(26)Time is cyclical, a drama that never ends.

(26)समय चक्रीय है एक नाटक जाे कभी खत्म नही हाेता?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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समय चक्रीय है – एक नाटक जो कभी खत्म नहीं होता | क्या समय की रेखा झूठ है? | BK Rajyog Gyan


भाषण शैली: समझदारी और प्रभावशाली आवाज में)


 1. क्या समय एक सीधी रेखा है?

प्रश्न: क्या आपने हमेशा समय को एक लाइन माना है — शुरुआत से अंत तक?
उत्तर: यही तो सबसे बड़ा भ्रम है। समय कोई रेखा नहीं, बल्कि एक चक्रीय चक्र है — एक ऐसा नाटक जो बार-बार दोहराया जाता है।


 2. क्या आप फिल्म के रिपीट शो देखते हैं?

प्रश्न: जैसे एक फिल्म को हम बार-बार देखते हैं, क्या समय भी वैसा ही नहीं है?
उत्तर: बिल्कुल! यह 5,000 वर्षों का नाटक है, जिसमें हम आत्माएँ बार-बार अपनी भूमिका निभाती हैं।


 3. इस नाटक के कितने भाग हैं?

उत्तर: चार मुख्य भाग —

  1. स्वर्ण युग

  2. रजत युग

  3. ताम्र युग

  4. लौह युग


 4. स्वर्ण युग – क्या धरती पर कभी स्वर्ग था?

उत्तर: हाँ! जहाँ केवल 9-10 लाख आत्माएँ थीं, और हर एक दिव्य थी —
महलों में रहते, प्रेम में जीते, मृत्यु भी सुखद थी — बिना किसी बीमारी के।


 5. रजत युग – गिरावट की पहली सीढ़ी?

उत्तर: अब आत्मा थोड़ी कमजोर होती है, पर अभी भी शांति है। राम-सीता जैसे राजा-रानी शासन करते हैं।
कोई युद्ध नहीं, कोई भ्रष्टाचार नहीं — पर अब गिरावट शुरू हो चुकी है।


 6. क्या आत्मा भूल गई कि वो कौन है?

उत्तर: ताम्र और लौह युग में यही होता है।
आत्मा खुद को शरीर मानने लगती है — यहीं से दुख, भय, लोभ, अहंकार की शुरुआत होती है।


 7. क्यों याद आता है परमात्मा?

प्रश्न: जब आत्मा गिरती है, तो हमें कौन याद आता है?
उत्तर: वही परमपिता शिव — जिसे हम याद करते हैं मंदिरों में, भक्ति में, और कहते हैं – “हे प्रभु! अब आओ!”


 8. क्या ये अंत है या नई शुरुआत?

उत्तर: यह अंत नहीं – नई शुरुआत है।
जब परमात्मा फिर से आते हैं, तो हमें आत्म-स्मृति, पवित्रता और शांति का वरदान देते हैं।
फिर से स्वर्ण युग शुरू होता है।


 9. तो क्या यह नाटक फिर से दोहराया जाएगा?

उत्तर: हाँ। यही तो समय का रहस्य है — यह नाटक कभी खत्म नहीं होता।
हर आत्मा को पुनः देवता बनने का अवसर मिलता है।


 10. समापन संदेश: क्या सीखें इस चक्रीय समय से?

उत्तर:

  • समय को समझें — यह चक्रीय है, न कि रेखीय।

  • आत्मा को पहचानो — तुम नश्वर शरीर नहीं, एक अनंत शक्ति हो।

  • परमात्मा से जुड़ो — वही हमें फिर से स्वर्ग का अधिकारी बना रहे हैं।


Q1: क्या समय वास्तव में एक सीधी रेखा है, जिसकी शुरुआत और अंत होता है?
A1: नहीं, समय एक चक्र है। यह 5,000 वर्षों का एक दोहराव वाला नाटक है जिसमें हम आत्माएँ बार-बार वही भूमिका निभाती हैं। जैसे कोई फिल्म बार-बार चलती है, वैसे ही यह सृष्टि-चक्र चलता है।


Q2: इस चक्रीय नाटक में कितने भाग होते हैं?
A2: यह नाटक चार भागों में विभाजित है:

  1. स्वर्ण युग – दिव्यता और पूर्णता का युग

  2. रजत युग – पवित्रता युक्त स्थिरता का युग

  3. ताम्र युग – आत्मा की गिरावट की शुरुआत

  4. लौह युग – अज्ञान, दुख और पतन का चरम


Q3: स्वर्ण युग को ‘स्वर्ग’ क्यों कहा जाता है?
A3: क्योंकि वहाँ हर आत्मा पवित्र, सुखी और शांत होती है। वहाँ कोई दुख, बीमारी, अपराध या अशुद्धता नहीं होती। जीवन भर आनंद और सम्मान रहता है।


Q4: रजत युग में क्या परिवर्तन आते हैं?
A4: रजत युग में पवित्रता बनी रहती है, लेकिन धीरे-धीरे आत्मा की शक्ति कम होने लगती है। सत्ता विकेंद्रित होती है, लेकिन अब भी कोई युद्ध या द्वंद नहीं होता।


Q5: आत्मा का पतन कब और कैसे शुरू होता है?
A5: ताम्र युग में आत्मा शरीर-चेतन हो जाती है। आत्मा अपनी दिव्यता भूल जाती है और शरीर, धर्म, भाषा व नाम को अपनी पहचान मानने लगती है। इसी से विकारों का जन्म होता है।


Q6: हमें भगवान की याद क्यों आती है?
A6: क्योंकि आत्मा की स्मृति में वह दिव्य अवस्था और परमात्मा का संबंध गहराई से अंकित होता है। जब आत्मा दुखी होती है, तो वह उसी परम पिता को पुकारती है जिसने उसे स्वर्ग का अनुभव कराया था।


Q7: परमात्मा कब आते हैं और क्या करते हैं?
A7: परमात्मा शिव बाबा संगम युग में आते हैं – लौह युग और स्वर्ण युग के बीच का परिवर्तन काल। वह आकर हमें आत्म-चेतना, ज्ञान और पवित्रता की शिक्षा देकर फिर से देवता बनाते हैं।


Q8: क्या यह नाटक कभी समाप्त होता है?
A8: नहीं, यह नाटक कभी समाप्त नहीं होता। 5,000 वर्ष बाद वही आत्माएँ वही भूमिकाएँ फिर से निभाती हैं। यह एक परिपूर्ण और पूर्व निर्धारित चक्र है – जिसमें कोई त्रुटि नहीं।


Q9: इस चक्र में हमारी क्या भूमिका है?
A9: हर आत्मा एक्टर भी है और दर्शक भी। हम सभी की विशिष्ट भूमिका है – कभी राजा, कभी साधारण व्यक्ति, कभी भक्त और अंततः फिर से देवता।


Q10: हमें अभी क्या करना चाहिए?
A10: अब संगम युग है – ईश्वर की पहचान का समय। हमें आत्मा को जानकर, परमात्मा शिव से जुड़कर, स्वयं को शुद्ध करना है ताकि हम स्वर्ण युग के अधिकारी बन सकें।


🔔 अंतिम संदेश:

“समय चक्र को जानो, नाटक की स्क्रिप्ट को समझो, और अपनी दिव्यता को पुनः जागृत करो – क्योंकि अब परिवर्तन का समय है।”

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