(44) Need to understand the knowledge of Gita correctly – 08

(44) गीता के ज्ञान को ठीक से समझने की आवश्यकता-08

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“गीता का रहस्य: श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं सच्चे ज्ञानदाता | 


 भूमिका:

क्या हम गीता के असली वक्ता को जानते हैं?
गीता — एक अद्भुत, दिव्य, गूढ़ ग्रंथ जिसे सर्वशास्त्रमयी कहा गया है।
परंतु क्या हम इसके गूढ़ रहस्यों को ठीक से समझ पाए हैं?

प्रश्न उठता है:
क्या गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने दिया या कोई और दिव्य सत्ता ने?

आज हम इस रहस्य से पर्दा हटाएँगे — स्वयं परमात्मा शिव की वाणी “मुरली” के आधार पर।


1. गीता की वास्तविकता क्या है?

गीता कोई साधारण धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की विधि का दिव्य संवाद है।
लेकिन सबसे बड़ा भ्रम इसी में रहा है — गीता का वक्ता कौन है?


2. मुरली का प्रकाश — सच्चा ज्ञानदाता कौन?

मुरली (18 जनवरी 2025):

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”

 यह स्पष्ट करता है कि परमात्मा शिव ही गीता के ज्ञानदाता हैं, न कि श्रीकृष्ण।


3. अष्टम अध्याय – ‘अक्षरब्रह्म योग’ का अर्थ

संस्कृत:

…अक्षरब्रह्मयोगो नाम अष्टमोऽध्यायः॥

हिंदी अर्थ:

“यह अध्याय अविनाशी ब्रह्म (अक्षर) और परम अवस्था को दर्शाता है।”

मुरली से मिलान:
परम अवस्था यानी अविनाशी आत्मा की स्थिति — यह स्थिति राजयोग ज्ञान द्वारा, परमपिता शिव से जुड़ने पर प्राप्त होती है।


4. भ्रम का परिणाम — जब वक्ता बदल जाता है

जब गीता के ज्ञानदाता को श्रीकृष्ण मान लिया गया,
तो ज्ञान की गहराई रहस्य बन गई, और राजयोग की वास्तविक विधि लुप्त हो गई।

परमात्मा शिव की मुरली ही वह चाबी है, जो गीता के हर अध्याय को आत्मा की सच्ची यात्रा से जोड़ती है।


5. निष्कर्ष: मुरली और गीता — एक ही ज्ञान की दो अभिव्यक्तियाँ

 गीता का ज्ञानदाता कोई देवता नहीं, बल्कि
“सद्गति दाता” स्वयं परमात्मा शिव हैं।
वे ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर हमें वह ज्ञान देते हैं, जिसे आज हम “मुरली” के रूप में सुनते हैं।

इसलिए,
गीता + मुरली = पूर्ण आत्मिक ज्ञान

गीता का रहस्य: श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं सच्चे ज्ञानदाता | 


Q1: गीता किसे कहा गया है — शास्त्र, ग्रंथ या कुछ और?

A1: गीता को सर्वशास्त्रमयी कहा गया है। यह केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का दिव्य संवाद है।


Q2: गीता का ज्ञानदाता कौन है — श्रीकृष्ण या कोई और?

A2: गीता का सच्चा ज्ञानदाता श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि परमपिता परमात्मा शिव हैं, जो ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर यह ज्ञान सुनाते हैं।


Q3: मुरली में गीता के वक्ता के बारे में क्या कहा गया है?

A3:मुरली – 18 जनवरी 2025:

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमात्मा हूँ। मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के ज्ञान देता हूँ।”


Q4: अष्टम अध्याय का नाम क्या है और उसका अर्थ क्या है?

A4:संस्कृत: अक्षरब्रह्मयोगो नाम अष्टमोऽध्यायः॥
हिंदी अर्थ: यह अध्याय अविनाशी ब्रह्म (अक्षर) और परम अवस्था को दर्शाता है — जो परमात्मा शिव से जुड़ने पर आत्मा प्राप्त करती है।


Q5: यदि वक्ता को श्रीकृष्ण मान लिया जाए, तो क्या हानि होती है?

A5: जब वक्ता बदल जाता है, तो राजयोग की विधि और आत्मा-परमात्मा का संबंध गुम हो जाता है।
श्रीकृष्ण को वक्ता मानने से आत्मा को परम स्थिति नहीं मिलती।


Q6: मुरली और गीता में क्या संबंध है?

A6: मुरली और गीता एक ही ज्ञान की दो अभिव्यक्तियाँ हैं।
मुरली = मूल गीता का पुनरावर्तन, जो परमात्मा शिव स्वयं ब्रह्मा के तन से आज सुनाते हैं।


Q7: गीता के सच्चे वक्ता की पहचान क्यों ज़रूरी है?

A7: क्योंकि गीता का ज्ञानदाता ही राजयोग की सही विधि बताता है।
अगर वक्ता की पहचान गलत होगी, तो प्राप्ति भी अधूरी रह जाएगी।


Q8: गीता ज्ञान किसे और क्यों दिया गया था?

A8: गीता का ज्ञान ब्रह्मा मुख वंशावली को दिया गया — ताकि आत्माएं सतयुगी देवी-देवता बन सकें।
यह राजविद्या है — जिसे केवल परमात्मा ही देते हैं।


Q9: “गीता + मुरली = पूर्ण आत्मिक ज्ञान” – इसका अर्थ क्या है?

A9: गीता की सच्ची समझ तभी आती है जब उसे मुरली के प्रकाश में देखा जाए।
मुरली ही वह दिव्य चाबी है जो गीता के रहस्यों को खोलती है।


Q10: परमात्मा शिव आज कहाँ और कैसे ज्ञान दे रहे हैं?

A10: परमात्मा शिव आज ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के माध्यम से मुरली के रूप में ज्ञान दे रहे हैं।

Disclaimer (अस्वीकरण):

यह वीडियो आध्यात्मिक अध्ययन के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें प्रस्तुत विचार ब्रह्माकुमारीज़ संस्था द्वारा दिए गए मुरली ज्ञान तथा श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों की आध्यात्मिक व्याख्या पर आधारित हैं।

हमारा उद्देश्य किसी धर्म, संप्रदाय, व्यक्ति या ग्रंथ का विरोध नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान का सही स्वरूप स्पष्ट करना है।

कृपया इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही लें।

सभी आध्यात्मिक उद्धरण ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित मुरलियों एवं भगवद्गीता के शास्त्रीय संस्करणों से लिए गए हैं।

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