22-02-1984 “Experience of the four combined forms at the confluence”

22-02-1984“संगम पर चार कम्बाइन्ड रूपों का अनुभव”

YouTube player

बापदादा का कम्बाइन्ड रूप का रहस्य 


1. आत्मा और शरीर का कम्बाइन्ड रूप – “श्रेष्ठ कार्य का आधार”

बापदादा आज सभी बच्चों के कम्बाइन्ड रूप को देख रहे हैं — आत्मा और शरीर एक साथ श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं।
भले ही यह पुराना शरीर है, लेकिन इस शरीर द्वारा आत्मा अलौकिक अनुभव करती है।

मुरली बिंदु:
“पुराना शरीर है, लेकिन बलिहारी इस अन्तिम शरीर की है, जिसके द्वारा श्रेष्ठ आत्मा अलौकिक अनुभव करती है।”

उदाहरण:

जैसे एक पुराना दीपक भी जब शुद्ध तेल से भरा जाता है, तो वह दिव्य प्रकाश देता है, वैसे ही यह शरीर — भले ही पुराना है, परंतु आत्मा इसमें ज्ञान और योग का प्रकाश फैला सकती है।

मुख्य शिक्षा:

  • शरीर के भान में नहीं आना है।

  • आत्म-अभिमानी बन, कर्मयोगी बनकर कर्म कराना है।

  • शरीर का उपयोग “ईश्वरीय यज्ञ” के साधन के रूप में करना है।


2. “आप और बाप” का अलौकिक कम्बाइन्ड रूप – मास्टर सर्वशक्तिवान बनो

यह वह दुर्लभ अनुभव है जो केवल संगमयुग में ही संभव है।
जब आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है — तब आत्मा बन जाती है:
सदा विजयी, सर्व के विघ्न-विनाशक, शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप।

मुरली बिंदु:
“सिर्फ इस कम्बाइन्ड रूप में सदा स्थित रहो तो सहज ही याद और सेवा के सिद्धि स्वरूप बन जाओ।”

उदाहरण:

जैसे जब बिजली तार से जुड़ती है तो प्रकाश उत्पन्न होता है, वैसे ही जब आत्मा परमात्मा से “कम्बाइन्ड” होती है तो हर कार्य सिद्धि में बदल जाता है।

मुख्य शिक्षा:

  • “आप और बाप” का कम्बाइन्ड रूप याद रखो।

  • विधि में नहीं, सिद्धि में स्थित रहो।

  • जहाँ “बाप” का बल है, वहाँ असफलता नहीं।


3. ब्राह्मण सो फरिश्ता – अव्यक्त भाव की अवस्था

बापदादा समझाते हैं — ब्राह्मण आत्मा अब फरिश्ता स्वरूप में परिवर्तन की यात्रा पर है।
यह कम्बाइन्ड रूप है — ब्राह्मण जीवन और भविष्य के कर्मातीत स्वरूप का संगम।

मुरली बिंदु:
“भाव बदल गया तो सब कुछ बदल जायेगा। अब स्मृति को स्वरूप में लाओ।”

उदाहरण:

जैसे जब पानी वाष्प बन जाता है तो उसका स्वरूप बदल जाता है, वैसे ही जब आत्मा देह-अभिमान छोड़ देती है, तो वह फरिश्ता रूप धारण कर लेती है।

मुख्य शिक्षा:

  • स्मृति में रहना पहली अवस्था है।

  • स्वरूप बन जाना — श्रेष्ठ अवस्था है।

  • अव्यक्त भाव लाओ, ताकि व्यक्त संस्कार बदल जाएँ।


4. भविष्य चतुर्भुज स्वरूप – लक्ष्मी नारायण का कम्बाइन्ड रूप

यह वह अवस्था है जहाँ आत्मा में लक्ष्मी और नारायण दोनों बनने के संस्कार भरते हैं।
आज फरिश्ता, कल देवता — यही भविष्य की निश्चित प्रालब्ध है।

मुरली बिंदु:
“आपके स्पष्ट समर्थ संकल्प के इमर्ज रूप से आपका राज्य समीप आयेगा।”

उदाहरण:

जैसे मूर्तिकार पहले मूर्ति को अपने मन में गढ़ता है, फिर वह रूप धारण करती है; वैसे ही हमारे संकल्प ही हमारी नई सृष्टि रचते हैं।

मुख्य शिक्षा:

  • “अभी फरिश्ता, अभी देवता” — यह संकल्प सदा रखें।

  • आपके समर्थ संकल्प ही नई सृष्टि की नींव हैं।

  • संकल्प मर्ज होगा तो नई सृष्टि इमर्ज नहीं होगी।


5. महारथी आत्माएँ – हर आत्मा का स्थान निश्चित है

बापदादा कहते हैं — हर बच्चा महारथी है।
कोई बड़ा या छोटा नहीं, सबकी भूमिका निश्चित है।
कारोबार में निमित्त बनाना कार्य की आवश्यकता है, परन्तु स्वस्थिति में सब महान हैं।

मुरली बिंदु:
“रिगार्ड दो तो रिगार्ड मिलेगा। देने में ही लेने का रहस्य भरा है।”

उदाहरण:

जैसे जब हम किसी को प्रेम और सम्मान देते हैं, तो वही भावना हमारे पास लौटकर आती है। यह कर्म-सिद्धि का नियम है।

मुख्य शिक्षा:

  • दिल से रिगार्ड दो, मतलब से नहीं।

  • रिगार्ड देना ही सच्ची सेवा है।

  • अपने निश्चिन्त और निश्चित भाग्य में स्थित रहो।


6. डबल विदेशी आत्माएँ – “ऊँची दीवारें पार करने वाले”

बापदादा कहते हैं — डबल विदेशी बच्चों ने धर्म, देश, भाषा जैसी ऊँची दीवारें पार की हैं।
इसलिए वे दिल से प्रिय हैं। उनका स्नेह अर्थ का नहीं, आत्मिक प्रेम का है।

मुरली बिंदु:
“ऊँची-ऊँची दीवारें पार करके बाप के बन गये, इसलिए बाप को प्रिय हो।”

मुख्य शिक्षा:

  • जहाँ सच्चा स्नेह है, वहाँ दूरी नहीं रहती।

  • आत्मा का प्रेम सीमा पार कर जाता है।


7. अमृतवेला और आत्म-स्मृति की शक्ति

अमृतवेला वह समय है जब बापदादा स्वयं बच्चों को वरदान देने आते हैं।
जो आत्मा उस समय स्मृति में रहती है, उसका दिन सहज योगमय बन जाता है।

मुरली बिंदु:
“अमृतवेला शक्तिशाली रहे तो सारा दिन निर्विघ्न रहता है।”

मुख्य शिक्षा:

  • “मैं कौन हूँ, किसका हूँ” – इस स्मृति से दिन की शुरुआत करो।

  • अमृतवेला आत्मा का रिचार्ज टाइम है।

  • जो अमृतवेला में शक्तिशाली है, वह दिनभर विजयी रहता है।


निष्कर्ष: कम्बाइन्ड रूप में स्थित रहना ही सिद्धि का रहस्य

जब आत्मा और परमात्मा, ब्राह्मण और फरिश्ता, शरीर और चेतना का कम्बाइन्ड अनुभव एक साथ होता है — तब हर कार्य में सिद्धि स्वतः होती है।
यह ही “बाप समान” स्थिति है — निश्चिन्त, निश्चिंत, निर्विघ्न, और सर्व कल्याणकारी।

संदेश:
“सदा कम्बाइन्ड रूप में स्थित रहो — सदा सिद्धि स्वरूप बन जाओ।”

प्रश्नोत्तर (Q&A Based on Murli Teachings)


प्रश्न 1:बापदादा ने “कम्बाइन्ड रूप” से क्या अर्थ बताया है?

उत्तर:कम्बाइन्ड रूप का अर्थ है — आत्मा और शरीर का श्रेष्ठ संगम, जहाँ आत्मा इस पुराने शरीर के माध्यम से बापदादा से मिलन और सेवा का अनुभव करती है।
बाबा कहते हैं — “यह शरीर भले पुराना है, लेकिन बलिहारी इस अन्तिम शरीर की है, जिसके माध्यम से श्रेष्ठ आत्मा अलौकिक अनुभव करती है।”
इसलिए शरीर से विरक्त नहीं, बल्कि उसका मालिक बन उसे ईश्वरीय सेवा में लगाना ही सच्चा योग है।


प्रश्न 2:“आप और बाप” के कम्बाइन्ड रूप का क्या महत्व है?

 उत्तर:यह कम्बाइन्ड रूप सबसे अलौकिक और शक्तिशाली स्थिति है। इसमें आत्मा स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिवान, विजयी और दाता स्वरूप अनुभव करती है।
बापदादा कहते हैं —

“इस रूप में रहो तो विधि से ज़्यादा सिद्धि अनुभव होगी। प्रत्येक कार्य में सिद्धि स्वतः ही साथ रहेगी।”
अर्थात् जब हम “मैं और बाप एक संग” की स्थिति में रहते हैं, तो हर समस्या का समाधान सेकंड में मिलता है।


प्रश्न 3:“हम सो ब्राह्मण सो फरिश्ता” का क्या अर्थ है?

उत्तर:यह तीसरा कम्बाइन्ड रूप है — जहाँ ब्राह्मण जीवन और फरिश्ता जीवन एक साथ अनुभव होता है।
जब आत्मा यह स्मृति रखती है कि “मैं ब्राह्मण सो फरिश्ता हूँ”, तो वह व्यक्त शरीर में रहकर भी अव्यक्त भाव में कार्य करती है।
 जैसे ब्रह्मा बाबा व्यक्त रूप में थे, परन्तु उनकी स्थिति सदा अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप में थी।
बाबा कहते हैं —

“भाव बदल गया तो सब कुछ बदल जायेगा। स्मृति को स्वरूप में लाओ — यही श्रेष्ठ स्टेज है।”


प्रश्न 4:“भविष्य चतुर्भुज स्वरूप” को बापदादा ने कैसे समझाया?

 उत्तर:यह चौथा कम्बाइन्ड रूप है — लक्ष्मी और नारायण का संयुक्त स्वरूप।
बापदादा कहते हैं —

“आज फरिश्ता, कल देवता। अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी देवता।”
अर्थात् इस समय हम ब्राह्मण रूप में वह संस्कार भर रहे हैं, जो भविष्य में देवता रूप में प्रकट होंगे।
जब हमारा संकल्प स्पष्ट और समर्थ होता है — ‘मैं ही वह चतुर्भुज स्वरूप हूँ’,
तो वह संकल्प ही नई सृष्टि की रचना करता है।


प्रश्न 5:बापदादा ने “रिगार्ड देने और लेने” का क्या रहस्य बताया?

उत्तर:बाबा का सरल लेकिन गहन सिद्धांत है —

“रिगार्ड दो तो रिगार्ड मिलेगा।”
मतलब का नहीं, दिल से रिगार्ड देना ही असली सम्मान है।
जो दिल से दूसरों को सम्मान देता है, वही सच्चा निर्विघ्न, निश्चिन्त, सफल बनता है।
 इस भाव से चलने वाला बच्चा सदा बाप समान, शांत और निश्चित विजयी रहता है।


प्रश्न 6:डबल विदेशी बच्चों के प्रति बापदादा का विशेष स्नेह क्यों है?

 उत्तर:क्योंकि उन्होंने ऊँची-ऊँची दीवारें — धर्म, भाषा, देश — पार करके बाबा को पहचाना।
बापदादा हँसकर कहते हैं —

“भारतवासी तो थे ही देवताओं के पुजारी, पर तुमने वह दीवारें पार करके साक्षात देवताओं के परिवार में प्रवेश किया।”
इसलिए उनका स्नेह “मतलब का नहीं, दिल का स्नेह” है।


प्रश्न 7:बापदादा ने अमृतवेला और पढ़ाई के महत्व पर क्या कहा?

उत्तर:बाबा ने कहा —

“अमृतवेला शक्तिशाली रहे तो दिनभर सहज योगी स्थिति रहती है।”
अमृतवेला में बापदादा स्वयं वरदान देने आते हैं। जो उस समय बाप से वरदान लेते हैं,
उनका पूरा दिन सेफ, सहज और सशक्त रहता है।
 इसलिए बाबा ने कहा — “पढ़ाई और अमृतवेला का मिलन दोनों शक्तिशाली रहें।”


प्रश्न 8:“बालक सो मालिक” बनने का रहस्य क्या है?

उत्तर:जब आत्मा स्वयं को “बाप की संतान” अनुभव करती है, तब वह स्वतः ही “सर्व खजानों की अधिकारी” बन जाती है।
बापदादा ने कहा —

“बालक सो मालिक — यही स्मृति विश्व कल्याणकारी बना देती है।”
यह स्मृति आत्मा को सदा सम्पन्न, खुश और उड़ती स्थिति में रखती है।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):

यह वीडियो Brahma Kumaris के अव्यक्त मुरली संदेश (दिनांक 16 अक्टूबर 1984) पर आधारित है।
इसका उद्देश्य बापदादा के ज्ञान को सरल, व्यावहारिक और प्रेरणादायक रूप में प्रस्तुत करना है।
यह वीडियो किसी धर्म, व्यक्ति या संस्था की आलोचना के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और आत्म-जागृति के लिए बनाया गया है।

Combined form, soul and body, you and the Father, Brahmin is an angel, future four-armed form, Lakshmi Narayan form, amrit vela power, child is the master, BapDada’s message, Siddhi form, world welfare, giving and taking regard, double foreign children, avyakt bhaav, almighty authority form, supernatural experience, service and remembrance, Brahmin life, angel life, avyakt remembrance, reward experience,

कम्बाइंड रूप, आत्मा और शरीर, आप और बाप, ब्राह्मण सो फरिश्ता, चतुर्भुज स्वरूप, लक्ष्मी नारायण रूप, अमृतवेला शक्ति, बालक सो स्वामी, बापदादा संदेश, सिद्धि स्वरूप, विश्व कल्याण, रिगार्ड देना लेना, डबल विदेशी बच्चा, अव्यक्त भाव, सर्वशक्ति स्वरूप, अलौकिक अनुभव, सेवा और स्मृति, ब्राह्मण जीवन, फरिश्ता जीवन, अव्यक्त स्मृति, प्रलब्ध अनुभव,