(08)Shiv Baba is the ocean of knowledge, Brahma Baba is the river that connects every soul to the ocean.

शिवबाबा :ब्रह्मा बाबा का रिश्ता-(08)शिव बाबा ज्ञान का सागर, ब्रह्मा बाबा वह नदी जो हर आत्मा को सागर से जोड़ती है।

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

भूमिका — ईश्वरीय संबंधों का अध्ययन

हम शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा के गहरे आध्यात्मिक रिश्तों को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
आज हम एक अनोखे संबंध पर चिंतन करेंगे —
शिव बाबा हैं “ज्ञान का सागर”, और ब्रह्मा बाबा हैं “वह नदी जो हर आत्मा को सागर से जोड़ती है।”

यह संबंध सृष्टि की सबसे सुंदर आध्यात्मिक व्यवस्था को प्रकट करता है —
सागर देता है, नदी पहुंचाती है।


 1. सागर और नदी का प्रतीकात्मक रहस्य

सागर — अनंत, असीम और निश्चल
नदी — प्रवाहमय, जीवनदायिनी और संपर्ककारी।

हर सृष्टि में दो तत्त्व होते हैं —

  1. स्रोत (Source) – जहाँ से ऊर्जा या ज्ञान निकलता है।

  2. प्रवाह (Flow) – जिससे वह ऊर्जा सब तक पहुँचती है।

यदि स्रोत है पर प्रवाह नहीं, तो उसका अस्तित्व व्यर्थ है।
इसी प्रकार, परमात्मा ज्ञान का सागर तो है —
पर जब तक वह ज्ञान किसी तक नहीं पहुँचता, तब तक वह अनुभव में नहीं आता।


2. परमात्मा — ज्ञान का सागर

साकार मुरली, 12 फरवरी 1969 में शिव बाबा कहते हैं —

“बाप ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर और शक्ति का सागर है —
उससे ही तुम बच्चे भरपूर होते हो।”

परमात्मा वह अनंत स्रोत (Source of Knowledge) हैं —
जहाँ से सत्य ज्ञान, प्रेम और शक्ति की धाराएं निकलती हैं।
वे सृष्टि के रहस्यों को जानते हैं —
वे ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर, और शक्ति का सागर हैं।


 3. ब्रह्मा बाबा — वह नदी जो जोड़ती है

अब प्रश्न है — वह दिव्य अमृत जो सागर में है, आत्माओं तक कैसे पहुँचे?
उत्तर है — ब्रह्मा बाबा
वे उस अमृत को प्रवाहित करने वाली ईश्वरीय नदी हैं।

साकार मुरली, 9 मार्च 1970 में कहा —

“यह ब्रह्मा गंगा है, जो सागर से निकलकर सबको पवित्र बनाती है।”

जैसे गंगा हिमालय से निकलकर लाखों को स्नान कराती है,
वैसे ही ब्रह्मा बाबा शिव सागर से प्राप्त ज्ञान और प्रेम का जल
हर आत्मा तक पहुँचाते हैं।


 4. सागर और नदी का अदृश्य लेकिन अटूट संबंध

सागर अपनी जगह स्थिर है, पर जब उसकी धारा निकलती है —
वह नदी बनती है।
यह अदृश्य परंतु अनंत प्रवाह का संबंध है।

अव्यक्त मुरली, 18 जनवरी 1977 में बापदादा कहते हैं —

“बाप देता है, ब्रह्मा बांटता है, बच्चे पाते हैं।”

यह है ईश्वरीय ज्ञान की सुंदर व्यवस्था —
सागर देता है, नदी पहुंचाती है, आत्मा प्राप्त करती है।


 5. संगम युग — सागर और नदी का संगम

संगम युग वह दिव्य क्षण है
जब निराकार शिव और साकार ब्रह्मा का मिलन (Union) होता है।
यही मिलन ज्ञान गंगा का आरंभ है,
जो 5000 वर्षों की सृष्टि को पवित्र बनाती है।

अव्यक्त मुरली, 25 मार्च 1976 में बापदादा ने कहा —

“सागर और नदी का संगम ही कल्याणकारी है।
सागर का ज्ञान नदी द्वारा ही फैलता है।”


 6. आत्मबल प्राप्त करने की विधि

शिव सागर से आत्मबल कैसे प्राप्त करें?
बाबा कहते हैं —

“अपने आप को आत्मा समझकर देखो, सुनो, सोचो, बोलो और करो।”

यह पांच कदम आत्मस्मृति हमें सागर से जोड़ते हैं,
और आत्मबल की अमृत धारा हमारे भीतर प्रवाहित होती है।


 7. हम आत्माएँ — छोटी-छोटी धाराएं

साकार मुरली, 7 अगस्त 1970 में कहा गया —

“तुम भी नदियां बनो। सागर से भरो और दूसरों को भरो।”

जितना हम शिव सागर से योग द्वारा जुड़ते हैं,
उतना ही हमारे विचार, शब्द और कर्म
अन्य आत्माओं के लिए शीतलता और शक्ति का प्रवाह बनते हैं।


 8. उदाहरण — ज्ञान की नदी का प्रवाह

जैसे सूर्य सागर को गरम करता है,
वाष्प बनकर वह बादल बनती है,
पहाड़ों पर बरसती है, और पुनः सागर में मिल जाती है।
इसी प्रकार आत्माएँ भी शिव सागर से निकलती हैं,
ज्ञान और प्रेम बरसाती हैं,
और अंत में उसी सागर में समा जाती हैं।


 9. निष्कर्ष — सागर और नदी का अमर संगम

यह संबंध हमें सिखाता है —

  • ईश्वरीय शक्ति का प्रवाह माध्यम से ही कार्य करता है।

  • शिव बाबा हैं सागर — देने वाले।

  • ब्रह्मा बाबा हैं नदी — पहुँचाने वाले।

  • हम आत्माएँ हैं धाराएं — फैलाने वाली।

“सागर से निकलना और सागर में मिल जाना — यही आत्मा की यात्रा है।”

प्रश्न 1: “सागर और नदी” का यह प्रतीक किस आध्यात्मिक रहस्य को प्रकट करता है?

उत्तर:
सागर — शिव बाबा का प्रतीक है, जो अनंत ज्ञान, प्रेम और शक्ति का स्रोत हैं।
नदी — ब्रह्मा बाबा का प्रतीक है, जो उस ज्ञान को हर आत्मा तक पहुँचाते हैं।
सागर स्थिर है, नदी प्रवाहमय है —
यह बताता है कि ईश्वर ज्ञान देते हैं, और उनका चुना हुआ माध्यम उस ज्ञान को संसार तक पहुँचाता है।

मुरली संदर्भ (12 फरवरी 1969):
“बाप ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर और शक्ति का सागर है — उससे ही तुम बच्चे भरपूर होते हो।”


प्रश्न 2: शिव बाबा को “ज्ञान का सागर” क्यों कहा गया है?

उत्तर:
क्योंकि वही सत्य ज्ञान का स्रोत हैं।
उनसे ही आत्मा अपनी वास्तविक पहचान, पवित्रता और शांति का अनुभव करती है।
उनके बिना कोई भी ज्ञान सच्चा या पूर्ण नहीं हो सकता।
वे सर्व ज्ञान, सर्व प्रेम और सर्व शक्ति के दाता हैं।


प्रश्न 3: वह ज्ञान आत्माओं तक कैसे पहुँचता है?

उत्तर:
शिव बाबा निराकार हैं, इसलिए वे स्वयं नहीं बोल सकते।
इसलिए वे साकार माध्यम — ब्रह्मा बाबा — को चुनते हैं।
ब्रह्मा बाबा वह “ईश्वरीय नदी” हैं, जो सागर से निकली और हर आत्मा को पवित्र बनाती है।

मुरली संदर्भ (9 मार्च 1970):
“यह ब्रह्मा गंगा है, जो सागर से निकलकर सबको पवित्र बनाती है।”


प्रश्न 4: सागर और नदी का यह संबंध कैसे कार्य करता है?

उत्तर:
सागर अपनी जगह स्थिर है, पर उसकी धारा जब बाहर निकलती है, तो वह नदी बनती है।
इसी प्रकार शिव बाबा देते हैं, ब्रह्मा बाबा बाँटते हैं, और बच्चे पाते हैं।

अव्यक्त मुरली (18 जनवरी 1977):
“बाप देता है, ब्रह्मा बांटता है, बच्चे पाते हैं।”


प्रश्न 5: संगम युग को “सागर और नदी का संगम” क्यों कहा गया है?

उत्तर:
क्योंकि यही वह समय है जब निराकार शिव और साकार ब्रह्मा का मिलन होता है।
यह मिलन ही ज्ञान गंगा का प्रारंभ है, जो सृष्टि को पवित्र बनाता है।

अव्यक्त मुरली (25 मार्च 1976):
“सागर और नदी का संगम ही कल्याणकारी है। सागर का ज्ञान नदी द्वारा ही फैलता है।”


प्रश्न 6: आत्माएँ शिव सागर से आत्मबल कैसे प्राप्त करें?

उत्तर:
जब आत्मा स्वयं को देह नहीं, आत्मा समझकर देखती, सुनती, सोचती और बोलती है —
तब वह सीधा सागर से जुड़ जाती है।
यह आत्मस्मृति ही आत्मबल की धारा को प्रवाहित करती है।


प्रश्न 7: क्या हम भी इस ज्ञान-प्रवाह का हिस्सा बन सकते हैं?

उत्तर:
हाँ, बाबा कहते हैं —
“तुम भी नदियाँ बनो। सागर से भरो और दूसरों को भरो।”
अर्थात जब हम योग द्वारा सागर से जुड़ते हैं,
तो हमारे विचार, शब्द और कर्म दूसरों के लिए शक्ति का प्रवाह बनते हैं।

मुरली संदर्भ (7 अगस्त 1970):
“तुम भी नदियाँ बनो। सागर से भरो और दूसरों को भरो।”


प्रश्न 8: “सागर से निकलना और सागर में मिल जाना” का क्या अर्थ है?

उत्तर:
यह आत्मा की पूर्ण यात्रा है।
हम सब शिव सागर से निकलकर ज्ञान और प्रेम की वर्षा करते हैं,
और जब सृष्टि का कार्य पूर्ण हो जाता है,
तो फिर उसी सागर में लौट जाते हैं —
यही मुक्ति और जीवन-मुक्ति की स्थिति है।


 निष्कर्ष:

शिव बाबा — सागर हैं,
ब्रह्मा बाबा — नदी हैं,
और हम आत्माएँ — छोटी-छोटी धाराएँ।

 “सागर से निकलना और सागर में मिल जाना — यही आत्मा की यात्रा है।”

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय ज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मिक व्याख्यान है। इसका उद्देश्य किसी धर्म, व्यक्ति या संस्था की आलोचना करना नहीं है, बल्कि आत्मा और परमात्मा के शाश्वत संबंध को समझाना है। कृपया इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सुनें और आत्म-अनुभूति के लिए चिंतन करें।

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