अव्यक्त मुरली-(28)19-04-1984 “भावुक आत्मा तथा ज्ञानी आत्मा के लक्षण”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
19-04-1984 “भावुक आत्मा तथा ज्ञानी आत्मा के लक्षण”
आज बापदादा सभी बच्चों को देख रहे हैं कि कौन से बच्चे भावना से बाप के पास पहुँचे हैं, कौन से बच्चे पहचान कर पाने अर्थात् बनने के लिए पहुँचे हैं। दोनों प्रकार के बच्चे बाप के घर में पहुँचे। भावना वाले भावना का फल यथा शक्ति खुशी, शान्ति, ज्ञान वा प्रेम का फल प्राप्त कर इसी में खुश हो जाते हैं। फिर भी भक्ति की भावना और अब बाप के परिचय से बाप वा परिवार के प्रति भावना इसमें अन्तर है। भक्ति की भावना अन्धश्रद्धा की भावना है। इनडायरेक्ट मिलने की भावना, अल्पकाल के स्वार्थ की भावना है। वर्तमान समय ज्ञान के आधार पर जो बच्चों की भावना है वह भक्ति मार्ग से अति श्रेष्ठ है क्योंकि इनडायरेक्ट देव आत्माओं द्वारा नहीं है, डायरेक्ट बाप के प्रति भावना है, पहचान है लेकिन भावना पूर्वक पहचान और ज्ञान द्वारा पहचान… इसमें अन्तर है। ज्ञान द्वारा पहचान अर्थात् बाप जो है जैसा है, मैं भी जो हूँ जैसा हूँ उस विधि पूर्वक जानना अर्थात् बाप समान बनना। जाना तो सभी ने है लेकिन भावना पूर्वक वा ज्ञान की विधि पूर्वक… इस अन्तर को जानना पड़े। तो आज बापदादा कई बच्चों की भावना देख रहे हैं। भावना द्वारा भी बाप को पहचानने से वर्सा तो प्राप्त कर ही लेते हैं। लेकिन सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी और वर्से के अधिकारी यह अन्तर हो जाता है। स्वर्ग का भाग्य वा जीवन मुक्ति का अधिकार भावना वालों को और ज्ञान वालों को मिलता दोनों को है। सिर्फ पद की प्राप्ति में अन्तर हो जाता है। बाबा शब्द दोनों ही कहते हैं और खुशी से कहते हैं इसलिए बाबा कहने और समझने का फल वर्से की प्राप्ति तो होनी ही है। जीवनमुक्ति के अधिकार का हकदार तो बन जाते हैं लेकिन अष्ट रत्न, 108 विजयी रत्न, 16 हजार और फिर 9 लाख। कितना अन्तर हो गया। माला 16 हजार की भी है और 108 की भी है। 108 में 8 विशेष भी हैं। माला के मणके तो सभी बनते हैं। कहेंगे तो दोनों को मणके ना! 16 हजार की माला का मणका भी खुशी और फखुर से कहेगा कि मेरा बाबा और मेरा राज्य। राज्य पद में राज्य तख्त के अधिकारी और राज्य घराने के अधिकारी और राज्य घराने के सम्पर्क में आने के अधिकारी, यह अन्तर हो जाता है।
भावुक आत्मायें और ज्ञानी तू आत्मायें नशा दोनों को रहता है। बहुत अच्छी प्रभु प्रेम की बातें सुनाते हैं। प्रेम स्वरुप में दुनिया की सुधबुध भी भूल जाते हैं। मेरा तो एक बाप, इस लगन के गीत भी अच्छे गाते हैं लेकिन शक्ति रूप नहीं होते हैं। खुशी में भी बहुत देखेंगे लेकिन अगर छोटा-सा माया का विघ्न आया तो भावुक आत्मायें घबरायेंगे भी बहुत जल्दी क्योंकि उनमें ज्ञान की शक्ति कम होती है। अभी-अभी देखेंगे बहुत मौज में बाप के गीत गा रहे हैं और अभी-अभी माया का छोटा सा वार भी खुशी के गीत के बजाए क्या करुँ, कैसे करुँ, क्या होगा, कैसे होगा! ऐसे क्या-क्या के गीत गाने में भी कम नहीं होते। ज्ञानी तू आत्मायें सदा स्वयं को बाप के साथ रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान समझने से माया को पार कर लेते हैं। क्या, क्यों के गीत नहीं गाते। भावुक आत्मायें सिर्फ प्रेम की शक्ति से आगे बढ़ते रहते हैं। माया से समाना करने की शक्ति नहीं होती। ज्ञानी तू आत्मा समान बनने के लक्ष्य से सर्व शक्तियों का अनुभव कर सामना कर सकते हैं। अब अपने आप से पूछो कि मैं कौन! भावुक आत्मा हैं या ज्ञानी तू आत्मा हूँ? बाप तो भावना वालों को भी देख खुश होते हैं। मेरा बाबा कहने से अधिकारी तो हो ही गये ना। और अधिकार लेने के भी हकदार हो ही गये। पूरा लेना वा थोड़ा लेना… वह पुरुषार्थ प्रमाण जितना झोली भरने चाहे उतनी भर सकते हैं क्योंकि मेरा बाबा कहा तो वह चाबी तो लगा ही दी ना। और कोई चाबी नहीं है क्योंकि बापदादा सागर है ना। अखुट है, बेहद है। लेने वाले थक जाते। देने वाला नहीं थकता क्योंकि उसको मेहनत ही क्या करनी पड़ती। दृष्टि दी और अधिकार दिया। मेहनत लेने वालों को भी नहीं है सिर्फ अलबेलेपन के कारण गँवा देते हैं। और फिर अपनी कमजोरी के कारण गँवा कर फिर पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। गँवाना पाना, पाना गँवाना इस मेहनत के कारण थक जाते हैं। खबरदार, होशियार हैं तो सदा प्राप्ति स्वरुप हैं। जैसे सतयुग में दासियाँ सदा आगे-पीछे सेवा के लिए साथ रहती हैं – ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बाप समान श्रेष्ठ आत्मा के, अब भी सर्व शक्तियां, सर्व गुण सेवाधारी के रुप में सदा साथ निभाते हैं। जिस शक्ति का आह्वान करो, जिस भी गुण का आह्वान करो जी हाजिर। ऐसे स्वराज्य अधिकारी विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं। तो मेहनत तो नहीं लगेगी ना। हर शक्ति, हर गुण से सदा विजयी हैं ही, ऐसा अनुभव करते हैं। जैसे ड्रामा करके दिखाते हो ना। रावण अपने साथियों को ललकार करता और ब्राह्मण आत्मा, स्वराज्य अधिकारी आत्मा, अपने शक्तियों और गुणों को ललकार करती। तो ऐसे स्वराज्य अधिकारी बने हो? वा समय पर यह शक्तियाँ कार्य में नहीं ला सकते हो! कमजोर राजा का कोई नहीं मानता। राजा को प्रजा का मानना पड़ता। बहादुर राजे सभी को अपने आर्डर से चलाते और राज्य प्राप्त करते हैं। तो सहज को मुश्किल बनाना और फिर थक जाना, यह अलबेलेपन की निशानी है। नाम राजा और आर्डर में कोई नहीं, इसको क्या कहा जायेगा। कई कहते हैं ना मैंने समझा भी कि सहन शक्ति होनी चाहिए लेकिन पीछे याद आया। उस समय सोचते भी सहन शक्ति से कार्य नहीं ले सकते। इसका मतलब बुलाया अभी और आया कल। तो आर्डर में हुआ! हो गया माना अपनी शक्ति आर्डर में नहीं है। सेवाधारी समय पर सेवा न करें, तो ऐसे सेवाधारी को क्या कहेंगे? तो सदा स्वराज्य अधिकारी बन सर्व शक्तियों को, गुणों को, स्व प्रति और सर्व के प्रति सेवा में लगाओ। समझा। सिर्फ भावुक नहीं बनो, शक्तिशाली बनो। अच्छा, वैरायटी प्रकार की आत्माओं का मेला देख खुश हो रहे हो ना! मधुबन वाले कितने मेले देखते हैं! कितने वैरायटी ग्रुप्स आते हैं। बापदादा भी वैरायटी फुलवाड़ी को देख हर्षित होते हैं। भले आये। शिव की बारात का गायन जो है, वह देख रहे हो ना! बाबा-बाबा कहते सब चल पड़े तो हैं ना। मधुबन तो पहुँच गये। अब सम्पूर्ण मंजिल पर पहुँचना है। अच्छा।
सदा श्रेष्ठ अधिकार को पाने वाले विजयी आत्माओं को, सदा अपने अधिकार से सर्व शक्तियों द्वारा सेवा करने वाले शक्तिशाली आत्माओं को, सदा राज्य तख्त अधिकारी बनने वाले अधिकारी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अलग-अलग पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकत:-
पंजाब जोन से:- सभी पंजाब निवासी महावीर हो ना! डरने वाले तो नहीं? किसी भी बात का भय तो नहीं है! सबसे बड़ा भय होता है मृत्यु से। आप सब तो हो ही मरे हुए। मरे हुए को मरने का क्या डर! मृत्यु से डर तब लगता है जब सोचते हैं, अभी यह करना है, यह करें और वह पूर्ति नहीं होती है तो मृत्यु से भय होता है। आप तो सब कार्य पूरा कर एवररेडी हो। यह पुराना चोला छोड़ने के लिए एवररेडी हो ना। इसलिए डर नहीं। और भी जो भयभीत आत्मायें हैं उन्हों को भी शक्तिशाली बनाने वाले, दु:ख के समय पर सुख देने वाली आत्मायें हो। सुखदाता के बच्चे हो। जैसे अन्धियारे में चिराग होता है तो रोशनी हो जाती है। ऐसे दु:ख के वातावरण में सुख देने वाली आप श्रेष्ठ आत्मायें हो। तो सदा यह सुख देने की श्रेष्ठ भावना रहती है! सदा सुख देना है, शान्ति देनी है। शान्तिदाता के बच्चे शान्ति देवा हो। तो शान्ति देवा कौन है? अकेला बाप नहीं, आप सब भी हो। तो शान्ति देने वाले शान्ति देवा – शान्ति देने का कार्य कर रहे हो ना! लोग पूछते हैं – आप लोग क्या सेवा करते हो? तो आप सभी को यही कहो कि इस समय जिस विशेष बात की आवश्यकता है वह कार्य हम कर रहे हैं। अच्छा, कपड़ा भी देंगे, अनाज भी दे देंगे, लेकिन सबसे आवश्यक चीज हैं शान्ति। तो जो सबके लिए आवश्यक चीज़ है वह हम दे रहे हैं, इससे बड़ी सेवा और क्या है! मन शान्त है तो धन भी काम में आता है। मन शान्त नहीं तो धन की शक्ति भी परेशान करती है। अभी ऐसे शान्ति की शक्तिशाली लहर फैलाओ जो सभी अनुभव करें कि सारे देश के अन्दर यह शान्ति का स्थान है। एक-दो से सुनें और अनुभव करने के लिए आवें कि दो घड़ी भी जाने से यहाँ बहुत शान्ति मिलती है। ऐसा आवाज फैले। शान्ति का कोना यही सेवास्थान है, यह आवाज फैलना चाहिए। कितनी भी अशान्त आत्मा हो। जैसे रोगी हॉस्पिटल में पहुँच जाता है ऐसे यह समझें कि अशान्ति के समय इस शान्ति के स्थान पर ही जाना चाहिए। ऐसी लहर फैलाओ। यह कैसे फैलेगी? इसके लिए एक-दो आत्माओं को भी बुलाकर अनुभव कराओ। एक से एक, एक से एक ऐसे फैलता जायेगा। जो अशान्त हैं उन्हों को खास बुलाकर भी शान्ति का अनुभव कराओ। जो भी सम्पर्क में आये उन्हों को यह सन्देश दो कि शान्ति का अनुभव करो। पंजाब वालों को विशेष यह सेवा करनी चाहिए। अभी आवाज बुलन्द करने का चांस है। अभी भटक रहे हैं, कोई स्थान चाहिए। कौन-सा है… वह परिचय नहीं है, ढूँढ रहे हैं। एक ठिकाने से तो भटक गये, समझ गये हैं कि यह ठिकाना नहीं है। ऐसी भटकती हुई आत्माओं को अभी सहज ठिकाना नहीं दे सकते हो! ऐसी सेवा करो। कर्फ्यू हो, कुछ भी हो, सम्पर्क में तो आते हो ना। सम्पर्क वालों को अनुभव कराओ तो ऐसी आत्मायें आवाज फैलायेंगी। उन्हें एक दो घण्टा भी योग शिविर कराओ। अगर थोड़ा भी शान्ति का अनुभव किया तो बहुत खुश होंगे, शुक्रिया मानेंगे। जब लक्ष्य होता है कि हमको करना है तो रास्ता भी मिल जाता है। तो ऐसा नाम बाला करके दिखाओ। जितना पंजाब की धरनी सख्त है उतनी नर्म कर सकते हो। अच्छा।
2. सदा अपने को फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट अनुभव करते हो? इस संगमयुग का अन्तिम स्वरुप फरिश्ता है ना। ब्राह्मण जीवन की प्राप्ति है ही फरिश्ता जीवन। फरिश्ता अर्थात् जिसका कोई देह और देह के सम्बन्ध में रिश्ता नहीं। देह और देह के सम्बन्ध, सबसे रिश्ता समाप्त हुआ या थोड़ा-सा अटका हुआ है? अगर थोड़ी-सी सूक्ष्म लगाव की रस्सी होगी तो उड़ नहीं सकेंगे, नीचे आ जायेंगे। इसलिए फरिश्ता अर्थात् कोई भी पुराना रिश्ता नहीं। जब जीवन ही नया है तो सब कुछ नया होगा। संकल्प नया, सम्बन्ध नया। आक्यूपेशन नया। सब नया होगा। अभी पुरानी जीवन स्वप्न में भी स्मृति में नहीं आ सकती। अगर थोड़ा भी देह भान में आते तो भी रिश्ता है तब आते हो। अगर रिश्ता नहीं है तो बुद्धि जा नहीं सकती। विश्व की इतनी आत्मायें हैं उन्हों से रिश्ता नहीं तो याद नहीं आती हैं ना। याद वह आते हैं जिससे रिश्ता है। तो देह का भान आना अर्थात् देह का रिश्ता है। अगर देह के साथ जरा-सा लगाव रहा तो उड़ेंगे कैसे! बोझ वाली चीज़ को ऊपर कितना भी ऊपर फेंको नीचे आ जायेगी। तो फरिश्ता माना हल्का, कोई बोझ नहीं। मरजीवा बनना अर्थात् बोझ से मुक्त होना। अगर थोड़ा भी कुछ रह गया तो जल्दी-जल्दी खत्म करो नहीं तो जब समय की सीटी बजेगी तो सब उड़ने लगेंगे और बोझ वाले नीचे रह जायेंगे। बोझ वाले उड़ने वालों को देखने वाले हो जायेंगे।
तो यह चेक करना कि कोई सूक्ष्म रस्सी भी रह तो नहीं गई है। समझा। तो आज का विशेष वरदान याद रखना कि निर्बन्धन फरिश्ता आत्मायें हैं। बन्धनमुक्त आत्मायें हैं। फरिश्ता शब्द कभी नहीं भूलना। फरिश्ता समझने से उड़ जायेंगे। वरदाता का वरदान याद रखेंगे तो सदा मालामाल रहेंगे।
3. सदा अपने को शान्ति का सन्देश देने वाले शान्ति का पैगाम देने वाले सन्देशी समझते हो? ब्राह्मण जीवन का कार्य है सन्देश देना। कभी इस कार्य को भूलते तो नहीं हो? रोज़ चेक करो कि मुझ श्रेष्ठ आत्मा का जो श्रेष्ठ कार्य है वह कहाँ तक किया! कितनों को सन्देश दिया? कितनों को शान्ति का दान दिया? सन्देश देने वाले महादानी, वरदानी आत्मायें हो। कितने टाइटल हैं आपके? आज की दुनिया में कितने भी बड़े ते बड़े टाइटल हों, आपके आगे सब छोटे हैं। वह टाइटल देने वाली आत्मायें हैं लेकिन अब बाप बच्चों को टाइटल देते हैं। तो अपने भिन्न-भिन्न टाइटल्स को स्मृति में रख उसी खुशी, उसी सेवा में सदा रहो। टाइटल की स्मृति से सेवा स्वत: स्मृति में आयेगी।
प्रस्तावना : बापदादा का दिव्य निरीक्षण
आज बापदादा सभी बच्चों को देख रहे हैं —
कौन-से बच्चे भावना से बाप के पास पहुँचे हैं,
और कौन-से पहचान कर, बनने के लिए पहुँचे हैं।
दोनों प्रकार के बच्चे — भावुक और ज्ञानी — बाप के घर में पहुँचे हैं।
परन्तु दोनों में अंतर है —
भावना से पहुँचना और ज्ञान से पहचान कर पहुँचना,
यह अंतर पूरे जीवन की दिशा तय करता है।
1. भक्ति की भावना बनाम ज्ञान की भावना
भक्ति की भावना अन्धश्रद्धा की भावना है —
उसमें मिलने की चाह तो होती है, पर माध्यम (देवता या मूर्ति) के द्वारा।
वर्तमान समय में बच्चों की भावना भक्ति से श्रेष्ठ है —
क्योंकि अब वह डायरेक्ट परमपिता परमात्मा शिव के प्रति है।
🔹 उदाहरण:
भक्ति मार्ग में भक्त मूर्ति को जल चढ़ाकर प्रेम जताता है।
परन्तु ज्ञान मार्ग में ज्ञानी आत्मा उस परमात्मा को
अपने “मेरा बाबा” भाव से अनुभव करती है — बिना किसी माध्यम के।
मुरली बिंदु (19-04-1984):
“भक्ति की भावना अन्धश्रद्धा की भावना है,
पर ज्ञान की भावना पहचान की भावना है —
जानना, पहचानना और बनना।”
2. भावना पूर्वक पहचान और ज्ञान द्वारा पहचान
भावना से पहचानने का अर्थ है — “मेरा बाबा” कहकर प्रेम का अनुभव करना।
ज्ञान द्वारा पहचानने का अर्थ है —
“बाप जो है, जैसा है — मैं भी जो हूँ, वैसा हूँ” — यह विधिपूर्वक जानना।
ज्ञान से पहचानने वाला केवल प्रेम में नहीं रमता,
बल्कि बाप समान गुणों और शक्तियों में रूपांतर करता है।
🔹 उदाहरण:
भावना वाली आत्मा कहेगी — “बाबा मुझे बचा लो!”
ज्ञान वाली आत्मा कहेगी — “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ,
बाबा जैसा मैं भी वही शक्ति धारण करता हूँ।”
3. वर्से में अंतर : भावना बनाम ज्ञान
दोनों को वर्सा मिलता है —
भावना वालों को भी, ज्ञान वालों को भी।
परंतु पद में अंतर है।
-
भावना वाले आत्माएँ स्वर्ग के राज्य घराने में आती हैं।
-
ज्ञानी आत्माएँ राज्य तख्त की अधिकारी बनती हैं।
मुरली बिंदु:
“जीवनमुक्ति का अधिकार भावना वालों को भी है,
लेकिन सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी ज्ञानी आत्माएँ ही बनती हैं।”
🔹 उदाहरण:
जैसे कोई कंपनी में काम करने वाले दो लोग —
एक कर्मचारी और एक मालिक।
दोनों को तनख्वाह तो मिलती है,
पर मालिक (ज्ञानी आत्मा) पूरे साम्राज्य का अधिकारी होता है।
4. भावुक आत्मा बनाम ज्ञानी तू आत्मा
भावुक आत्मा के लक्षण:
-
प्रेम से ओत-प्रोत होती हैं।
-
बाबा के गीत गाते हैं, नशे में रहते हैं।
-
परन्तु माया का हल्का-सा वार आने पर तुरंत घबरा जाते हैं।
-
शक्ति की कमी होती है।
ज्ञानी तू आत्मा के लक्षण:
-
सदा “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ” की स्मृति में रहती है।
-
किसी परिस्थिति में “क्या, क्यों, कैसे” के गीत नहीं गाती।
-
हर माया के वार का सामना सहज रूप से कर लेती है।
-
सर्व शक्तियों और गुणों की “आर्डर में उपस्थिति” रखती है।
मुरली बिंदु:
“भावुक आत्माएँ सिर्फ प्रेम से आगे बढ़ती हैं,
पर ज्ञानी तू आत्माएँ शक्ति से माया पर विजय प्राप्त करती हैं।”
🔹 उदाहरण:
भावुक आत्मा समुद्र तट पर खेलती है —
लहरें आईं तो भाग जाती है।
ज्ञानी तू आत्मा उसी समुद्र को नाव बनाकर पार कर जाती है।
5. स्वराज्य अधिकारी बनो
बाबा ने कहा —
“कमजोर राजा का कोई मान नहीं करता।”
जो आत्मा स्वयं पर राज्य नहीं कर सकती,
वह विश्व पर राज्य कैसे करेगी?
इसलिए बापदादा का आदेश —
“सिर्फ भावुक नहीं, शक्तिशाली बनो।”
मुरली बिंदु:
“राजा नाम है और आदेश में कोई नहीं —
इसे अलबेलेपन की निशानी कहा जायेगा।”
🔹 उदाहरण:
एक संगीत निर्देशक ऑर्केस्ट्रा चलाता है —
सभी वाद्य यंत्र उसके संकेत से तालमेल बनाते हैं।
वैसे ही ज्ञानी आत्मा अपने गुणों और शक्तियों को
“एक आर्डर” में रखती है।
6. फरिश्ता जीवन — डबल लाइट स्थिति
बापदादा ने फरिश्ता जीवन की व्याख्या दी —
“फरिश्ता वह जो देह और देह के सम्बन्ध से मुक्त है।”
अगर थोड़ी-सी भी लगाव की रस्सी रही,
तो उड़ान संभव नहीं।
मुरली बिंदु:
“फरिश्ता वह है जो निर्बन्धन, बन्धनमुक्त आत्मा हो।
मरजीवा बनना अर्थात् बोझ से मुक्त होना।”
🔹 उदाहरण:
जैसे गुब्बारा अगर किसी डोरी से बँधा है
तो उड़ नहीं सकता।
पर जब रस्सी कट जाती है,
वह सीधा आकाश की ओर उड़ जाता है।
7. शान्ति का सन्देश फैलाना — सच्ची सेवा
बाबा ने पंजाब जोन को कहा —
“तुम शान्ति देवा आत्माएँ हो।
शान्ति देना ही सबसे बड़ी सेवा है।”
कपड़ा, अनाज देना भी सेवा है,
पर शान्ति देना सर्वोच्च सेवा है।
मुरली बिंदु:
“अभी ऐसी शान्ति की शक्तिशाली लहर फैलाओ
जो सभी अनुभव करें कि यह शान्ति का स्थान है।”
🔹 उदाहरण:
जैसे अस्पताल रोगी को राहत देता है,
वैसे ही ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र
अशान्त आत्माओं को शान्ति का अनुभव कराते हैं।
निष्कर्ष : केवल भाव नहीं, शक्ति बनो
भावना सुंदर है, पर शक्ति के बिना अधूरी है।
ज्ञान वह दीपक है जो भावना को दिशा देता है।
इसलिए —
बापदादा का संदेश है :
“सिर्फ भावुक नहीं, शक्तिशाली बनो।”
“सिर्फ प्रेम नहीं, पर ज्ञानयुक्त प्रेम रखो।”
“सिर्फ जानो नहीं, बनो भी।”
Murli Reference Notes:
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तारीख: 19 अप्रैल 1984
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विषय: भावुक आत्मा तथा ज्ञानी आत्मा के लक्षण
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मुख्य बिंदु:
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भावना से पहचान बनाम ज्ञान से पहचान
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वर्से का अंतर
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भावुक आत्मा बनाम ज्ञानी तू आत्मा
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स्वराज्य अधिकारी और फरिश्ता स्थिति
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शान्ति का सन्देश देना — श्रेष्ठ सेवा
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अंतिम प्रेरणा:
“भावना से नहीं, ज्ञान से बनो।
जानना ही नहीं — बनना है,
बनना ही नहीं — दूसरों को बनाना है।”बापदादा का दिव्य निरीक्षण
प्रश्न 1: आज बापदादा ने किन बच्चों को देखा?
उत्तर: बाबा ने देखा — कुछ बच्चे भावना से बाप के पास पहुँचे हैं, और कुछ बच्चे ज्ञान के आधार पर बाप को पहचानकर बनने के लिए पहुँचे हैं।प्रश्न 2: इन दोनों प्रकार की आत्माओं में क्या अंतर है?
उत्तर: भावना से पहुँचना केवल प्रेम की अनुभूति देता है,
जबकि ज्ञान से पहचानना आत्मा को बाप समान बनने की दिशा देता है।
1. भक्ति की भावना बनाम ज्ञान की भावना
प्रश्न: भक्ति और ज्ञान की भावना में क्या भेद है?
उत्तर:
भक्ति की भावना अंधश्रद्धा है — वह इनडायरेक्ट, देवताओं के माध्यम से होती है।
जबकि ज्ञान की भावना डायरेक्ट है — परमपिता शिव के प्रति, पहचान के साथ।उदाहरण:
भक्त मूर्ति पर जल चढ़ाकर प्रेम जताता है।
ज्ञानी आत्मा ध्यान में “मेरा बाबा” कहकर अनुभव करती है कि वही परमपिता मेरे साथ है।मुरली बिंदु:
“भक्ति की भावना अन्धश्रद्धा की भावना है,
पर ज्ञान की भावना पहचान की भावना है — जानना, पहचानना और बनना।”
2. भावना पूर्वक पहचान और ज्ञान द्वारा पहचान
प्रश्न: भावना से पहचानना और ज्ञान से पहचानना — इसमें क्या अंतर है?
उत्तर:
भावना से पहचानने वाला केवल कहता है “मेरा बाबा”।
ज्ञान से पहचानने वाला यह जानता है — “बाप जो है, जैसा है, मैं भी वैसा हूँ” — और वैसा बनने का पुरुषार्थ करता है।उदाहरण:
भावना वाला कहता है — “बाबा मुझे बचा लो।”
ज्ञानी वाला कहता है — “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, मैं बाबा की शक्ति से कार्य करूंगा।”
3. वर्से में अंतर : भावना बनाम ज्ञान
प्रश्न: भावना और ज्ञान वालों के वर्से में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
दोनों को स्वर्ग का वर्सा मिलता है, लेकिन पद में अंतर होता है।
भावना वाले राज्य घराने में, और ज्ञानी वाले राज्य तख्त पर बैठते हैं।उदाहरण:
कंपनी में एक कर्मचारी और एक मालिक दोनों को लाभ होता है,
लेकिन मालिक (ज्ञानी आत्मा) पूरे साम्राज्य का अधिकारी होता है।मुरली बिंदु:
“जीवनमुक्ति का अधिकार भावना वालों को भी है,
लेकिन सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी ज्ञानी आत्माएँ ही बनती हैं।”
4. भावुक आत्मा बनाम ज्ञानी तू आत्मा
प्रश्न: भावुक और ज्ञानी आत्माओं के मुख्य लक्षण क्या हैं?
भावुक आत्मा:
प्रेम में ओतप्रोत रहती है
खुशी में गाती है पर माया आने पर घबरा जाती है
शक्ति की कमी होती है
ज्ञानी तू आत्मा:
सदा “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ” की स्मृति में रहती है
“क्या, क्यों, कैसे” नहीं पूछती
हर परिस्थिति का सामना सहजता से करती है
उदाहरण:
भावुक आत्मा समुद्र किनारे खेलती है — लहर आई तो भाग जाती है।
ज्ञानी आत्मा उसी समुद्र को नाव बनाकर पार कर जाती है।मुरली बिंदु:
“भावुक आत्माएँ सिर्फ प्रेम से आगे बढ़ती हैं,
पर ज्ञानी तू आत्माएँ शक्ति से माया पर विजय प्राप्त करती हैं।”
5. स्वराज्य अधिकारी बनो
प्रश्न: ज्ञानी आत्मा को “स्वराज्य अधिकारी” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि वह अपने संकल्पों, गुणों और शक्तियों को आदेश से कार्य कराती है।
कमजोर राजा की कोई नहीं मानता — इसलिए आत्मा को स्वयं पर शासन चाहिए।उदाहरण:
जैसे ऑर्केस्ट्रा का निर्देशक सब वाद्यों को संकेत से नियंत्रित करता है,
वैसे ही ज्ञानी आत्मा अपने गुणों और शक्तियों को “एक आर्डर” में रखती है।मुरली बिंदु:
“राजा नाम है और आदेश में कोई नहीं — यह अलबेलेपन की निशानी है।”
6. फरिश्ता जीवन — डबल लाइट स्थिति
प्रश्न: फरिश्ता आत्मा कौन है?
उत्तर:
फरिश्ता आत्मा वह है जो देह और देह के सम्बन्ध से मुक्त है,
जिसकी कोई भी सूक्ष्म लगाव की रस्सी नहीं है।उदाहरण:
जैसे गुब्बारा अगर बँधा है तो उड़ नहीं सकता,
पर जब रस्सी कट जाती है, वह सीधा ऊपर उड़ जाता है।मुरली बिंदु:
“फरिश्ता वह है जो निर्बन्धन, बन्धनमुक्त आत्मा हो।
मरजीवा बनना अर्थात् बोझ से मुक्त होना।”
7. शान्ति का सन्देश — सर्वोच्च सेवा
प्रश्न: सच्ची सेवा किसे कहा गया है?
उत्तर:
बाबा ने कहा — “कपड़ा, अनाज देना भी सेवा है, पर शान्ति देना सबसे बड़ी सेवा है।”उदाहरण:
जैसे हॉस्पिटल रोगी को राहत देता है,
वैसे ही सेवाकेंद्र अशान्त आत्माओं को शान्ति का अनुभव कराते हैं।मुरली बिंदु:
“अभी ऐसी शान्ति की लहर फैलाओ जो सब अनुभव करें — यह शान्ति का स्थान है।”
निष्कर्ष : केवल भाव नहीं, शक्ति बनो
प्रश्न: इस मुरली का सार क्या है?
उत्तर:
भावना सुंदर है, पर ज्ञान उसे दिशा देता है।
बिना शक्ति, प्रेम अधूरा है।प्रेरणा:
“सिर्फ भावुक नहीं, शक्तिशाली बनो।
सिर्फ प्रेम नहीं, ज्ञानयुक्त प्रेम रखो।
सिर्फ जानो नहीं — बनो भी।”
Murli Reference Notes:
तारीख: 19 अप्रैल 1984
विषय: भावुक आत्मा तथा ज्ञानी आत्मा के लक्षण
मुख्य बिंदु:
भावना बनाम ज्ञान की पहचान
वर्से का अंतर
स्वराज्य अधिकारी स्थिति
फरिश्ता जीवन
शान्ति की सेवा
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की 19 अप्रैल 1984 की अव्यक्त मुरली “भावुक आत्मा तथा ज्ञानी आत्मा के लक्षण” पर आधारित आध्यात्मिक व्याख्या है।
इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति और आध्यात्मिक समझ को गहरा करना है।
यह वीडियो किसी संस्था, व्यक्ति या धर्म की आलोचना के लिए नहीं है।
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