अव्यक्त मुरली-(28) दृष्टि-वृत्ति परिवर्तन करने की युक्तियाँ /27-04-1983
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
27-04-1983 “दृष्टि-वृत्ति परिवर्तन करने की युक्तियाँ”
आज बापदादा सर्व पुरूषार्थियों का संगठन देख रहे हैं। इसी पुरूषार्थी शब्द में सारा ज्ञान समाया हुआ है। पुरूषार्थी अर्थात् पुरूष प्लस रथी। किसका रथी है? किसका पुरूष है? इस प्रकृति का मालिक अर्थात् रथ का रथी। एक ही शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ तो क्या होगा? सर्व कमजोरियों से सहज पार हो जायेंगे। पुरूष प्रकृति के अधिकारी हैं न कि अधीन हैं। रथी रथ को चलाने वाला है, न कि रथ के अधीन हो चलने वाला। अधिकारी सदा सर्वशक्तिवान बाप की सर्वशक्तियों के अधिकारी अर्थात् वर्से के अधिकारी वा हकदार हैं। सर्वशक्तियाँ बाप की प्रॉपर्टी हैं और प्रॉपर्टी का अधिकारी हरेक बच्चा है। यह सर्व शक्तियों का राज्य भाग्य बापदादा सभी को जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में देते हैं। जन्मते ही यह स्वराज्य सर्व शक्तियों का, अधिकारी स्वरूप के स्मृति का तिलक और बाप के स्नेह में समाये हुए स्वरूप के रूप में दिलतख्त, सभी को जन्म लेते ही दिया है। जन्मते ही विश्व कल्याण के सेवा का ताज हर बच्चे को दिया है। तो जन्म के अधिकार का तख्त, तिलक, ताज और राज्य सबको प्राप्त है ना! ऐसे चारों ही प्राप्तियों की प्राप्ति स्वरूप आत्मायें कमजोर हो सकती हैं? क्या यह चार प्राप्तियाँ सम्भाल नहीं सकते हैं? कभी तिलक मिट जाता, कभी तख्त छूट जाता, कभी ताज के बदले बोझ उठा लेते। व्यर्थ कखपन की टोकरी उठा लेते। नाम स्वराज्य है लेकिन स्वयं ही राजा के बदले अधीन प्रजा बन जाते। ऐसा खेल क्यों करते हो? अगर ऐसा ही खेल करते रहेंगे तो सदा के राज्य भाग्य के अधिकार के संस्कार अविनाशी कब बनेंगे? अगर इसी खेल में चलते रहे तो प्राप्ति क्या होगी! जो अपने आदि संस्कार अविनाशी नहीं बना सकते वह आदिकाल के राज्य अधिकारी कैसे बनेंगे। अगर बहुतकाल के योद्धेपन के ही संस्कार रहे अर्थात् युद्ध करते-करते समय बिताया, आज जीत कल हार। अभी-अभी जीत अभी-अभी हार। सदा के विजयीपन के संस्कार नहीं तो इसको क्षत्रिय कहा जायेगा वा ब्राह्मण? ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। क्षत्रिय तो फिर क्षत्रिय ही जाकर बनेगा। देवता की निशानी और क्षत्रिय की निशानी में देखो अन्तर है। यादगार चित्रों में उनको कमान दिखाया है, उनको मुरली दिखाई है। मुरली वाले अर्थात् मास्टर मुरलीधर बन विकारों रूपी सांप को विषैले बनने के बजाए विष समाप्त कर शैय्या बना दी। कहाँ विष वाला सांप और कहाँ शैय्या! इतना परिवर्तन किससे किया? मुरली से। ऐसे परिवर्तन करने वाले को ही विजयी ब्राह्मण कहा जाता है। तो अपने से पूछो मै कौन?
सभी ने अपनी-अपनी कमज़ोरियों को सच्चाई से स्पष्ट किया है। उस सच्चाई की मार्क्स तो मिल जायेंगी लेकिन बापदादा देख रहे थे कि अभी तक जबकि अपने संस्कारों को परिवर्तन करने की शक्ति नहीं आई है, विश्व परिवर्तक कब बनेंगे? अभी दृष्टि परिवर्तन, वृत्ति परिवर्तन यह अविनाशी कब तक बनेंगे! आप दृष्टा हो, दृष्टि द्वारा देखने वाले दृष्टा, दृष्टि क्यों विचलित करते? दिव्य नेत्र से देखते हो वा इस चमड़ी के नेत्रों से देखते हो? दिव्य नेत्र से सदा स्वत: ही दिव्य स्वरूप ही दिखाई देगा। चमड़े की आंखें चमड़े को देखती। चमड़ी को देखना, चमड़ी का सोचना यह किसका काम है! फरिश्तों का? ब्राह्मणों का? स्वराज्य अधिकारियों का? तो ब्राह्मण हो या कौन हो? नाम बोलें क्या?
सदैव हरेक नारी शरीरधारी आत्मा को शक्ति रूप, जगत माता का रूप, देवी का रूप देखना – यह है दिव्य नेत्र से देखना। कुमारी है, माता है, बहन है, सेवाधारी निमित्त शिक्षक है, लेकिन है कौन? शक्ति रूप। बहन भाई के सम्बन्ध में भी कभी-कभी वृत्ति और दृष्टि चंचल हो जाती है। इसलिए सदा शक्ति रूप हैं, शिव शक्ति हैं। शक्ति के आगे अगर कोई आसुरी वृत्ति से आते तो उनका क्या हाल होता है, वह तो जानते हो ना। हमारी टीचर नहीं शिव शक्ति है। ईश्वरीय बहन है, इससे भी ऊपर शिव शक्ति रूप देखो। मातायें वा बहनें भी सदा अपने शिव शक्ति स्वरूप में स्थित रहें। मेरा विशेष भाई, विशेष स्टूडेन्ट नहीं। वह शिव शक्ति है और आप महावीर हो। लंका को जलाने वाले पहले स्वयं के अन्दर रावण वंश को जलाना है। महावीर की विशेषता क्या दिखाते हैं? वह सदा दिल में क्या दिखाता है? एक राम दूसरा न कोई। चित्र देखा है ना। तो हर भाई महावीर है, हर बहन शक्ति है। महावीर भी राम का है, शक्ति भी शिव की है। किसी भी देहधारी को देख सदा मस्तक के तरफ आत्मा को देखो। बात आत्मा से करनी है वा शरीर से? कार्य व्यवहार में आत्मा कार्य करता है वा शरीर? सदा हर सेकेण्ड शरीर में आत्मा को देखो। नज़र ही मस्तक मणी पर जानी चाहिए। तो क्या होगा? आत्मा, आत्मा को देखते स्वत: ही आत्म-अभिमानी बन जायेंगे। है तो यह पहला पाठ ना! पहला पाठ ही पक्का नहीं करेंगे, अल्फ को पक्का नहीं करेंगे तो बे की बादशाही कैसे मिलेगी। सिर्फ एक बात की सदा सावधानी रखो। जो भी करना है श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ बनना है, तो हर बात में दृढ़ संकल्प वाले बनो। कुछ भी सहन करना पड़े, सामना करना पड़े लेकिन श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ परिवर्तन करना ही है। इसमें पुरूषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज़ नहीं करो। पुरूषार्थी हैं, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह अलबेलेपन की भाषा है। उसी घड़ी पुरूषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज़ नहीं करो। पुरूषार्थी हैं, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह अलबेलेपन की भाषा है। उसी घड़ी पुरूषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ। पुरूष हूँ, प्रकृति धोखा दे नहीं सकती। यह सब प्रकार की कमजोरियाँ अलबेलेपन की निशानियां हैं। महावीर तो पहाड़ को भी सेकेण्ड में हथेली पर रख उड़ने वाला है अर्थात् पहाड़ को भी पानी के समान हल्का बनाने वाला है। छोटी-छोटी परिस्थितियाँ क्या बात हैं! फिर तो ऐसे महावीर को कहेंगे चींटी से घबराने वाले। क्या करें, हो जाता है। यह महावीर के बोल हैं? समझदार यह नहीं कहेंगे कि क्या करें चोर आ जाता है। समझदार बार-बार धोखा नहीं खाते। अलबेले बार-बार धोखा खाते हैं। सेफ्टी के साधन होते हुए अगर कार्य में नहीं लगाते तो उसको क्या कहेंगे? जानता हूँ कि नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा है, इसको कौन सी समझदारी कहेंगे!
दृढ़ संकल्प वाले बनो। परिवर्तन करना ही है, कल भी नहीं, आज। आज भी नहीं अभी। इसको कहा जाता है महावीर। राम के आज्ञाकारी। आज तो मिलने का दिन था फिर भी बच्चों ने मेहनत की है तो मेहनत का फल रेसपाण्ड देना पड़ा। लेकिन इन कमजोरियों को साथ ले जाना है? दी हुई चीज़ फिर वापिस तो नहीं लेनी है ना! जबरदस्ती आ जावे तो भी आने नहीं देना। दुश्मन को आने दिया जाता है क्या? अटेन्शन, चेकिंग यह डबल लॉक, याद और सेवा – यह दूसरा डबल लॉक सबके पास है ना। तो सदा यह डबल लॉक लगा रहे। दोनों तरफ लॉक लगाना। समझा! एक तरफ नहीं लगाना। खातिरी तो स्थूल सूक्ष्म बहुत हुई है। डबल खातिरी हुई है ना। जैसे दीदी दादी वा निमित्त बनी हुई आत्माओं ने दिल से खातिरी की है तो उसके रिटर्न में सब दीदी दादी को खातिरी देकर जाना कि हम अभी से सदा के विजयी रहेंगे। सिर्फ मुख से नहीं बोलना, मन से बोलना। फिर एक मास के बाद इन फोटो वालों को देखेंगे कि क्या कर रहे हैं। किससे भी छिपाओ लेकिन बाप से तो छिपा नहीं सकेंगे। अच्छा।
सदा दृढ़ सकंल्प द्वारा सोचा और किया दोनों को समान बनाने वाले, सदा दिव्य नेत्र द्वारा आत्मिक रूप को देखने वाले, जहाँ देखें वहाँ आत्मा ही आत्मा देखें, ऐसे अर्थ स्वरूप पुरूषार्थी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दृष्टि-वृत्ति परिवर्तन करने की युक्तियाँ
(अव्यक्त मुरली – 17 मार्च 1983, मधुबन : बापदादा की रूहानी बच्चों से मुलाकात)
प्रस्तावना
आज बापदादा ने सभी पुरूषार्थी बच्चों का संगठन देखा और समझाया कि पुरुषार्थी शब्द के अर्थ में ही सम्पूर्ण ज्ञान समाया हुआ है।
“पुरूषार्थी” = पुरूष + रथी।
आत्मा (पुरूष) प्रकृति (रथ) की मालिक है, अधीन नहीं।
यदि आत्मा इस अधिकारी स्वरूप की स्मृति में स्थित हो जाए, तो हर कमजोरी से सहज पार हो सकती है।
जन्मसिद्ध अधिकार – तख्त, तिलक, ताज
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बापदादा ने समझाया कि हर आत्मा जन्मते ही 4 प्राप्तियाँ लेकर आती है:
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स्वराज्य का तख्त
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अधिकारी स्मृति का तिलक
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बाप का स्नेह और सेवा का ताज
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विश्व-सेवा का राज्य भाग्य
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उदाहरण:
जैसे राजा का राजतिलक होते ही अधिकार मिल जाता है, वैसे ही ब्राह्मण जीवन में प्रवेश करते ही आत्मा को यह चारों प्राप्तियाँ मिलती हैं।
ब्राह्मण और क्षत्रिय में अंतर
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ब्राह्मण = मास्टर मुरलीधर।
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मुरली की शक्ति से विकाररूपी विषैले साँप को शैय्या बना दिया।
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क्षत्रिय = युद्ध में लगे रहने वाले।
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आज जीत, कल हार।
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यदि जीवन “अभी जीत, अभी हार” में चलता है तो वह ब्राह्मण नहीं, क्षत्रिय कहलाएगा।
दृष्टि और वृत्ति का परिवर्तन
बापदादा ने कहा:
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दिव्य नेत्र से देखो = आत्मा का शक्ति रूप दिखाई देगा।
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चमड़ी की आँखों से देखो = देह दिखाई देगी।
उदाहरण:
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हर बहन = शिव शक्ति।
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हर भाई = महावीर।
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यदि शक्ति के आगे कोई आसुरी वृत्ति आए तो उसका नाश हो जाएगा।
इसलिए – सदा आत्मा को देखो, मस्तक मणि पर नज़र टिकाओ।
रावण वंश को जलाना
महावीर की विशेषता:
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दिल में नारा = “एक राम, दूसरा न कोई।”
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पहले स्वयं के अंदर रावण वंश को जलाना।
उदाहरण:
जैसे हनुमान ने लंका जलाई, वैसे ही पुरूषार्थी आत्मा अपने भीतर के रावण को समाप्त करे।
दृढ़ संकल्प की शक्ति
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पुरूषार्थ का मतलब: आज नहीं, अभी परिवर्तन करना।
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“क्या करें, हो जाता है” = अलबेलेपन की निशानी।
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महावीर तो पहाड़ को भी पानी के समान हल्का कर देता है।
उदाहरण:
अगर चींटी से भी डर गए, तो उसे महावीर नहीं कहेंगे।
डबल लॉक की युक्ति
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दुश्मन (विकार) को आने न दो।
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सेफ्टी = याद और सेवा → यह है “डबल लॉक”।
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यदि दोनों ताले लगे हों तो माया प्रवेश नहीं कर सकती।
मुरली नोट्स (17-03-1983)
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“पुरूषार्थी” = पुरूष + रथी (आत्मा = मालिक, प्रकृति = रथ)।
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जन्मते ही 4 प्राप्तियाँ: तख्त, तिलक, ताज, राज्य।
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ब्राह्मण = मुरलीधर, क्षत्रिय = आज जीत, कल हार।
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दिव्य नेत्र से देखो → शक्ति और महावीर का स्वरूप।
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पहला पाठ: आत्मा को देखो, आत्म-अभिमान में रहो।
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दृढ़ संकल्प = अभी परिवर्तन करो।
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याद + सेवा = डबल लॉक (माया प्रवेश नहीं कर सकती)।
बापदादा का संदेश
“सदा दृढ़ संकल्प द्वारा सोचा और किया समान बनाओ।
जहाँ देखो वहाँ आत्मा ही आत्मा देखो।
तभी तुम सच्चे अर्थों में महावीर कहलाओगे।”
प्रश्नोत्तर रूप में सार
प्रश्न 1: “पुरूषार्थी” शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:
“पुरूषार्थी” = पुरूष + रथी।
आत्मा (पुरूष) प्रकृति (रथ) की मालिक है, अधीन नहीं।
जब आत्मा इस अधिकारी स्वरूप की स्मृति में रहती है तो हर कमजोरी से सहज पार हो जाती है।
प्रश्न 2: ब्राह्मण जीवन में प्रवेश करते ही आत्मा को कौन-सी 4 जन्मसिद्ध प्राप्तियाँ मिलती हैं?
उत्तर:
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स्वराज्य का तख्त
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अधिकारी स्मृति का तिलक
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बाप का स्नेह और सेवा का ताज
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विश्व-सेवा का राज्य भाग्य
प्रश्न 3: ब्राह्मण और क्षत्रिय में क्या अंतर है?
उत्तर:
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ब्राह्मण = मास्टर मुरलीधर। वह मुरली की शक्ति से विकाररूपी विषैले साँप को शैय्या बना देता है।
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क्षत्रिय = युद्ध में लगे रहने वाले। कभी जीत, कभी हार।
यदि जीवन “अभी जीत, अभी हार” में चलता है तो वह ब्राह्मण नहीं, क्षत्रिय कहलाता है।
प्रश्न 4: दृष्टि और वृत्ति को कैसे परिवर्तन करना है?
उत्तर:
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दिव्य नेत्र से देखने पर आत्मा का शक्ति स्वरूप दिखाई देता है।
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देह की आँखों से देखने पर केवल शरीर दिखाई देता है।
हर बहन को शिव शक्ति और हर भाई को महावीर के रूप में देखो।
इससे आसुरी वृत्तियाँ अपने आप समाप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 5: “रावण वंश को जलाने” का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जैसे हनुमान ने लंका जलाई, वैसे ही पुरूषार्थी आत्मा पहले अपने भीतर के रावण वंश (विकारों) को समाप्त करे।
महावीर का नारा है – “एक राम, दूसरा न कोई।”
प्रश्न 6: दृढ़ संकल्प की शक्ति किसे कहा गया है?
उत्तर:
पुरूषार्थ का मतलब है – “अभी परिवर्तन करना।”
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“क्या करें, हो जाता है” = अलबेलेपन की निशानी।
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महावीर तो पहाड़ को भी पानी समान हल्का कर देता है।
दृढ़ संकल्प ही महावीर की पहचान है।
प्रश्न 7: “डबल लॉक” की युक्ति क्या है?
उत्तर:
माया को रोकने के लिए याद और सेवा दोनों का प्रयोग करना चाहिए।
यह “डबल लॉक” है।
अगर दोनों ताले लगे हों तो माया प्रवेश नहीं कर सकती।
मुरली सूत्र
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“पुरूषार्थी” = आत्मा मालिक, प्रकृति रथ।
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जन्मसिद्ध अधिकार = तख्त, तिलक, ताज, राज्य।
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ब्राह्मण = मुरलीधर, क्षत्रिय = आज जीत-कल हार।
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हर आत्मा को शक्ति और महावीर के रूप में देखो।
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दृढ़ संकल्प = अभी परिवर्तन करो।
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याद + सेवा = माया से सुरक्षा का डबल लॉक।
निष्कर्ष
बापदादा चाहते हैं कि बच्चे –
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दृष्टि और वृत्ति को आत्म-अभिमान में बदलें।
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सदा दृढ़ संकल्प से सोचा और किया समान बनाएं।
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हर जगह आत्मा ही आत्मा देखें।
यही सच्चे अर्थों में महावीर की पहचान है। - Disclaimer: इस वीडियो में प्रस्तुत ज्ञान और विचार ब्रह्माकुमारीज के मुरली सागर से लिए गए हैं। यह किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्तिगत मत से जुड़ा हुआ नहीं है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक उत्थान, आत्मिक जागृति और सकारात्मक जीवन शैली को बढ़ावा देना है।
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