( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
19-05-1983 “साक्षी दृष्टा कैसे बनें?”
आज बापदादा इस पुरानी दुनिया और पुराने राज्य की दुनिया, जड़जड़ीभूत हुई दुनिया का समाचार सुन रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मेरे बच्चों को पुरानी दुनिया में कितना सहन करना पड़ता है। आत्मा के लिए मौजों का समय है लेकिन शरीर से सहन भी करना पड़ता है। अपने राज्य में प्रकृति के पांचों ही तत्व भी सदा आज्ञाकारी सेवाधारी होंगे। लेकिन अपना राज्य स्थापन करने के लिए पुराने को ही नया बनाना है। पुराने में सेवाधारी बनना ही पड़ता है। अभी की यह सेवा जन्म-जन्मान्तर की सेवा से मुक्त कर देती है। इस सेवा के फलस्वरूप प्रकृति और चैतन्य सेवाधारी आपके चारों ओर घूमते रहेंगे। इसलिए सदाकाल की सर्व प्राप्ति के आगे यह थोड़ा बहुत सहन करना भी सहन करना नहीं लगता। श्रेष्ठ सेवा के नशे और खुशी में सहन करना एक चरित्र रूप में बदल जाता है। भागवत आप सबके सहन शक्ति के चरित्रों का यादगार है। तो सहन करना नहीं लेकिन यादगार चरित्र बन रहे हैं। अभी तक भी यही गायन सुन रहे हो कि भगवान के बच्चों ने बाप के मिलन के स्नेह में क्या-क्या किया। गोपी वल्लभ के गोप गोपिकाओं ने क्या-क्या किया। तो यह सहन करना नहीं लेकिन सहन ही शक्तिशाली बना रहे हैं। सहन शक्ति से मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो। सहन करना लगता है कि खेल लगता है? मन तो सदा नाचता रहता है ना। तो मन की खुशी यह थोड़ा बहुत सहन भी खुशी में परिवर्तन कर देती है। तन भी तेरा, मन भी तेरा। तो जिसको तेरा कहा वह जाने। आप तो न्यारे और प्यारे रहो। सिर्फ जिस समय तन का हिसाब-किताब चुक्तू करने का पार्ट बजाते हो उस समय यह निरन्तर स्मृति रहे कि बाबा आप जानो आपका काम जाने। मैं बीमार हूँ, नहीं, मेरा शरीर बीमार है, नहीं। तेरी अमानत है तुम जानो। मैं साक्षीदृष्टा बन आपके अमानत की सेवा कर रही हूँ। इसको कहा जाता है साक्षी-दृष्टा। ट्रस्टी बनना। ऐसे ही मन भी तेरा। मेरा है ही नहीं। मेरा मन नहीं लगता, मेरा योग नहीं लगता, मेरी बुद्धि एकाग्र नहीं होती। यह मेरा शब्द हलचल पैदा करता है। मेरा है कहाँ। मेरापन मिटाना ही सर्व बन्धन-मुक्त बनना है। मेरा धन, मेरी पत्नी, मेरा पति, मेरा बच्चा ज्ञान में नहीं चलता, उसकी बुद्धि का ताला खोल दो। सिर्फ उन्हों का क्यों सोचते हो! मेरे के भाव से क्यों सोचते! यह कभी भी कोई बच्चे ने अभी तक नहीं कहा है कि मेरे गांव की वा देश की आत्मा का ताला खोलो। कहते हैं मेरी पत्नी का, मेरे बच्चों का, मेरेपन का भाव, बेहद में नहीं ले आता। इसलिए बेहद की शुभ भावना हर आत्मा के प्रति रखते हुए सर्व के साथ उन आत्माओं को भी देखो। क्या समझा! तेरा तो तेरा हो गया। मेरा कोई बोझ नहीं। चाहे बापदादा कहाँ भी सेवा प्रति निमित्त बनावे। तन द्वारा सेवा करावे, मन द्वारा मन्सा सेवा करावे, जहाँ रखे, जिस हाल में रखे, चाहे दाल-रोटी खिलावे, चाहे 36 प्रकार खिलावे। लेकिन जब मेरा कुछ नहीं तो तेरा तू जानो। आप क्यों सोचते हो? भगवान अपने बच्चों को सदा तन से, मन से, धन से सहज रखेगा। यह बाप की गैरन्टी है। फिर आप लोग क्यों बोझ उठाते हो। उस दिन भी सुनाया ना कि सब कुछ तेरा करने वाले हो तो जो बाप खिलावे वो खाओ, पिओ और मौज करो, याद करो। सिर्फ एक ड्युटी आपकी है बस। बाकी सब ड्युटी बाबा आपेही निभायेंगे। एक ही ड्युटी तो कर सकते हो ना! मेरा कहते हो तब मन चंचल होता है। यही सोचते हो ना कि यह मुश्किल बात है। मुश्किल है नहीं लेकिन कर देते हो। मेरेपन का भाव मुश्किल बना देता और तेरेपन का भाव सहज बना देता है। विश्व कल्याण की भावना रखो तो विश्व कल्याण का कर्तव्य जल्दी समाप्त हो जायेगा। और अपने राज्य में चले जायेंगे। वहाँ ऐसे पंखे नहीं हिलायेंगे। (गर्मी होने के कारण सबको हाथ में रंग बिरंगे पंखे दिये गये थे) वहाँ तो प्रकृति आपका पंखा करेगी। एक एक हीरा इतनी रोशनी देंगे जो आज की लाइट से भी वण्डरफुल लाइट होगी। सदा आपके महलों में नौ रंग के हीरों की लाइट होगी। सोचो कितनी बढ़िया लाइट होगी। नौ रंग की मिक्स लाइट कितनी बढ़िया होगी। और यहाँ तो देखो एक रंग की लाइट भी खेल करती रहती है। इसलिए सेवा का कर्तव्य सम्पन्न करो। सम्पन्न बनो तो अपना राज्य, सर्व सुखों से सम्पन्न राज्य आया कि आया। समझा!
आज सभी के जाने का दिन है, बापदादा भी जल्दी-जल्दी करेंगे तब तो जायेंगे। अब तो ट्रेनों के रश में जाना पड़ता है फिर तो आपके महलों में आगे पीछे अनेक विमान खड़े होंगे। चलाने वाले का भी इन्तजार नहीं करना पड़ेगा, छोटे से छोटे जीवन में भी चला सकते हो। छोटा बच्चा भी स्वीच दबायेगा और उड़ेगा। एक्सीडेंट तो होना ही नहीं है। विमान भी तैयार हो रहे हैं। लेकिन आप सब एवररेडी हो जाओ। स्वर्ग तो तैयार है ही है। विश्वकर्मा आर्डर करेगा और महल और विमान तैयार। ईश्वरीय जादू के प्रालब्ध की नगरी है। (सभी पंखे हिला रहे थे) यह भी अच्छी सीन है, फोटो निकालने वाली। ऐसी कोई सभा नहीं देखी होगी जो रंग बिरंगे पंखे हिलाने वाले हों। अच्छा!
सदा तेरा तू जानो, ऐसे दृढ़ संकल्पधारी, सदा बेहद के सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावनाधारी, सदा हर कर्म याद द्वारा यादगार बनाने वाले, ऐसे एवररेडी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
ट्रेनिंग करने वाली कुमारियों से:- सभी अपने को बाप की राइट हैण्ड समझती हो ना! लेफ्ट हैण्ड तो नहीं हो। राइट हैण्ड, एक हाथ को भी कहते हैं और दूसरा जो सेवा में सदा सहयोगी होते हैं उसको भी राइट हैण्ड कहा जाता है। तो सदा सेवा में सहयोगी बनने का दृढ़ संकल्प कर लिया है ना। वहाँ जाकर भूल तो नहीं जायेंगी। जो भी कारणे-अकारणे सेवा में अभी नहीं निकल सकती वह भी यही लक्ष्य रखना कि हमें सेवा में साथी बनना ही है। सदा हर संकल्प में सेवा समाई हो। जहाँ भी रहो, वहाँ सदा अपने को पूज्य महान आत्मा समझकर चलना। न आपकी दृष्टि किसी में जाए, न और किसी की दृष्टि आप पर जाये। ऐसी पूज्य आत्मा समझकर चलना। पूज्य आत्मा की स्मृति में रहने वाली कुमारियों के तरफ किसी की भी ऐसी दृष्टि नहीं जा सकती है। सदा इस बात में अपने को सावधान रखना। कभी भी अपने को हल्की स्मृति में नहीं रखना। ब्रह्माकुमारी तो बन गई… कभी ऐसे अलबेले नहीं बनना। अभी तो दादी बन गई, दीदी बन गई… नहीं। यह तो कहने में आता है लेकिन हैं श्रेष्ठ आत्मा, पूज्य आत्मा, शक्ति रूप आत्मा… शक्ति के ऊपर किसी की भी नजर नहीं जा सकती। अगर किसी की गई तो दिखाते हैं – वह भैंस बन गया। और भैंस काली होती है तो वह भैंस अर्थात् काली आत्मा बन गई। और भैंस बुद्धि अर्थात् मोटी बुद्धि हो जायेगी। अगर किसी की भी बुरी दृष्टि जाती है तो वह मोटी बुद्धि, भैंस बुद्धि बन जायेगा। क्यों किसी की दृष्टि जाए। इसमें भी कमजोरी कुमारियों की कहेंगे। पाण्डवों की अपनी कमजोरी, कुमारियों की अपनी। इसलिए अपने को चेक करो। दादी दीदियों को भी डर इसी बात का रहता है कि कोई की नज़र न लग जाए। तो ऐसी पक्की हो ना! कभी भी किसी से प्रभावित नहीं होना। यह सेवाधारी बहुत अच्छा है, यह सेवा में अच्छा साथी मददगार है, नहीं। यह तो इतना करता है, नहीं। बाप कराता है। मैं इतनी सेवा करती हूँ, नहीं। बाप मेरे द्वारा कराता है। तो न स्वयं कमज़ोर बनो और न दूसरों को कमज़ोर बनने की मार्जिन दो। इस बात में किसी की भी रिपोर्ट नहीं आनी चाहिए। पाण्डव भी बहुत चतुर होते हैं, कोई अच्छी-अच्छी चीज़ें ले आयेंगे, खाने की, पहनने की – यह भी माया है। उस समय वह माया के परवश होते हैं। लेकिन आप तो माया को परखने वाली हो ना। उस चीज को चीज नहीं समझना, वह सांप है। सांप जरूर काटेगा। जब इतनी कड़ी दृष्टि रखेंगी तब ही सेफ रह सकेंगी। नहीं तो किसी में भी माया प्रवेश होकर अपना बनाने की कोशिश बहुत करेगी। जैसे शुरू में छोटी-छोटी कुमारियों को बापदादा कहते थे इतनी मिर्ची खानी पड़ेगी, इतना पानी पीना पड़ेगा, डरना नहीं। तो माया आयेगी, बहुत बड़े रूप से आयेगी… लेकिन परखने वाले सदा विजयी होते हैं। हार नहीं खाते। तो सभी ने परखने की शक्ति धारण की है या करनी है? देखो, अभी सबका फोटो निकल गया है। पक्की रहना। कुमारियाँ अगर इस बात में शक्ति रूप बन गई तो वाह-वाह की तालियाँ बजेंगी। बापदादा भी विजय के पुष्प बरसायेंगे। अभी देखेंगे रिज़ल्ट। ऐसे अंगद के मुआफिक बनना।
समय पर समझ आ जाना, यह भी तकदीरवान की निशानी है। समय पर फल देने वाला वृक्ष मूल्यवान कहा जाता है। संसार में रखा ही क्या है। चिंता और दु:ख के सिवाय और कुछ भी नहीं है। तो पक्का सौदा करना। कोई बढ़िया आकर्षण वाली चीजें आयें, कोई आकर्षण वाले व्यक्ति सामने आयें, तो आकर्षित नहीं हो जाना। संकल्प स्वप्न में भी बीती हुई बातें याद न आयें। जैसे वह पिछले जन्म की बात हो गई। कभी सोचना भी नहीं।
पार्टियों से मुलाकात करते अमृतवेला हो गया:-
देखो, दिन को रात, रात को दिन बना दिया। यही गोप गोपिकाओं का गायन है। महारास करते-करते रात से दिन हो गया – यह आप सबका गायन है ना। सदा बाप के स्नेह में समाये हुए, स्नेही आत्मायें हो ना। जितना बच्चे स्नेही हैं, उससे पदमगुणा बाप स्नेही है। ऐसे अनुभव होता है ना। बस सेकेण्ड में सोचो और बाबा हाजिर हो जाते। अच्छा सेवाधारी है ना। सबसे क्विक सेवाधारी बाप हुआ ना। दूसरा आने में देरी लगायेगा, उठेगा, तैयार होगा, चलेगा तब पहुँचेगा। बाप तो सदा एवररेडी है। जब बुलावो, सेकेण्ड से भी कम टाइम पर पहुँच जायेगा। सभी की सेवा के लिए सदा जाहिर है। कभी तंग नहीं करते। देखो अभी भी जितना समय बैठे उतना समय स्नेह में समाये हुए बैठे या थक गये। बापदादा बच्चों को देख-देख खुश होते हैं। बाप ने ठेका उठाया है कि सभी बच्चों को राज़ी करना है तो अपना ठेका पूरा करेंगे ना। सदा हरेक बच्चा एक दो से प्रिय है। कोई अप्रिय हो नहीं सकता। बच्चे हैं, बच्चे अप्रिय कैसे हो सकते। सब एक दो से आगे हैं। सभी बच्चे राजा बच्चे हैं, प्रजा बच्चे नहीं।
आपके जड़ चित्रों के लिए भक्त जागरण करते हैं, कभी तो आप लोगों ने भी किया है तभी भक्त कॉपी करते हैं। यह जागरण डबल कमाई वाला जागरण है। वर्तमान की कमाई हुई और वर्तमान के आधार पर भविष्य भी श्रेष्ठ हुआ। तो हम कल्याणकारी आत्मायें हैं, हर बात में कल्याण समाया हुआ है, अकल्याण हो नहीं सकता क्योंकि कल्याणकारी बाप के बच्चे बन गये। चाहे बाहर से अकल्याण का काम दिखाई दे। जैसे मानो एक्सीडेंट हो गया तो नुकसान हुआ ना। लोग तो कहेंगे अकल्याण हो गया। लेकिन उस अकल्याण में भी संगमयुगी आत्माओं के लिए कल्याण भरा हुआ है। नुकसान भी सूली से कांटा हो जाता है। बड़े नुकसान से कम नुकसान हो जाता है। इसमें भी सदा कल्याण समझते हुए आगे बढ़ते चलो। ऐसी कल्याणकारी आत्मा स्वयं को समझते हुए चलो। बाप ने अपने समान बना दिया। बाप कल्याणकारी तो बच्चे भी कल्याणकारी। बच्चों को बाप अपने से भी आगे रखते हैं। डबल पूजा आपकी है, डबल राज्य आप करते हो। इतना नशा और इतनी खुशी सदा रहे – वाह रे मैं श्रेष्ठ आत्मा, वाह रे मैं पुण्य आत्मा, वाह रे मैं शिव शक्ति – इसी स्मृति में सदा रहो। अच्छा।
आप सबका घर मधुबन है। मधुबन घर से ही पास मिलेगी परमधाम घर में जाने की। साकार रीति से मधुबन घर है और निराकारी दुनिया परमधाम है। मधुबन असली घर है, जहाँ आप लोग जा रहे हो, वह सेवाकेन्द्र है। घर समझेंगे तो फंस जायेंगे। सेवाकेन्द्र समझेंगे तो न्यारे रहेंगे। जिन आत्माओं के प्रति निमित्त बनते हो उनकी सेवा के सम्बन्ध से निमित्त हो, ब्लड कनेक्शन के सम्बन्ध से नहीं। सेवा का कनेक्शन है। सदा याद और सेवा में रहो तो नष्टोमोहा सहज ही बन जायेंगे। अच्छा ।
विशेष सेवाधारी अर्थात् हर कार्य में विशेषता दिखाने वाले। सेवाधारी तो सभी हैं लेकिन विशेष सेवाधारी विशेषता दिखायेंगे। जब भी कोई सेवा करो, प्लैन बनाओ तो यही सोचो – सेवा में क्या विशेषता लाई? विशेष सेवा करने से विशेष आत्मायें प्रसिद्ध हो जाती हैं। सदा लक्ष्य रखो ऐसा कोई विशेष कार्य करें जिससे स्वत: ही विशेष आत्मा बन जाएं। बाप और परिवार के आगे आ जाएं। हमेशा कोई न कोई विशेषता दिखाने वाले। विशेषता ही न्यारा और प्यारा बनाती है ना। तो हर कार्य में विशेषता की नवीनता दिखाओ। सच्चे सेवाधारी, सर्व को अपनी शक्तियों के सहयोग से आगे बढ़ाते चलो। इसी सेवा में ही सदा तत्पर रहो। अच्छा, ओम् शान्ति।
साक्षी दृष्टा कैसे बनें?
1. पुरानी दुनिया का समाचार और सहनशीलता
Murli Note (19-05-1983, Avyakt Vani):
“बापदादा देख रहे थे कि बच्चों को पुरानी दुनिया में कितना सहन करना पड़ता है। आत्मा के लिए मौजों का समय है लेकिन शरीर से सहन भी करना पड़ता है।”
उदाहरण:
जैसे एक खिलाड़ी खेलते समय चोट भी खा लेता है, पर खेल का आनंद उसे दर्द से ऊपर उठा देता है। वैसे ही आत्मा ईश्वरीय सेवा और ज्ञान की मौज में सहन को भी सहज अनुभव करती है।
2. सेवा से मुक्त करने वाली शक्ति
जब आत्मा पुराने को नया बनाने की सेवा करती है, तो वह जन्म-जन्मान्तर के बंधन से मुक्त हो जाती है।
यह सेवा आत्मा को मास्टर सर्वशक्तिवान बना देती है।
Murli Note:
“सहन शक्ति से मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो।”
3. साक्षी दृष्टा का रहस्य – ट्रस्टी बनना
साक्षी दृष्टा बनने के लिए एक ही मंत्र है – “तेरा तू जानो।”
तन भी तेरा, मन भी तेरा।
शरीर बीमार है तो कहना – यह बाबा की अमानत है, मैं साक्षी होकर इसकी सेवा कर रही हूँ।
उदाहरण:
यदि बैंक में जमा पैसा हमारा नहीं, सिर्फ ट्रस्ट है, तो उस पर चिंता नहीं होगी। उसी प्रकार शरीर और मन को ट्रस्ट मानो, चिंता स्वतः समाप्त हो जाएगी।
4. “मेरा” और “तेरा” का फर्क
-
“मेरा” भाव → बंधन और हलचल।
-
“तेरा” भाव → सहजता और शांति।
Murli Note:
“मेरापन मिटाना ही सर्व बन्धन-मुक्त बनना है।”
उदाहरण:
यदि कहा जाए – “मेरी जिम्मेदारी है”, तो बोझ लगेगा।
पर कहा जाए – “बाबा की सेवा है, मैं निमित्त हूँ”, तो हल्का लगेगा।
5. बेहद की शुभ भावना रखना
साक्षी दृष्टा का अर्थ केवल अपने लिए डिटैच रहना नहीं, बल्कि सभी आत्माओं के लिए शुभ भावना रखना है।
रिश्तों में देह-अभिमान का भाव छोड़कर रूहानी दृष्टि रखनी है।
उदाहरण:
कमल का फूल पानी में रहते हुए भी उससे अछूता रहता है। वैसे ही आत्मा परिवार और जिम्मेदारियों में रहते हुए भी डिटैच रह सकती है।
6. भविष्य राज्य की झलक
बापदादा बताते हैं कि स्वर्ग में –
-
प्रकृति सेवाधारी होगी,
-
महलों में नौ रंगों की हीरों की लाइट होगी,
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विमान स्वतः तैयार होंगे।
इसलिए अभी साक्षी दृष्टा बनकर सेवा पूरी करो, तो सम्पन्न राज्य सामने खड़ा है।
7. विशेष सेवाधारी बनने का सूत्र
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हर कार्य में विशेषता दिखाना।
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न स्वयं को कमज़ोर समझना, न दूसरों को कमज़ोर बनाना।
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सेवा में सदा बाबा को करनहार मानना।
Murli Note:
“विशेष सेवाधारी विशेषता दिखायेंगे। विशेषता ही न्यारा और प्यारा बनाती है।”
निष्कर्ष
साक्षी दृष्टा बनने का अर्थ है –
-
तन-मन-धन सबको बाबा की अमानत समझना।
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“मेरा” शब्द को छोड़कर “तेरा” भाव अपनाना।
-
बेहद की शुभ भावना से, हल्के और खुश रहकर सेवा करना।
यही स्थिति आत्मा को न्यारी, प्यारी और मास्टर सर्वशक्तिवान बना देती है।
साक्षी दृष्टा कैसे बनें? – प्रश्न और उत्तर
Q1: साक्षी दृष्टा का क्या अर्थ है?
A1:साक्षी दृष्टा का अर्थ है – हर स्थिति में तन-मन-धन को बाबा की अमानत मानकर निश्चल और डिटैच रहना।
यह भावना आत्मा को बंधनों से मुक्त कर देती है और सेवा को सहज और हल्का बना देती है।
Q2: साक्षी दृष्टा बनने के लिए कौन सा भाव अपनाना चाहिए?
A2:“तेरा तू जानो” का भाव।
-
तन, मन, धन सब बाबा की अमानत हैं।
-
“मेरा” शब्द का उपयोग छोड़ देना चाहिए।
-
अपनेपन का भाव छोड़कर तृप्त और हल्का रहना चाहिए।
Murli Note:
“मेरापन मिटाना ही सर्व बन्धन-मुक्त बनना है।”
Q3: तन और मन को साक्षी दृष्टा कैसे बनाएँ?
A3:
-
तन: बीमार शरीर या हालात को बाबा की अमानत मानो।
-
मन: योग, बुद्धि और स्मृति का उपयोग सिर्फ सेवा में करो, स्वयं के लिए नहीं।
-
सभी कर्म बाबा के लिए करना, न कि अपने लिए।
Q4: साक्षी दृष्टा बनने से क्या लाभ होते हैं?
A4:
-
आत्मा हल्की और खुश रहती है।
-
पुराने संस्कार, कर्म और रिश्तों का बोझ अनुभव नहीं होता।
-
सेवा सहज और प्रभावशाली बनती है।
-
बेहद की शुभ भावना आत्मा में स्थायी हो जाती है।
Q5: “तेरा” और “मेरा” भाव में क्या अंतर है?
A5:
-
“मेरा” भाव: बंधन, चिंता, हलचल और बोझ लाता है।
-
“तेरा” भाव: सहजता, शांति और हल्कापन देता है।
-
सेवा में “तेरा तू जानो” भाव अपनाने से हर कर्म हल्का और प्रभावशाली बनता है।
Q6: बेहद की शुभ भावना क्यों महत्वपूर्ण है?
A6:
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बेहद की शुभ भावना रखने से आत्मा सभी के प्रति प्रेम और सम्मानपूर्ण रहती है।
-
परिवार और कार्यक्षेत्र में रहते हुए भी डिटैच और हल्की बनी रहती है।
-
यह दृष्टि आत्मा को विशेष सेवाधारी बनने में मदद करती है।
Q7: सेवा में विशेषता कैसे लाएँ?
A7:
-
हर कार्य में नई और उत्कृष्ट विशेषता दिखाएँ।
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सेवा के दौरान स्वयं को न कमजोर समझें, न दूसरों को कमजोर बनाने दें।
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सेवा में कोई कार्य करते समय यह सोचें कि इससे विशेष आत्मा बने।
Murli Note:
“विशेष सेवाधारी विशेषता दिखायेंगे। विशेषता ही न्यारा और प्यारा बनाती है।”
Q8: साक्षी दृष्टा बनकर भविष्य के राज्य की तैयारी कैसे होती है?
A8:
-
साक्षी दृष्टा बनकर सेवा और स्मृति में लगे रहने से आत्मा हल्की और शक्तिशाली बनती है।
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यह स्थिति परमधाम में सर्वोच्च सुख और सम्पूर्ण राज्य का अनुभव प्राप्त करने में सहायक होती है।
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जैसे स्वर्ग में प्रकृति और महलों की सर्वोत्तम व्यवस्था होगी, वैसी तैयारी वर्तमान सेवा और साक्षी दृष्टा भाव से होती है।
Disclaimer
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इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागरूकता, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन-शैली को श्रेष्ठ बनाना है।
यह किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या परंपरा की आलोचना करने के लिए नहीं है।
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