(35)07-05-1984 “Blessings can be obtained only by maintaining balance”

अव्यक्त मुरली-(35)07-05-1984 “बैलेन्स रखने से ही ब्लैसिंग की प्राप्ति”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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07-05-1984 “बैलेन्स रखने से ही ब्लैसिंग की प्राप्ति”

आज प्रेम स्वरुप, याद स्वरुप बच्चों को प्रेम और याद का रिटर्न देने के लिए प्रेम के सागर बाप इस प्यार की महफिल बीच आये हैं। यह रुहानी प्यार की महफिल रुहानी सम्बन्ध की मिलन महफिल है, जो सारे कल्प में अब ही अनुभव करते हो। सिवाए इस एक जन्म के और कभी भी रुहानी बाप का रुहानी प्यार मिल न सके। यह रुहानी प्यार रुहों को सच्ची राहत देता है। सच्ची राह बताता है। सच्ची सर्व प्राप्ति कराता है। ऐसा कभी संकल्प में भी आया था कि इस साकार सृष्टि में इस जन्म में और ऐसी सहज विधि से ऐसे आत्मा और परमात्मा का रुहानी मिलन सन्मुख होगा? जैसे बाप के लिए सुना था कि ऊंचे ते ऊंचा बहुत तेजोमय, बड़े ते बड़ा है, वैसे ही मिलने की विधि भी मुश्किल और बड़े अभ्यास से होगी – यह सोचते-सोचते नाउम्मींद हो गये थे लेकिन बाप ने ना उम्मींद बच्चों को उम्मींदवार बना दिया। दिलशिकस्त बच्चों को शक्तिशाली बना दिया। कब मिलेगा, वह अब मिलन का अनुभव करा दिया। सारे प्रॉपर्टी का अधिकारी बना दिया। अभी अधिकारी आत्मायें अपने अधिकार को जानते हो ना! अच्छी तरह से जान लिया है वा जानना है?

आज बापदादा बच्चों को देख रुहरिहान कर रहे थे कि सभी बच्चों को निश्चय भी सदा है, प्यार भी है, याद की लगन भी है, सेवा का उमंग भी है। लक्ष्य भी श्रेष्ठ है। किसी से भी पूछेंगे क्या बनना है? तो सभी कहेंगे लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं। राम सीता कोई नहीं कहते। 16 हजार की माला भी दिल से पसन्द नहीं करते। 108 की माला के मणके बनेंगे। यही उमंग सभी को रहता है। सेवा में, पढ़ाई में हरेक अपने को किसी से भी कम योग्य नहीं समझते हैं। फिर भी सदा एकरस स्थिति, सदा उड़ती कला की अनुभूति, सदा एक में समाये हुए, देह और देह की अल्पकाल की प्राप्तियों से सदा न्यारे, विनाशी सुध-बुध भूले हुए हों ऐसी सदा की स्थिति अनुभव करने में नम्बरवार हो जाते हैं। यह क्यों? बापदादा इसका विशेष कारण देख रहे थे। क्या कारण देखा? एक ही शब्द का कारण है।

सब कुछ जानते हैं और सब कुछ सबको प्राप्त भी है, विधि का भी ज्ञान है, सिद्धि का भी ज्ञान है। कर्म और फल दोनों का ज्ञान है, लेकिन सदा बैलेन्स में रहना नहीं आता। यह बैलेन्स की ईश्वरीय नीति समय पर निभाने नहीं आती। इसलिए हर संकल्प में, हर कर्म में बापदादा तथा सर्व श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठ आशीर्वाद, ब्लैसिंग प्राप्त नहीं होती। मेहनत करनी पड़ती है। सहज सफलता अनुभव नहीं होती। किस बात का बैलेन्स भूल जाता है? एक तो याद और सेवा। याद में रह सेवा करना – यह है याद और सेवा का बैलेन्स। लेकिन सेवा में रह समय प्रमाण याद करना, समय मिला याद किया, नहीं तो सेवा को ही याद समझना इसको कहा जाता है अनबैलेन्स। सिर्फ सेवा ही याद है और याद में ही सेवा है। यह थोड़ा-सा विधि का अन्तर सिद्धि को बदल लेता है। फिर जब रिजल्ट पूछते कि याद की परसेन्टेज कैसी रही? तो क्या कहते? सेवा में इतने बिजी थे, कोई भी बात याद नहीं थी। समय ही नहीं था या कहते सेवा भी बाप की ही थी, बाप तो याद ही था। लेकिन जितना सेवा में समय और लगन रही उतना ही याद की शक्तिशाली अनुभूति रही? जितना सेवा में स्वमान रहा उतना ही निर्मान भाव रहा? ये बैलेन्स रहा? बहुत बड़ी, बहुत अच्छी सेवा की यह स्वमान तो अच्छा है लेकिन जितना स्वमान उतना निर्मान भाव रहे। करावनहार बाप ने निमित्त बन सेवा कराई। यह है निमित्त, निर्मान भाव। निमित्त बने, सेवा अच्छी हुई, वृद्धि हुई, सफलता स्वरुप बनें, यह स्वमान तो अच्छा है लेकिन सिर्फ स्वमान नहीं, निर्मान भाव का भी बैलेन्स हो। यह बैलेन्स सदा ही सहज सफलता स्वरुप बना देता है। स्वमान भी जरुरी है। देह भान नहीं, स्वमान। लेकिन स्वमान और निर्मान दोनों का बैलेन्स न होने कारण स्वमान, देह-अभिमान में बदल जाता है। सेवा हुई, सफलता हुई, यह खुशी तो होनी चाहिए। वाह बाबा आपने निमित्त बनाया! मैंने नहीं किया, यह मैं-पन स्वमान को देह-अभिमान में ले आता है। याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले स्वमान और निर्मान का भी बैलेन्स रखते। तो समझा बैलेन्स किस बात में नीचे ऊपर होता है!

ऐसे ही जिम्मेवारी के ताजधारी होने के कारण हर कार्य में जिम्मेवारी भी पूरी निभानी है। चाहे लौकिक सो अलौकिक प्रवृत्ति है, चाहे ईश्वरीय सेवा की प्रवृत्ति है। दोनों प्रवृत्ति की अपनी-अपनी जिम्मेवारी निभाने में जितना न्यारा उतना प्यारा। यह बैलेन्स हो। हर जिम्मेवारी को निभाना, यह भी आवश्यक है लेकिन जितनी बड़ी जिम्मेवारी उतना ही डबल लाइट। जिम्मेवारी निभाते हुए जिम्मेवारी के बोझ से न्यारे हो, इसको कहते हैं बाप का प्यारा। घबरावे नहीं क्या करूँ, बहुत जिम्मेवारी है। यह करूँ वा नहीं, क्या करूँ, यह भी करूँ वह भी करूँ, बड़ा मुश्किल है! यह महसूसता अर्थात् बोझ है। तो डबल लाइट तो नहीं हुए ना। डबल लाइट अर्थात् न्यारा। कोई भी जिम्मेवारी के कर्म के हलचल का बोझ नहीं। इसको कहा जाता है न्यारे और प्यारे का बैलेन्स रखने वाले।

दूसरी बात, पुरुषार्थ में चलते-चलते पुरुषार्थ से जो प्राप्ति होती उसका अनुभव करते-करते बहुत प्राप्ति के नशे और खुशी में आ जाते। बस हमने पा लिया, अनुभव कर लिया। महावीर, महारथी बन गये, ज्ञानी बन गये, योगी भी बन गये, सेवाधारी भी बन गये। यह प्राप्ति बहुत अच्छी है लेकिन इस प्राप्ति के नशे में अलबेलापन भी आ जाता है। इसका कारण? ज्ञानी बने, योगी बने, सेवाधारी बने लेकिन हर कदम में उड़ती कला का अनुभव करते हो? जब तक जीना है तब तक हर कदम में उड़ती कला में उड़ना है। इस लक्ष्य से जो आज करते उसमें और नवीनता आई या जहाँ तक पहुँचे वही सीमा सम्पूर्णता की सीमा समझ लिया? पुरुषार्थ में प्राप्ति का नशा और खुशी भी आवश्यक है लेकिन हर कदम में उन्नति वा उड़ती कला का अनुभव भी आवश्यक है। अगर यह बैलेन्स नहीं रहता तो अलबेलापन, ब्लैसिंग प्राप्त करा नहीं सकता। इसलिए पुरुषार्थी जीवन में जितना पाया उसका नशा भी हो और हर कदम में उन्नति का अनुभव भी हो, इसको कहा जाता है बैलेन्स। यह बैलेन्स सदा रहे। ऐसे नहीं समझना हम तो सब जान गये। अनुभवी बन गये। बहुत अच्छी रीति चल रहे हैं। अच्छे बने हो, यह तो बहुत अच्छा है लेकिन और आगे उन्नति को पाना है। ऐसे विशेष कर्म कर सर्व आत्माओं के आगे निमित्त एक्जैम्पुल बनना है। यह नहीं भूलना। समझा किन-किन बातों में बैलेन्स रखना है? इस बैलेन्स द्वारा स्वत: ही ब्लैसिंग मिलती रहती है। तो समझा नम्बर क्यों बनते हैं? कोई किस बात के बैलेन्स में, कोई किस बात के बैलेन्स में अलबेले बन जाते हैं।

बॉम्बे निवासी तो अलबेले नहीं हो ना? हर बात में बैलेन्स रखने वाले हो ना? बैलेन्स की कला में होशियार हो ना। बैलेन्स भी एक कला है। इस कला में सम्पन्न हो ना! बाम्बे को कहा ही जाता है – सम्पत्ति सम्पन्न देश। तो बैलेन्स की सम्पत्ति, ब्लैसिंग की सम्पत्ति में भी सम्पन्न हो ना! नरदेसावर की ब्लैसिंग है! बाम्बे वाले क्या विशेषता दिखायेंगे? बाम्बे में मल्टीमिल्युनियर्स बहुत हैं ना। तो बाम्बे वालों को ऐसी आत्माओं को यह अनुभव कराना आवश्यक है कि रुहानी अविनाशी पद्मापद्म पति सर्व खजानों की खानों के मालिक क्या होता है, यह उन्हों को अनुभव कराओ। यह तो सिर्फ विनाशी धन के मालिक हैं, ऐसे लोगों को इस अविनाशी खजाने का महत्व सुनाकर अविनाशी सम्पत्ति सम्पन्न बनाओ। वो महसूस करें कि यह खजाना अविनाशी श्रेष्ठ खजाना है। ऐसी सेवा कर रहे हो ना! सम्पति वालों की नज़र में यह अविनाशी सम्पत्तिवान आत्मायें श्रेष्ठ हैं, ऐसा अनुभव करें। समझा। ऐसे नहीं सोचना कि इन्हों का पार्ट तो है ही नहीं। अन्त में इन्हों के भी जागने का पार्ट है। सम्बन्ध में नहीं आयेंगे, लेकिन सम्पर्क में आयेंगे। इसलिए अब ऐसी आत्माओं को भी जगाने का समय पहुँच गया है। तो जगाओ खूब अच्छी तरह से जगाओ क्योंकि सम्पत्ति के नशे की नींद में सोये हुए हैं। नशे वालों को बार-बार जगाना पड़ता है। एक बार से नहीं जागते। तो अब ऐसे नशे में सोने वाली आत्माओं को अविनाशी सम्पत्ति के अनुभवों से परिचित कराओ। समझा। बाम्बे वाले तो मायाजीत हो ना! माया को समुद्र में डाल दिया ना। तले में डाला है या ऊपर-ऊपर से? अगर ऊपर कोई चीज़ होती है तो फिर लहरों से किनारे आ जाती, तले में डाल दिया तो स्वाहा। तो माया फिर किनारे तो नहीं आ जाती है ना? बाम्बे निवासियों को हर बात में एक्जैम्पुल बनना है। हर विशेषता में एक्जैम्पुल। जैसे बाम्बे की सुन्दरता देखने के लिए सभी दूर-दूर से भी आते हैं ना! ऐसे दूर-दूर से देखने आयेंगे। हर गुण के प्रैक्टिकल स्वरुप एक्जैम्पल बनो। सरलता जीवन में देखनी हो तो इस सेन्टर में जाकर इस परिवार को देखो। सहनशीलता देखनी हो तो इस सेन्टर में इस परिवार में जाकर देखो। बैलेन्स देखना हो तो इन विशेष आत्माओं में देखो। ऐसी कमाल करने वाले हो ना। बाम्बे वालों को डबल रिटर्न करना है। एक जगत अम्बा माँ की पालना का और दूसरा ब्रह्मा बाप की विशेष पालना का। जगत अम्बा माँ की पालना भी बाम्बे वालों को विशेष मिली है। तो बाम्बे को इतना रिटर्न करना पड़ेगा ना। हर एक स्थान, हरेक विशेष आत्मा द्वारा बाप की, माँ की विशेष आत्माओं की विशेषता दिखाई दे – इसको कहा जाता है रिटर्न करना। अच्छा, भले पधारे। बाप के घर में वा अपने घर में भले पधारे।

बाप तो सदा बच्चों को देख हर्षित होते हैं। एक-एक बच्चा विश्व का दीपक है। सिर्फ कुल का दीपक नहीं, विश्व का दीपक है। हरेक विश्व के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए हैं तो विश्व के दीपक हो गये ना। वैसे तो सारा विश्व भी बेहद का कुल है। उसी नाते से बेहद के कुल के दीपक भी कह सकते हैं। लेकिन हद के कुल के नहीं। बेहद के कुल के दीपक कहो वा विश्व के दीपक कहो। ऐसे हो ना। सदा जगे हुए दीपक हो ना? टिमटिमाने वाले तो नहीं! जब लाइट टिमटिमाती है तो देखने से आंखें खराब हो जाती हैं। अच्छा नहीं लगता है ना। तो सदा जगे हुए दीपक हो ना। ऐसे दीपकों को देख बापदादा सदा हर्षित होते हैं। समझा। अच्छा।

सदा हर कर्म में बैलेन्स रखने वाले, सदा बाप द्वारा ब्लैसिंग लेने वाले, हर कदम में उड़ती कला के अनुभव करने वाले, सदा प्यार के सागर में समाये हुए, समान स्थिति में स्थित रहने वाले, पद्मापद्म भाग्यवान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- सभी ताजधारी रत्न हो ना! सदा जितना बड़ा ताज उतना ही हल्के से हल्के। ऐसा ताज धारण किया है, इस ताज को धारण करके हर कर्म करते हुए भी ताजधारी रह सकते हैं। जो रत्न जड़ित ताज होगा वह फिर भी समय प्रमाण धारण करते और उतारते हैं लेकिन यह ताज ऐसा है जो उतारने की आवश्यकता ही नहीं। सोते हुए भी ताजधारी और उठते हैं तो भी ताजधारी। अनुभव है ना! ताज हल्का है ना? कोई भारी तो नहीं है! नाम बड़ा, वज़न हल्का है। सुखदाई ताज है। खुशी देने वाला ताज है। ऐसा ताजधारी बाप बनाते हैं जो जन्म-जन्म ताज मिलता रहे। ऐसे ताजधारी बच्चों को देख बापदादा हर्षित होते हैं। बापदादा ने ताजपोशी का दिन अभी से ही मना करके सदा की रसम का नियम बना दिया है। सतयुग में भी ताजपोशी दिवस मनाया जायेगा। जो संगम पर ताजपोशी दिवस मनाया, उसी का ही यादगार अविनाशी चलता रहेगा। अव्यक्त वतन में सेवाधारी हैं लेकिन साकार वतन से वानप्रस्थ हुए ना। स्वयं बाप साकार वतन से वानप्रस्थ हो बच्चों को ताज तख्त दे और स्वयं अव्यक्त वतन में चले। तो ताजपोशी का दिन हो गया ना! विचित्र ड्रामा है ना। अगर जाने के पहले बताते तो वण्डरफुल ड्रामा नहीं होता। ऐसा विचित्र ड्रामा है, जिसका चित्र नहीं खींचा जा सकता। विचित्र बाप का विचित्र पार्ट है, जिसका चित्र बुद्धि में संकल्प द्वारा भी नहीं खींच सकते, इसको कहते हैं विचित्र। इसलिए विचित्र ताजपोशी हुई। बापदादा सदा महावीर बच्चों को ताजपोशी करने वाले ताजधारी स्वरुप में देखते हैं। बापदादा साथ देने में नहीं छिपे लेकिन साकार दुनिया से छिपकर अव्यक्त दुनिया में उदय हो गये। साथ रहेंगे, साथ चलेंगे यह तो वायदा है ही। यह वायदा कभी छूट नहीं सकता। इसलिए तो ब्रह्मा बाप इन्तजार कर रहे हैं। नहीं तो कर्मातीत बन गये तो जा सकते हैं। बन्धन तो नहीं है ना। लेकिन स्नेह का बन्धन है। स्नेह के बन्धन के कारण साथ चलने का वायदा निभाने के कारण बाप को इन्तजार करना ही है। साथ निभाना है और साथ चलना है। ऐसे ही अनुभव है ना। अच्छा हरेक विशेष है। विशेषता एक-एक की वर्णन करें तो कितनी होगी। माला बन जायेगी। इसलिए दिल में ही रखते हैं, वर्णन नहीं करते। अच्छा।

पार्टियों से:- अमृतवेला सदा शक्तिशाली है? अमृतवेला शक्तिशाली है तो सारा दिन शक्तिशाली रहेगा। अमृतवेला कमजोर है तो सारा दिन कमजोर। अमृतवेले नियम प्रमाण तो नहीं बैठते हो? यह वरदानों का समय है। वरदानों के समय अगर कोई सोया रहे, सुस्ती में रहे वा विस्मृत रहे, कमजोर होकर बैठे तो वरदानों से वंचित रह जायेगा। तो अमृतवेले का महत्व सदा याद रहता है ना? उस समय नींद तो नहीं करते हो? झुटके तो नहीं खाते हो ना? कभी-कभी कोई नींद की अवस्था को भी शान्ति की अवस्था समझते हैं। उन्हों से पूछते हैं कैसे बैठे थे तो कहते हैं बहुत शान्ति में। तो ऐसी चेकिंग करो – कभी भी शक्तिशाली स्टेज के बीच में यह माया तो नहीं आती है! जो शक्तिशाली हैं उसके आगे माया कमजोर हो जाती है।

युगलों से:- सदा प्रवृत्ति में रहते इस वृत्ति में रहते हो कि हम न्यारे और सदा बाप के प्यारे हैं! यही वृत्ति सदा प्रवृत्ति में रहती है? वैसे प्रवृत्ति को पर वृत्ति भी कह सकते हैं। पर माना न्यारे। प्रवृत्ति में रहते प्रवृत्ति के बन्धन से परे अर्थात् पर-वृत्ति वा न्यारे और प्यारे। ऐसे बन्धनमुक्त बन प्रवृत्ति के कार्य को निभाने वाले हो ना! बन्धन में बन्धने वाले नहीं लेकिन बन्धन मुक्त हो कर्म करने वाले। मन का भी बन्धन नहीं। एक है तन का बन्धन, दूसरा है मन का बन्धन, तीसरा है सम्बन्ध का बन्धन, व्यवहार का बन्धन। तो सब बन्धनों से मुक्त। निर्बन्धन आत्मा बंध नहीं सकती। सारे बन्धन लगन की अग्नि से भस्म करने वाले। लगन अग्नि है। अग्नि में जो चीज डालें सब भस्म, ऐसी बन्धनमुक्त आत्मा उड़ने के सिवाए रह नहीं सकती। बन्धन फँसाता है, निर्बन्धन उड़ाता है। बन्धन का पिंजड़ा खुला तो पंछी उड़ेगा ना! कोई कितना भी गोल्डन पिंजड़ा लेकर आये उस पिंजड़े में भी फँसने वाले नहीं। यह माया सोने का रुप धारण करके आती है। सोना माना आकर्षण करने वाला। यादगार में भी दिखाते हैं सोना हिरण बनकर आई। तो सोने का हिरण अच्छा तो नहीं लगता! जब उड़ता पंछी हो गये तो सोना हो या हीरा हो लेकिन पिंजड़े के पंछी नहीं बन सकते।

अधरकुमारों से:- सदा अपने को विजय के तिलकधारी आत्मायें अनुभव करते हो? विजय का तिलक सदा लगा हुआ है? कभी मिट तो नहीं जाता? माया कभी मिटा तो नहीं देती? रोज़ अमृतवेले इस विजय के तिलक को स्मृति द्वारा ताजा करो तो सारा दिन विजय का तिलक लगा रहेगा। विजय का तिलक है तो राजय का, भाग्य का भी तिलक है। इसीलिए भक्त भी बहुत बड़े-बड़े तिलक लगाते हैं। तिलक भक्ति की निशानी समझते हैं। प्रभु प्यार है इसकी निशानी तिलक लगा देते हैं। आपको कितने तिलक हैं? राज्य का तिलक, भाग्य का तिलक, विजय का तिलक… यह सब तिलक मिले हैं ना? तिलकधारी ही तख्तधारी हैं। बाप का दिलतख्त जो अभी मिला है ऐसा तख्त भविष्य में भी नहीं मिलेगा। यह बहुत श्रेष्ठ तख्त है। तख्त मिला, तिलक मिला और क्या चाहिए?

 

“बैलेन्स रखने से ही ब्लैसिंग की प्राप्ति | याद और सेवा का सही संतुलन | Avyakt Murli 07-05-1984”


अध्याय: बैलेन्स रखने से ही ब्लैसिंग की प्राप्ति

मुरली दिनांक: 07 मई 1984
विषय: “याद, सेवा, स्वमान और निर्मान के बैलेन्स से ही सहज ब्लैसिंग प्राप्त होती है।”


1. रुहानी प्यार की महफिल — सच्ची राहत का मिलन

आज परमपिता शिवबाबा “प्रेम स्वरूप” बनकर अपने बच्चों से मिलने आये हैं।
यह कोई साधारण मिलन नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के रुहानी प्रेम का संगम है —
ऐसा मिलन जो सारे कल्प में केवल एक बार, अभी के संगमयुग में ही सम्भव है।

बाबा कहते हैं:

“यह रुहानी प्यार रुहों को सच्ची राहत देता है, सच्ची राह बताता है और सच्ची सर्व प्राप्ति कराता है।”

उदाहरण:

जैसे कोई अंधेरे में बहुत समय से भटकता रहा हो, और अचानक एक ज्योति दिखे — वैसे ही परमात्मा का यह प्रेम आत्मा को दिशा देता है।
जो पहले “ना उम्मींद” थे, उन्हें बाबा “उम्मीदवार” बना देते हैं।


2. सच्चा लक्ष्य – सदा लक्ष्मी-नारायण बनना

हर बच्चा अपने मन में यही कहता है – “हमें लक्ष्मी-नारायण बनना है।”
लेकिन जब बाबा ने देखा, तो पाया —
सेवा का उमंग तो है, पर सदा उड़ती कला की स्थिति का अनुभव सबको समान नहीं होता।

मुरली पॉइंट:

“निश्चय, प्यार और लगन सबमें है, पर सदा एकरस स्थिति में रहने में नम्बरवार हो जाते हैं।”

क्यों?
क्योंकि आत्मा “बैलेन्स की नीति” भूल जाती है।


3. याद और सेवा का बैलेन्स – सहज सफलता की कुंजी

याद और सेवा — दोनों ही आवश्यक हैं।
लेकिन अगर सेवा करते हुए याद भूल जाए,
या याद में रहकर सेवा से किनारा करे — तो यह अनबैलेन्स है।

बाबा की वाणी:

“सेवा में रह समय प्रमाण याद करना, यह बैलेन्स है।
समय मिला तो याद किया, नहीं तो सेवा को ही याद समझना — यह अनबैलेन्स है।”

उदाहरण:

मानो दो पंख हों — याद और सेवा
यदि एक पंख कमजोर हो, तो पक्षी उड़ नहीं सकता।
इसी प्रकार, अगर याद में कमजोरी है तो सेवा का फल पूरा नहीं मिलता।


4. स्वमान और निर्मान का बैलेन्स

सेवा में सफलता मिलने पर आत्मा में स्वमान का नशा आता है,
पर उसी के साथ निर्मान भाव भी रहना चाहिए।

बाबा कहते हैं:

“स्वमान तो अच्छा है, लेकिन स्वमान और निर्मान दोनों का बैलेन्स न हो तो स्वमान देह-अभिमान में बदल जाता है।”

उदाहरण:

किसी को सम्मान मिला तो वह कहे – “वाह बाबा, आपने कराया, मैं तो निमित्त हूँ।”
यह निर्मान भाव है।
पर यदि वह कहे – “मैंने किया” — तो यह स्वमान नहीं, अहंकार है।


5. जिम्मेवारी और डबल लाइट स्थिति

बाबा कहते हैं —
हर आत्मा “जिम्मेवारी का ताजधारी” है।
पर जिम्मेवारी निभाते हुए भी डबल लाइट रहना चाहिए।

मुरली पॉइंट:

“जिम्मेवारी निभाते हुए बोझ का अनुभव न हो, यही डबल लाइट कहलाता है।”

उदाहरण:

जैसे कोई दीपक भारी तेल से नहीं, बल्कि हल्के तेल से अधिक चमकता है —
वैसे ही जिम्मेदारी निभाने वाला अगर बोझ रहित है, तो उसकी ज्योति तेज होती है।


6. प्राप्ति के नशे और उन्नति के अनुभव का बैलेन्स

पुरुषार्थ करते समय जब आत्मा ज्ञान, योग और सेवा में प्रगति करती है,
तो “नशा” आ जाता है — कि हमने पा लिया।
परंतु अगर उड़ती कला का अनुभव नहीं होता,
तो यह नशा अलबेलापन बन जाता है।

बाबा की शिक्षा:

“प्राप्ति का नशा भी आवश्यक है, लेकिन हर कदम में उन्नति का अनुभव भी साथ हो।”

उदाहरण:

जैसे विद्यार्थी कहे — “अब मैं सब जान गया” —
तो उसकी प्रगति रुक जाती है।
सच्चा योगी हर दिन नई उड़ान में रहता है।


7. ब्लैसिंग की स्वतः प्राप्ति का रहस्य

जब आत्मा हर कर्म में बैलेन्स रखती है
याद और सेवा, स्वमान और निर्मान, जिम्मेवारी और डबल लाइट,
नशा और विनम्रता —
तो बाबा कहते हैं —

“ऐसे आत्माओं को ब्लैसिंग मांगनी नहीं पड़ती, ब्लैसिंग स्वतः मिलती रहती है।”


8. सदा जागे हुए दीपक बनो

बाबा अंत में कहते हैं —

“हर बच्चा विश्व का दीपक है। सदा जगे हुए दीपक बनो, टिमटिमाने वाले नहीं।”

उदाहरण:

जैसे बिजली की लाइट टिमटिमाए तो आंखें थक जाती हैं —
वैसे ही यदि आत्मा कभी उड़ती है, कभी गिरती है,
तो औरों को प्रेरणा नहीं दे सकती।


9. ताजधारी बच्चों की विशेषता

“सदा जितना बड़ा ताज, उतना ही हल्का रहो।”
“सोते हुए भी ताजधारी, जागते हुए भी ताजधारी रहो।”

यह ताज देह का नहीं — यह स्मृति, स्नेह और सेवा का ताज है।
बाबा कहते हैं —

“यह ताज कभी उतारना नहीं पड़ता; यह जन्म-जन्म ताज मिलता रहेगा।”


10. अमृतवेला – दिनभर की सफलता का आधार

“अमृतवेला शक्तिशाली है तो सारा दिन शक्तिशाली रहेगा।”

अमृतवेला ही वह समय है जब आत्मा ब्लैसिंग्स और वरदानों से भरती है।
अगर उस समय नींद या सुस्ती रही — तो दिनभर शक्ति की कमी अनुभव होती है।


11. प्रवृत्ति में न्यारेपन का रहस्य

जो गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी बन्धनों से न्यारे हैं —
वे ही सच्चे “पर-वृत्ति” वाले हैं।

“प्रवृत्ति में रहकर पर-वृत्ति का अनुभव करो — यही बन्धनमुक्त जीवन है।”

उदाहरण:

कमल फूल जल में रहकर भी जल से अछूता रहता है —
वैसे ही आत्मा संसार में रहते हुए भी न्यारी-प्यारी बन सकती है।


12. विजय के तिलकधारी बनो

“विजय का तिलक सदा लगा रहना चाहिए।
जो विजयी है, वही तख्तधारी है, वही भाग्यशाली है।”

हर आत्मा को याद रखना चाहिए —
हम विजय के तिलकधारी हैं, तख्तधारी हैं, भाग्य के अधिकारी हैं।


सारांश – बैलेन्स ही ब्लैसिंग का द्वार है

  • याद और सेवा का संतुलन रखो

  • स्वमान और निर्मान का मेल बनाओ

  • जिम्मेवारी निभाते हुए डबल लाइट रहो

  • प्राप्ति के नशे में रहते हुए भी उन्नति करते रहो

  • और हर स्थिति में सदा जागे हुए दीपक बनो

तभी ब्लैसिंग स्वतः मिलेगी, सफलता सहज होगी, और स्थिति सम्पूर्ण बनेगी।

प्रश्न 1:

बाबा आज किस स्वरूप में आये और इस मिलन को क्या कहा गया?

उत्तर:
आज परमपिता शिवबाबा “प्रेम स्वरूप” बनकर अपने बच्चों से मिलने आये हैं।
यह कोई साधारण मिलन नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के रुहानी प्रेम का संगम है।
बाबा कहते हैं —
“यह रुहानी प्यार रुहों को सच्ची राहत देता है, सच्ची राह बताता है और सच्ची सर्व प्राप्ति कराता है।”

उदाहरण:
जैसे कोई अंधेरे में वर्षों से भटक रहा हो और अचानक ज्योति दिखे —
वैसे ही परमात्मा का प्रेम आत्मा को दिशा देता है।


प्रश्न 2:

हर बच्चे का सच्चा लक्ष्य क्या है?

उत्तर:
हर बच्चा यही कहता है —
“हमें लक्ष्मी-नारायण बनना है।”
परन्तु बाबा ने देखा कि सभी में निश्चय, प्यार और सेवा का उमंग तो है,
लेकिन सदा उड़ती कला की स्थिति समान नहीं है।
क्योंकि “बैलेन्स की नीति” भूल जाते हैं।


प्रश्न 3:

याद और सेवा का बैलेन्स क्यों आवश्यक है?

उत्तर:
सेवा करते समय याद को भूल जाना, या याद में रहकर सेवा न करना —
दोनों ही अनबैलेन्स हैं।
बाबा कहते हैं —
“सेवा में रह समय प्रमाण याद करना, यही बैलेन्स है।
समय मिला तो याद किया, नहीं तो सेवा को ही याद समझना — यह अनबैलेन्स है।”

उदाहरण:
याद और सेवा आत्मा के दो पंख हैं।
यदि एक पंख कमजोर हो, तो उड़ान नहीं हो सकती।


प्रश्न 4:

स्वमान और निर्मान का बैलेन्स क्या है?

उत्तर:
सेवा में सफलता मिलने पर स्वमान का नशा आना स्वाभाविक है,
पर उसी के साथ निर्मान भाव रहना चाहिए।
बाबा कहते हैं —
“स्वमान और निर्मान दोनों का बैलेन्स न हो तो स्वमान देह-अभिमान में बदल जाता है।”

उदाहरण:
कहना — “वाह बाबा, आपने कराया, मैं तो निमित्त हूँ” — यह निर्मान भाव है।
पर “मैंने किया” कहना — यह अहंकार है।


प्रश्न 5:

जिम्मेवारी निभाते हुए “डबल लाइट” कैसे रह सकते हैं?

उत्तर:
बाबा कहते हैं —
“जिम्मेवारी निभाते हुए बोझ का अनुभव न हो, यही डबल लाइट कहलाता है।”
जो बोझ महसूस करता है, वह उड़ नहीं सकता।

उदाहरण:
जैसे दीपक भारी तेल से नहीं, बल्कि हल्के तेल से अधिक चमकता है।
वैसे ही बोझ रहित आत्मा अधिक उज्जवल होती है।


प्रश्न 6:

पुरुषार्थ में “नशा” और “उन्नति” दोनों का बैलेन्स कैसे रखें?

उत्तर:
जब आत्मा को प्राप्तियों का नशा आता है — “हम ज्ञानी, योगी बन गये”
तो आगे बढ़ने का भाव रुक जाता है।
बाबा कहते हैं —
“प्राप्ति का नशा भी आवश्यक है, लेकिन हर कदम में उन्नति का अनुभव भी साथ हो।”

उदाहरण:
जो विद्यार्थी कहे “अब मैं सब जान गया” — उसकी प्रगति रुक जाती है।
सच्चा योगी हर दिन नई उड़ान भरता है।


प्रश्न 7:

ब्लैसिंग की स्वतः प्राप्ति कब होती है?

उत्तर:
जब आत्मा हर कर्म में बैलेन्स रखती है —
याद और सेवा, स्वमान और निर्मान, जिम्मेवारी और डबल लाइट,
तभी उसे ब्लैसिंग मांगनी नहीं पड़ती —
ब्लैसिंग स्वतः मिलती रहती है।


प्रश्न 8:

बाबा ने बच्चों को “जगे हुए दीपक” क्यों कहा?

उत्तर:
“हर बच्चा विश्व का दीपक है। सदा जगे हुए दीपक बनो, टिमटिमाने वाले नहीं।”
जो आत्मा स्थिर रहती है, वही दूसरों को प्रकाश दे सकती है।

उदाहरण:
टिमटिमाती लाइट आँखों को थका देती है —
वैसे ही चंचल आत्मा प्रेरणा नहीं दे सकती।


प्रश्न 9:

“ताजधारी बच्चों” की विशेषता क्या बताई गई?

उत्तर:
“जितना बड़ा ताज, उतना ही हल्का रहो।”
यह ताज देह का नहीं, स्मृति और स्नेह का है।
बाबा कहते हैं —
“यह ताज जन्म-जन्म तक मिलता रहेगा।”


प्रश्न 10:

अमृतवेला को बाबा ने क्यों महत्वपूर्ण कहा?

उत्तर:
“अमृतवेला शक्तिशाली है तो सारा दिन शक्तिशाली रहेगा।”
यह वरदानों का समय है।
यदि उस समय सुस्ती या नींद हो, तो दिनभर शक्ति की कमी रहती है।


प्रश्न 11:

गृहस्थ जीवन में रहते हुए “न्यारे और प्यारे” कैसे बन सकते हैं?

उत्तर:
जो प्रवृत्ति में रहते हुए भी बन्धनों से परे हैं — वही “पर-वृत्ति” वाले हैं।
बाबा कहते हैं —
“प्रवृत्ति में रहकर पर-वृत्ति का अनुभव करो — यही बन्धनमुक्त जीवन है।”

उदाहरण:
कमल फूल जल में रहकर भी जल से अछूता रहता है —
वैसे ही योगी आत्मा संसार में रहकर भी न्यारी रहती है।


प्रश्न 12:

“विजय के तिलकधारी” आत्माओं का क्या अर्थ है?

उत्तर:
“विजय का तिलक सदा लगा रहना चाहिए। जो विजयी है, वही तख्तधारी और भाग्यशाली है।”
याद रखो —
हम विजय के तिलकधारी, तख्तधारी और भाग्य के अधिकारी हैं।


सारांश:

बैलेन्स ही ब्लैसिंग का द्वार है।

  • याद और सेवा का संतुलन रखो

  • स्वमान और निर्मान का मेल बनाओ

  • जिम्मेवारी निभाते हुए डबल लाइट रहो

  • प्राप्ति के नशे में भी उन्नति करते रहो

  • और सदा जगे हुए दीपक बनो
    तभी सहज सफलता, सच्ची ब्लैसिंग और सम्पूर्ण स्थिति प्राप्त होगी।


YouTube Description (विवरण):

इस अव्यक्त मुरली (07 मई 1984) में बापदादा हमें सिखाते हैं —
“बैलेन्स रखने से ही ब्लैसिंग की प्राप्ति होती है।”
जब हम याद और सेवा, स्वमान और निर्मान, जिम्मेवारी और डबल लाइट,
नशा और विनम्रता — इन सबका बैलेन्स रखते हैं,
तभी सहज रूप से ईश्वरीय आशीर्वाद अनुभव करते हैं।
 यह वीडियो आपको सिखाएगा — “सफल जीवन का गुप्त रहस्य: बैलेन्स”


 Disclaimer:

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज संस्थान की शिक्षाओं पर आधारित एक आध्यात्मिक व्याख्या है।
इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति, आत्म-सुधार और ईश्वरीय ज्ञान का प्रसार करना है।
यह किसी धर्म, मत या व्यक्ति-विशेष की आलोचना नहीं है।

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