(43)The Three Rights of Happiness, Peace and Purity

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अव्यक्त मुरली-(43)01-12-1983 सुख, शान्ति और पवित्रता के तीन अधिकार

01-12-1983 “सुख, शान्ति और पवित्रता के तीन अधिकार”

आज बापदादा अति स्नेही और सिकीलधे बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा अति स्नेह से मिलन मनाने अपने घर में पहुँच गये हैं। इसी भूमि को कहा जाता है अपना घर, दाता का दर। यह महिमा इसी स्वीट होम की है। स्वीट होम में स्वीट बच्चों से स्वीटेस्ट बाप मिलन मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे के मस्तक पर आज विशेष अधिकार की तीन लकीरें देख रहे हैं। हर एक के मस्तक पर तीन लकीरें तो लगी हुई हैं, क्योंकि बच्चे तो सभी हैं। बच्चे होने के नाते अधिकारी तो सभी हैं, लेकिन नम्बरवार हैं। किसी बच्चे की तकदीर, सुख के अधिकार की लकीर बहुत स्पष्ट और गहरी है। कितनी भी परिस्थितियां आवें, दु:ख के लहर की उत्पत्ति दिलाने वाली लहर हो लेकिन दु:ख शब्द की अविद्या वाले हों। दु:ख की परिस्थिति को अपने सुख के सागर से प्राप्त हुए अधिकार द्वारा दु:ख की परिस्थितियों में भी “वाह मीठा ड्रामा, वाह हरेक पार्टधारी का पार्ट” – इस नॉलेज की रोशनी द्वारा, अधिकार की खुशी द्वारा दु:ख को सुख में परिवर्तन कर देता। अधिकार से दु:ख के अंधकार को परिवर्तन कर, मास्टर सुखदाता बन स्वयं तो सुख के झूले में झूलते ही हैं लेकिन औरों को भी सुख के वायब्रेशन देने के निमित्त बनते हैं। ऐसे सुख के अधिकार की लकीर स्पष्ट और गहरी है, जिसको कोई मिटा न सके। मिटाने वाले बदल जाएं लेकिन वह नहीं। मास्टर सुख दाता से सुख की अंचली ले लें। ऐसे लकीर वाले भी देखे। इसको कहा जाता है नम्बरवन तकदीरवान। सुनाया था “वन की निशानी है विन”।

दूसरी लकीर शान्ति। आप सब शान्ति को स्वधर्म मानते हो ना! यह सभी को बताते हो ना। धर्म के लिए क्या गाया हुआ है? “धरत परिये धर्म न छोड़िये।” सिर जावे लेकिन धर्म न जाये। तो सुख-शान्ति के वर्से के अधिकारी कभी शान्ति को छोड़ नहीं सकते। ऐसे अशान्त को शान्त बनाने वाले, सदा शान्ति की किरणें स्वयं द्वारा औरों को देने वाले, कुछ भी हो जाए लेकिन शान्ति का धर्म, शान्ति का अधिकार छोड़ नहीं सकते। इसको कहते दूसरे अधिकार की लकीर में नम्बरवन। तीसरी है – प्युरिटी के अधिकार की लकीर। पवित्र आत्मायें तो सभी बच्चे हैं। फिर भी नम्बरवन अधिकार के तकदीरवान बच्चा कौन है! जिसकी चलन से, चेहरे से प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी अनुभव हो। लौकिक जीवन में लौकिकता वाली पर्सनैलिटी रॉयल्टी दिखाई देती है, लेकिन अधिकार के तकदीरवान बच्चों में प्युरिटी की अलौकिक पर्सनैलिटी और रॉयल्टी दिखाई देगी। इसको कहा जाता है नम्बरवन पवित्रता के तकदीर की लकीर।

आज सर्व बच्चों के इस अधिकार की लकीरों को देख रहे थे। आप सब भी अपनी तीनों लकीरों को देख रहे हो ना। चेक करो तीनों अधिकार प्राप्त कर लिया है। पूरा अधिकार लिया है वा परसेन्टेज में लिया है? अगर संगम पर भी परसेन्टेज में रहे तो सारा कल्प परसेन्टेज में ही रह जायेंगे। पूज्य पद में भी परसेन्टेज होगी, फुल पूजा नहीं होगी और प्रालब्ध में भी परसेन्टेज रह जायेगी। अच्छा।

आज मैजारिटी नये सो पुराने बच्चे आये हैं। नये बच्चे कहो वा कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चे कहो, अपना अधिकार लेने के लिए फिर से अपने स्थान पर पहुँच गये। सबसे ज्यादा खुशी किसको है! हर एक समझेंगे मेरे को है। ऐसे समझते हो वा किसको कम किसको ज्यादा है! अधिकारी बच्चों को विशेष मिलन का अधिकार देने के लिए बापदादा को भी आना ही पड़ता है।

बाप को बच्चों से स्नेह ज्यादा है वा बच्चों को बाप से स्नेह ज्यादा है? अटूट स्नेह किसका है? बापदादा तो बच्चों को अपने से आगे रखते। पहले बच्चे। अगर बच्चे याद वा प्यार नहीं करते तो बाप रेसपाण्ड किनको देते। इसलिए आगे बच्चे पीछे बाप। सदैव बच्चों को आगे चलाना होता, बाप पीछे चलता है। इसलिए बापदादा भी ऐसे बच्चों को देख-देख हर्षित होते हैं। ऐसे बच्चे भी हैं जो अटूट स्नेह प्यार में समाए हुए हैं। ऐसे बच्चों की भी माला है। चाहे देश में चाहे विदेश में दोनों तरफ ऐसे बच्चे हैं जिन्हों को सिवाए बाप और सेवा के और कोई बात याद नहीं।

जगदीश भाई से:- आपने ऐसे बच्चे देखे ना! अच्छा चक्कर लगाया ना। साकार बाप का दिया हुआ विशेष वरदान साकार में लाया। सफलता का जन्म-सिद्ध अधिकार अनुभव किया ना। सर्व सफलता में विशेष सफलता की निशानी कौन सी है? श्रेष्ठ सफलता है कि बापदादा दिखाई दे। आप में बाप दिखाई दे, यह है श्रेष्ठ सफलता। यही प्रत्यक्षता का साधन है। जो भी चक्कर पर निकले विशेष बाप समान अनुभूति कराना, यही सफलता की निशानी है। और आगे चलकर भी ज्यादा से ज्यादा यही आवाज चारों ओर फैलता जायेगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही। करावनहार करा लेता है। अच्छा।

ऐसे सदा सम्पूर्ण तकदीरवान, सम्पन्न अधिकार को पाने वाले अधिकारी, सदा बाप और आप के कम्बाइण्ड रूप में रहने वाले, स्नेह के सागर में सदा समाये हुए लकी और लवली बच्चों को, भाग्य विधाता, वरदाता का यादप्यार और नमस्ते।

(जगदीश भाई ने विदेश यात्रा का समाचार बापदादा को बताया और नाम सहित सभी भाई-बहनों की याद दी)

सभी के स्नेह का समाचार बापदादा के पास पहुँचता ही रहता है और अभी भी पहुँचा। बापदादा सर्व विदेश के चारों ओर रहने वाले बच्चों को विशेष एक बात की मुबारक भी देते हैं। किस बात की? संस्कार, भाषा, रहन-सहन सबका परिवर्तन करने में मैजारिटी बहुत तीव्र पुरुषार्थी निकले हैं। जैसे कोई नई दुनिया में आ जाए। ऐसे नई रीति रसम, नया सम्बन्ध फिर भी अपने को सदा कल्प पहले वाले पुराने अधिकारी आत्माएं समझते चल रहे हैं। इसलिए स्वयं को परिवर्तन करने की विशेषता पर विशेष मुबारक। बापदादा को कितना प्यार से याद करते, वह बापदादा के पास सदा ही पहुँचता है। स्वयं को भूल बाप को ही सदा हर बात में याद करते, यह परिवर्तन विशेष है। और इसी प्यार के आधार पर चल रहे हैं। यही प्यार पालना कर रहा है। सूक्ष्म प्यार की पालना ही आगे बढ़ा रही है। अच्छा।

सभी को जिन्होंने भी यादप्यार दिया है, उन्हों को प्यार के सागर बाप का सदा प्यार की झोली भर-भरकर यादप्यार। भारतवासी बच्चे भी कम नहीं है, भारत का भाग्य तो विदेश वाले गा-गाकर खुश होते हैं। भारत वाले जगे तब विदेश को जगाया। जागने वाले तो भारत के हैं। अगर विदेश में भी यह सब नहीं होते तो इतने विदेश के सेन्टर भी कैसे होते। इसी के निमित्त चारों ओर, सब तरफ फैले हुए हैं। सेन्टर खोलते भी कितने में हैं। पैदा हुए थोड़ा सा बड़े हुए, सेन्टर खोला। वह भी अपने पांव पर खड़े होकर, किसी पर आधार नहीं। निमन्‍त्रण मिले, यह आधार नहीं। स्थूल, सूक्ष्म दोनों लगाकर हिम्मत रख सेन्टर खोल देते हैं। बाकी उन्हों की पालना करना, यह तो आप लोगों की जिम्मेवारी है। हिम्मत में पीछे नहीं हैं। मदद देना, यह बाप के साथ-साथ आपका भी कार्य है।

ज्ञान की गहराई को सुनकर खुश हो गये। योग और प्यार के आधार पर चल रहे हैं, लेकिन अभी ज्ञान की गहराई को जाना, यह और भी इन्हों को सेवा के निमित्त बनायेगी। माइन्ड तैयार हो जाए उसके लिए ज्ञान की गहराई चाहिए। ज्ञान और बाप यह दोनों की महसूसता दिलाना, यह रिजल्ट अच्छी है। कोई भी जाता है तो कितने खुश होते हैं, जैसे कोई आकाश से सितारा नीचे आ जाए, ऐसी अनुभूति करते हैं। अच्छा।

दादी जी और जानकी दादी से:- दोनों में तीसरी मूर्त (दीदी) समाई हुई है। बाप समान हैं ही। बनना है, नहीं। हैं ही, ऐसे अनुभव होता है! जैसे बाप ब्रह्मा का आधार ले सेवा करते हैं वैसे आप भी बाप के माध्यम हो। वर्तमान समय बाप माध्यम द्वारा करावनहार अपना कार्य करा रहे हैं। विशेष माध्यम हो। ब्रह्मा के आकार द्वारा और आपके साकार द्वारा कार्य करा रहे हैं। बहुत-बहुत पदम से भी ज्यादा बापदादा हर सेकेण्ड याद और प्यार करते हैं। श्रृंगार हो। विशेष बाप का और मधुबन का श्रृंगार हो। बापदादा हर समय देख-देख हर्षित होते हैं। अच्छा।

अध्याय: सुख, शांति और पवित्रता के तीन अधिकार

परिचय

आज बापदादा अति स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। हर बच्चा अपने घर, अपने दाता के दर में पहुँचकर मिलन करता है। यही भूमि कहा जाता है स्वीट होम, जहाँ बच्चे और बापदादा अपनी विशेष स्नेहपूर्ण अनुभूति साझा करते हैं।

उदाहरण: जैसे स्वीट बच्चों से मिलकर बाप की आत्मा खुशी से झूमती है, वैसे ही हर बच्चे का मस्तक अपने विशेष अधिकारों की तीन लकीरों से प्रकाशित होता है।


1. सुख का अधिकार

सुख का अधिकार हर बच्चे के मस्तक पर स्पष्ट लकीर के रूप में दिखाई देता है।

  • यह अधिकार किसी भी दु:ख की परिस्थिति में भी सुख की अनुभूति प्रदान करता है।

  • बापदादा कहते हैं, दुख की परिस्थिति में भी अधिकार की खुशी के माध्यम से बच्चे “वाह मीठा ड्रामा, वाह पार्टधारी का पार्ट” अनुभव करते हैं।

मुरली नोट्स:

  • अव्यक्त मुरली – “सुख के अधिकार की लकीर स्पष्ट और गहरी होनी चाहिए, जिसे कोई मिटा न सके।”

उदाहरण:
जैसे सूर्य की किरणें अंधकार मिटा देती हैं, वैसे ही सुख के अधिकार की लकीर बच्चों को दुख में भी आनंद प्रदान करती है।


2. शांति का अधिकार

शांति का अधिकार बच्चों को उनके स्वधर्म में अडिग रखता है।

  • धर्म और शांति के लिए समर्पित बच्चे, अशांति को दूर करने और दूसरों में शांति फैलाने का कार्य करते हैं।

  • बापदादा कहते हैं, “धरत परिये धर्म न छोड़िये। सिर जावे लेकिन धर्म न जाये।”

मुरली नोट्स:

  • शांति के अधिकार की लकीर वाले बच्चे, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, शांति का धर्म कभी नहीं छोड़ते।

उदाहरण:
जैसे शांत पानी में प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है, वैसे ही शांति का अधिकार बच्चे को मानसिक स्थिरता और दूसरों को शांति देने की क्षमता प्रदान करता है।


3. पवित्रता का अधिकार

पवित्रता का अधिकार बच्चों की आत्मिक शुद्धता और रॉयल्टी को दर्शाता है।

  • यह अधिकार बच्चों के व्यवहार, चेहरे और चलन में स्पष्ट दिखाई देता है।

  • नम्बरवन अधिकार के तकदीरवान बच्चे अलौकिक पवित्रता का अनुभव देते हैं।

मुरली नोट्स:

  • अव्यक्त और साकार अनुभवों में, पवित्रता का अधिकार बच्चों को विशेष माध्यम और सेवा के पात्र बनाता है।

उदाहरण:
जैसे सूर्य और दीपक अपने प्रकाश से वातावरण को रोशन करते हैं, वैसे ही पवित्रता का अधिकार बच्चों को सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रभाव फैलाने में सक्षम बनाता है।


4. बच्चों और बापदादा के बीच स्नेह

  • बापदादा का स्नेह अटूट और अनमोल है।

  • बच्चों को बापदादा से स्नेह प्राप्त होता है, और यह स्नेह सेवा और अधिकार को स्थिर बनाता है।

  • विदेश और भारत दोनों में बच्चों की सेवा और अधिकार का पालन करना बापदादा के लिए खुशी का कारण है।

उदाहरण:
जैसे आकाश से सितारा नीचे गिरता है और सभी को उसकी रोशनी दिखती है, वैसे ही बच्चों का याद-प्यार बापदादा तक पहुँचता है और उन्हें हर्षित करता है।


5. निष्कर्ष

  • तीनों अधिकार – सुख, शांति और पवित्रता – बच्चे को पूर्ण अधिकार और विशेष तकदीरवान बनाते हैं।

  • बापदादा से जुड़कर और ज्ञान की गहराई को अपनाकर, बच्चे विशेष माध्यम, सेवा और अधिकार के पात्र बनते हैं।

  • यह अधिकार बच्चों को आनंद, स्थिरता और पवित्रता प्रदान करता है।

  • अध्याय: सुख, शांति और पवित्रता के तीन अधिकार

    1. प्रश्न: सुख का अधिकार क्या है?
    उत्तर: सुख का अधिकार हर बच्चे के मस्तक पर स्पष्ट लकीर के रूप में दिखाई देता है। यह अधिकार किसी भी दु:ख की परिस्थिति में भी सुख की अनुभूति प्रदान करता है।
    मुरली उद्धरण: अव्यक्त मुरली – “सुख के अधिकार की लकीर स्पष्ट और गहरी होनी चाहिए, जिसे कोई मिटा न सके।”
    उदाहरण: जैसे सूर्य की किरणें अंधकार मिटा देती हैं, वैसे ही सुख के अधिकार की लकीर बच्चों को दुख में भी आनंद प्रदान करती है।


    2. प्रश्न: शांति का अधिकार क्या है और यह बच्चों को कैसे लाभ देता है?
    उत्तर: शांति का अधिकार बच्चों को उनके स्वधर्म में अडिग रखता है। यह अधिकार उन्हें मानसिक स्थिरता देता है और अशांति को दूर कर दूसरों में शांति फैलाने की क्षमता प्रदान करता है।
    मुरली उद्धरण: शांति के अधिकार की लकीर वाले बच्चे, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, शांति का धर्म कभी नहीं छोड़ते।
    उदाहरण: जैसे शांत पानी में प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है, वैसे ही शांति का अधिकार बच्चे को स्थिरता और दूसरों को शांति देने की शक्ति देता है।


    3. प्रश्न: पवित्रता का अधिकार क्या दर्शाता है?
    उत्तर: पवित्रता का अधिकार बच्चों की आत्मिक शुद्धता और रॉयल्टी को दर्शाता है। यह उनके व्यवहार, चेहरे और चलन में स्पष्ट दिखाई देता है और उन्हें विशेष माध्यम तथा सेवा के पात्र बनाता है।
    मुरली उद्धरण: अव्यक्त और साकार अनुभवों में, पवित्रता का अधिकार बच्चों को विशेष माध्यम और सेवा के पात्र बनाता है।
    उदाहरण: जैसे सूर्य और दीपक अपने प्रकाश से वातावरण को रोशन करते हैं, वैसे ही पवित्रता का अधिकार बच्चों को सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रभाव फैलाने में सक्षम बनाता है।


    4. प्रश्न: बच्चों और बापदादा के बीच स्नेह का क्या महत्व है?
    उत्तर: बापदादा का स्नेह अटूट और अनमोल है। बच्चों को बापदादा से स्नेह प्राप्त होता है, और यह स्नेह सेवा और अधिकार को स्थिर बनाता है। यह स्नेह बच्चों की सेवा और अधिकार के पालन को सुखद और उत्साहजनक बनाता है।
    उदाहरण: जैसे आकाश से सितारा नीचे गिरता है और सभी को उसकी रोशनी दिखती है, वैसे ही बच्चों का याद-प्यार बापदादा तक पहुँचता है और उन्हें हर्षित करता है।


    5. प्रश्न: तीनों अधिकारों – सुख, शांति और पवित्रता – का निष्कर्ष क्या है?
    उत्तर: तीनों अधिकार बच्चों को पूर्ण अधिकार और विशेष तकदीरवान बनाते हैं। बापदादा से जुड़कर और ज्ञान की गहराई अपनाकर बच्चे विशेष माध्यम, सेवा और अधिकार के पात्र बनते हैं। ये अधिकार बच्चों को आनंद, स्थिरता और पवित्रता प्रदान करते हैं।
    उदाहरण: तीनों अधिकार बच्चों के मस्तक को प्रकाशित करके उन्हें आध्यात्मिक शक्ति, खुशी और सेवा के लिए सक्षम बनाते हैं।

  • डिस्क्लेमर:

यह वीडियो ब्रह्माकुमारी बापदादा के संदेशों पर आधारित है। यहां दी गई जानकारी आध्यात्मिक अध्ययन और प्रेरणा के लिए है। इसे व्यक्तिगत सलाह, चिकित्सा या वित्तीय मार्गदर्शन के रूप में न लें।

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