(46)“श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार – ‘मुरली’”07-12-1983
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार
आधारित: अव्यक्त मुरली – 7 दिसंबर 1983 (46वीं मुरली)
प्रस्तावना
आज हम 1983 की 46वीं अव्यक्त मुरली का रिवाइज करेंगे। मुरली का मुख्य विषय है – श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार। यदि हम सर्वोच्च स्थिति प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका आधार है मुरली।
1. मुरली से स्नेह और अनुभव
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मुरलीधर बाप अपने स्नेही बच्चों को देखते हैं, जो मुरली के पीछे कैसे मस्त हो जाते हैं, अपनी देह की शुद्ध बुद्ध भूलकर विदेही बाप से मुरली सुनते हैं।
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उदाहरण: जैसे संगीत का नशा चढ़ता है, वैसे ही मुरलीधर की मुरली का नशा चढ़कर आत्मा अनुभव करती है कि वह धरनी और देह से ऊपर उड़ रही है।
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मुख्य मुरली नोट: 07-12-1983
2. विधि पूर्वक मुरली सुनना
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देही बन विदेही बाप से मुरली सुनना – यहां देहधारी स्मृति की शुद्ध बुद्ध भी नहीं लगती।
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इससे आत्मा रूहानी नशे में मस्त होकर पद्मा पदम भाग्यवान समझती है।
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अनुभव: आत्मा विभिन्न अवस्थाओं में भ्रमण करती है – मूल वतन, सूक्ष्म वतन, अपने राज्य, और लाइट हाउस/वाइट हाउस बनकर दुखी आत्माओं को सुख-शांति की किरणें देती है।
3. मुरली और सिद्धि स्वरूप बनने का महत्व
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मुरली ही ब्राह्मण जीवन की सांस है। सांस नहीं तो जीवन नहीं।
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विधि पूर्वक सुनने से आत्मा स्वतः और सहज सिद्धि स्वरूप बन जाती है।
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उदाहरण: जैसे मेहनत से मक्खन तैयार होता है, वैसे ही मुरली विधि पूर्वक सुनने से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।
4. मुरली के तीन प्रकार के श्रोता
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विधि पूर्वक सुनने वाले – पूर्ण समाने वाले, श्रेष्ठ स्वरूप बनते हैं।
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नियम पूर्वक सुनने वाले – कभी-कभी समझ पाते हैं, कर्मों का प्रभाव सीमित।
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अनियमित श्रोता – मुरली का कोई प्रभाव नहीं।
स्वयं जाँच: आप किस प्रकार के श्रोता हैं?
5. अव्यक्त और साकारी अनुभव
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बाप दादा की उपस्थिति केवल ध्यान से भी अनुभव की जा सकती है।
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एक ही बाप में सभी संबंध समाए हुए हैं – मां, बाप, साजन, नौकर, दास।
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उदाहरण: यदि एक आत्मा बाप की याद में स्थिर रहती है, तो वह श्रेष्ठ आत्मा और रस आत्मा बन जाती है।
6. मायाजीत बनने का सहज साधन
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अपनी बुराइयों पर क्रोध करो, दूसरों पर नहीं।
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इससे आत्मा मायाजीत बनती है और विश्व कल्याणकारी का नशा अनुभव करती है।
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स्मृति रहे कि हम बेहद के मालिक के बालक हैं।
7. अचल और अडोल रहने का महत्व
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अचल और अडोल अवस्था में रहने से सर्व खजानों का अनुभव स्थिर रहता है।
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उदाहरण: गुलाम से राजा बनने का अंतर केवल बाप की याद से संभव हुआ।
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बाप की याद से आत्मा उच्चतम स्थिति पर अडोल और अचल रहती है।
निष्कर्ष
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श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार है मुरली।
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विधि पूर्वक मुरली सुनें, अनुभव करें और आत्मा को रूहानी नशे में मस्त करें।
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स्वतः और सहज सिद्धि प्राप्त करें और मायाजीत बनें।
श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार (07 दिसंबर 1983)
प्रश्न 1: श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार क्या है?
उत्तर: श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का आधार मुरली है। यदि हम मुरली को विधि पूर्वक सुनते हैं और उसमें समाते हैं, तो हम सर्वोच्च स्थिति, अर्थात सिद्धि स्वरूप बन सकते हैं।
उदाहरण: जैसे किसी राजा को राज्य प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, वैसे ही आत्मा को श्रेष्ठ पद प्राप्त करने के लिए मुरली का मार्गदर्शन चाहिए।
प्रश्न 2: मुरली को सुनते समय हम किस स्थिति में होना चाहिए?
उत्तर: हमें अपनी देह और बुद्धि की स्मृति को भूलकर, देही बन विदेही बाप से मुरली सुननी चाहिए। इस प्रकार मुरली का रूहानी नशा हमें हमारे कर्मों और अनुभवों के सर्वोच्च स्वरूप में ले जाता है।
उदाहरण: जैसे कोई संगीत प्रेमी संगीत में पूरी तरह मग्न हो जाता है, वैसे ही आत्मा को मुरली के शब्दों में मग्न होना चाहिए।
प्रश्न 3: मुरली के रिगार्ड का महत्व क्या है?
उत्तर: मुरली के हर शब्द का रिगार्ड, अर्थात सम्मान और ध्यानपूर्वक सुनना, ढाई हजार वर्षों की कमाई का आधार बनता है। इसे मिस करना, पद्मों की कमाई को मिस करने के समान है।
उदाहरण: जैसे बैंक में छोटी बचत को नजरअंदाज करने से भविष्य की पूंजी पर असर पड़ता है, वैसे ही मुरली के हर शब्द का ध्यान न देने से आध्यात्मिक लाभ कम होता है।
प्रश्न 4: मायाजीत बनने का सहज साधन क्या है?
उत्तर: मायाजीत बनने के लिए अपनी बुराइयों पर क्रोध करना चाहिए, न कि दूसरों की कमी पर। अपनी कमी पर क्रोध करना आत्मा की शुद्धि का मार्ग है।
उदाहरण: जैसे कोई किसान अपने खेत की खरपतवार को हटाता है, वैसे ही हमें अपनी बुराइयों और दोषों को हटाना है।
प्रश्न 5: मुरली और बाप की याद में रहने वाले बच्चों की विशेषता क्या है?
उत्तर: जो बच्चे विधि पूर्वक मुरली सुनते हैं, वे रूहानी नशे में मस्त, अर्थात आध्यात्मिक आनंद में रहते हैं। ऐसे बच्चे बेपरवाह बादशाह, स्वराज्य अधिकारी बन जाते हैं।
उदाहरण: जैसे कोई कलाकार अपनी कला में पूरी तरह मग्न हो जाता है, वैसे ही आत्मा बाप और मुरली में मग्न होकर सर्वोच्च स्थिति प्राप्त करती है।
प्रश्न 6: मुरली ब्राह्मण जीवन के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर: मुरली ब्राह्मण जीवन की सांस है। सांस नहीं तो जीवन नहीं; वैसे ही मुरली न होने पर ब्राह्मण जीवन अधूरा है।
उदाहरण: जैसे कोई व्यक्ति बिना सांस लिए जीवित नहीं रह सकता, वैसे ही मुरली के बिना आत्मा का आध्यात्मिक जीवन संभव नहीं।
प्रश्न 7: श्रेष्ठ विधि से मुरली सुनने और समाने वाले बच्चों का स्वरूप क्या होता है?
उत्तर: विधि पूर्वक सुनने और समाने वाले बच्चे सिद्धि स्वरूप बनते हैं। उनका हर कर्म मुरली का स्वरूप बन जाता है।
उदाहरण: जैसे कोई छात्र किसी गुरु की शिक्षा को पूरी विधि और अनुशासन से अपनाता है, वैसे ही विधि पूर्वक मुरली सुनने वाला आत्मा सिद्धि स्वरूप बनता है।
डिस्क्लेमर
यह वीडियो केवल आध्यात्मिक ज्ञान साझा करने के उद्देश्य से है।
प्रस्तुत विचार ब्रह्माकुमारीज़ के अव्यक्त मुरली शिक्षाओं पर आधारित हैं।
किसी भी आध्यात्मिक अभ्यास को अपनाने से पहले अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक से परामर्श अवश्य लें।
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