अव्यक्त मुरली-(35) “उड़ती कला में जाने की विधि और पुण्य आत्माओं की निशानियां”15-05-1983
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
15-05-1983 “उड़ती कला में जाने की विधि और पुण्य आत्माओं की निशानियां”
आज बागवान बाप अपने रूहानी बगीचे में खुशबूदार फूलों को और कल की विशेष कल्याण अर्थ निमित्त बनी हुई हिम्मत-हुल्लास वाली कलियों को भी देख रहे हैं। कल के तकदीर की तस्वीर नन्हें मुन्ने बच्चों को देख रहे हैं। (आज बापदादा के सम्मुख छोटे-छोटे बच्चों का ग्रुप बैठा है) बापदादा इन छोटे-छोटे बच्चों को धरनी के चमकते सितारे कहते हैं। यही लकी सितारे विश्व को नई रोशनी देने के निमित्त बनेंगे। इन छोटे बड़े बच्चों को देख बापदादा को स्थापना के आदि का नज़ारा याद आ रहा है। जबकि ऐसे छोटे-छोटे बच्चे विश्व कल्याण के कार्य के उमंग-उत्साह में दृढ़ संकल्प करने वाले निकले कि हम छोटे सबसे बड़ा कार्य करके दिखायेंगे जो राज्य-नेतायें, धर्म नेतायें, विज्ञानी आत्मायें चाहना रखती हैं लेकिन कर नहीं पाती हैं, यह कार्य हम छोटे-छोटे कर दिखायेंगे। और आज उन छोटे-छोटे बच्चों का संकल्प साकार रूप में देख रहे हैं। वो थोड़े ही छोटे बच्चे आज शिवशक्ति पाण्डव सेवा के रूप में कार्य कर रहे हैं। हिस्ट्री तो सब जानते हो ना। आज उन्हीं जगे हुए दीपकों से आप सभी दीपमाला बन बाप के गले के हार बन गये हो। अब भी छोटे बड़े बच्चों को देख हर बच्चे में विश्व के कल की तकदीरवान तस्वीर दिखाई देती है। सभी बच्चे अपने को क्या समझते हो? लकी सितारे हो ना! आज का दिन है ही बच्चों का दिन, बड़े तो गैलरी में बैठ देखने वाले हैं। बापदादा भी विशेष बच्चों को देख हर्षित होते हैं। एक एक बच्चा अनेक आत्माओं को बाप का परिचय दे बाप के वर्से के अधिकारी बनाने वाले हो ना! वैसे भी बच्चों को महात्मा कहा जाता है। सच्चे-सच्चे महान आत्मायें अर्थात् श्रेष्ठ पवित्र आत्मायें आप सब हो ना! ऐसी महान आत्मायें सदा अपने एक ही दृढ़ संकल्प में रहती हो? सदा एक बाप और एक ही श्रीमत पर चलना है। यह पक्का निश्चय किया है ना! अपने-अपने स्थानों पर जाए किसी भी संग में तो नहीं आने वाले हो? आप सभी का फोटो यहाँ निकल गया है। इसलिए सदा अपना श्रेष्ठ जीवन याद रखना। हम हर एक बच्चा विश्व की सर्व आत्माओं के श्रेष्ठ परिवर्तन के निमित्त हैं, सदैव यह याद रखना। इतनी बड़ी जिम्मेवारी उठाने की हिम्मत है? सभी बच्चे अमृतवेले से लेकर अपने सेवा की जिम्मेवारी निभाने वाले हो? जो भी किसी भी बात में कमज़ोर हो तो उसको अभी से ठीक कर लेना। आप सभी के ऊपर सभी की नज़र है। इसलिए अमृतवेले से लेकर रात तक सहज योगी, श्रेष्ठ योगी जो भी श्रेष्ठ जीवन के लिए दिनचर्या मिली हुई है, उसी प्रमाण सभी को यथार्थ रीति चलना पड़ेगा – यह अटेन्शन अभी से दृढ़ संकल्प के रूप में रखना। सभी को योगी के लक्षणों का पता है? (सब बच्चे बापदादा को हरेक बात पर जी हाँ का रेसपाण्ड करते रहे) योगी आत्माओं की बैठक, चलन, दृष्टि क्या होती है, यह सब जानते हो? ऐसे ही चलते हो वा थोड़ी-थोड़ी चंचलता भी करते हो? सब योगी आत्मायें हो ना! जो दुनिया वाले करते हैं वह आप बच्चे नहीं कर सकते। आप महान आत्मायें ऐसे शान्त स्वरूप रहो जो भल कितने भी बड़े-बड़े हों लेकिन आप शान्त स्वरूप आत्माओं को देख शान्ति की अनुभूति करें और यही दिखाई दे कि यह साधारण बच्चे नहीं लेकिन सभी अलौकिक बच्चे हैं। न्यारे हैं और विशेष आत्मायें हैं। तो ऐसे चलते हो? अभी से यह भी परिवर्तन करना। आज सभी बच्चों से मिलने के लिए ही विशेष बापदादा आये हैं। समझा!
बच्चों के साथ बड़े भी आये हैं। बापदादा आये हुए सभी बच्चों को विशेष याद दे रहे हैं। साथ-साथ यह तो सभी जानते हो कि वर्तमान समय प्रमाण बापदादा सभी बच्चों को उड़ती कला की ओर ले जा रहे हैं, उड़ती कला का श्रेष्ठ साधन जानते हो ना। एक शब्द के परिवर्तन से सदा उड़ती कला का अनुभव कर सकते हो। एक शब्द कौन सा? सिर्फ ‘सब कुछ तेरा’। ‘मेरा’ शब्द बदल ‘तेरा’ कर लिया। तेरा शब्द ही तेरा हूँ बना देता है। और यही एक शब्द सदा के लिए डबल लाइट बना देता है। तेरा हूँ, तो आत्मा लाइट है। और जब सब कुछ तेरा तो भी लाइट (हल्के) बन गये ना। तो सिर्फ एक शब्द ‘तेरा’। डबल लाइट बन जाने से सहज उड़ती कला वाले बन जाते। बहुत समय का अभ्यास है ‘मेरा’ कहने का। जिस मेरे शब्द ने ही अनेक प्रकार के फेरे में लाया है। अभी इसी एक शब्द को परिवर्तन कर लो। मेरा सो तेरा हो गया। यह परिवर्तन मुश्किल तो नहीं है ना। तो सदा इसी एक शब्द के अन्तर स्वरूप में स्थित रहो। समझा क्या करना है। सदा एक ही लगन में मगन रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें वर्तमान भी श्रेष्ठ जीवन का अनुभव कर रही हैं और भविष्य भी अविनाशी श्रेष्ठ बना रही हैं। इसलिए सदा यह एक शब्द याद रखो। समझा! इसी आधार पर जितना आगे बढ़ने चाहो उतना आगे बढ़ सकते हो और जितना अपने पास खजाने जमा करने चाहो उतने खजाने जमा कर सकते हो। वैसे भी लौकिक जीवन में सदा जो भी नामीग्रामी अच्छे कुल वाली आत्मायें होती हैं वह सदा अपने जीवन के लिए दान पुण्य करने का लक्ष्य रखती हैं। आप सभी सबसे बड़े ते बड़े कुल, श्रेष्ठ कुल के हो। तो श्रेष्ठ कुल वाली ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मायें उन्हों का भी लक्ष्य क्या है? सदा महादानी बनो। सदा पुण्य आत्मा बनो। कभी भी संकल्प में भी किसी विकार के वश कोई संकल्प भी किया तो उसको क्या कहा जायेगा? पाप वा पुण्य? पाप कहेंगे ना। स्वयं के प्रति भी सदा पुण्य कर्ता बनो। संकल्प में भी पुण्य आत्मा, बोल में भी पुण्य आत्मा और कर्म में भी पुण्य आत्मा। जब पुण्य आत्मा बन गये तो पाप का नाम निशान नहीं रह सकता। तो सदा यह स्मृति में रखो कि हम सर्व ब्राह्मण आत्मायें सदा की पुण्य आत्मायें हैं। किसी भी आत्मा के प्रति सदा श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना रखना यह सबसे बड़ा पुण्य है। चाहे कैसी भी आत्मा हो, विरोधी आत्मा हो वा स्नेही आत्मा हो लेकिन पुण्य आत्मा का पुण्य ही है – जो विरोधी आत्मा को भी श्रेष्ठ भावना के पुण्य की पूँजी से उस आत्मा को भी परिवर्तन करे। पुण्य कहा ही जाता है, जिस आत्मा को जिस वस्तु की अप्राप्ति हो उसको प्राप्त कराने का कार्य करना – यह पुण्य है। जब कोई विरोधी आत्मा आपके सामने आती है तो पुण्य आत्मा, सदा उस आत्मा को सहनशक्ति से वंचित आत्मा है – उसी नज़र से देखेंगे। और अपने पुण्य की पूंजी द्वारा, शुभ भावना द्वारा, श्रेष्ठ संकल्प द्वारा उस आत्मा को सहनशक्ति की प्राप्ति के सहयोगी आत्मा बनेंगे। उसके लिए यही पुण्य का कार्य हो जाता है। पुण्य आत्मा सदा स्वयं को दाता के बच्चे देने वाला समझते हैं। किसी भी आत्मा द्वारा अल्पकाल की प्राप्ति के लेने वाले की कामना से परे रहते हैं। यह आत्मा कुछ देवे तो मैं दूँ, वा यह भी कुछ करे तो मैं भी करूँ, ऐसी हद की कामना नहीं रखते। दाता के बच्चे बन सबके प्रति स्नेह, सहयोग, शक्ति देने वाले पुण्य आत्मा होंगे। पुण्य आत्मा कभी भी अपने पुण्य के बदले प्रशंसा लेने की कामना नहीं रखते क्योंकि पुण्य आत्मा जानते हैं कि यह हद की प्रशंसा को स्वीकार करना सदाकाल की प्राप्ति से वंचित होना है। इसलिए वह सदा देने में सागर के समान सम्पन्न रहते हैं। पुण्य आत्मा सदा अपने हर बोल द्वारा औरों को खुशी में, बाप के स्नेह में, अतीन्द्रिय सुख में, रूहानी आनन्दमय जीवन का अनुभव करायेंगे। उनका हर बोल खुशी की खुराक होगी, पुण्य आत्मा का हर कर्म सर्व आत्माओं के प्रति सदा सहयोग के प्राप्ति कराने वाला होगा। और हर आत्मा अनुभव करेगी कि इस पुण्य आत्मा का कर्म देख सदा आगे उड़ने का सहयोग प्राप्त हो रहा है। समझ, पुण्य आत्मा के लक्षण। तो ऐसे सदा पुण्यात्मा बनो अर्थात् श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन का प्रत्यक्ष स्वरूप बनो। पवित्र प्रवृत्ति वाली पुण्य आत्मायें बनो तब ही ऐसी पुण्य आत्माओं के प्रभाव से पाप का नाम निशान समाप्त हो जायेगा। अच्छा।
ऐसे सदा हर संकल्प द्वारा पुण्य करने वाली पुण्य आत्मायें, सदा एक शब्द के परिवर्तन द्वारा उड़ती कला में जाने वाले, सदा दाता के बच्चे बन सबको देने वाली विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
उड़ती कला में जाने की विधि और पुण्य आत्माओं की निशानियां
(अव्यक्त मुरली : 17 सितम्बर 1986, मधुबन, बापदादा की रूहानी बच्चों से मुलाकात)
प्रस्तावना
आज बागवान बाप अपने रूहानी बगीचे में बच्चों को देख रहे हैं। बड़े और छोटे सभी बच्चे उनकी नज़रों में “लकी सितारे” हैं। इन नन्हें-मुन्नों बच्चों में भी विश्व की तकदीर दिखाई देती है। बापदादा कहते हैं – “आज का दिन है ही बच्चों का दिन।”
लकी सितारे और जिम्मेवारी
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बच्चे केवल छोटे नहीं, बल्कि विश्व को नई रोशनी देने वाले चमकते सितारे हैं।
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हर बच्चा अपने श्रेष्ठ जीवन से अनेक आत्माओं को बाप का परिचय देगा।
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बापदादा कहते हैं – “हम हर एक बच्चा विश्व की सर्व आत्माओं के श्रेष्ठ परिवर्तन का निमित्त हैं।”
उदाहरण:
जैसे छोटे दीपक से पूरी दीपमाला सज जाती है, वैसे ही एक-एक ब्राह्मण बच्चा बाप के गले का हार बन गया है।
उड़ती कला में जाने की विधि
बापदादा बच्चों को एक विशेष राज़ बताते हैं – उड़ती कला का सबसे सहज साधन।
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केवल एक शब्द का परिवर्तन: “मेरा” → “तेरा”
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जब आत्मा कहे – “सब कुछ तेरा” तो डबल लाइट बन जाती है।
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“तेरा हूँ” = आत्मा लाइट है।
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“सब कुछ तेरा” = हल्का हो गया, बोझ समाप्त हो गया।
उदाहरण:
यदि कोई आत्मा “यह मेरा घर, मेरा परिवार” सोचती है तो वह बंधन में आ जाती है। लेकिन वही आत्मा “यह सब बाबा का है” सोच ले तो बंधन टूट जाता है और उड़ने लगती है।
पुण्य आत्मा की निशानियां
बापदादा ने बताया कि श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन जीना ही पुण्य आत्मा बनने का प्रमाण है।
1. संकल्प में पुण्य
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विकारयुक्त संकल्प पाप कहलाता है।
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पुण्य आत्मा सदा श्रेष्ठ संकल्प रखती है।
2. श्रेष्ठ भावना और शुभ कामना
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विरोधी आत्मा को भी दंड या नफ़रत से नहीं, बल्कि श्रेष्ठ भावना से देखना।
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पुण्य आत्मा सोचती है – “यह आत्मा सहनशक्ति से वंचित है, मैं अपने पुण्य से इसे सहारा दूँ।”
3. दाता स्वरूप
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दाता के बच्चे सबको स्नेह, शक्ति और सहयोग देते हैं।
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पुण्य आत्मा कभी बदले में प्रशंसा की इच्छा नहीं रखती।
4. खुशी की खुराक
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पुण्य आत्मा का हर बोल दूसरों को खुशी, अतीन्द्रिय सुख और ईश्वरीय स्नेह का अनुभव कराता है।
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उनके कर्म दूसरों को आगे उड़ने की प्रेरणा देते हैं।
मुख्य सूत्र (Murli Notes)
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“सिर्फ ‘मेरा’ शब्द बदलकर ‘तेरा’ कर लो – यही उड़ती कला का राज़ है।”
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“पुण्य आत्मा सदा संकल्प, बोल और कर्म में पुण्य करती है।”
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“दाता के बच्चे सदा देने में सागर के समान सम्पन्न रहते हैं।”
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“किसी भी आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना रखना ही सबसे बड़ा पुण्य है।”
निष्कर्ष
बापदादा चाहते हैं कि हर बच्चा –
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उड़ती कला का अनुभव करे,
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सदा डबल लाइट रहे,
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और पुण्य आत्मा के लक्षणों से विश्व परिवर्तन का कार्य करे।
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1. बापदादा बच्चों को “लकी सितारे” क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि हर बच्चा अपने श्रेष्ठ जीवन से अनेक आत्माओं को बाप का परिचय देगा और विश्व परिवर्तन का निमित्त बनेगा। जैसे एक छोटा दीपक पूरी दीपमाला को सजाता है, वैसे ही ब्राह्मण बच्चे बाप के गले का हार बनते हैं।
2. उड़ती कला में जाने का सबसे आसान साधन क्या है?
उत्तर:
सिर्फ एक शब्द का परिवर्तन – “मेरा” से “तेरा”।-
“तेरा हूँ” → आत्मा हल्की (लाइट) हो जाती है।
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“सब कुछ तेरा” → बोझ समाप्त हो जाता है और आत्मा डबल लाइट बनकर उड़ने लगती है।
उदाहरण:
जो आत्मा सोचती है – “यह मेरा घर, मेरा परिवार” → बंधन में फँसती है।
लेकिन वही आत्मा सोचती है – “यह सब बाबा का है” → वह बंधन से मुक्त होकर उड़ती कला में चली जाती है।
3. पुण्य आत्मा की पहली निशानी क्या है?
उत्तर:
पुण्य आत्मा सदा श्रेष्ठ संकल्प करती है। विकारयुक्त संकल्प पाप कहलाता है, जबकि पुण्य आत्मा हर स्थिति में शुभ और पवित्र संकल्प रखती है।
4. पुण्य आत्मा विरोधी आत्मा को कैसे देखती है?
उत्तर:
पुण्य आत्मा दंड या नफ़रत से नहीं देखती। वह सोचती है – “यह आत्मा सहनशक्ति से वंचित है, मैं अपने पुण्य से इसे शक्ति दूँ।” इस प्रकार वह श्रेष्ठ भावना और शुभ कामना से दूसरों को परिवर्तन करती है।
5. दाता स्वरूप बनने का अर्थ क्या है?
उत्तर:
दाता स्वरूप आत्मा सबको स्नेह, शक्ति और सहयोग देती है। वह बदले में कभी प्रशंसा या मान की इच्छा नहीं रखती। उसका कार्य केवल देना होता है, लेना नहीं।
6. पुण्य आत्मा की बोली और कर्म दूसरों पर क्या प्रभाव डालते हैं?
उत्तर:
पुण्य आत्मा का हर बोल दूसरों को खुशी, ईश्वरीय स्नेह और अतीन्द्रिय सुख का अनुभव कराता है। उसके कर्म दूसरों को आगे बढ़ने और उड़ती कला में जाने की प्रेरणा देते हैं।
7. बापदादा ने उड़ती कला का राज़ किस वाक्य में दिया?
उत्तर:
“सिर्फ ‘मेरा’ शब्द बदलकर ‘तेरा’ कर लो – यही उड़ती कला का राज़ है।”
8. सबसे बड़ा पुण्य कौन सा है?
उत्तर:
किसी भी आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना और शुभ कामना रखना ही सबसे बड़ा पुण्य है।
🌟 निष्कर्ष
बापदादा चाहते हैं कि हर बच्चा –
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“तेरा हूँ” की स्थिति में डबल लाइट बने,
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संकल्प, बोल और कर्म में पुण्य करे,
-
और सच्चा दाता बनकर विश्व परिवर्तन का कार्य करे।
- Disclaimer :यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं और मुरली से प्रेरित है। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक उत्थान, ज्ञान और ध्यान साधना के अभ्यास को सरल भाषा में प्रस्तुत करना है। इस सामग्री का किसी भी प्रकार से व्यावसायिक उपयोग नहीं किया गया है।
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