अव्यक्त मुरली-(25)19-04-1983 /संगम युग का प्रभु फल खाने से सर्व प्राप्ति।
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अव्यक्त मुरली-25
संगमयुग का प्रभु फल खाने से सर्व प्राप्तियाँ
रिवाइज: 19-04-1983
आज बापदादा अपने सर्व स्नेही बच्चों को स्नेह का रिटर्न देने, मिलन मनाने, स्नेह का प्रत्यक्षफल, स्नेह की भावना का श्रेष्ठ फल देने के लिए बच्चों के संगठन में आये हैं। भक्ति में भी स्नेह और भावना भक्त-आत्मा के रूप में रही। तो भक्त रूप में भक्ति थी लेकिन शक्ति नहीं थी। स्नेह था लेकिन पहचान वा सम्बन्ध श्रेष्ठ नहीं था। भावना थी लेकिन अल्पकाल की कामना भरी भावना थी। अभी भी स्नेह और भावना है लेकिन समीप सम्बन्ध के आधार पर स्नेह है। अधिकारीपन के शक्ति की, अनुभव के अथॉरिटी की श्रेष्ठ भावना है। भिखारीपन की भावना बदल, सम्बन्ध बदल अधिकारीपन का निश्चय और नशा चढ़ गया। ऐसी सदा श्रेष्ठ आत्माओं को प्रत्यक्षफल प्राप्त हुआ है। सभी प्रत्यक्षफल के अनुभवी आत्मायें हो? प्रत्यक्षफल खाकर देखा है? और फल तो सतयुग में भी मिलेंगे और अब कलियुग के भी बहुत फल खाये। लेकिन संगमयुग का प्रभु फल, ‘प्रत्यक्ष फल‘ अगर अब नहीं खाया तो सारे कल्प में नहीं खा सकते। बापदादा सभी बच्चों से पूछते हैं – प्रभु फल, अविनाशी फल, सर्व शक्तियां, सर्वगुण, सर्व सम्बन्ध के स्नेह के रस वाला फल खाया है? सभी ने खाया है या कोई रह गया है? यह ईश्वरीय जादू का फल है। जिस फल खाने से लोहे से पारस से भी ज्यादा हीरा बन जाते हो। इस फल से जो संकल्प करो वह प्राप्त कर सकते हो। अविनाशी फल, अविनाशी प्राप्ति। ऐसे प्रत्यक्ष फल खाने वाले सदा ही माया के रोग से तन्दरूस्त रहते हैं। दु:ख, अशान्ति से, सर्व विघ्नों से सदा दूर रहने का अमर फल मिल गया है! बाप का बनना और ऐसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होना।
आज बापदादा आये हुए विशेष पाण्डव सेना को देख हर्षित तो हो ही रहे हैं। साथ-साथ ब्रह्मा बाप के हमजिन्स से सदा पार्टी की जाती, पिकनिक मनाई जाती। तो आज इस प्रभु फल की पिकनिक मना रहे हैं। लक्ष्मी-नारायण भी ऐसी पिकनिक नहीं करेंगे। ब्रह्मा बाप और ब्राह्मणों की यह अलौकिक पिकनिक है। ब्रह्मा बाप हमजिन्स को देख हर्षित होते हैं। लेकिन हमजिन्स ही बनना। हर कदम में फालो फादर करने वाले समान साथी अर्थात् हमजिन्स। ऐसे हमजिन्स हो ना वा अभी सोच रहे हो क्या करें, कैसे करें। सोचने वाले हो वा समान बनने वाले हो? सेकण्ड में सौदा करने वाले हो वा अभी भी सोचने का समय चाहिए? सौदा करके आये हो वा सौदा करने आये हो? परमीशन किसको मिली है, सभी ने फार्म भरे थे? वा छोटी-छोटी ब्राह्मणियों को बातें बताके पहुँच गये हो? ऐसे बहुत मीठी-मीठी बातें बताते हैं। बापदादा के पास सभी के मन के सफाई की और चतुराई की दोनों बातें पहुँचती हैं। नियम प्रमाण सौदा करके आना है। लेकिन मधुबन में कई सौदा करने वाले भी आ जाते हैं। करके आने वाले के बजाए यहाँ आकर सौदा करते हैं इसलिए बापदादा क्वान्टिटी में क्वालिटी को देख रहे हैं। क्वान्टिटी की विशेषता अपनी है, क्वालिटी की विशेषता अपनी है। चाहिए दोनों ही। गुलदस्ते में वैरायटी रंग रूप वाले फूलों से सजावट होती है। पत्ते भी नहीं होंगे तो गुलदस्ता नहीं शोभेगा। तो बापदादा के घर के श्रृंगार तो सभी हुए, सभी के मुख से बाबा शब्द तो निकलता ही है। बच्चे घर का श्रृंगार होते हैं। अभी भी देखो यह ओम् शान्ति भवन का हॉल आप सबके आने से सज गया है ना। तो घर के श्रृंगार, बाप के श्रृंगार सदा चमकते रहो। क्वान्टिटी से क्वालिटी में परिवर्तन हो जाओ। समझा – आज तो सिर्फ मिलने का दिन था फिर भी ब्रह्मा बाप को हमजिन्स पसन्द आ गये। इसलिए पिकनिक की। अच्छा।
सदा प्रभु फल खाने के अधिकारी, सदा ब्रह्मा बाप समान सेकण्ड में सौदा करने वाले, हर कर्म में कर्म योगी, ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, ऐसे बाप समान विशेष आत्माओं को, चारों ओर के क्वालिटी और क्वान्टिटी वाले बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकत (अधुरकुमारों से):-
1- सदा अपने को विश्व के अन्दर कोटो में से कोई हम हैं – ऐसे अनुभव करते हो? जब भी यह बात सुनते हो – कोटों से कोई, कोई में भी कोई तो वह स्वयं को समझते हो? जब हूबहू पार्ट रिपीट होता है तो उस रिपीट हुए पार्ट में हर कल्प आप लोग ही विशेष होंगे ना! ऐसे अटल विश्वास रहे। सदा निश्चय बुद्धि सभी बातों में निश्चिन्त रहते हैं। निश्चय की निशानी है निश्चिन्त। चिन्तायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओं की चिता से बचा लिया ना! चिंताओं की चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया। बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर लगन की अग्नि में चिन्तायें सब ऐसे समाप्त हो गई जैसे थी ही नहीं। एक सेकेण्ड में समाप्त हो गई ना! ऐसे अपने को शुभचिन्तक आत्मायें अनुभव करते हो! कभी चिंता तो नहीं रहती! न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता क्योंकि दाल रोटी तो खाना है और बाप के गुण गाना है। दाल रोटी तो मिलनी ही है। तो न धन की चिंता, न मन की परेशानी और न तन के कर्मभोग की भी चिंता क्योंकि जानते हैं यह अन्तिम जन्म और अन्त का समय है, इसमें सब चुक्तु होना है इसलिए सदा शुभचिन्तक। क्या होगा! कोई चिंता नहीं। ज्ञान की शक्ति से सब जान गये। जब सब कुछ जान गये तो क्या होगा, यह क्वेश्चन खत्म। क्योंकि ज्ञान है जो होगा वह अच्छे ते अच्छा होगा। तो सदा शुभचिन्तक, सदा चिन्ताओं से परे निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त आत्मायें, यही तो जीवन है। अगर जीवन में निश्चिन्त नहीं तो वह जीवन ही क्या है! ऐसी श्रेष्ठ जीवन अनुभव कर रहे हो? परिवार की भी चिन्ता तो नहीं है? हरेक आत्मा अपना हिसाब किताब चुक्तु भी कर रही है और बना भी रही है, इसमें हम क्या चिंता करें। कोई चिंता नहीं। पहले चिता पर जल रहे थे, अभी बाप ने अमृत डाल जलती चिता से मरजीवा बना दिया। जिंदा कर दिया। जैसे कहते हैं मरे हुए को जिंदा कर दिया। तो बाप ने अमृत पिलाया और अमर बना दिया। मरे हुए मुर्दे के समान थे और अब देखो क्या बन गये! मुर्दे से महान बन गये। पहले कोई जान नहीं थी तो मुर्दे समान ही कहेंगे ना। भाषा भी क्या बोलते थे, अज्ञानी लोग भाषा में बोलते हैं – मर जाओ ना। या कहेंगे हम मर जाएं तो बहुत अच्छा। अब तो मरजीवा हो गये, विशेष आत्मायें बन गये। यही खुशी है ना। जलती हुई चिता से अमर हो गये, यह कोई कम बात है! पहले सुनते थे भगवान मुर्दे को भी जिंदा करता है, लेकिन कैसे करता, यह नहीं समझते थे। अभी समझते हो हम ही जिंदा हो गये तो सदा नशे और खुशी में रहो।
टीचर्स के साथ:- सेवाधारियों की विशेषता क्या है? सेवाधारी अर्थात् आंख खुले और सदा बाप के साथ बाप के समान स्थिति का अनुभव करे। अमृतवेले के महत्व को जानने वाले विशेष सेवाधारी। विशेष सेवाधारी की महिमा है – जो विशेष वरदान के समय को जानें और विशेष वरदानों का अनुभव करें। अगर अनुभव नहीं तो साधारण सेवाधारी हुए, विशेष नहीं। विशेष सेवाधारी बनना है तो यह विशेष अधिकार लेकर विशेष बन सकते हो। जिसको अमृतवेले का, संकल्प का, समय का और सेवा का महत्व है ऐसे सर्व महत्व को जानने वाले विशेष सेवाधारी होते हैं। तो इस महत्व को जान महान बनना है। इसी महत्व को जान स्वयं भी महान बनो और औरों को भी महत्व बतलाकर, अनुभव कराकर महान बनाओ।
1. प्रभु मिलन का दिव्य अवसर
आज बापदादा अपने स्नेही बच्चों को स्नेह का प्रत्यक्ष फल देने आए।
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भक्ति मार्ग में भी भक्त आत्माओं में स्नेह और भावना थी, परंतु शक्ति और अधिकारीपन नहीं था।
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अभी संगमयुग पर स्नेह समीप सम्बन्ध के आधार पर है और भावना अधिकारीपन की शक्ति से भरी है।
उदाहरण:
भक्ति में भक्त भगवान से फूल, नारियल चढ़ाते हैं लेकिन शक्ति नहीं पाते। परंतु संगमयुग पर प्रभु-फल खाने से आत्मा को अविनाशी शक्ति प्राप्त होती है।
2. प्रभु फल का विशेष महत्व
बापदादा पूछते हैं – क्या सभी ने प्रभु फल खाया है?
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यह ईश्वरीय जादू का फल है।
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इस फल से आत्मा लोहे से पारस से भी बढ़कर हीरा बन जाती है।
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जो संकल्प करो वह प्राप्त होता है।
मुरली नोट (06-09-1985):
“संगमयुग का प्रभु फल अगर अब नहीं खाया तो फिर पूरे कल्प में नहीं खा सकते।”
3. प्रभु फल खाने का अनुभव
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ऐसे आत्माएँ सदा माया के रोग से तन्दुरुस्त रहती हैं।
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उन्हें अमर फल मिला है – दुख, अशान्ति और विघ्नों से मुक्त जीवन।
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बाप का बनना ही श्रेष्ठ प्रभु फल प्राप्त करना है।
उदाहरण:
जैसे कोई साधारण फल खाने से शरीर तन्दुरुस्त रहता है, वैसे प्रभु फल खाने से आत्मा अमर शक्ति में स्थिर हो जाती है।
4. प्रभु पिकनिक और ब्राह्मण जीवन
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आज बापदादा ने विशेष पाण्डव सेना को देखकर आनंद में पिकनिक मनाई।
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यह अलौकिक पिकनिक है, जो ब्रह्मा बाप और ब्राह्मण बच्चों के बीच ही सम्भव है।
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लक्ष्मी-नारायण भी ऐसी पिकनिक नहीं करेंगे।
मुरली नोट:
“हमजिन्स ही बनना है – हर कदम में फॉलो फादर करने वाले समान साथी। सेकण्ड में सौदा करने वाले।”
5. क्वालिटी और क्वान्टिटी का संतुलन
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बापदादा कहते हैं, बच्चे घर का श्रृंगार हैं।
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क्वान्टिटी से क्वालिटी में परिवर्तन होना ज़रूरी है।
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गुलदस्ते की शोभा विविध फूलों और पत्तों से होती है। वैसे ही संगठन में हर आत्मा की अपनी विशेषता है।
6. विशेष मुलाकातें
अधुरकुमारों से:
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हमेशा अनुभव करो – हम विश्व के अन्दर “कोटों में से कोई” हैं।
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निश्चय बुद्धि आत्मा निश्चिन्त रहती है।
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चिन्ता की चिता से बाबा ने दिलतख्त पर बिठा दिया।
उदाहरण:
पहले मनुष्य चिन्ता से जलते थे, अब बाबा ने अमृत पिला अमर बना दिया।
“पहले मुर्दे समान थे, अब बाबा ने हमें महान बना दिया।”
टीचर्स और सेवाधारियों से:
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सेवाधारी वही जो सदा बाप के साथ बाप के समान स्थिति का अनुभव करे।
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अमृतवेले का महत्व जानना ही विशेष सेवाधारीपन है।
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जो वरदान के समय को पहचानते हैं और अनुभव करते हैं, वही विशेष सेवाधारी कहलाते हैं।
7. अंतिम संदेश
सदा प्रभु फल खाने वाले, सदा ब्रह्मा बाप समान, सेकण्ड में सौदा करने वाले, हर कर्म में कर्मयोगी – यही बाबा की पसंदीदा आत्माएँ हैं।
निष्कर्ष
संगमयुग का प्रभु फल एक अद्भुत और अलौकिक वरदान है।
यह फल केवल अब मिलता है –
जिससे आत्मा अमर बनती है,
माया के रोग से मुक्त होती है,
और जीवन में सदा खुशी और शक्ति बनी रहती है।
संगमयुग का प्रभु फल खाने से सर्व प्राप्तियाँ
(प्रश्नोत्तर शैली में)
1. प्रभु मिलन का दिव्य अवसर
प्रश्न: भक्ति और संगमयुग के मिलन में क्या अंतर है?
उत्तर:
भक्ति मार्ग में भक्तों में स्नेह और भावना तो थी, पर शक्ति और अधिकारीपन नहीं था।
संगमयुग पर प्रभु मिलन स्नेह और समीप संबंध से होता है, जहाँ भावना अधिकारीपन की शक्ति से भरी हुई है।
उदाहरण:
भक्ति में भक्त भगवान को फूल और नारियल चढ़ाते हैं, परंतु शक्ति प्राप्त नहीं करते।
संगमयुग पर प्रभु फल खाने से आत्मा को अविनाशी शक्ति मिलती है।
2. प्रभु फल का विशेष महत्व
प्रश्न: प्रभु फल खाने का क्या लाभ है?
उत्तर:
यह ईश्वरीय जादू का फल है।
इससे आत्मा लोहे से पारस और पारस से भी बढ़कर हीरा बन जाती है।
जो संकल्प करो, वह सहज प्राप्त होता है।
मुरली नोट (06-09-1985):
“संगमयुग का प्रभु फल अगर अब नहीं खाया, तो फिर पूरे कल्प में नहीं खा सकते।”
3. प्रभु फल खाने का अनुभव
प्रश्न: प्रभु फल खाने से आत्मा की स्थिति कैसी बनती है?
उत्तर:
ऐसी आत्माएँ सदा माया के रोग से तन्दुरुस्त रहती हैं।
उन्हें अमर फल प्राप्त होता है, जिससे दुख, अशान्ति और विघ्नों से मुक्ति मिलती है।
बाप का बनना ही श्रेष्ठ प्रभु फल प्राप्त करना है।
उदाहरण:
जैसे साधारण फल खाने से शरीर स्वस्थ रहता है, वैसे प्रभु फल खाने से आत्मा अमर शक्ति में स्थिर हो जाती है।
4. प्रभु पिकनिक और ब्राह्मण जीवन
प्रश्न: ब्राह्मण जीवन को पिकनिक क्यों कहा गया है?
उत्तर:
आज बापदादा ने पाण्डव सेना को देखकर आनंद में पिकनिक मनाई।
यह अलौकिक पिकनिक केवल ब्रह्मा बाप और ब्राह्मण बच्चों में ही सम्भव है।
लक्ष्मी-नारायण भी ऐसी पिकनिक नहीं कर सकते।
मुरली नोट:
“हमजिन्स ही बनना है – हर कदम में फॉलो फादर करने वाले समान साथी। सेकण्ड में सौदा करने वाले।”
5. क्वालिटी और क्वान्टिटी का संतुलन
प्रश्न: संगठन में क्वालिटी और क्वान्टिटी का क्या महत्व है?
उत्तर:
बापदादा कहते हैं – बच्चे घर का श्रृंगार हैं।
क्वान्टिटी से क्वालिटी में परिवर्तन आवश्यक है।
जैसे गुलदस्ता विभिन्न फूलों और पत्तों से सुंदर बनता है, वैसे ही संगठन में हर आत्मा अपनी विशेषता से शोभा बढ़ाती है।
6. विशेष मुलाकातें
अधुरकुमारों से
प्रश्न: अधुरकुमार आत्माएँ अपनी विशेषता कैसे अनुभव करें?
उत्तर:
उन्हें अनुभव करना चाहिए कि हम “कोटों में से कोई” हैं।
निश्चय बुद्धि आत्मा निश्चिन्त रहती है।
पहले चिन्ता की चिता में जलते थे, अब बाबा ने दिलतख्त पर बिठा दिया।
उदाहरण:
पहले मनुष्य चिन्ता से जलते थे, अब बाबा ने अमृत पिला अमर बना दिया।
“पहले मुर्दे समान थे, अब बाबा ने हमें महान बना दिया।”
टीचर्स और सेवाधारियों से
प्रश्न: सेवाधारीपन की सच्ची पहचान क्या है?
उत्तर:
सेवाधारी वही है जो सदा बाप के साथ, बाप समान स्थिति का अनुभव करे।
अमृतवेले का महत्व जानना ही सच्चा सेवाधारीपन है।
जो वरदान के समय को पहचानते और अनुभव करते हैं, वही सच्चे सेवाधारी कहलाते हैं।
7. अंतिम संदेश
प्रश्न: बाबा की पसंदीदा आत्माएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
सदा प्रभु फल खाने वाली,
सदा ब्रह्मा बाप समान,
सेकण्ड में सौदा करने वाली,
और हर कर्म में कर्मयोगी रहने वाली आत्माएँ – यही बाबा की पसंद हैं।
निष्कर्ष
संगमयुग का प्रभु फल केवल अब मिलता है।
यह आत्मा को अमर बनाता है।
माया के रोग से मुक्त करता है।
जीवन को सदा खुशी और शक्ति से भर देता है।
Disclaimer: यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज की आध्यात्मिक मुरली पर आधारित अध्ययन और मनन है। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक उत्थान, प्रेरणा और ईश्वरीय संदेश को सरल भाषा में प्रस्तुत करना है। यह आधिकारिक ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
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