(18)संग ही संग’ की स्थिति:फ़रिश्ता आत्मा का सच्चा अनुभव
हम फरिश्ता कैसे बनें
Avyakt Murli: 21 जनवरी 1970
आज का विषय: “संग ही संग की स्थिति – फरिश्ता आत्मा का सच्चा अनुभव”
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दुनिया में हर कोई चाहता है कि कोई ऐसा संग मिले जो कभी न छूटे।
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शरीर, रिश्ते, धन, पद – ये सब अस्थायी हैं।
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स्थूल दुनिया की संगत समय के साथ बदलती रहती है, पर परमात्मा का संग सदा स्थायी है।
मुख्य पॉइंट:
“आत्मा जब परमात्मा के साथ है तभी वह फरिश्ता है। आत्मा परमात्मा के साथ नहीं है तो फरिश्ता भी नहीं।”
2. संग ही संग का अर्थ
Sakar Murli: 16 मई 1969
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हर संकल्प और हर कदम में परमात्मा को साथी अनुभव करना।
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यह सहज है – जैसे छाया हमेशा धूप के साथ रहती है।
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उदाहरण: अच्छी संगत तारे जैसी होती है, गंदी संगत डुबो देती है।
मुख्य सीख:
परमात्मा परमपिता सबसे श्रेष्ठ संग है। उसको साथी बनाकर ही आत्मा फरिश्ता स्थिति का अनुभव कर सकती है।
3. साथी बनाने की विधि
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हर संकल्प में परमात्मा की डायरेक्शन के अनुसार चलना।
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हर बोल और कर्म में परमात्मा की श्रीमत अपनाना।
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याद का अभ्यास:
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Avyakt Murli 2 अप्रैल 1975
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याद का मतलब है संग रहना और श्रीमत पर चलना।
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उदाहरण:
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रेडियो की ट्यूनिंग सही हो तो आवाज साफ आएगी, गलत ट्यूनिंग से आवाज गड़बड़।
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सही अर्थ के साथ बाबा की श्रीमत अपनाएं – तभी संग का अनुभव सही होगा।
4. फरिश्ता आत्मा की पहचान
Sakar Murli: 10 नवंबर 1969
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हर समय परमात्मा के संग का अनुभव होना।
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परिस्थिति चाहे कैसी भी हो, आत्मा निर्भय और हल्की रहती है।
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उदाहरण: बच्चा पिता का हाथ पकड़कर सड़क पार करता है और निश्चिंत रहता है।
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वैसे ही आत्मा परमात्मा को संग अनुभव करती है।
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5. निरंतर शक्ति और प्रसन्नता
Sakar Murli: 25 दिसंबर 1969
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संग ही संग स्थिति से आत्मा शक्तिशाली, प्रसन्न और निश्चिंत हो जाती है।
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निरंतर बाबा की श्रीमत पर चलने से आत्मा में शक्ति प्रवाहित होती रहती है।
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उदाहरण: चार्जिंग वायर में लगातार करंट बहता रहता है, बैटरी चार्ज होती रहती है।
6. निष्कर्ष और अभ्यास
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फरिश्ता बनना:
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परमात्मा की उंगली पकड़कर हर पल श्रीमत पर चलना।
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अकेलेपन या बोझ कभी अनुभव नहीं होता।
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सदैव संग का अभ्यास:
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हर संकल्प में, हर कर्म में, हर संबंध में शिव बाबा का संग अनुभव करना।
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इससे आत्मा अडोल, निश्चिंत और निर्भय बनती है।
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मुख्य मंत्र:
“ना कभी अकेलेपन, ना कभी बोझ, बस हर पल शिव बाबा का संग।”
“फरिश्ता आत्मा की स्थिति और संग ही संग का रहस्य | BK Spiritual Q&A”
Q1: फरिश्ता आत्मा क्या है?
A1:फरिश्ता आत्मा वह होती है जो हर समय परमात्मा के संग रहती है। जब आत्मा परमात्मा के संग नहीं होती, तो वह फरिश्ता भी नहीं बन सकती। परमात्मा ही एक स्थायी साथी हैं, जो आत्मा को हमेशा समर्थन और शक्ति प्रदान करते हैं।
Murlis Reference: 21 जनवरी 1970
Q2: संग ही संग का अर्थ क्या है?
A2:संग ही संग का अर्थ है हर संकल्प और हर कदम में परमात्मा को साथी अनुभव करना। यह आत्मा को शक्तिशाली, प्रसन्न और निश्चिंत बनाता है। जैसे छाया हमेशा धूप के साथ रहती है, वैसे ही आत्मा परमात्मा के संग रहती है।
Murlis Reference: 16 मई 1969
Q3: परमात्मा को साथी कैसे बनाया जा सकता है?
A3:
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हर संकल्प में परमात्मा की डायरेक्शन पर चलना।
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हर बोल और कर्म में परमात्मा की श्रीमत अपनाना।
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हर समय याद का अभ्यास करना, यानी संग रहना और श्रीमत पर चलना।
Example: रेडियो की ट्यूनिंग सही होने पर आवाज साफ आती है। वैसे ही श्रीमत का सही अर्थ अपनाने से संग का अनुभव स्पष्ट होता है।
Murlis Reference: 2 अप्रैल 1975
Q4: संग ही संग स्थिति से आत्मा को क्या लाभ मिलता है?
A4:
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आत्मा शक्तिशाली, प्रसन्न और निश्चिंत हो जाती है।
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कोई भी परिस्थिति उस पर भारी नहीं पड़ती।
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आत्मा निरंतर भयमुक्त और हल्की रहती है।
Example: जैसे बच्चा पिता का हाथ पकड़कर सड़क पार करता है और निश्चिंत रहता है, वैसे ही आत्मा परमात्मा का संग अनुभव करके निर्भय रहती है।
Murlis Reference: 10 नवंबर 1969
Q5: संग का अभ्यास कैसे किया जाए?
A5:
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हर संकल्प, हर कर्म और हर संबंध में शिव बाबा का संग अनुभव करना।
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श्रीमत के अनुसार चलना और अपनी मत को उसमें मिक्स न करना।
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निरंतर बाबा की डायरेक्शन पर चलने से शक्ति और सफलता मिलती है।
Example: चार्जिंग वायर में लगातार करंट बहता रहता है, बैटरी चार्ज होती रहती है। वैसे ही निरंतर श्रीमत पर चलने से आत्मा में शक्ति प्रवाहित होती रहती है।
Murlis Reference: 25 दिसंबर 1969
Q6: फरिश्ता बनने की सबसे बड़ी पहचान क्या है?
A6:संग ही संग की स्थिति। यदि परमात्मा की उंगली पकड़कर श्रीमत पर नहीं चलेंगे, तो हम फरिश्ता नहीं बन सकते।
Mantra:
“ना कभी अकेलेपन, ना कभी बोझ, बस हर पल शिव बाबा का संग।”
Disclaimer:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान और बाबा की मुरली शिक्षाओं पर आधारित है। यह किसी भी प्रकार के धार्मिक मतभेद या व्यक्तिगत मान्यताओं को प्रभावित करने का उद्देश्य नहीं रखता। सभी आध्यात्मिक अनुभव व्यक्तियों के आत्म-अध्ययन और अभ्यास पर निर्भर करते हैं।
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