(34)03-05-1984 “The first and greatest creation of God – Brahmin”

अव्यक्त मुरली-(34)03-05-1984 “परमात्मा की सबसे पहली श्रेष्ठ रचना – ब्राह्मण”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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03-05-1984 “परमात्मा की सबसे पहली श्रेष्ठ रचना – ब्राह्मण”

आज रचता बाप अपनी रचना को, उसमें भी पहली रचना ब्राह्मण आत्माओं को देख रहे हैं। सबसे पहली श्रेष्ठ रचना आप ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मायें हो, इसलिए सर्व रचना से प्रिय हो। ब्रह्मा द्वारा ऊंचे ते ऊंची रचना मुख वंशावली महान आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें हो। देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें गाई हुई हैं। ब्राह्मण ही फरिश्ता सो देवता बनते हैं। लेकिन ब्राह्मण जीवन आदि पिता द्वारा संगमयुगी आदि जीवन है। आदि संगमवासी ज्ञान स्वरुप त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री ब्राह्मण आत्मायें हैं। साकार स्वरुप में साकारी सृष्टि पर आत्मा और परमात्मा के मिलन और सर्व सम्बन्ध के प्रीति की रीति का अनुभव, परमात्म-अविनाशी खजानों का अधिकार, साकार स्वरुप से ब्राह्मणों का ही यह गीत है – हमने देखा हमने पाया शिव बाप को ब्रह्मा बाप द्वारा। यह देवताई जीवन का गीत नहीं है। साकार सृष्टि पर इस साकारी नेत्रों द्वारा दोनों बाप को देखना उनके साथ खाना, पीना, चलना, बोलना, सुनना, हर चरित्र का अनुभव करना, विचित्र को चित्र से देखना यह श्रेष्ठ भाग्य ब्राह्मण जीवन का है।

ब्राह्मण ही कहते हैं – हमने भगवान को बाप के रुप में देखा। माता, सखा, बन्धु, साजन के स्वरुप में देखा। जो ऋषि, मुनि, तपस्वी, विद्वान-आचार्य, शास्त्री सिर्फ महिमा गाते ही रह गये। दर्शन के अभिलाषी रह गये। कब आयेगा, कब मिल ही जायेगा… इसी इन्तजार में जन्म-जन्म के चक्र में चलते रहे लेकिन ब्राह्मण आत्मायें फ़लक से, निश्चय से कहती, नशे से कहती, खुशी-खुशी से कहती, दिल से कहती हमारा बाप अब मिल गया। वह तरसने वाले और आप मिलन मनाने वाले। ब्राह्मण जीवन अर्थात् सर्व अविनाशी अखुट, अटल, अचल सर्व प्राप्ति स्वरुप जीवन, ब्राह्मण जीवन इस कल्प वृक्ष का फाउण्डेशन, जड़ है। ब्राह्मण जीवन के आधार पर वह वृक्ष वृद्धि को प्राप्त करता है। ब्राह्मण जीवन की जड़ों से सर्व वैराइटी आत्माओं को बीज द्वारा मुक्ति जीवन मुक्ति की प्राप्ति का पानी मिलता है। ब्राह्मण जीवन के आधार से यह टाल टालियाँ विस्तार को पाती हैं। तो ब्राह्मण आत्मायें सारे वैराइटी वंशावली की पूर्वज हैं। ब्राह्मण आत्मायें विश्व के सर्व श्रेष्ठ कार्य का, निर्माण का मुहूर्त करने वाली हैं। ब्राह्मण आत्मायें ही अश्वमेध राजस्व यज्ञ, ज्ञान यज्ञ रचने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं। ब्राह्मण आत्मायें हर आत्मा के 84 जन्म की जन्म पत्री जानने वाली हैं। हर आत्मा के श्रेष्ठ भाग्य की रेखा विधाता द्वारा श्रेष्ठ बनाने वाली हैं। ब्राह्मण आत्मायें, महान यात्रा – मुक्ति, जीवन मुक्ति की यात्रा कराने के निमित्त हैं। ब्राह्मण आत्मायें सर्व आत्माओं की सामूहिक सगाई बाप से कराने वाली हैं। परमात्म हाथ में हाथ का हथियाला बंधवाने वाली हैं। ब्राह्मण आत्मायें जन्म-जन्म के लिए सदा पवित्रता का बन्धन बाँधने वाली हैं। अमरकथा कर अमर बनाने वाली हैं। समझा – कितने महान हो और कितने जिम्मेवार आत्मायें हो! पूर्वज हो। जैसे पूर्वज वैसी वंशावली बनती है। साधारण नहीं हो। परिवार के जिम्मेवार वा कोई सेवास्थान के जिम्मेवार – इस हद के जिम्मेवार नहीं हो। विश्व की आत्माओं के आधार मूर्त हो, उद्धार मूर्त हो। बेहद की जिम्मेवारी हर ब्राह्मण आत्मा के ऊपर है। अगर बेहद की जिम्मेवारी नहीं निभाते, अपनी लौकिक प्रवृत्ति वा अलौकिक प्रवृत्ति में ही कभी उड़ती कला, कब चढ़ती कला, कब चलती कला, कब रुकती कला, इसी कलाबाजी में ही समय लगाते, वह ब्राह्मण नहीं लेकिन क्षत्रिय आत्मायें हैं। पुरुषार्थ की कमान पर यह करेंगे, ऐसे करेंगे-करेंगे के तीर निशान-अन्दाजी करते रहते हैं। निशान-अन्दाजी और निशान लग जाए इसमें अन्तर है। वह निशान का अन्दाज करते रह जाते। अब करेंगे, ऐसे करेंगे। यह निशान का अन्दाज करते। उसको कहते हैं क्षत्रिय आत्मायें। ब्राह्मण आत्मायें निशान का अन्दाजा नहीं लगाती। सदा निशान पर ही स्थित होती हैं। सम्पूर्ण निशाना सदा बुद्धि में है ही है। सेकेण्ड के संकल्प से विजयी बन जाते। बापदादा – ब्राह्मण बच्चे और क्षत्रिय बच्चे दोनों का खेल देखते रहते हैं। ब्राह्मणों के विजय का खेल और क्षत्रियों को सदा तीर कमान के बोझ उठाने का खेल। हर समय पुरुषार्थ की मेहनत का कमान है ही है। एक समस्या का समाधान करते ही हैं तो दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। ब्राह्मण समाधान स्वरुप हैं। क्षत्रिय बार-बार समस्या का समाधान करने में लगे हुए रहते। जैसे साकार रुप में हँसी की कहानी सुनाते थे ना। क्षत्रिय क्या करत भये। इसकी कहानी है ना – चूहा निकालते तो बिल्ली आ जाती। आज धन की समस्या, कल मन की, परसों तन की वा सम्बन्ध-सम्पर्क वालों की। मेहनत में ही लगे रहते हैं। सदा कोई न कोई कम्पलेन्ट जरुर होगी। चाहे अपनी हो, चाहे दूसरों की हो। बापदादा ऐसे समय प्रति समय कोई न कोई मेहनत में लगे रहने वाले बच्चों को देख, दयालु कृपालु के रुप से देख रहम भी करते हैं।

संगमयुग, ब्राह्मण जीवन दिलाराम की दिल पर आराम करने का समय है। दिल पर आराम से रहो। ब्रह्मा भोजन खाओ। ज्ञान अमृत पियो। शक्तिशाली सेवा करो और आराम मौज से दिल तख्त पर रहो। हैरान क्यों होते हो। हे राम नहीं कहते, हे बाबा या हे दादी दीदी तो कहते हो ना। हे बाबा, हे दादी दीदी कुछ सुनो, कुछ करो… यह हैरान होना है। आराम से रहने का युग है। रुहानी मौज करो। रुहानी मौजों में यह सुहावने दिन बिताओ। विनाशी मौज नहीं करना। गाओ, नाचो, मुरझाओ नहीं। परमात्म मौजों का समय अब नहीं मनाया तो कब मनायेंगे! रुहानी शान में बैठो। परेशान क्यों होते हो? बाप को आश्चर्य लगता है छोटी-सी चींटी से परेशान हो जाते हैं। क्योंकि शान से परे हो जाते हो तो चींटी बुद्धि तक चली जाती है। बुद्धियोग विचलित कर देती है। जैसे स्थूल शरीर में भी चींटी काटेगी तो शरीर हिलेगा, विचलित होगा ना। वैसे बुद्धि को विचलित कर देती है। चींटी अगर हाथी के कान में जाती है तो मूर्छित कर देती है ना! ऐसे ब्राह्मण आत्मा मूर्छित हो क्षत्रिय बन जाती है। समझा क्या खेल करते हो! क्षत्रिय नहीं बनना। फिर राजधानी भी त्रेतायुगी मिलेगी। सतयुगी देवताओं ने खा-पीकर जो बचाया होगा वह क्षत्रियों को त्रेता में मिलेगा। कर्म के खेत का पहला पूर ब्राह्मण सो देवताओं को मिलता है। और दूसरा पूर क्षत्रियों को मिलता है। खेत के पहले पूर की टेस्ट और दूसरे पूर में टेस्ट क्या हो जाती है, यह तो जानते हो ना! अच्छा।

महाराष्ट्र और यू.पी. ज़ोन है। महाराष्ट्र की विशेषता है। जैसे महाराष्ट्र नाम है वैसे महान आत्माओं का सुन्दर गुलदस्ता बापदादा को भेंट करेंगे। महाराष्ट्र की राजधानी सुन्दर और सम्पन्न है। तो महाराष्ट्र को ऐसे सम्पन्न नामीग्रामी आत्माओं को सम्पर्क में लाना है। इसलिए कहा कि महान आत्मा बनाए सुन्दर गुलदस्ता बाप के सामने लाना है। अब अन्त के समय में इन सम्पत्ति वालों का भी पार्ट है। सम्बन्ध में नहीं, लेकिन सम्पर्क का पार्ट है। समझा!

यू.पी. में देश-विदेश में प्रसिद्ध वण्डर ऑफ दी वर्ल्ड “ताजमहल” है ना! जैसे यू.पी. में वर्ल्ड की वण्डरफुल चीज़ है ऐसे यू.पी. वालों को सेवा में वण्डरफुल प्रत्यक्ष फल दिखाना है। जो देश विदेश में, ब्राह्मण संसार में नामीग्रामी हो कि यह तो बहुत वण्डरफुल काम किया, वण्डरफुल ऑफ वर्ल्ड हो। ऐसा वण्डरफुल कार्य करना है। गीता पाठशालायें हैं, सेन्टर हैं, यह वण्डरफुल नहीं। जो अब तक किसी ने नहीं किया वह करके दिखायें तब कहेंगे वण्डरफुल। समझा। विदेशी भी अब हाज़िर नाज़िर हो गये हैं, हर सीजन में। विदेश वाले विदेश के साधनों द्वारा विश्व में दोनों बाप को हाज़िर-नाज़िर करेंगे। नाज़िर अर्थात् इस नजर से देख सकें। तो ऐसे बाप को विश्व के आगे हाजिर-नाजिर करेंगे। समझा विदेशियों को क्या करना है! अच्छा, कल तो सारी बारात जाने वाली है। आखिर वह भी दिन आयेगा – जो हेलीकाप्टर भी उतरेंगे। सब साधन तो आपके लिए ही बन रहे हैं। जैसे सतयुग में विमानों की लाइन लगी हुई होती है। अभी यहाँ जीप और बसों की लाइन लगी रहती। आखिर विमानों की भी लाइन लगेगी। सभी डरकर भागेंगे और सब कुछ आपको देकर जायेंगे। वह डरेंगे और आप उड़ेंगे। आपको मरने का डर तो है नहीं। पहले ही मर गये। पाकिस्तान में सैम्पल देखा था ना – सब चाबियाँ देकर चले गये। तो सब चाबियाँ आपको मिलनी हैं। सिर्फ सम्भालना।

अध्याय : परमात्मा की सबसे पहली श्रेष्ठ रचना — ब्राह्मण आत्माएँ

(अव्यक्त वाणी: 03 मई 1984, मधुबन)


 1. परमात्मा की प्रथम रचना — ब्राह्मण आत्माएँ

आज रचता बाप अपनी रचना को देख रहे हैं। उस रचना में सबसे प्रथम और श्रेष्ठ रचना हैं — ब्राह्मण आत्माएँ
आप वही आत्माएँ हो जो सर्व रचना से प्रिय हैं, क्योंकि परमात्मा के मुख वंश द्वारा तुम्हें ब्रह्मा बाबा से जन्म मिला है।

Murli Note (03-05-1984):
“ब्रह्मा द्वारा ऊँचे ते ऊँची रचना मुख वंशावली महान आत्माएँ, ब्राह्मण आत्माएँ हैं।”

देवता भी तुम्हारे बाद आते हैं। इसलिए कहा गया —
“ब्राह्मण ही फरिश्ता सो देवता बनते हैं।”


 2. ब्राह्मण जीवन — आदि संगमवासी जीवन

ब्राह्मण जीवन कोई साधारण जीवन नहीं। यह तो स्वयं आदि पिता परमात्मा द्वारा संगमयुगी जीवन है।
यह जीवन है ज्ञान स्वरूप, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बनने का।

Murli Point: “साकार स्वरूप में आत्मा और परमात्मा के मिलन और सर्व सम्बन्ध के अनुभव का भाग्य सिर्फ ब्राह्मण आत्माओं को मिला है।”

इसीलिए कहा गया —
“हमने देखा, हमने पाया शिवबाप को ब्रह्मा बाप द्वारा।”
यह गीत देवताओं का नहीं, बल्कि ब्राह्मणों का है।


 3. ब्राह्मण आत्माएँ — दर्शन की पूर्णता

जो ऋषि-मुनि, तपस्वी, शास्त्री, विद्वान सिर्फ महिमा गाते रह गये —
वो कहते रहे “कब आएगा भगवान?”
लेकिन ब्राह्मण आत्माएँ निश्चय, नशे और खुशी से कहती हैं —
“हमारा बाप अब मिल गया!”

ब्राह्मण आत्माएँ वही हैं जो भगवान को बाप, माता, सखा, साजन, बन्धु हर रूप में देखती हैं।
यह वह मिलन का अनुभव है जो अन्य कोई आत्मा नहीं कर सकती।


 4. ब्राह्मण — कल्पवृक्ष की जड़

ब्राह्मण आत्माएँ इस कल्पवृक्ष की जड़ हैं।
जैसे वृक्ष की जड़ों से जल मिलने पर शाखाएँ फूलती हैं, वैसे ही ब्राह्मणों से सर्व आत्माओं को जीवन-मुक्ति की शक्ति मिलती है।

Murli Point:
“ब्राह्मण जीवन के आधार से सर्व आत्माओं को मुक्ति-जीवनमुक्ति की प्राप्ति का पानी मिलता है।”

इसलिए ब्राह्मण आत्माएँ विश्व की पूर्वज आत्माएँ हैं — जो सम्पूर्ण वृक्ष को जीवन देती हैं।


 5. ब्राह्मण आत्माओं का विश्व-कल्याणकारी कार्य

ब्राह्मण आत्माएँ ही अश्वमेध राजसूय यज्ञ रचने वाली हैं।
वे हर आत्मा की जन्मपत्री, उसके भाग्य की रेखा, और जीवन यात्रा जानने वाली हैं।

Example:
जैसे पिता अपने सभी बच्चों की स्थिति जानता है, वैसे ही ब्राह्मण आत्माएँ समस्त आत्माओं की यात्रा को जानती हैं।

वे ही हैं जो बाप से सर्व आत्माओं की सगाई कराती हैं — परमात्मा से हाथ मिलवाने वाली,
अमरकथा सुनाकर सबको अमर बनाने वाली।


 6. ब्राह्मण और क्षत्रिय आत्माओं का अन्तर

बापदादा ने दो प्रकार की आत्माओं का खेल दिखाया —
(1) ब्राह्मण आत्माएँ और (2) क्षत्रिय आत्माएँ।

  • ब्राह्मण आत्माएँ सदा निशान पर स्थित रहती हैं।
    उनका लक्ष्य स्पष्ट है, संकल्प से ही विजयी बन जाती हैं।

  • क्षत्रिय आत्माएँ केवल निशान का अन्दाजा लगाती हैं।
    वे सदा किसी न किसी समस्या में उलझी रहती हैं —
    आज धन की, कल मन की, परसों तन की।

Murli Note:
“जो हर समय मेहनत में लगे रहते हैं, वे क्षत्रिय आत्माएँ हैं;
ब्राह्मण आत्माएँ समाधान स्वरूप हैं।”


 7. ब्राह्मण जीवन — दिलाराम की दिल पर आराम

संगमयुग है — दिलाराम की दिल पर आराम करने का समय।
इसलिए कहा गया —
“दिल पर आराम से रहो, ब्रह्मा भोजन खाओ, ज्ञान अमृत पियो, सेवा करो और मौज में रहो।”

Example:
अगर छोटी-सी परेशानी से भी मन विचलित हो जाए,
तो वह “ब्राह्मण” नहीं “क्षत्रिय” स्थिति है।
इसलिए कहा गया —
“चींटी भी अगर बुद्धि में चली जाए तो मूर्छित कर देती है।”

बाप कहते हैं —
“रूहानी मौज करो, परेशान नहीं।”
क्योंकि परमात्म मौजों का समय अब है —
अब नहीं मनाया तो कब मनाओगे?


 8. कर्म का खेत — ब्राह्मण और क्षत्रिय का फल

जैसे खेत में पहला पूर सबसे स्वादिष्ट होता है,
वैसे ही कर्म के खेत का पहला पूर ब्राह्मण आत्माओं को मिलता है,
और दूसरा पूर क्षत्रियों को।

Murli Point:
“पहले पूर की टेस्ट और दूसरे पूर की टेस्ट में अन्तर तो जानते ही हो ना!”


 9. महाराष्ट्र और यू.पी. — सेवा की विशेषता

बापदादा ने दो जोन को विशेष आदेश दिया —

• महाराष्ट्र जोन

महाराष्ट्र अर्थात् “महान आत्माओं का सुन्दर गुलदस्ता।”
अब महाराष्ट्र को ऐसे नामी-ग्रामी आत्माओं को सम्पर्क में लाना है जो बाप के सामने गुलदस्ता बन जाएँ।

• यू.पी. जोन

यू.पी. में जैसे “ताजमहल” — वर्ल्ड वण्डर है,
वैसे ही यू.पी. वालों को भी वर्ल्ड वण्डर कार्य करना है।
ऐसा कार्य जो किसी ने न किया हो — तब कहलाएँगे “वण्डरफुल ऑफ वर्ल्ड।”


 10. भविष्य का दृश्य — स्वर्णिम राज्य का साक्षात्कार

बापदादा ने भविष्य की झलक दी —
एक दिन आएगा जब हेलीकॉप्टर उतरेंगे,
सब लोग डरकर अपनी सम्पत्ति तुम्हें सौंप देंगे,
क्योंकि वे डरेंगे और तुम उड़ोगे।

Murli Point:
“सब चाबियाँ तुम्हें मिलनी हैं — बस सम्भालना।”

यह है ब्राह्मण आत्माओं का भविष्य —
जो स्वयं के मरे हुए हैं, उन्हें अब किसी भय की आवश्यकता नहीं।


निष्कर्ष — ब्राह्मण आत्मा का असली गौरव

ब्राह्मण आत्मा का जीवन श्रेष्ठता, जिम्मेदारी और विश्व कल्याण का प्रतीक है।
आप वही आत्माएँ हैं जो परमात्मा की प्रथम संतान हैं —
“रचना की जड़, उद्धार मूर्त, और विश्व की आधार आत्माएँ।”
संगमयुग का यह समय है —
“दिलाराम की दिल पर आराम करने” का —
रूहानी मौज में रहकर सेवा करते जाओ।

प्रश्न 1. परमात्मा की पहली और सबसे श्रेष्ठ रचना कौन हैं?

उत्तर: परमात्मा की पहली रचना हैं — ब्राह्मण आत्माएँ
ये वही आत्माएँ हैं जिन्हें स्वयं रचता बाप, ब्रह्मा बाबा के मुख द्वारा रचते हैं।
ब्राह्मण आत्माएँ ही सर्व रचना से प्रिय और ऊँची हैं।

Murli Note (03-05-1984):

“ब्रह्मा द्वारा ऊँचे ते ऊँची रचना मुख वंशावली महान आत्माएँ, ब्राह्मण आत्माएँ हैं।”

अर्थ: देवता भी ब्राह्मणों के बाद आते हैं। इसलिए कहा गया —

“ब्राह्मण ही फरिश्ता सो देवता बनते हैं।”


प्रश्न 2. ब्राह्मण जीवन को ‘आदि संगमवासी जीवन’ क्यों कहा गया है?

उत्तर: क्योंकि यह जीवन स्वयं परमपिता परमात्मा द्वारा प्रारंभ किया गया जीवन है —
ज्ञान स्वरूप, त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनने वाला जीवन।

Murli Point:

“साकार स्वरूप में आत्मा और परमात्मा के मिलन और सर्व सम्बन्ध के अनुभव का भाग्य सिर्फ ब्राह्मण आत्माओं को मिला है।”

इसलिए ब्राह्मण आत्माएँ गर्व से कहती हैं —

“हमने देखा, हमने पाया शिवबाप को ब्रह्मा बाप द्वारा।”


प्रश्न 3. ब्राह्मण आत्माओं और ऋषि-मुनियों में क्या अन्तर है?

उत्तर: ऋषि-मुनि, तपस्वी और विद्वान केवल महिमा गाते रहे और भगवान के दर्शन की इच्छा में रह गये।
लेकिन ब्राह्मण आत्माएँ अनुभव से कहती हैं —

“हमारा बाप अब मिल गया।”

वे भगवान को बाप, माता, सखा, साजन, बन्धु सभी रूपों में देखती हैं —
जो किसी और आत्मा को अनुभव नहीं होता।


प्रश्न 4. ब्राह्मण आत्माएँ कल्पवृक्ष की ‘जड़’ क्यों कही जाती हैं?

उत्तर: क्योंकि जैसे वृक्ष की जड़ से सभी शाखाएँ पुष्ट होती हैं,
वैसे ही ब्राह्मण आत्माओं के आधार से सारी आत्माओं को मुक्ति और जीवन-मुक्ति की प्राप्ति होती है।

Murli Point:

“ब्राह्मण जीवन के आधार से सर्व आत्माओं को मुक्ति-जीवनमुक्ति की प्राप्ति का पानी मिलता है।”


प्रश्न 5. ब्राह्मण आत्माएँ विश्व के कल्याण के लिए क्या करती हैं?

उत्तर: ब्राह्मण आत्माएँ ही ज्ञान यज्ञ की यजमान हैं —
वे हर आत्मा की जन्मपत्री और भाग्य रेखा को जानकर,
बाप से सब आत्माओं की सगाई कराती हैं।

उदाहरण:
जैसे पिता अपने बच्चों की स्थिति जानता है,
वैसे ही ब्राह्मण आत्माएँ हर आत्मा की यात्रा और भाग्य को जानती हैं।

वे ही अमरकथा सुनाकर सबको अमर बनाती हैं।


प्रश्न 6. ब्राह्मण और क्षत्रिय आत्माओं में क्या अन्तर है?

उत्तर:

  • ब्राह्मण आत्माएँ सदा निशाने पर स्थित रहती हैं।
    वे एक संकल्प में ही विजयी बन जाती हैं।

  • क्षत्रिय आत्माएँ निशान का केवल अन्दाजा लगाती हैं,
    वे हर समय किसी न किसी समस्या में उलझी रहती हैं।

Murli Note:

“जो हर समय मेहनत में लगे रहते हैं, वे क्षत्रिय आत्माएँ हैं;
ब्राह्मण आत्माएँ समाधान स्वरूप हैं।”


प्रश्न 7. ब्राह्मण जीवन को ‘दिलाराम की दिल पर आराम करने का समय’ क्यों कहा गया है?

उत्तर: संगमयुग में परमात्मा बच्चों को कहते हैं —

“दिल पर आराम से रहो, ब्रह्मा भोजन खाओ, ज्ञान अमृत पियो, सेवा करो और मौज में रहो।”

उदाहरण:
अगर छोटी-सी बात से मन विचलित हो जाए, तो वह ब्राह्मण स्थिति नहीं बल्कि क्षत्रिय स्थिति है।
जैसे कहा गया —

“चींटी भी अगर बुद्धि में चली जाए तो मूर्छित कर देती है।”

इसलिए बाप सलाह देते हैं —

“रूहानी मौज करो, परेशान नहीं।”


प्रश्न 8. ‘कर्म के खेत’ में ब्राह्मण और क्षत्रिय का फल क्या है?

उत्तर: जैसे खेत का पहला पूर स्वादिष्ट होता है,
वैसे ही कर्म के खेत का पहला पूर ब्राह्मण आत्माओं को मिलता है,
और दूसरा पूर क्षत्रियों को।

Murli Point:

“पहले पूर की टेस्ट और दूसरे पूर की टेस्ट में अन्तर तो जानते ही हो ना!”


प्रश्न 9. महाराष्ट्र और यू.पी. जोन को कौन-सी विशेषता दी गई?

उत्तर:

  • महाराष्ट्र जोन:
    “महान आत्माओं का सुन्दर गुलदस्ता” बनना है —
    ऐसे नामी-ग्रामी आत्माओं को बाप के सामने लाना है जो गुलदस्ता बन जाएँ।

  • यू.पी. जोन:
    जैसे “ताजमहल” वर्ल्ड वण्डर है,
    वैसे ही यू.पी. वालों को ऐसा कार्य करना है जो दुनिया में वण्डर कहलाए —
    जो किसी ने अब तक न किया हो।


प्रश्न 10. भविष्य में ब्राह्मण आत्माओं को कौन-सा दृश्य देखने को मिलेगा?

उत्तर: बापदादा ने भविष्य का दृश्य दिखाया —
एक दिन हेलीकॉप्टर उतरेंगे, सब लोग डरकर अपनी सम्पत्ति सौंप देंगे।
क्योंकि वे डरेंगे और ब्राह्मण आत्माएँ उड़ेंगी।

Murli Point:

“सब चाबियाँ तुम्हें मिलनी हैं — बस सम्भालना।”

यह भविष्य दर्शाता है कि ब्राह्मण आत्माएँ निर्भय हैं —
जो स्वयं मरे हुए हैं, उन्हें अब कोई भय नहीं।


निष्कर्ष — ब्राह्मण आत्मा का गौरव

ब्राह्मण आत्माएँ परमात्मा की पहली संतान हैं।
वे रचना की जड़, उद्धार मूर्त, और विश्व की आधार आत्माएँ हैं।
संगमयुग का यह समय है —

“दिलाराम की दिल पर आराम करने” का।
रूहानी मौज में रहो और विश्व कल्याण की सेवा करते जाओ।


 Disclaimer

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की अव्यक्त वाणी दिनांक 03-05-1984 पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक अध्ययन और आत्म-जागृति है।
इसमें दी गई सभी व्याख्याएँ ईश्वरीय मुरली के गूढ़ अर्थ को सरल रूप में समझाने हेतु प्रस्तुत हैं।
यह किसी भी धर्म या मत के विरोध में नहीं है।

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