शिवबाबा :ब्रह्मा बाबा का रिश्ता-(03)गुरु शिष्य का सर्वोच्च उदाहरण।
Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
भूमिका : सतगुरु और शिष्य का पवित्र रिश्ता
हर रिश्ता हमें कुछ न कुछ सिखाता है —
परंतु सतगुरु और शिष्य का रिश्ता सबसे पवित्र, दिव्य और दुर्लभ है।
दुनिया में हजारों गुरु मिल सकते हैं,
पर सच्चा सतगुरु केवल एक — परमपिता परमात्मा शिव।
और उनके पहले, सर्वश्रेष्ठ शिष्य — प्रजापिता ब्रह्मा (दादा लेखराज)।
1. सतगुरु कौन है? — सच्चे गुरु की पहचान
सभी धर्मों में कहा गया है —
“सतगुरु बिन बिना नहीं तारे कोई।”
पर कौन है वो जो सद्गति दे सके?
साकार मुरली 22 जनवरी 1970:
“सतगुरु एक ही है — शिव बाबा।
बाकी सब तो गुरु कहते हैं, परंतु सद्गति कोई नहीं दे सकता।”
साधारण गुरु उपदेश देते हैं,
पर सतगुरु शिव आत्मा को
अंधकार से प्रकाश और बंधन से मुक्ति तक ले जाते हैं।
वह ज्ञान के सागर, सद्गति दाता, और सच्चे मार्गदर्शक हैं।
2. ब्रह्मा बाबा — सतगुरु के प्रथम शिष्य
जब शिव बाबा ने दादा लेखराज को अपना माध्यम बनाया,
तब उन्होंने सब कुछ —
तन, मन, धन, मान-सम्मान —
सतगुरु के चरणों में अर्पण कर दिया।
🕉 साकार मुरली 28 फरवरी 1969:
“ब्रह्मा बाबा ने पूरा जीवन शिव बाबा को अर्पण किया।
जो कुछ था, कह दिया — ‘यह सब तेरा है।’”
यही सच्चे शिष्य की निशानी है —
पूर्ण समर्पण और आज्ञाकारिता।
3. “क्यों बाबा?” नहीं, “हाँ बाबा” — समर्पण का सर्वोच्च उदाहरण
एक बार शिव बाबा ने कहा —
“बच्चे, मुझसे मत पूछो क्यों।
जो कहा जाए, वैसा करो — बस पूछना नहीं है।”
ब्रह्मा बाबा ने इसे जीवन का मूल मंत्र बना लिया।
उन्होंने कभी नहीं पूछा — “क्यों बाबा?”
सिर्फ कहा — “जो बाप कहे, वह सिर माथे।”
उदाहरण के लिए,
जब बाबा ने कहा —
“ब्रह्मा, तू माताओं को आगे रख,”
तो बिना विचार के उन्होंने माताओं को आगे बढ़ाया।
और इस प्रकार आदि शक्ति जगदंबा का प्रकट होना हुआ।
4. सतगुरु का कार्य — आत्मा को सद्गति देना
साधारण गुरु केवल ज्ञान देते हैं,
पर सतगुरु शिव आत्मा को
निर्विकारी, निर्लोभी और मुक्त बनाते हैं।
🕉 साकार मुरली 10 जुलाई 1968:
“सतगुरु ही सच्ची सद्गति देने वाला है।
वे ब्रह्मा के माध्यम से बच्चों को श्रीमत देता है।”
इसलिए, शिव बाबा केवल शिक्षक नहीं,
बल्कि मुक्तिदाता और सद्गतिदाता हैं।
5. ब्रह्मा बाबा का शिष्य भाव — विनम्रता का आदर्श
ब्रह्मा बाबा ने कभी स्वयं को गुरु नहीं कहा।
वे हमेशा कहते थे —
“मैं भी विद्यार्थी हूं।”
🕉 अव्यक्त मुरली 18 जनवरी 1971:
“ब्रह्मा बाबा ने जो कहा, किया।
जो सुना, उस पर अमल किया।
इसलिए वो सर्वश्रेष्ठ शिष्य बन गए।”
उनका हर कर्म बताता है कि —
सच्चा शिष्य वही है जो संदेह रहित, आज्ञाकारी और सेवा में स्थिर रहे।
6. हमारे लिए आज का संदेश
हम सब भी तो वही शिष्य हैं —
जो शिव सतगुरु की श्रीमत पर चल रहे हैं।
तो प्रश्न यह है —
क्या हम उतने ही आज्ञाकारी हैं जितने ब्रह्मा बाबा थे?
क्या हम हर स्थिति में कहते हैं — “हाँ बाबा,”
या कभी पूछते हैं — “क्यों बाबा?”
सच्चा शिष्य वही है
जो बाप समान बने — ज्ञान, योग और मर्यादा में।
7. निष्कर्ष : गुरु-शिष्य का अलौकिक संगम
शिव बाबा — सतगुरु हैं,
जो सच्चा मार्ग दिखाते हैं।
ब्रह्मा बाबा — शिष्य हैं,
जो उस मार्ग पर पूर्ण निष्ठा से चलते हैं।
यह रिश्ता केवल गुरु और शिष्य का नहीं,
बल्कि आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन का प्रतीक है —
जहाँ शिष्य, पूर्ण समर्पण से,
गुरु के समान बन जाता है।
8. प्रेरणादायक समापन
सदैव शिव बाबा ने कहा,
ब्रह्मा बाबा ने किया।
और आज वही आदर्श हमें राह दिखाता है।
चलो, हम भी बनें ऐसे सच्चे शिष्य —
जो केवल सुनें नहीं,
बल्कि जीवन में उतारें।
“सतगुरु की श्रीमत पर चलना ही सच्ची भक्ति और सच्चा योग है।”
प्रश्न 1: सतगुरु कौन है और उसकी सच्ची पहचान क्या है?
उत्तर:
सभी धर्मों में कहा गया है —
“सतगुरु बिन बिना नहीं तारे कोई।”
परंतु सतगुरु वह है जो आत्मा को सद्गति, अर्थात जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाए।
🕉 साकार मुरली (22 जनवरी 1970):
“सतगुरु एक ही है — शिव बाबा।
बाकी सब तो गुरु कहते हैं, परंतु सद्गति कोई नहीं दे सकता।”
साधारण गुरु केवल उपदेश देते हैं,
पर सतगुरु शिव आत्मा को अंधकार से प्रकाश, बंधन से मुक्ति तक ले जाते हैं।
वह ज्ञान के सागर, सद्गतिदाता और सच्चे मार्गदर्शक हैं।
प्रश्न 2: ब्रह्मा बाबा को “सतगुरु का प्रथम शिष्य” क्यों कहा गया?
उत्तर:
जब शिव बाबा ने दादा लेखराज को माध्यम बनाया,
उन्होंने तन, मन, धन, मान-सम्मान — सब कुछ सतगुरु को अर्पण कर दिया।
🕉 साकार मुरली (28 फरवरी 1969):
“ब्रह्मा बाबा ने पूरा जीवन शिव बाबा को अर्पण किया।
जो कुछ था, कह दिया — ‘यह सब तेरा है।’”
उनका जीवन पूर्ण समर्पण और आज्ञाकारिता का उदाहरण बन गया।
यह दिखाता है कि सच्चा शिष्य वह है जो “मेरा” भाव समाप्त कर “तेरा” भाव में स्थित हो जाए।
प्रश्न 3: ब्रह्मा बाबा ने “क्यों बाबा?” नहीं, बल्कि “हाँ बाबा” कैसे कहा?
उत्तर:
एक बार शिव बाबा ने कहा —
“बच्चे, मुझसे मत पूछो क्यों।
जो कहा जाए, वैसा करो — बस पूछना नहीं है।”
ब्रह्मा बाबा ने इसे जीवन का नियम बना लिया।
उन्होंने कभी नहीं पूछा — “क्यों बाबा?”
बल्कि सदा कहा — “जो बाप कहे, वह सिर माथे।”
उदाहरण:
जब बाबा ने कहा —
“ब्रह्मा, तू माताओं को आगे रख,”
तो बिना किसी तर्क या सोच के उन्होंने माताओं को आगे बढ़ाया।
और इस प्रकार आदि शक्ति जगदंबा का प्रकट होना हुआ।
यह थी सच्चे शिष्य की सर्वोच्च आज्ञाकारिता।
प्रश्न 4: सतगुरु का कार्य क्या है? वह किस प्रकार आत्मा को मुक्त करता है?
उत्तर:
साधारण गुरु केवल ज्ञान की बातें करते हैं,
पर सतगुरु शिव बाबा आत्मा को
निर्विकारी, निर्लोभी और मुक्त स्थिति तक पहुँचाते हैं।
🕉 साकार मुरली (10 जुलाई 1968):
“सतगुरु ही सच्ची सद्गति देने वाला है।
वे ब्रह्मा के माध्यम से बच्चों को श्रीमत देता है।”
शिव बाबा केवल शिक्षक नहीं —
बल्कि मुक्तिदाता और सद्गतिदाता हैं।
वह हमें ऐसा ज्ञान देते हैं जो आत्मा को बंधनमुक्त कर दे।
प्रश्न 5: ब्रह्मा बाबा का “शिष्य भाव” कैसा था?
उत्तर:
ब्रह्मा बाबा ने कभी स्वयं को “गुरु” नहीं कहा।
वे हमेशा कहते थे —
“मैं भी विद्यार्थी हूं।”
उनका जीवन विनम्रता, अनुशासन और सेवा भाव से भरा था।
अव्यक्त मुरली (18 जनवरी 1971):
“ब्रह्मा बाबा ने जो कहा, किया।
जो सुना, उस पर अमल किया।
इसलिए वो सर्वश्रेष्ठ शिष्य बन गए।”
उनका जीवन बताता है कि सच्चा शिष्य वह है
जो संदेह रहित, आज्ञाकारी और मर्यादा में स्थित रहे।
प्रश्न 6: हमारे लिए ब्रह्मा बाबा के जीवन से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:
हम सब भी तो शिव सतगुरु के शिष्य हैं।
इसलिए हमें भी वही प्रश्न स्वयं से पूछना चाहिए —
क्या हम उतने ही आज्ञाकारी हैं जितने ब्रह्मा बाबा थे?
सच्चा शिष्य वही है जो हर स्थिति में “हाँ बाबा” कहे,
“क्यों बाबा” नहीं।
जो बाप समान बने —
ज्ञान, योग, सेवा और मर्यादा में।
प्रश्न 7: गुरु-शिष्य का यह रिश्ता वास्तव में क्या दर्शाता है?
उत्तर:
यह रिश्ता केवल गुरु और शिष्य का नहीं,
बल्कि आत्मा और परमात्मा के दिव्य संगम का प्रतीक है।
शिव बाबा — सतगुरु हैं, जो सच्चा मार्ग दिखाते हैं।
ब्रह्मा बाबा — शिष्य हैं, जो उस मार्ग पर पूर्ण निष्ठा से चलते हैं।
जब शिष्य पूर्ण समर्पण करता है,
तो वह गुरु के समान दिव्य गुणों से भर जाता है।
प्रश्न 8: इस पवित्र संबंध से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
सदैव शिव बाबा ने कहा,
ब्रह्मा बाबा ने किया।
और आज वही आदर्श हमें राह दिखाता है।
चलो, हम भी बनें ऐसे सच्चे शिष्य —
जो केवल सुनें नहीं, बल्कि जीवन में उतारें।
“सतगुरु की श्रीमत पर चलना ही सच्ची भक्ति और सच्चा योग है।”
Disclaimer:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारियों के आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल आत्मिक उन्नति और ईश्वरीय प्रेरणा देना है।
इसमें प्रस्तुत विचार, उद्धरण और मुरली वचन,
शिव बाबा (Brahma Kumaris Murlis) के ज्ञान से लिए गए हैं।
यह किसी भी धार्मिक मत या संस्था की आलोचना के लिए नहीं है।
सतगुरु, शिष्य, शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा, गुरु-शिष्य रिश्ता, समर्पण, आज्ञाकारिता, सद्गति, ईश्वरीय ज्ञान, श्रीमत, ब्रह्माकुमारिज, अव्यक्त मुरली, साकार मुरली, सच्चा गुरु, सच्चा शिष्य, विनम्रता, योग, भक्ति, आत्मा, परमात्मा, मुक्ति, सद्गतिदाता, ब्रह्मा का उदाहरण, शिव सतगुरु, आध्यात्मिक रिश्ता, ब्रह्मा शिव का संगम, ब्रह्माकुमारी ज्ञान, सतगुरु की पहचान, शिष्य की मर्यादा, गुरु कृपा, आत्म कल्याण,Satguru, disciple, Shiv Baba, Brahma Baba, Guru-disciple relationship, dedication, obedience, salvation, divine knowledge, Shrimat, Brahma Kumaris, Avyakt Murli, Sakar Murli, true Guru, true disciple, humility, yoga, devotion, soul, God, salvation, giver of salvation, example of Brahma, Shiva Satguru, spiritual relationship, confluence of Brahma Shiva, Brahma Kumaris knowledge, identity of Satguru, dignity of disciple, Guru’s grace, self-welfare,

