(32) Om Radhey’s amazing court statement

(32)ओम राधे का अभ्दुत अदालती बयान

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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प्रस्तावना: जब एक अद्भुत मुकदमा न्यायालय पहुंचा

यह कोई सामान्य मुकदमा नहीं था — यह एक आध्यात्मिक क्रांति की परीक्षा थी।
एक साधारण सी दिखने वाली दिव्य आत्मा — ओम राधे — आज न्याय के कटघरे में खड़ी थी।
पूरा शहर इस सुनवाई को देख रहा था। परदे के पीछे कुछ और ही कहानी थी — एक आत्मा की, जो सत्य के साथ खड़ी थी।


 मंच सज चुका था: न्यायालय बना अखाड़ा

वकील (विरोधी): “महोदय, ये सब ढकोसला है। ये लड़कियाँ घर से भाग गईं, और अब एक बाबा के इर्द-गिर्द ज्ञान का ढोंग कर रही हैं!”
जज: “शांति बनाए रखें। अब गवाह को बुलाया जाए।”

ओम राधे जैसे ही कोर्ट में प्रवेश करती हैं —
श्वेत वस्त्रों में, शांत और सौम्य — पर आत्मबल से ओतप्रोत।
सभी स्तब्ध हो जाते हैं। यह सिर्फ एक युवती नहीं — ईश्वरीय ज्योति का प्रतिरूप थी।


 धर्म और कानून का टकराव: शपथ का क्षण

जज: “गीता हाथ में लो और शपथ लो कि जो कहोगी, वह सत्य होगा।”
ओम राधे: “मैं आपको देख रही हूं, लेकिन उस परमात्मा को नहीं, जिसकी शपथ दिलाई जा रही है।”

कोर्ट हँसी और आश्चर्य से गूंज उठता है।
जज (गंभीर): “यह न्यायालय है, सत्संग नहीं!”
राधे (शांत पर दृढ़): “जैसे आप अदालत का अपमान नहीं सह सकते, वैसे ही मैं परमात्मा का अपमान नहीं कर सकती।”


 आत्मबल का प्रदर्शन: जब भय हार गया

जज (गुस्से में): “उसे हथकड़ी पहनाओ!”
अधिकारी हथकड़ी लेकर आगे बढ़ता है, पर राधे निडर खड़ी रहती हैं।
कोर्ट सन्न रह जाता है।
जज (अचानक रुकते हुए): “रुको!”
तालियों की गड़गड़ाहट — आत्मबल की गूंज बन जाती है।


 गूढ़ प्रश्न और सटीक उत्तर: सत्य की परीक्षा

जज: “तुम घर छोड़ कर क्यों भागीं?”
राधे: “जैसे श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनकर गोपियाँ दौड़ पड़ी थीं — कोई उन्हें रोक नहीं पाया था, कोई मुकदमा नहीं चला।”

जज: “बाबा तुम्हारी आँखों में कैसा आई लोशन लगाते हैं?”
राधे: “ज्ञान अंजन सतगुरु दिया, अज्ञान अंधेर विनाश। बाबा हमें आत्मिक नेत्र देते हैं।”

जज: “दादाजी के कितने बच्चे हैं?”
राधे: “हम दादाजी की नहीं, परमात्मा की संतान हैं। आप, मैं, हम सब — उस एक के बच्चे हैं।”


 अंतिम दृश्य: जीत उस सत्य की जो अविनाशी है

राधे अपने स्थान पर लौटती हैं —
कोर्ट तालियों से गूंज उठता है। यह एक आध्यात्मिक विजय थी — आत्मा की नहीं, सत्य की।

दादी प्रकाशमणि कहती हैं:
“हमने अदालत में भी नफरत नहीं रखी। वहाँ भी हमने शांति और सौहार्द फैलाया। यही ईश्वर का मार्ग है।”


 समापन: आत्मा की अदालत में निर्णय पहले ही हो चुका था

अदालत ने कोई सज़ा नहीं दी —
बल्कि उस आत्मा की शक्ति ने सबको मौन कर दिया।
जब वे बाहर आईं, मीडिया के सवाल भी शांत हो गए।
उनके उत्तर में कोई क्रोध नहीं, कोई अहंकार नहीं —
सिर्फ ईश्वर की याद की मिठास और आत्मिक स्थिति की महक।

प्रश्न 1: यह मुकदमा इतना खास क्यों था?

उत्तर:यह एक सामान्य केस नहीं था, यह एक आध्यात्मिक आंदोलन की परीक्षा थी। समाज के विरोध के बीच, एक युवती – ओम राधे – न्यायालय में अपने विश्वास, सच्चाई और आत्मबल के साथ खड़ी हुईं। यह केस धर्म और कानून के टकराव का प्रतीक बन गया।

प्रश्न 2: ओम राधे ने शपथ लेने से क्यों इनकार किया?

उत्तर:जब जज ने उन्हें गीता हाथ में लेकर शपथ लेने को कहा, तो ओम राधे ने कहा –
“मैं ईश्वर को देखती नहीं, तो उनके नाम की झूठी शपथ कैसे लूं?”
इसने न सिर्फ अदालत को चौंका दिया, बल्कि दर्शकों के हृदयों को भी छू लिया। यह एक गहन आध्यात्मिक जागृति का संकेत था।

प्रश्न 3: ओम राधे को हथकड़ी पहनाने की बात क्यों उठी?

उत्तर:जब ओम राधे ने निडरता से अपने विचार व्यक्त किए और परमात्मा की गरिमा की रक्षा की, तो जज को लगा कि अदालत की अवहेलना हुई है। लेकिन जैसे ही अधिकारी उनकी ओर बढ़ा, ओम राधे की निडर उपस्थिति और आत्मबल ने पूरे माहौल को शांत कर दिया।
फैसला बदल गया – क्योंकि सच्चाई खुद बोल रही थी।

प्रश्न 4: जज ने उनसे पूछा कि वह घर से क्यों भागीं — ओम राधे ने क्या उत्तर दिया?

उत्तर:ओम राधे ने बेहद सुंदर उत्तर दिया:
“जैसे भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनकर गोपियाँ सब कुछ छोड़ दौड़ी थीं, वैसे ही हम भी ईश्वर के बुलावे पर चले आए। क्या किसी गोपी पर मुकदमा चला?”
यह उत्तर केवल तर्क नहीं, ईश्वर प्रेम की पराकाष्ठा था।

प्रश्न 5: बाबा को लेकर ‘आई लोशन’ जैसा ताना सुनने पर उन्होंने क्या उत्तर दिया?

उत्तर:ओम राधे ने आत्मज्ञान से भरा उत्तर दिया:
“बाबा हमें कोई लोशन नहीं, ज्ञान का अंजन दे रहे हैं – जिससे अज्ञान का अंधकार मिट रहा है।”
यह उत्तर सीधे संत तुलसीदास की पंक्ति से प्रेरित था –
“ज्ञान अंजन सतगुरु दिया, अज्ञान अंधेर विनाश।”

प्रश्न 6: जब उनसे पूछा गया – दादाजी के कितने बच्चे हैं?

उत्तर:ओम राधे ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्तर दिया:
“हम परमात्मा की ओर देखते हैं – वही तीनों लोकों के पिता हैं। आप भी, मैं भी, हम सब उनके बच्चे हैं।”
यह उत्तर किसी परिवार की नहीं, आत्माओं की वंशावली की घोषणा थी।

प्रश्न 7: इस अदालती केस का निष्कर्ष क्या रहा?

उत्तर:कानूनन कोई सजा नहीं दी गई।
जज ने कहा – गवाह को माफ किया जाता है।
लेकिन असली निर्णय तो आत्मा की अदालत में पहले ही हो चुका था। सच्चाई की गहराई ने सबके हृदयों को प्रभावित किया।

प्रश्न 8: इस कहानी से आज की युवा आत्माओं को क्या सीख मिलती है?

उत्तर:

  • सच्चाई के मार्ग पर चलने से डरना नहीं चाहिए।

  • जब आत्मा परमात्मा के साथ होती है, तो दुनिया की कोई ताकत उसे हिला नहीं सकती।

  • निडरता, शांति और प्रेम से ही सत्य की रक्षा होती है।


 निष्कर्ष:

यह कहानी सिर्फ एक केस नहीं, एक क्रांति थी। ओम राधे ने दिखाया कि जब कोई आत्मा सत्य से जुड़ जाती है, तो न्याय भी मौन हो जाता है, और दुनिया भी सिर झुका देती है।

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