अव्यक्त मुरली-(45)10-12-1984 “पुराने खाते की समाप्ति की निशानी”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
10-12-1984 “पुराने खाते की समाप्ति की निशानी”
आज बापदादा साकार तन का आधार ले साकार दुनिया में, साकार रूपधारी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। वर्तमान समय की हलचल की दुनिया अर्थात् दु:ख के वातावरण वाली दुनिया में बापदादा अपने अचल अडोल बच्चों को देख रहे हैं। हलचल में रहते न्यारे और बाप के प्यारे कमल पुष्पों को देख रहे हैं। भय के वातावरण में रहते निर्भय, शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। इस विश्व के परिवर्तक बेफिकर बादशाहों को देख रहे हैं। ऐसे बेफिकर बादशाह हो जो चारों ओर के फिकरात के वायुमण्डल का प्रभाव अंश मात्र भी नहीं पड़ सकता है। वर्तमान समय विश्व में मैजारिटी आत्माओं में भय और चिन्ता यह दोनों ही विशेष सभी में प्रवेश हैं। लेकिन जितने ही वह फिकर में हैं, चिंता में हैं उतने ही आप शुभ चिन्तक हो। चिन्ता बदल शुभ चिन्तक के भावना स्वरूप बन गये हो। भयभीत के बजाए सुख के गीत गा रहे हो। इतना परिवर्तन अनुभव करते हो ना! सदा शुभ चिन्तक बन शुभ भावना, शुभ कामना की मानसिक सेवा से भी सभी को सुख-शान्ति की अंचली देने वाले हो ना! अकाले मृत्यु वाली आत्माओं को, अकाल मूर्त बन शान्ति और शक्ति का सहयोग देने वाले हो ना। क्योंकि वर्तमान समय सीजन ही अकाले मृत्यु की है। जैसे वायु का, समुद्र का तूफान अचानक लगता है, ऐसे यह अकाले मृत्यु का भी तूफान अचानक और तेजी से एक साथ अनेकों को ले जाता है। यह अकाले मृत्यु का तूफान अभी तो शुरू हुआ है। विशेष भारत में सिविल वार और प्राकृतिक आपदायें ये ही हर कल्प परिवर्तन के निमित्त बनते हैं। विदेश की रूप-रेखा अलग प्रकार की है। लेकिन भारत में यही दोनों बातें विशेष निमित्त बनती हैं। और दोनों की रिहर्सल देख रहे हो। दोनों ही साथ-साथ अपना पार्ट बजा रहे हैं।
बच्चों ने पूछा कि एक ही समय इकट्ठा मृत्यु कैसे और क्यों होता? इसका कारण क्या है? यह तो जानते हो और अनुभव करते हो कि अब सम्पन्न होने का समय समीप आ रहा है। सभी आत्माओं का, द्वापरयुग वा कलियुग से किए हुए विकर्मों वा पापों का खाता जो भी रहा हुआ है वह अभी पूरा ही समाप्त होना है क्योंकि सभी को अब वापस घर जाना है। द्वापर से किये हुए कर्म वा विकर्म दोनों का फल अगर एक जन्म में समाप्त नहीं होता तो दूसरे जन्मों में भी चुक्तू का वा प्राप्ति का हिसाब चलता आता है। लेकिन अभी लास्ट समय है और पापों का हिसाब ज्यादा है। इसलिए अब जल्दी-जल्दी जन्म और जल्दी-जल्दी मृत्यु – इस सजा द्वारा अनेक आत्माओं का पुराना खाता खत्म हो रहा है। तो वर्तमान समय मृत्यु भी दर्दनाक और जन्म भी मैजारिटी का बहुत दु:ख से हो रहा है। न सहज मृत्यु, न सहज जन्म है। तो दर्दनाक मृत्यु और दु:खमय जन्म यह जल्दी हिसाब-किताब चुक्तू करने का साधन है। जैसे इस पुरानी दुनिया में चीटियाँ, चीटें, मच्छर आदि को मारने के लिए साधन अपनाये हुए हैं। उन साधनों द्वारा एक ही साथ चीटियाँ वा मच्छर वा अनेक प्रकार के कीटाणु इकट्ठे हो विनाश हो जाते हैं ना। ऐसे आज के समय मानव भी मच्छरों, चीटियों सदृश्य अकाले मृत्यु के वश हो रहे हैं। मानव और चींटियों में अन्तर ही नहीं रहा है। यह सब हिसाब-किताब और सदा के लिए समाप्त होने के कारण इकट्ठा अकाले मृत्यु का तूफान समय प्रति समय आ रहा है।
वैसे धर्मराज पुरी में भी सजाओं का पार्ट अन्त में नूंधा हुआ है। लेकिन वह सजायें सिर्फ आत्मा अपने आप भोगती और हिसाब किताब चुक्तू करती है। लेकिन कर्मों के हिसाब अनेक प्रकार में भी विशेष तीन प्रकार के हैं – एक हैं आत्मा को अपने आप भोगने वाले हिसाब, जैसे बीमारियाँ। अपने आप ही आत्मा तन के रोग द्वारा हिसाब चुक्तू करती है। ऐसे और भी दिमाग कमजोर होना वा किसी भी प्रकार की भूत प्रवेशता। ऐसे ऐसे प्रकार की सजाओं द्वारा आत्मा स्वयं हिसाब-किताब भोगती है। दूसरा हिसाब है सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा दुख की प्राप्ति। यह तो समझ सकते हो ना कि कैसे है! और तीसरा है प्राकृतिक आपदाओं द्वारा हिसाब-किताब चुक्तू होना। तीनों प्रकार के आधार से हिसाब-किताब चुक्तू हो रहे हैं। तो धर्मराजपुरी में सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा वा प्राकृतिक आपदाओं द्वारा हिसाब-किताब चुक्तू नहीं होगा। वह यहाँ साकार सृष्टि में होगा। सारे पुराने खाते सभी के खत्म होने ही हैं। इसलिए यह हिसाब-किताब चुक्तू की मशीनरी अब तीव्रगति से चलनी ही है। विश्व में यह सब होना ही है। समझा। यह है कर्मों की गति का हिसाब-किताब। अब अपने आप को चेक करो कि मुझ ब्राह्मण आत्मा का तीव्रगति के तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू हुए हैं वा अभी भी कुछ बोझ रहा हुआ है? पुराना खाता अभी कुछ रहा हुआ है वा समाप्त हो गया है, इसकी विशेष निशानी जानते हो? श्रेष्ठ परिवर्तन में वा श्रेष्ठ कर्म करने में कोई भी अपना स्वभाव-संस्कार विघ्न डालता है वा जितना चाहते हैं, जितना सोचते हैं उतना नहीं कर पाते हैं, और यही बोल निकलते वा संकल्प मन में चलते कि न चाहते भी पता नहीं क्यों हो जाता है। पता नहीं क्या हो जाता है वा स्वयं की चाहना श्रेष्ठ होते, हिम्मत हुल्लास होते भी परवश अनुभव करते हैं, कहते हैं ऐसा करना तो नहीं था, सोचा नहीं था लेकिन हो गया। इसको कहा जाता है स्वयं के पुराने स्वभाव संस्कार के परवश वा किसी संगदोष के परवश वा किसी वायुमण्डल वायब्रेशन के परवश। यह तीनों प्रकार के परवश स्थितियाँ होती हैं तो न चाहते हुए होना, सोचते हुए न होना वा परवश बन सफलता को प्राप्त न करना – यह निशानी है पिछले पुराने खाते के बोझ की। इन निशानियों द्वारा अपने आपको चेक करो – किसी भी प्रकार का बोझ उड़ती कला के अनुभव से नीचे तो नहीं ले आता। हिसाब चुक्तू अर्थात् हर प्राप्ति के अनुभवों में उड़ती कला। कब कब प्राप्ति है, कब है तो अब रहा हुआ है। तो इसी विधि से अपने आपको चेक करो। दु:खमय दुनिया में तो दु:ख की घटनाओं के पहाड़ फटने ही हैं। ऐसे समय पर सेफ्टी का साधन है ही – “बाप की छत्रछाया”। छत्रछाया तो है ही ना। अच्छा।
मिलन मेला मनाने सब आये हैं। यही मिलन मेला कितनी भी दर्दनाक सीन हो लेकिन मेला है तो यह खेल लगेगा। भयभीत नहीं होंगे। मिलन के गीत गाते रहेंगे। खुशी में नाचेंगे। औरों को भी साहस का सहयोग देंगे। स्थूल नाचना नहीं, यह खुशी का नाचना है। मेला सदा मनाते रहते हो ना! रहते ही मिलन मेले में हो। फिर भी मधुबन के मेले में आये हो, बापदादा भी ऐसे मेला मनाने वाले बच्चों को देख हर्षित होते हैं। मधुबन के श्रृंगार मधुबन में पहुँच गये हैं। अच्छा।
ऐसे सदा स्वयं के सर्व हिसाब किताब चुक्तू कर औरों के भी हिसाब किताब चुक्तू कराने की शक्ति स्वरूप आत्माओं को, सदा दु:ख दर्दनाक वायुमण्डल में रहते हुए न्यारे और बाप के प्यारे रहने वाले रूहानी कमल पुष्पों को, सर्व आत्माओं प्रति शुभ चिन्तक रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
टीचर्स बहनों से:- सेवाधारी हैं, टीचर्स नहीं। सेवा में त्याग, तपस्या समाई हुई है। सेवाधारी बनना माना खान के अधिकारी बनना। सेवा ऐसी चीज़ है जिससे हर सेकेण्ड में भरपूर ही भरपूर। इतने भरपूर हो जाते जो आधाकल्प खाते ही रहेंगे। मेहनत की जरूरत नहीं – ऐसे सेवाधारी। वह भी रूहानी सेवाधारी रूह की स्थिति में स्थित हो रूह की सेवा करने वाले, इसको कहते हैं रूहानी सेवाधारी। ऐसे रूहानी सेवाधारियों को बापदादा सदा रूहानी गुलाब का टाइटल देते हैं। तो सभी रूहानी गुलाब हो जो कभी भी मुरझाने वाले नहीं। सदा अपनी रूहानियत की खुशबू से सभी को रिफ्रेश करने वाले।
2. सेवाधारी बनना भी बहुत श्रेष्ठ भाग्य है। सेवाधारी अर्थात् बाप समान। जैसे बाप सेवाधारी है वैसे आप भी निमित्त सेवाधारी हैं। बाप बेहद का शिक्षक है आप भी निमित्त शिक्षक हो। तो बाप समान बनने का भाग्य प्राप्त है। सदा इसी श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी अविनाशी भाग्य का वरदान दिलाते रहो। सारे विश्व में ऐसा श्रेष्ठ भाग्य बहुत थोड़ी आत्माओं का है। इस विशेष भाग्य को स्मृति में रखते समर्थ बन समर्थ बनाते रहो। उड़ाते रहो। सदा स्व को आगे बढ़ाते औरों को भी आगे बढ़ाओ।
अध्याय — “पुराने खाते की समाप्ति की निशानी”
(आधारित: अव्यक्त मुरली — 10 दिसंबर 1984)
1. प्रस्तावना — आज के समय की हलचल और ब्रह्मा बाबा की दृष्टि
आज बापदादा साकार तन का आधार लेकर साकार दुनिया में अपने बच्चों से मिलने आए हैं। दुनिया में चारों तरफ भय, हलचल और असुरक्षा का वातावरण है।
लेकिन बाबा जिन बच्चों को देख रहे हैं, वे अचल-अडोल, बाप के प्यारे, कमल पुष्प समान, और निर्भय शक्ति स्वरूप हैं।
जहाँ दुनियावाले भय के गीत गा रहे हैं, वहाँ बाबा के बच्चे सुख-शांति के गीत गा रहे हैं।
जहाँ अन्य आत्माएँ चिंता में डूबी हैं, वहाँ आप बच्चे शुभ-चिंतक बन शुभ भावना की सेवा कर रहे हैं।
उदाहरण:
जैसे कमल कीचड़ में भी खिलकर ऊपर रहता है, ऐसे ही हलचल-सागर में रहते हुए भी आप अलिप्त-न्यारे बने हुए हो।
2. अध्याय — अकाले मृत्यु का तूफान क्यों आता है?
बाबा बताते हैं—
वर्तमान समय अकाले मृत्यु का सीजन चल रहा है।
यह ठीक वैसे ही है जैसे समुद्र में अचानक तूफान आता है।
कारण:
-
द्वापर और कलियुग के विकर्मों का खाता अभी पूरा चुक्तू होना है।
-
समय समाप्त हो रहा है — सभी को घर (परमधाम) लौटना है।
-
जन्म–मरण की गति तेज हो रही है क्योंकि हिसाब-किताब भारी है।
जैसे कीटनाशक से हजारों कीड़े एक साथ समाप्त हो जाते हैं,
उसी प्रकार आज मानव भी मच्छर-चींटी समान अकाले मृत्यु के वश हो रहा है।
3. एक ही समय में सामूहिक मृत्यु — गहराई का रहस्य
बच्चों ने पूछा:
“एक साथ इतनी मृत्यु कैसे होती है?”
बाबा ने उत्तर दिया:
यह पुराने भारी खातों के चुक्तू का समय है।
अब हिसाब एक-एक करके नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से समाप्त होता है।
उदाहरण:
जैसे वर्षों से जमा हुए कर्ज को अंत में एक ही बार में चुकाना पड़ता है,
वैसे ही हजारों वर्षों के कर्मों का खाता अब एक ही समय में खत्म हो रहा है।
4. तीन प्रकार के कर्मों का हिसाब-किताब
(Murli Note: 10-12-1984)
बाबा बताते हैं कि कर्मों के हिसाब तीन प्रकार से चुक्तू होते हैं:
(1) अपने शरीर के माध्यम से — बीमारी, दर्द
आत्मा स्वयं भोगती है।
— बीमारी
— शारीरिक पीड़ा
— मानसिक कमजोरी
— भूत-प्रवेश आदि
(2) सम्बन्ध–सम्पर्क द्वारा
किसी रिश्तेदार, परिवार, या संबंध से दुख मिलना।
— तिरस्कार
— धोखा
— दुःख
(3) प्राकृतिक आपदाओं द्वारा
— भूकंप
— युद्ध
— सिविल वार
— पानी/आग का प्रकोप
यह सभी इस समय तीव्रगति से हो रहे हैं।
5. कैसे पहचानें कि पुराना खाता खत्म हुआ या नहीं?
बाबा एक बहुत आवश्यक चेकिंग पॉइंट देते हैं:
निशानी 1:
आप श्रेष्ठ बनना चाहते हैं पर न चाहते हुए भी गलती हो जाती है।
निशानी 2:
संकल्प करते हैं — “ऐसा नहीं करूँगा”…
फिर भी वही हो जाता है।
यह स्वभाव-संस्कार, संगदोष, या वायुमंडलीय प्रभाव के कारण होता है।
निशानी 3:
चाहते हुए भी सफलता नहीं मिलती—
यह पुराने बोझ का संकेत है।
चेकिंग-विधि:
— क्या मैं उड़ती कला में हूँ?
— क्या पुराना बोझ मुझे नीचे खींचता है?
— क्या मेरे संकल्प मेरी चाहना के साथ मैच करते हैं?
6. वर्तमान समय का सबसे सुरक्षित साधन — “बाप की छत्रछाया”
बाबा कहते हैं —
दर्दनाक दुनिया में दुख-पहाड़ फटेंगे ही।
परन्तु
सेफ्टी = बाप की छत्रछाया
जो बच्चे बाप की छत्रछाया में हैं
वे इस समय भी बेफिक्र बादशाह,
निर्भय, और
खुशी में नाचने वाले बन रहते हैं।
7. मिलन-मेला की अनुभूति — दर्द भी खेल लगता है
बाबा कह रहे हैं:
जब आप बाप से मिलन में टिके रहते हैं,
तो चाहे समय कितना भी दर्दनाक हो,
वह आपको खेल जैसा लगता है।
— आप डरते नहीं
— दूसरों को साहस देते हैं
— खुशी का नृत्य करते हैं (आंतरिक आनंद)
8. रूहानी सेवाधारी — बाबा का विशेष टाइटल
(1) सेवाधारी = खान के अधिकारी
सेवा में त्याग + तपस्या
हर सेकंड कमाई
आधा कल्प खाते रहेंगे
(2) रूहानी सेवाधारी = रूह की सेवा करने वाला
बाबा ऐसे सेवाधारियों को
“रूहानी गुलाब”
का टाइटल देते हैं।
ये कभी मुरझाते नहीं,
सदैव दूसरों को “रिफ्रेश” करते हैं।
9. सेवाधारी = बाप समान
सेवाधारी बनना बहुत बड़ा भाग्य है।
बाबा बेहद के टीचर हैं,
और आप निमित्त शिक्षक।
स्मृति रहे:
सेवाधारी = बाप समान
जो दूसरों को अविनाशी भाग्य देते रहते हैं।
10. समापन — पुराने खाते की समाप्ति की अंतिम निशानी
जब
— संकल्प श्रेष्ठ
— वृति पवित्र
— स्मृति बाप की
— उड़ती कला निरंतर
तब समझो —
पुराने बोझ समाप्त।
आप बन जाते हैं —
बेफिक्र बादशाह
शुभ-चिंतक आत्मा
वायुमंडल को बदलने वाली शक्ति
Q1. वर्तमान समय में दुनिया का वातावरण कैसा है और बाबा अपने बच्चों को किस रूप में देखते हैं?
A1. आज दुनिया भय, हलचल और असुरक्षा से भरी है। लेकिन बाबा अपने बच्चों को अचल-अडोल, कमल-पुष्प की तरह अलिप्त-न्यारे, निर्भय शक्ति स्वरूप, और सुख-शांति के गीत गाने वाले शुभ-चिंतक के रूप में देखते हैं।
उदाहरण:
जैसे कमल कीचड़ में होते हुए भी ऊपर रहता है, वैसे ही बाबा के बच्चे परिस्थितियों से न्यारे रहते हैं।
Q2. बाबा अकाले मृत्यु के समय को “सीज़न” क्यों कहते हैं?
A2. क्योंकि यह समय द्वापर और कलियुग के विकर्मों के भारी खातों को तीव्रगति से चुक्तू कराने का है। जन्म–मरण तेजी से इसलिए हो रहा है क्योंकि अब सभी को घर (परमधाम) लौटने का समय आ गया है।
जैसे कीटनाशक एक साथ अनेक कीड़ों को समाप्त कर देता है, वैसे ही मानव भी आज अकाले मृत्यु के वश हो रहा है।
Q3. एक ही समय में सामूहिक मृत्यु क्यों होती है?
A3. जब हजारों वर्षों के विकर्मों का बोझ जमा हो जाता है, तो अंत में वह सामूहिक रूप से चुक्तू होता है।
यह समय पुराने भारी खातों को एक साथ समाप्त करने का है।
उदाहरण:
जैसे कई वर्षों का कर्ज अंत में एक बार में चुकाना पड़ता है, वैसे ही कर्म-खाते भी अंत में एक साथ पूरा होता है।
Q4. कर्मों का हिसाब-किताब कितने प्रकार से चुक्तू होता है?
A4. अव्यक्त मुरली (10-12-1984) के अनुसार तीन प्रकार से:
(1) शरीर के माध्यम से
— बीमारी
— दर्द
— मानसिक कमजोरी
— भूत-प्रवेश
(2) सम्बन्ध–सम्पर्क द्वारा
— तिरस्कार
— धोखा
— संबंधों का दुःख
(3) प्राकृतिक आपदाओं द्वारा
— भूकंप
— युद्ध
— सिविल वार
— आग या पानी का प्रकोप
ये सभी समय के अंत में तीव्र हो जाते हैं।
Q5. कैसे पहचानें कि हमारी आत्मा का पुराना खाता पूरा समाप्त हुआ है या अभी बाकी है?
A5. बाबा कहते हैं— तीन निशानियाँ देखो:
निशानी 1:
श्रेष्ठ बनना चाहें, लेकिन न चाहते हुए भी गलती हो जाए।
निशानी 2:
संकल्प करें— “ऐसा नहीं करूंगा”,
फिर भी वही हो जाए।
यह स्वभाव-संस्कार, संगदोष या वातावरण के प्रभाव से होता है।
निशानी 3:
चाहते हुए भी सफलता ना मिले।
यह पुराने बोझ का संकेत है।
चेकिंग विधि:
— क्या मैं उड़ती कला में हूँ?
— क्या पुराना बोझ मुझे नीचे खींचता है?
— क्या मेरे संकल्प मेरे लक्ष्य के अनुसार चल रहे हैं?
Q6. इस दुखमय समय में सबसे सुरक्षित साधन क्या है?
A6. बाबा कहते हैं—
“बाप की छत्रछाया सबसे बड़ा सेफ्टी-शेल्टर है।”
जो बच्चे इसमें रहते हैं, वे बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं—
निर्भय, स्थिर, और हमेशा खुशी से नाचने वाले।
Q7. मिलन-मेला का अनुभव क्यों हमें दर्द में भी खेल महसूस कराता है?
A7. जब आत्मा बाप से मिलन में रहती है, तब परिस्थितियाँ खेल लगती हैं।
— डर नहीं लगता
— मन हल्का रहता है
— दूसरों को भी साहस देने की शक्ति आती है
यह “खुशी का नृत्य” है जो परिस्थितियों से ऊपर ले जाता है।
Q8. रूहानी सेवाधारी कौन है और बाबा उन्हें कौन-सा टाइटल देते हैं?
A8.
रूहानी सेवाधारी:
वह जो देह-अभिमान से मुक्त होकर रूह (आत्मा) की सेवा करता है।
बाबा का टाइटल:
बाबा उन्हें “रूहानी गुलाब” कहते हैं —
जो कभी नहीं मुरझाते और अपनी खुशबू से सबको रिफ्रेश करते हैं।
Q9. सेवाधारी बनना बड़ा भाग्य क्यों है?
A9. क्योंकि सेवाधारी बनना मतलब—
बाप समान बनना।
जैसे बाबा बेहद के शिक्षक हैं, वैसे ही सेवाधारी भी निमित्त शिक्षक बनकर दूसरों को अविनाशी भाग्य का वारिस बनाते हैं।
सेवा = त्याग + तपस्या + निरंतर कमाई
यह वह भाग्य है जो बहुत थोड़ी आत्माओं को मिलता है।
Q10. पुराने खाते की अंतिम निशानी क्या है?
A10.
जब आत्मा—
— संकल्पों में श्रेष्ठ
— वृति में पवित्र
— स्मृति में बाप
— उड़ती कला में स्थित
हो जाती है, तब समझो पुराना बोझ, पुराने संस्कार पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं।
आप बन जाते हैं—
बेफिक्र बादशाह,
शुभ-चिंतक,
और वायुमंडल बदलने वाली शक्ति।
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