह विशेष अनुभव किया। आज यह विशेष सेवा की। आज मनसा के सेवा की अनुभूति की। आज दिलशिकस्त को दिलखुश बना दिया। नीचे गिरे हुए को उड़ा दिया। ऐसे पत्र लिखेंगे ना क्योंकि 63 जन्म उलझे भी, गिरे भी, ठोकरें भी खाई। सब कुछ किया और 63 जन्मों के बाद यह एक श्रेष्ठ जन्म, परिवर्तन का जन्म, चढ़ती कला से भी उड़ती कला का जन्म, इसमें उलझना, गिरना, थकना बुद्धि से भटकना, यह बापदादा देख नहीं सकते क्योंकि स्नेही बच्चे हैं ना। तो स्नेही बच्चों का यह थोड़ा-सा दु:ख की लहर का समय सुखदाता बाप देख नहीं सकते। समझा! तो अभी सदाकाल के लिए बीती को बीती कर लिया ना। जिस समय कोई भी बच्चा ज़रा भी उलझन में आता वा माया के विघ्नों के वश हो जाता, कमजोर हो जाता उस समय वतन में बापदादा के सामने उन बच्चों का चेहरा कैसा दिखाई देता है, मालूम है? मिक्की माउस के खेल की तरह। कभी माया के बोझ से मोटे बन जाते। कभी पुरुषार्थ के हिम्मतहीन छोटे बन जाते। मिक्की माउस भी कोई छोटा, कोई मोटा होता है ना! मिक्की माउस तो नहीं बनेंगे ना। बापदादा भी यह खेल देख हँसते रहते हैं। कभी देखो फरिश्ता रुप, कभी देखो महादानी रुप, कभी देखो सर्व के स्नेही सहयोगी रुप, कभी डबल लाइट रुप और कभी-कभी फिर मिक्की माउस भी हो जाते हैं। कौन-सा रुप अच्छा लगता है? यह छोटा-मोटा रुप तो अच्छा नहीं लगता है ना। बापदादा देख रहे थे कि बच्चों को अभी कितना कार्य करना है। किया है वह तो करने के आगे कुछ भी नहीं है। अभी कितनों को सन्देश दिया है? कम से कम सतयुग की पहली संख्या 9 लाख तो बनाओ। बनाना तो ज्यादा है लेकिन अभी 9 लाख तो बनाओ। बापदादा देख रहे थे कि कितनी सेवा अभी करनी है, जिसके ऊपर इतनी सेवा की जिम्मेवारी है। वह कितने बिजी होंगे! उन्हों को और कुछ सोचने की फुर्सत होगी? जो बिज़ी रहता है वह सहज ही मायाजीत होता है। बिजी किसमें हैं? दृष्टि द्वारा, मनसा द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा, सम्पर्क द्वारा चारों प्रकार की सेवा में बिजी। मनसा और वाणी वा कर्म दोनों साथ-साथ हों। चाहे कर्म करते हो, चाहे मुख से बोलते हो, जैसे डबल लाइट हो, डबल ताजधारी हो, डबल पूज्य हो, डबल वर्सा पाते हो तो सेवा भी डबल चाहिए। सिर्फ मनसा नहीं, सिर्फ कर्म नहीं। लेकिन मनसा के साथ-साथ वाणी। मनसा के साथ-साथ कर्म। इसको कहा जाता है डबल सेवाधारी। ऐसे डबल सेवाधारी स्वत: ही मायाजीत रहते हैं। समझा! सिंगल सेवा करते हो। सिर्फ वाणी में वा सिर्फ कर्म में आ जाते हो तो माया को साथी बनने का चांस मिल जाता है। मनसा अर्थात् याद। याद है बाप का सहारा। तो जहाँ डबल है, साथी साथ में है तो माया साथी बन नहीं सकती। सिंगल होते हो तो माया साथी बन जाती है। फिर कहते सेवा तो बहुत की। सेवा की खुशी भी होती है लेकिन फिर सेवा के बीच में माया भी आ गई। कारण? सिंगल सेवा की। डबल सेवाधारी नहीं बनें। अभी इस वर्ष डबल विदेशी किस बात में प्राइज़ लेंगे? प्राइज़ लेनी तो है ना!

जो सेवाकेन्द्र इस वर्ष सेवा में, स्व की स्थिति में सदा निर्विघ्न रह, निर्विघ्न बनाने का वायब्रेशन विश्व में फैलायेंगे, सारे वर्ष में कोई भी विघ्न वश नहीं होंगे – ऐसी सेवा और स्थिति में जिस भी सेवाकेन्द्र का एक्जैम्पुल होगा उसको नम्बर वन प्राइज़ मिलेगी। ऐसी प्राइज लेंगे ना! जितने भी सेन्टर्स लें। चाहे देश के हों, चाहे विदेश के हों लेकिन सारे वर्ष में निर्विघ्न हों। यह सेन्टर के पोतामेल का चार्ट रखना। जैसे और पोतामेल रखते हो ना। कितनी प्रदर्शनियाँ हुई, कितने लोग आये, वैसे यह पोतामेल हर मास का नोट करना। यह मास सब क्लास के आने वाले ब्राह्मण परिवार निर्विघ्न रहे। माया आई, इसमें कोई ऐसी बात नहीं। ऐसे नहीं कि माया आयेगी ही नहीं। माया आवे लेकिन माया के वश नहीं होना है। माया का काम है आना और आपका काम है माया को जीतना। उनके प्रभाव में नहीं आना है। अपने प्रभाव से माया को भगाना है न कि माया के प्रभाव में आना है। तो समझा कौन-सी प्राइज़ लेनी है। एक भी विघ्न में आया तो प्राइज नहीं क्योंकि साथी हो ना। सभी को एक दो को साथ देते हुए अपने घर चलना है ना। इसके लिए सदा सेवाकेन्द्र का वातावरण ऐसा शक्तिशाली हो जो वातावरण भी सर्व आत्माओं के लिए सदा सहयोगी बन जाए। शक्तिशाली वातावरण कमज़ोर को भी शक्तिशाली बनाने में सहयोगी होता है। जैसे किला बांधा जाता है ना। किला क्यों बांधते हैं कि प्रजा भी किले के अन्दर सेफ रहे। एक राजा के लिए कोठरी नहीं बनाते, किला बनाते थे। आप सभी भी स्वयं के लिए, साथियों के लिए, अन्य आत्माओं के लिए ज्वाला का किला बांधो। याद के शक्ति की ज्वाला हो। अभी देखेंगे कौन प्राइज लेते हैं? वर्ष के अन्त में न्यू ईयर मनाने आते हो ना, तो जो विजयी होंगे, उन्हों को विशेष निमन्‍त्रण देकर बुलाया जायेगा। अकेले विजयी नहीं होंगे। पूरा सेन्टर विजयी हो। उस सेन्टर की सेरीमनी करेंगे। फिर देखेंगे विदेश आगे आता है वा देश? अच्छा और कोई मुश्किल तो नहीं, कोई भी माया का रूप तंग तो नहीं करता है ना। यादगार में कहानी क्या सुनी है! सूपनखा उसको तंग करने आई तो क्या किया? माया का नाक काटने नहीं आता? यहाँ सब सहज हो जाता है, उन्होंने तो इन्ट्रेस्टिंग बनाने के लिए कहानी बना दी है। माया पर एक बार वार कर लिया, बस। माया में कोई दम नहीं है। बाकी है अन्दर की कमजोरी। मरी पड़ी है। थोड़ा-सा रहा हुआ श्वांस चल रहा है। इसको खत्म करना और विजयी बनना है क्योंकि अन्तिम समय पर तो पहुँच गये हैं ना! सिर्फ विजयी बन विजय के हिसाब से राज्य भाग्य पाना है। इसलिए यह अन्तिम श्वांस पर निमित्त मात्र विजयी बनना है। माया जीत जगतजीत हैं ना। विजय प्राप्त करने का फल राज्य भाग्य है। इसलिए सिर्फ निमित्त मात्र यह माया से खेल है। युद्ध नहीं है, खेल है। समझा! आज से मिक्की माउस नहीं बनना। अच्छा!

सतयुग की स्थापना के बारे में कुछ जानकारी

अपने कल्प पहले वाले स्वर्ग के मर्ज हुए संस्करों को इमर्ज करो तो स्वयं ही अपने को सतयुगी शहज़ादी वा शहजादे अनुभव करेंगे और जिस समय वह सतयुगी संस्कार इमर्ज करेंगे तो सतयुग की सभी रीति-रसम ऐसे स्पष्ट इमर्ज होगी जैसे कल की बात है। कल ऐसा करते थे – ऐसा अनुभव कर सकते हो! सतयुग का अर्थ ही है, जो भी प्रकृति के सुख हैं, आत्मा के सुख हैं, बुद्धि के सुख हैं, मन के सुख हैं, सम्बन्ध का सुख है, जो भी सुख होते वह सब हाजिर हैं। तो अब सोचो प्रकृति के सुख क्या होते हैं, मन का सुख क्या होता है, सम्बन्ध का सुख क्या होता है – ऐसे इमर्ज करो। जो भी आपको इस दुनिया में अच्छे ते अच्छा दिखाई देता है – वह सब चीजें प्युअर रूप में, सम्पन्न रूप में, सुखदाई रूप में वहाँ होंगी। चाहे धन कहो, मन कहो, मौसम कहो, सब प्राप्ति तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हैं, उसको ही सतयुग कहा जाता है। एक बहुत अच्छे ते अच्छी सुखदाई सम्पन्न फैमिली समझो; वहाँ राजा प्रजा समान मर्तबे होते हुए भी परिवार के रूप में चलता है। यह नहीं कहेंगे कि यह दास-दासी है। नम्बर होंगे, सेवा होगी लेकिन दासी है, इस भावना से नहीं चलेंगे। जैसे परिवार के सब सम्बन्ध खुश मिज़ाज, सुखी परिवार, समर्थ परिवार, जो भी श्रेष्ठता है वह सब है। दुकानों में भी खरीदारी करेंगे तो हिसाब-किताब से नहीं। परिवार की लेन-देन के हिसाब से कुछ देंगे कुछ लेंगे। गिफ्ट ही समझो। जैसे परिवार में नियम होता है – किसके पास ज्यादा चीज़ होती है तो सभी को बांटते हैं। हिसाब-किताब की रीति से नहीं। कारोबार चलाने के लिए कोई को कोई ड्युटी मिली हुई है, कोई को कोई। जैसे यहाँ मुधबन में है ना। कोई कपड़े सम्भालाता, कोई अनाज सम्भालता, कोई पैसे तो नहीं देते हो ना। लेकिन चार्ज़ वाले तो हैं ना। ऐसे वहाँ भी होंगे। सब चीजें अथाह हैं, इसलिए जी हाजिर। कमी तो है ही नहीं। जितना चाहिए, जैसा चाहिए वह लो। सिर्फ बिजी रहने का यह एक साधन है। वह भी खेल-पाल है। कोई हिसाब-किताब किसको दिखाना तो है नहीं। यहाँ तो संगम है ना। संगम माना एकानामी। सतयुग माना खाओ, पियो, उड़ाओ। इच्छा मात्रम् अविद्या है। जहाँ इच्छा होती वहाँ हिसाब-किताब करना होता। इच्छा के कारण ही नीचे ऊपर होता है। वहाँ इच्छा भी नहीं, कमी भी नहीं। सर्व प्राप्ति हैं और सम्पन्न भी हैं तो बाकी और क्या चाहिए। ऐसे नहीं अच्छी चीज लगती तो ज्यादा ले ली। भरपूर होंगे। दिल भरी हुई होगी। सतयुग में तो जाना ही है ना। प्रकृति सब सेवा करेगी। (सतयुग में बाबा तो नहीं होंगे) बच्चों का खेल देखते रहेंगे। कोई तो साक्षी भी हो ना। न्यारा तो न्यारा ही रहेगा ना। प्यारा रहेगा लेकिन न्यारा रह करके प्यारा रहेगा। प्यारे का खेल तो अभी कर रहे हैं ना। सतयुग में न्यारापन ही अच्छा है। नहीं तो जब आप सभी गिरेंगे तो कौन निकालेगा। सतयुग में आना अर्थात् चक्र में आना। अच्छा, सतयुग में जब आप जन्म लो तब निमन्‍त्रण देना, आप अगर संकल्प इमर्ज करेंगी तो फिर आयेंगे। सतयुग में आना अर्थात् चक्र में आना। बापदादा को स्वर्ग की बातों में आप आकर्षण कर रहे हो! अच्छा, इतने तो वैभव होंगे जो सब खा भी नहीं सकेंगे। सिर्फ देखते रहेंगे। अच्छा।

ऐसे सदा सर्व समर्थ आत्माओं को, सदा मायाजीत, जगतजीत आत्माओं को, सदा सहज योगी भव के वरदानी बच्चों को, डबल सेवाधारी, डबल ताजधारी, डबल लाइट बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादी जी मद्रास, बैंगलूर, मैसूर तथा कलकत्ता का चक्र लगाकर मधुबन पहुँची हैं, दादी जी को देख बापदादा बोले:-

कदमों में पदमों की सेवा समाई हुई है। चक्रवर्ती बन चक्र लगाए अपने यादगार स्थान बना लिए। कितने तीर्थ बने! महावीर बच्चों का चक्र लगाना माना यादगार बनना। हर चक्र में अपनी-अपनी विशेषता होती है। इस चक्र में भी कई आत्माओं के दिलों की आशा पूर्ण करने की विशेषता रही। यह दिल की आशा पूर्ण करना अर्थात् वरदानी बनना। वरदानी भी बनी और महादानी भी बनी। ड्रामा अनुसार जो प्रोग्राम बनता है उसमें कई राज़ भरे हुए होते हैं। राज़ उड़ाके ले जाते हैं। अच्छा।

जानकी दादी से:- आप सभी को नाम का दान देती हो! नाम का दान क्या है? आपका नाम क्या है! नाम का दान देना अर्थात् ट्रस्टी बनकर वरदान देना। आपका नाम लेते ही सबको क्या याद आयेगा? सेकेण्ड में जीवन मुक्ति। ट्रस्टी बनना। यह आपके नाम की विशेषता है। इसलिए नाम दान भी दे दो तो किसका भी बेड़ा पार हो जायेगा। बाप ने अभी आपके ट्रस्टीपन की विशेषता का गायन किया है, वही यादगार है। वही जनक अक्षर उनको मिल गया होगा। एक ही जनक की दो कहानियां हैं। एक जनक जो सेकेण्ड में विदेही बन गया। दूसरा जनक जो सेकेण्ड में ट्रस्टी बन गया। मेरा नहीं तेरा। त्रेता वाला जनक भी दिखाते हैं। लेकिन आप तो बाप की जनक हो, सीता वाली नहीं। नाम दान का महत्व क्यों हैं, इस पर क्लास कराना। नाम की नईया द्वारा भी पार हो जाते हैं। और कुछ समझ में न भी आये लेकिन शिवबाबा, शिवबाबा भी कहा तो स्वर्ग की गेट पास तो मिल जाती है। अच्छा।

सभी महारथी भाई-बहनों को देख:-

सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों की भी तो माला है ना। सभी विशेष रत्न निमित्त बने हुए हो। निमित्त बनने की विशेषता निमित्त बनाती है। ब्रह्मा बाप को आप सबके ऊपर एक बात का नाज़ है। कौन-सी बात का विशेष नाज़ है? सभी बच्चों ने एक दो में विचार मिलाते हुए आदि से युनिटी का जो रूप दिखाया है इस पर ब्रह्मा बाप को विशेष नाज़ है। युनिटी इस ब्राह्मण परिवार का फाउण्डेशन है। इसलिए ब्रह्मा बाप को अव्यक्त वतन में रहते भी बच्चों पर नाज़ है। देखते तो हैं ना कारोबार।

लण्डन ग्रुप से:- सदा रुहानी गुलाब बन औरों को भी खुशबू देने वाले अविनाशी बगीचे के पुष्प हो ना। सभी रुहानी गुलाब हो। जिस रुहानी गुलाब को देख सारी विश्व आकर्षित होती है। एक-एक रुहानी गुलाब कितना वैल्युबुल है। अमूल्य है। जो अभी तक भी आप सबके जड़ चित्रों की भी वैल्यु है। एक-एक जड़ चित्र कितनी वैल्यु से लेते वा देते हैं। हैं तो साधारण पत्थर या चांदी या सोना लेकिन वैल्यु कितनी है। सोने की मूर्ति कितनी वैल्यु में देंगे। इतने वैल्युबुल कैसे बने! क्योंकि बाप का बनने से सदा ही श्रेष्ठ बन गये। इसी भाग्य के गीत सदा गाते रहो। वाह मेरा भाग्य और वाह भाग्य विधाता और वाह संगमयुग। वाह मीठा ड्रामा। सबमें वाह-वाह आता है ना। वाह-वाह के गीत गाते रहते हो ना! बापदादा को लण्डन निवासियों पर नाज़ है, सेवा के वृक्ष का बीज जो है वह लण्डन है। तो लण्डन निवासी भी बीजरूप हो गये। यू.के. वाले अर्थात् सदा ओ.के. रहने वाले, सदा पढ़ाई और सेवा दोनों का बैलेन्स रखने वाले। सदा हर कदम में स्वयं की उन्नति को अनुभव करने वाले। जब बाप के बने तो सदा बाप का साथ और बाप का हाथ है, हर बच्चे के ऊपर – ऐसे अनुभव करते हो ना। जिनके ऊपर बाप का हाथ है, वह सदा ही सेफ हैं। सदा सेफ रहने वाले हो ना। ओ.के. ग्रुप के पास माया तो नहीं आती है ना। माया भी सदा के लिए ओ.के., ओ.के. करके विदाई करके चली जाती है। यू.के. अर्थात् ओ.के. ग्रुप को संग भी तो बहुत श्रेष्ठ है ना। संग अच्छा, वायुमण्डल शक्तिशाली तो माया आ कैसे सकती! सदा ही सेफ होंगे। ओ.के. ग्रुप अर्थात् मायाजीत ग्रुप।

मॉरीशियस पार्टी:- सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान समझते हो? भाग्य में क्या मिला? भगवान ही भाग्य में मिल गया! स्वयं भगवान विधाता भाग्य में मिल गया। इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है? तो सदा ये खुशी रहती है कि विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान हम आत्मायें हैं। हम नहीं, हम आत्मायें। आत्मायें कहेंगे तो कभी भी उल्टा नशा नहीं आयेगा। देही-अभिमानी बनने से श्रेष्ठ नशा – ईश्वरीय नशा रहेगा। भाग्यवान आत्मायें हैं, जिन्हों के भाग्य का अब भी गायन हो रहा है। ‘भागवत’ – आपके भाग्य का यादगार है। ऐसा अविनाशी भाग्य जो जब तक भी गायन है, इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। कुमारियाँ तो निर्बन्धन, तन से भी निर्बन्धन, मन से भी निर्बन्धन। ऐसे निर्बन्धन ही उड़ती कला का अनुभव कर सकते हैं।

“डबल सेवाधारी बनो तो स्वतः ही माया हार जाएगी | अव्यक्त मुरली 14 जनवरी 1984 | BapDada’s Secret Formula”


 अध्याय – “डबल सेवाधारी स्वतः ही मायाजीत”

(अव्यक्त मुरली – 14 जनवरी 1984)
स्थान: मधुबन
मुख्य विषय: डबल सेवाधारी बनना ही मायाजीत बनने की चाबी


 1. दिलाराम बाप का दिल से संवाद

आज दिलाराम बाप अपने दिल-तख्तनशीन बच्चों से मिलने आये हैं।
वे बच्चों की दिल की स्थिति, सेवा की भावना और सहजता से चलने की अवस्था का हाल-चाल लेने आये हैं।
बाबा पूछते हैं —

“बच्चों! चलने में कोई थकावट तो नहीं? किसी छोटी बात में कन्फ्यूज़ तो नहीं होते?”

मुख्य संदेश:
जब हम श्रीमत के किसी भी निर्देश का उल्लंघन करते हैं — संकल्प, वाणी या कर्म से — तभी कन्फ्यूज़न और कमजोरी आती है।
अन्यथा ईश्वरीय साथ में जीवन बहुत सहज, सरल और सुखदायी बन जाता है।

उदाहरण:
जैसे धारा के साथ नाव आसानी से बहती है, वैसे ही श्रीमत की धारा में चलने से जीवन सहज हो जाता है।


 2. स्नेह और सहयोग की बाँहों में

बापदादा कहते हैं —

“बाप स्नेह और सहयोग की बाँहों में लेकर साथ-साथ चला रहे हैं।”

जो आत्माएँ इस स्नेह की बाँहों में हैं, वे कभी उलझन या मुश्किल में नहीं आ सकतीं
वे सदा खुशी के झूले में झूलने वाली आत्माएँ हैं।

मुख्य बिंदु:

  • माया का कोई अधिकार स्नेही बच्चों पर नहीं चलता।

  • उलझन, थकावट, निराशा — ये सब कमी की निशानियाँ हैं।

  • जहाँ स्नेह, सहयोग और बाप का साथ है — वहाँ माया टिक नहीं सकती।


 3. मिक्की माउस का खेल – बाबा की रुहानी मज़ाक

बाबा ने बच्चों की स्थिति को देखकर प्रेमपूर्वक कहा —

“कभी माया के बोझ से मोटे बन जाते हो, कभी हिम्मतहीन छोटे बन जाते हो — जैसे मिक्की माउस!”

गूढ़ संकेत:
कभी हम बहुत हिम्मत से भर जाते हैं, और कभी एक छोटी बात में गिर जाते हैं।
यह उतार-चढ़ाव ही माया का खेल है।

स्मृति:
हम सर्वशक्तिशाली बाप के बच्चे हैं — फिर माया हमें हिला नहीं सकती।


 4. सेवा में बिज़ी रहना ही माया से सेफ रहना

बाबा ने कहा —

“जो बिज़ी रहते हैं — वही मायाजीत रहते हैं।”

चार प्रकार की सेवा:

  1. दृष्टि द्वारा

  2. मनसा द्वारा

  3. वाणी द्वारा

  4. कर्म द्वारा

जब ये चारों सेवा एक साथ होती हैं, तो आत्मा बन जाती है — डबल सेवाधारी।
ऐसे बच्चे स्वतः ही मायाजीत बन जाते हैं।

उदाहरण:
सिर्फ वाणी से सेवा करने वाला शिक्षक थक सकता है,
परंतु जो याद में रहकर बोलता और कर्म करता है, वह कभी थकता नहीं।


 5. सिंगल सेवा में माया को चांस मिलता है

बाबा स्पष्ट कहते हैं —

“जहाँ डबल सेवा है, वहाँ बाप साथी है। जहाँ सिंगल सेवा है, वहाँ माया साथी बन जाती है।”

मतलब:

  • अगर हम सिर्फ कर्म से या सिर्फ मनसा से सेवा करते हैं — माया बीच में आ जाती है।

  • याद और कर्म का संयोजन ही सुरक्षा कवच है।


 6. इस वर्ष की विशेष प्राइज़

बाबा ने डबल विदेशियों से कहा —

“जो सेंटर सारा वर्ष निर्विघ्न रहकर, स्वयं को और दूसरों को निर्विघ्न बनायेगा — वही नम्बर वन प्राइज पायेगा।”

सेवा का चार्ट:
हर माह यह देखें —

  • सेंटर में कोई विघ्न तो नहीं आया?

  • सब आत्माएँ शक्तिशाली स्थिति में हैं?

संकल्प:
माया आएगी, परंतु हम उसके प्रभाव में नहीं आयेंगे।
हमारे प्रभाव से माया दूर भागेगी।


 7. शक्तिशाली वातावरण = माया की हार

बाबा का आदेश —

“याद की शक्ति की ज्वाला से किला बांधो।”

उदाहरण:
जैसे राजा अपने नगर की रक्षा के लिए किला बनाता है,
वैसे ही ब्राह्मण परिवार को याद की अग्नि का किला बनाना है —
जहाँ कोई भी माया प्रवेश न कर सके।


 8. माया से युद्ध नहीं, खेल है

“माया से युद्ध नहीं, खेल है।”

अर्थ:
हम अब जान चुके हैं कि माया का अस्तित्व केवल कमजोर संकल्पों में है।
अब हमारा कार्य है — उसे हँसते-खेलते परास्त करना।

संकल्प:
“आज से मिक्की माउस नहीं बनना है!”


 9. सतयुग का इमर्ज अनुभव

बाबा ने कहा —

“अपने सतयुगी संस्कारों को इमर्ज करो।”

जब हम अपने स्वर्गीय संस्कारों को अनुभव करते हैं —
तो सतयुग हमारे सामने जीवंत हो उठता है।

सतयुग का अर्थ:

  • प्रकृति, मन, बुद्धि और सम्बन्ध — सब में सुख है।

  • कोई इच्छा नहीं, कोई हिसाब-किताब नहीं।

  • सब परिवार की भावना से व्यवहार करते हैं।

उदाहरण:
जैसे मधुबन में सब मिलकर सेवा करते हैं, वैसे ही सतयुग में सभी आत्माएँ परिवार भाव से कार्य करती हैं।


 10. बापदादा का नाज़ अपने बच्चों पर

ब्रह्मा बाबा को नाज़ है कि

“सभी बच्चे एक-दूसरे से विचार मिलाकर युनिटी का रूप दिखाते हैं।”

मुख्य बात:

  • ब्राह्मण परिवार की शक्ति = एकता

  • यही युनिटी इस यज्ञ का फाउंडेशन है।


 11. देश-विदेश के बच्चों के लिए वरदान

  • लण्डन ग्रुप: “रूहानी गुलाब बनो, जिसकी खुशबू विश्व को आकर्षित करे।”

  • मॉरीशियस पार्टी: “भगवान भाग्य में मिल गया — इससे बड़ा भाग्य क्या हो सकता है?”

  • कुमारियाँ: “निर्बन्धन रहो — तन और मन दोनों से मुक्त बन उड़ती कला का अनुभव करो।”


 12. वरदान

“सदा डबल सेवाधारी, डबल लाइट, डबल ताजधारी बनो — यही मायाजीत की पहचान है।”

स्लोगन:

“जो सदा बिज़ी है सेवा में, वही माया से सेफ है।
डबल सेवाधारी बनो — और मायाजीत बनकर जगतजीत बनो।”


 13. आत्म-मंथन के लिए प्रश्न

  1. क्या मैं मनसा, वाणी और कर्म — तीनों से सेवा कर रहा हूँ?

  2. क्या मेरे सेंटर का वातावरण निर्विघ्न है?

  3. क्या मैं डबल सेवाधारी की स्थिति में हूँ — या कभी सिंगल बन जाता हूँ?


 निष्कर्ष

डबल सेवाधारी बनना केवल सेवा का स्वरूप नहीं — यह माया से सुरक्षा कवच है।
जो आत्मा डबल सेवाधारी है — वह सदा बाप के संग में रहती है,
और ऐसे आत्माएँ ही डबल लाइट, डबल ताजधारी, डबल पूज्य बनती हैं।

प्रश्न 1: बाबा ने बच्चों से सबसे पहले कौन-सा प्यारा प्रश्न पूछा और उसका क्या भाव था?

उत्तर:
बाबा ने स्नेह से पूछा —
“बच्चों! चलने में कोई थकावट तो नहीं? किसी छोटी बात में कन्फ्यूज़ तो नहीं होते?”
इसमें बाबा का भाव था कि बच्चे ईश्वरीय मार्ग पर सहजता से चल रहे हैं या किसी विचार, संकल्प या परिस्थिति में उलझ तो नहीं रहे।
क्योंकि जब हम श्रीमत से थोड़ी भी विपरीत दिशा में जाते हैं — संकल्प, वाणी या कर्म से — तब ही भ्रम, थकावट या कमजोरी आती है।
श्रीमत के साथ चलना जीवन को बहुत सरल, सहज और सुखद बना देता है।

उदाहरण:
जैसे नदी की धारा के साथ नाव सहज बहती है, वैसे ही श्रीमत की धारा में चलने वाला जीवन भी सहज बन जाता है।


प्रश्न 2: “बाप स्नेह और सहयोग की बाँहों में लेकर साथ चला रहे हैं” — इसका क्या अर्थ है?

उत्तर:
इसका अर्थ है कि जो आत्माएँ बाप के स्नेह और सहयोग की अनुभूति में रहती हैं,
वे कभी भी उलझन, थकावट या निराशा में नहीं आतीं।
ऐसे बच्चे खुशी के झूले में झूलते रहते हैं।
माया का कोई अधिकार स्नेही बच्चों पर नहीं चलता क्योंकि जहाँ स्नेह, सहयोग और बाप का साथ है — वहाँ माया ठहर ही नहीं सकती।


प्रश्न 3: बाबा ने “मिक्की माउस” कहकर क्या इशारा दिया?

उत्तर:
बाबा ने मज़ाक में कहा —
“कभी माया के बोझ से मोटे बन जाते हो, कभी हिम्मतहीन छोटे बन जाते हो — जैसे मिक्की माउस!”
इसका गूढ़ अर्थ है — कभी हम बहुत हिम्मत में रहते हैं, और कभी छोटी-सी बात में गिर जाते हैं।
यह उतार-चढ़ाव माया का खेल है।
हमें स्मृति रखनी चाहिए कि हम सर्वशक्तिशाली बाप के बच्चे हैं — माया हमें हिला नहीं सकती।


प्रश्न 4: माया से सुरक्षित रहने का सबसे सरल उपाय क्या है?

उत्तर:
बाबा ने कहा —
“जो बिज़ी रहते हैं — वही मायाजीत रहते हैं।”
सेवा में निरंतर व्यस्त रहना ही माया से सुरक्षा का सर्वोत्तम उपाय है।

सेवा के चार रूप हैं:

  1. दृष्टि द्वारा

  2. मनसा द्वारा

  3. वाणी द्वारा

  4. कर्म द्वारा

जब ये चारों सेवा एक साथ चलती हैं, तब आत्मा डबल सेवाधारी बन जाती है।
ऐसे बच्चे स्वतः ही मायाजीत बन जाते हैं।

उदाहरण:
जो केवल वाणी से सेवा करता है, वह थक सकता है;
परन्तु जो याद की स्थिति में रहकर वाणी और कर्म से सेवा करता है — वह कभी थकता नहीं।


प्रश्न 5: “सिंगल सेवा” क्या है और उसमें माया को चांस क्यों मिलता है?

उत्तर:
सिंगल सेवा का अर्थ है —
सिर्फ मनसा या सिर्फ कर्म से सेवा करना, परन्तु स्मृति या याद का संग न होना।
ऐसी स्थिति में माया को प्रवेश का अवसर मिल जाता है।

बाबा कहते हैं —
“जहाँ डबल सेवा है, वहाँ बाप साथी है; जहाँ सिंगल सेवा है, वहाँ माया साथी बन जाती है।”
इसलिए याद और कर्म का संयोजन ही सुरक्षा कवच है।


प्रश्न 6: बाबा ने इस वर्ष के लिए कौन-सी “विशेष प्राइज” की घोषणा की?

उत्तर:
बाबा ने कहा —
“जो सेंटर सारा वर्ष निर्विघ्न रहकर, स्वयं को और दूसरों को निर्विघ्न बनायेगा — वही नम्बर वन प्राइज पायेगा।”

इसके लिए प्रत्येक सेंटर को यह चार्ट रखना चाहिए:

  • क्या सेंटर में कोई विघ्न आया?

  • क्या सब आत्माएँ शक्तिशाली स्थिति में हैं?

  • क्या हम माया के प्रभाव में आये या हमने उसे अपने प्रभाव से हटाया?

संकल्प:
माया आयेगी, पर हम उसके प्रभाव में नहीं आयेंगे।
हमारे प्रभाव से माया भाग जायेगी।


प्रश्न 7: “याद की शक्ति की ज्वाला से किला बांधो” — इस आदेश का क्या अर्थ है?

उत्तर:
बाबा कहते हैं कि जैसे राजा अपने नगर की रक्षा के लिए किला बनाता है,
वैसे ही ब्राह्मण आत्माओं को अपने वातावरण की रक्षा के लिए याद की शक्ति का किला बनाना है।
जहाँ याद की ज्वाला का वातावरण है, वहाँ माया प्रवेश नहीं कर सकती।
याद ही वह सुरक्षात्मक ऊर्जा है जो पूरे सेंटर को निर्विघ्न रखती है।


प्रश्न 8: “माया से युद्ध नहीं, खेल है” — बाबा ने यह क्यों कहा?

उत्तर:
क्योंकि माया कोई बाहरी शत्रु नहीं है — वह केवल हमारे कमजोर संकल्पों में है।
अब हमें यह समझना है कि माया से युद्ध नहीं, बल्कि हँसते-खेलते उसका अंत करना है।
बाबा ने कहा —
“अब मिक्की माउस नहीं बनना है!”
अर्थात् हल्के मन और स्थिर बुद्धि से माया को जीतना ही सच्ची विजयी स्थिति है।


प्रश्न 9: सतयुग का अनुभव वर्तमान में कैसे किया जा सकता है?

उत्तर:
बाबा कहते हैं —
“अपने सतयुगी संस्कारों को इमर्ज करो।”
जब हम याद की स्थिति में अपने स्वर्गीय संस्कारों को अनुभव करते हैं,
तो सतयुग का दिव्य वातावरण वर्तमान में ही जीवंत हो उठता है।

सतयुग का अर्थ:
प्रकृति, मन, बुद्धि, सम्बन्ध — सब में सुख और संतुलन।
कोई इच्छा नहीं, कोई हिसाब-किताब नहीं।
सभी आत्माएँ परिवार भाव से कार्य करती हैं।

उदाहरण:
जैसे मधुबन में सब मिलकर सेवा करते हैं, वैसे ही सतयुग में सभी एक परिवार की तरह रहते हैं।


प्रश्न 10: ब्राह्मण परिवार की सबसे बड़ी शक्ति कौन-सी है?

उत्तर:
बाबा ने कहा —
“सभी बच्चे विचार मिलाकर युनिटी का रूप दिखाते हैं — यही इस यज्ञ का फाउंडेशन है।”
अर्थात्, एकता (Unity) ही ब्राह्मण परिवार की सबसे बड़ी शक्ति है।
जहाँ एकता है, वहाँ स्थिरता, बल और सफलता है।


प्रश्न 11: देश–विदेश के बच्चों को कौन-कौन से विशेष वरदान मिले?

उत्तर:

  • लण्डन ग्रुप: “रूहानी गुलाब बनो, जिसकी खुशबू विश्व को आकर्षित करे।”

  • मॉरीशियस पार्टी: “भगवान भाग्य में मिल गया — इससे बड़ा भाग्य क्या हो सकता है?”

  • कुमारियाँ: “निर्बन्धन रहो — तन और मन दोनों से मुक्त बन उड़ती कला का अनुभव करो।”


प्रश्न 12: इस मुरली का मुख्य वरदान और स्लोगन क्या है?

उत्तर:
वरदान:
“सदा डबल सेवाधारी, डबल लाइट, डबल ताजधारी बनो — यही मायाजीत की पहचान है।”

स्लोगन:
“जो सदा बिज़ी है सेवा में, वही माया से सेफ है।
डबल सेवाधारी बनो — और मायाजीत बनकर जगतजीत बनो।”


प्रश्न 13: आत्म-मंथन के लिए बाबा ने कौन से प्रश्न दिये?

उत्तर:

  1. क्या मैं मनसा, वाणी और कर्म — तीनों से सेवा कर रहा हूँ?

  2. क्या मेरे सेंटर का वातावरण निर्विघ्न है?

  3. क्या मैं डबल सेवाधारी की स्थिति में हूँ — या कभी सिंगल बन जाता हूँ?


निष्कर्ष:

डबल सेवाधारी बनना केवल सेवा का स्वरूप नहीं — यह माया से सुरक्षा कवच है।
जो आत्मा डबल सेवाधारी है, वह सदा बाप के संग में रहती है।
ऐसे बच्चे ही डबल लाइट, डबल ताजधारी, डबल पूज्य बनते हैं।


Disclaimer (for YouTube Description):

यह वीडियो ब्रह्माकुमारियों के अव्यक्त मुरली (दिनांक 14 जनवरी 1984, मधुबन) पर आधारित एक आध्यात्मिक व्याख्या है।
इसका उद्देश्य आत्म-जागृति, ईश्वरीय स्नेह और सहज राजयोग की प्रेरणा देना है।
यह किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति-विशेष की आलोचना नहीं करता।

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