(38)The need to understand the knowledge of Gita properly – 02

(38)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने कीआवश्यकता – 02

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“गीता का भगवान कौन? श्रीकृष्ण या शिव? | श्रीमद्भगवद्गीता के गूढ़ रहस्य | 


 श्रीमद्भगवद्गीता का सच्चा ज्ञानदाता – श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव


भूमिका: गीता – केवल ग्रंथ नहीं, परमात्मा की वाणी

श्रीमद्भगवद्गीता को सर्वशास्त्रमयी, शास्त्रराज, और भगवान की वाणी कहा गया है।
परंतु इसमें कई गूढ़ रहस्य हैं जो सामान्य व्याख्याओं से स्पष्ट नहीं होते।

 इन रहस्यों का समाधान हमें मिलता है परमात्मा शिव की मुरली में — जो संगमयुग पर स्वयं परमपिता द्वारा बोली जाती है।


 प्रश्न: गीता का भगवान कौन — श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?

 अधिकतर लोग मानते हैं कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया।
परंतु गहराई से सोचें — क्या श्रीकृष्ण, एक आत्मा, किसी दूसरी आत्मा से योग लगवा सकता है?

उत्तर है — नहीं।
क्योंकि आत्मा का सच्चा योग केवल परमात्मा से ही हो सकता है।


 मुरली साक्ष्य: 18 जनवरी 2025

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”

 इसका अर्थ साफ है —
श्रीकृष्ण सतयुग का प्रथम देवता है,
परमात्मा शिव संगमयुग में ब्रह्मा द्वारा अर्जुन समान आत्माओं को ज्ञान देते हैं।


 अध्याय 1: अर्जुनविषादयोग – आत्मा की पहली स्थिति

इति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु… अर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः॥

भावार्थ:
यह अध्याय आत्मा की मोह-ग्रस्त, संघर्षरत स्थिति को दर्शाता है —
जहाँ अर्जुन कहता है, “मैं युद्ध नहीं करूँगा”

 यही आज की आत्मा की दशा है —
रिश्तों में मोह, निर्णय में भ्रम, धर्म-संकट।

मुरली 27 जून 2025

“बच्चे, आज हर आत्मा अर्जुन समान युद्धभूमि में खड़ी है —
एक तरफ मोह, दूसरी ओर आत्म कल्याण।”

 युद्ध स्थूल नहीं, आत्मिक है — विकारों से, अधर्म से।


 अध्याय 2: सांख्य योग – आत्मज्ञान की शुरुआत

…सांख्ययोगो नाम द्वितीयोऽध्यायः॥

भावार्थ:
परमात्मा आत्मा को बताता है:

  • “आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है” — श्लोक 2.20

  • आत्मा अविनाशी है, परिवर्तनशील शरीर धारण करती है।

 यह आत्मा की जागरूकता की पहली सीढ़ी है।

 मुरली 5 जुलाई 2025

“तुम आत्माएं अमर हो। मैं तुम्हें तुम्हारा स्वरूप याद दिलाता हूँ।
आत्म-ज्ञान से ही पाप विनाश होते हैं।”


 निष्काम कर्म, विकारों का युद्ध, और सच्चा योग

  • आत्मा का स्वधर्म है: शांति, पवित्रता और प्रेम।

  • सच्चा योग: परमात्मा की याद में कर्म करना।

  • विकार: काम, क्रोध, लोभ — यही असली शत्रु हैं।

प्रश्न 1: गीता का भगवान कौन — श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?

उत्तर:साधारण रूप से अधिकतर लोग मानते हैं कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने दिया।
लेकिन गीता में खुद कहा गया है —

“हे अर्जुन, अपने मन का योग मुझसे जोड़।”

 क्या श्रीकृष्ण, एक देही आत्मा, किसी आत्मा को स्वयं से योग लगवा सकता है?
नहीं। आत्मा का सच्चा योग केवल निर्देही परमात्मा से ही हो सकता है।


Murli प्रमाण: 18 जनवरी 2025

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”

इसका अर्थ:

  • श्रीकृष्ण सतयुग का पहला राजकुमार है।

  • गूढ़ ज्ञान संगमयुग में, ब्रह्मा द्वारा, परमात्मा शिव ही देते हैं।


प्रश्न 2: गीता का युद्ध कौन सा है – स्थूल महाभारत या आत्मिक युद्ध?

उत्तर:प्रथम अध्याय – अर्जुन विषाद योग में अर्जुन कहता है:

“मैं युद्ध नहीं करूँगा।”

 यह युद्ध बाहरी नहीं, अंदर का द्वंद्व है – मोह बनाम धर्म।
आज की आत्मा भी धर्म संकट और मोह के बीच खड़ी है।


Murli प्रमाण: 27 जून 2025

“बच्चे, आज हर आत्मा अर्जुन समान युद्धभूमि में खड़ी है —
एक तरफ मोह, दूसरी ओर आत्म कल्याण।”

अर्थ:
यह युद्ध विकारों से है — न कि तलवारों से।


प्रश्न 3: गीता का “सांख्य योग” क्या सिखाता है?

उत्तर:द्वितीय अध्याय – सांख्य योग आत्मा को उसकी सच्चाई बताता है:

श्लोक 2.20:

“न जायते म्रियते वा कदाचिन्…”
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।

 यह आत्मा की पहचान और जागृति की शुरुआत है।


Murli प्रमाण: 5 जुलाई 2025

“तुम आत्माएं अमर हो। मैं तुम्हें तुम्हारा स्वरूप याद दिलाता हूँ।
आत्म-ज्ञान से ही पाप विनाश होते हैं।”

 यह वही “सांख्य योग” है — जिसमें आत्मा को उसकी अमरता और निष्काम कर्म सिखाया जाता है।


प्रश्न 4: निष्काम कर्म क्या है? क्या यह आसान है?

उत्तर:निष्काम कर्म का अर्थ है —

फल की आसक्ति के बिना परमात्मा की याद में कर्म करना।

यह तभी संभव है जब आत्मा को परमात्मा की शक्ति मिले —
 और यह शक्ति आती है सहज राजयोग से।

अस्वीकरण | Disclaimer:
इस वीडियो में व्यक्त विचार और व्याख्याएं ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक शिक्षाओं एवं मुरली में दिए गए ज्ञान पर आधारित हैं। यह किसी व्यक्ति, धर्म या ग्रंथ का विरोध नहीं करता। हमारा उद्देश्य केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गीता के गूढ़ रहस्यों को स्पष्ट करना है। कृपया इसे खुले ह्रदय और निष्पक्ष विवेक के साथ सुनें।

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