(40)The need to understand the knowledge of the Gita correctly – 04

(40)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने कीआवश्यकता – 04

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“गीता का भगवान कौन है? श्रीकृष्ण नहीं, कोई और! | अध्याय 4: ज्ञान-कर्म-संन्यास योग | 


गीता का भगवान कौन है?
आज हम “श्रीमद्भगवद्गीता” के गूढ़ रहस्यों की चर्चा में 40वें विषय तक पहुँच चुके हैं।
और आज हम गीता के चतुर्थ अध्याय – ज्ञान-कर्म-संन्यास योग पर गहराई से विचार करेंगे।


 गीता: केवल एक संवाद नहीं

क्या गीता सिर्फ अर्जुन और श्रीकृष्ण का युद्ध-पूर्व संवाद है?
नहीं। गीता केवल ऐतिहासिक कथा नहीं है,
बल्कि यह परमात्मा द्वारा पुनः प्रकट किया गया आध्यात्मिक उद्घोष है।

ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर परमात्मा शिव ने आत्माओं को जो ज्ञान दिया,
वही आज मुरली के रूप में सुनाया जाता है।


 मुरली = आकाशवाणी = गीता का पुनरुद्धार

मुख वाणी को मुरली क्यों कहा गया?

बाबा कहते हैं –
“मैं स्वयं निराकार हूं। मेरा मुख नहीं है।
मैं इस वायु को जलाकर मुख वाणी बोलता हूं — यही है आकाशवाणी
और यह मुरली मेरे बच्चों को नया जीवन देती है।”


 मुरली महावाक्य – 18 जनवरी 2025

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूं।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूं और आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूं।”

यह वाणी स्वयं प्रमाण है कि गीता के मूल ज्ञानदाता श्रीकृष्ण नहीं,
बल्कि परमात्मा शिव हैं।


 चतुर्थ अध्याय – ज्ञान कर्म सन्यास योग

संस्कृत श्लोक:
“ज्ञानकर्मसन्यासयोगः नाम चतुर्थोऽध्यायः।”

इस अध्याय में भगवान ज्ञानयुक्त कर्म का महत्व बताते हैं —
कैसे आत्मा, सही ज्ञान के साथ कर्म करे तो मुक्त हो सकती है।


 मुरली व्याख्या – निष्काम कर्म क्या है?

बाबा मुरली में समझाते हैं:

“बच्चे, कर्म करते जाओ लेकिन बुद्धियोग बाप से जुड़ा हो।”

यही है —
कर्म करते हुए योगयुक्त रहना।

कर्म हाथ दे, दिल यार दे।
अर्थात — हाथों से कर्म करो,
पर बुद्धि सदा शिव बाबा से जुड़ी हो।
यही है सच्चा कर्म योग


 गीता में श्रीकृष्ण: एक प्रतीक

गीता में जो ‘श्रीकृष्ण’ दर्शाया गया है —
वह वास्तव में निराकार परमात्मा शिव का प्रतीक है।
परमात्मा शिव ही सभी आत्माओं के पिता हैं,
जो स्वयं आकर सिखाते हैं — सहज राजयोग


गीता का भगवान कौन है?

गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं,
बल्कि स्वयं परमपिता परमात्मा शिव हैं।

उन्होंने यह ज्ञान ब्रह्मा के मुख द्वारा दिया,
जो आज की मुरली में बार-बार दोहराया जाता है।

प्रश्न 1: क्या गीता केवल अर्जुन और श्रीकृष्ण का संवाद है?

उत्तर:नहीं। गीता केवल युद्धभूमि पर अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच हुआ एक ऐतिहासिक संवाद नहीं है।
यह एक आध्यात्मिक उद्घोषणा है, जो परमात्मा शिव ने ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर आत्माओं को दिया।
आज उसी ज्ञान को हम ब्रह्मा मुख वाणी मुरली के रूप में सुनते हैं।


प्रश्न 2: गीता का भगवान कौन है — श्रीकृष्ण या कोई और?

उत्तर:श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञानदाता श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि स्वयं परमपिता परमात्मा शिव हैं।
18 जनवरी 2025 की मुरली में बाबा स्पष्ट कहते हैं —
“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूं।”
श्रीकृष्ण एक देवता हैं, परंतु परम ज्ञान देने वाला शिव है — जो निराकार है।


प्रश्न 3: मुरली को ‘आकाशवाणी’ क्यों कहा गया है?

उत्तर:बाबा कहते हैं —
“मैं निराकार हूं। मेरा अपना मुख नहीं है।
मैं इस वायु तत्त्व को जलाकर तुम्हारे मुख से वाणी निकालता हूं।”

इसलिए यह वाणी मुरली कहलाती है, और यही है आकाशवाणी
जिसमें परमात्मा स्वयं ब्रह्मा के मुख द्वारा बोलते हैं।


प्रश्न 4: गीता के चतुर्थ अध्याय ‘ज्ञान-कर्म-संन्यास योग’ में क्या मुख्य बात बताई गई है?

उत्तर:यह अध्याय बताता है कि ज्ञानयुक्त कर्म कैसे आत्मा को मुक्त करता है।
यहाँ तीन योगों का संगम है:
ज्ञान
कर्म
संन्यास (त्याग)

परमात्मा ज्ञान देता है जिससे आत्मा निष्काम कर्म करना सीखती है —
यानी फल की इच्छा के बिना कर्म करना।


प्रश्न 5: निष्काम कर्म का मुरली में क्या अर्थ बताया गया है?

उत्तर:मुरली में बाबा समझाते हैं —
“बच्चे, कर्म करते जाओ लेकिन बुद्धियोग बाप से जुड़ा हो।”
यही है कर्म करते हुए योगयुक्त रहना
कर्म हाथ दे, दिल यार दे।
हाथों से सेवा करो, परंतु बुद्धि सदा शिव बाबा से जुड़ी हो।


प्रश्न 6: गीता में ‘श्रीकृष्ण’ का क्या अर्थ है?

उत्तर:गीता में श्रीकृष्ण का नाम प्रतीक रूप में रखा गया है।
वास्तव में वह निराकार परमात्मा शिव का ही प्रतिनिधित्व करता है।
परमात्मा शिव ही सभी आत्माओं के पिता हैं, जो आकर सहज राजयोग सिखाते हैं।


प्रश्न 7: अगर श्रीकृष्ण नहीं, तो फिर गीता किसने सुनाई?

उत्तर:परमपिता शिव ने यह ज्ञान ब्रह्मा के मुख द्वारा सुनाया है।
वह गीता ज्ञानदाता हैं —
जो आज के संगम युग में मुरली के रूप में दोबारा प्रकट हुआ है।

अस्वीकरण:
यह वीडियो “श्रीमद्भगवद्गीता” की आध्यात्मिक व्याख्या ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शिक्षाओं पर आधारित है।
इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, महापुरुष, या आस्था का विरोध करना नहीं है।
यह ज्ञान श्रोताओं को आत्मिक पहचान, सत्य परमात्मा की समझ, और सहज राजयोग की विधि समझाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
सभी विचार BK मुरली और आध्यात्मिक अनुभवों पर आधारित हैं।
दर्शकों से निवेदन है कि वे इसे एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें।

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