(50)Need for correct understanding of the knowledge of Gita-14

(50)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने की आवश्यकता-14

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“गीता का ज्ञानदाता कौन? श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव? | मुरली और गीता का गूढ़ रहस्य | 


 गीता — एक रहस्य से भरा दिव्य ग्रंथ

“गीता भारत का सबसे महान और दिव्य ग्रंथ माना गया है।”
परंतु आज भी यह रहस्य बना हुआ है कि गीता का ज्ञान देने वाला वास्तव में कौन है?
क्या वह श्रीकृष्ण हैं — या कोई और, जो निराकार, अजन्मा और सर्वशक्तिमान है?

आज हम मुरली महावाक्य और शुद्ध गीता श्लोक के प्रकाश में इस विषय का पूर्ण रहस्य उजागर करेंगे।


 गीता का गूढ़ ज्ञान – मुरली से समझें

गीता में कई गहरे प्रश्न उठते हैं:

  • क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ कौन है?

  • गुणत्रय क्या हैं?

  • भक्तियोग का अंतिम अर्थ क्या है?

मुरली 18 जनवरी 2025:

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”

यह वाणी साफ़ करती है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण द्वारा नहीं, बल्कि परमात्मा शिव द्वारा संगमयुग पर ब्रह्मा के तन से दिया जाता है।


 गीता के अध्यायों की सच्ची व्याख्या – मुरली के प्रकाश में

 (अध्याय 11) विश्वरूप दर्शन योग

“विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः॥”
मुरली स्पष्टीकरण:
“यह विश्वरूप आत्मा का दिव्य स्वरूप है, न कि परमात्मा शिव का भौतिक रूप।”


 (अध्याय 12) भक्तियोग

“भक्तियोगो नाम द्वादशोऽध्यायः॥”
 मुरली कहती है:
“अब भक्ति का फल मिलने का समय है। योगबल से ही विकर्म विनाश होंगे।”


 (अध्याय 13) क्षेत्र–क्षेत्रज्ञ विभाग योग

“क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगो नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥”
 क्षेत्र = शरीर
 क्षेत्रज्ञ = आत्मा
 मुरली वचन:
“मैं परमात्मा आकर आत्मा को आत्म-स्मृति देता हूँ — यही ज्ञान का सार है।”


 (अध्याय 14) गुणत्रय विभाग योग

“गुणत्रयविभागयोगो नाम चतुर्दशोऽध्यायः॥”
 मुरली समझाती है:
“मैं आकर आत्माओं को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाता हूँ। यह ही पुनः स्वराज्य की स्थिति है।”


 श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं गीता ज्ञानदाता

श्रीकृष्ण सतयुग के पहले जन्म का देवता है — बाल्यकाल से प्रसिद्ध, राधा संग लीलाएं, और भक्तों की भावना का केंद्र

परंतु ज्ञान का वक्ता कौन?

मुरली कहती है:

“श्रीकृष्ण बच्चा है। ज्ञान तो बाप ही दे सकता है।”

परमात्मा शिव:

  • निराकार

  • सर्वज्ञ

  • अजन्मा

  • संगमयुग पर आता है

  • ब्रह्मा तन में प्रवेश कर मुरली सुनाता है


 आज की आत्माओं को संदेश

  • गीता का सच्चा ज्ञान मुरली के रूप में पुनः जीवित हुआ है

  • परमात्मा स्वयं आकर आत्माओं को पुनः सतोप्रधान बना रहे हैं

  • यह ज्ञान केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि तथ्यात्मक और आत्मिक विज्ञान है

गीता का उद्देश्य है:
 आत्मा का परमात्मा से मिलन
 पुनः आत्म-स्वरूप में स्थित होना
 माया पर विजय पाना


निष्कर्ष:

गीता कोई पौराणिक कथा नहीं — यह परमात्मा शिव का जीवित पाठ है
श्रीकृष्ण नहीं, परमपिता शिव गीता ज्ञानदाता हैं
आज भी यह ज्ञान मुरली के रूप में प्रतिदिन दिया जा रहा है
यही है सच्चा राजयोग, जो आत्मा को सच्चा देवता बनाता है

“गीता का ज्ञानदाता कौन? श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव? | मुरली और गीता का गूढ़ रहस्य | 


 “गीता भारत का सबसे महान और दिव्य ग्रंथ माना गया है। परंतु आज भी यह रहस्य बना हुआ है कि इसका ज्ञान किसने दिया?”
क्या गीता का ज्ञानदाता श्रीकृष्ण हैं, या कोई और — जो निराकार, अजन्मा, और सर्वशक्तिमान है?

आइए जानें इस विषय का सत्य — मुरली महावाक्यों और गीता श्लोकों के आधार पर।


प्रश्न 1: गीता का वास्तविक ज्ञानदाता कौन है — श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?

उत्तर:मुरली (18 जनवरी 2025) में स्पष्ट कहा गया है:

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।”
इससे सिद्ध होता है कि गीता का ज्ञान परमात्मा शिव ने संगमयुग पर ब्रह्मा के तन में आकर दिया।


प्रश्न 2: श्रीकृष्ण को गीता का ज्ञानदाता क्यों नहीं माना जा सकता?

उत्तर:श्रीकृष्ण सतयुग का पहला देवता है — बाल्यकाल, राधा संग लीलाएं, व शक्तिशाली रूप में चित्रण।
परंतु ज्ञान देना त्रिकालदर्शी परमात्मा का कार्य है।
 मुरली वाणी:

“श्रीकृष्ण बच्चा है। ज्ञान तो बाप ही दे सकता है।”


प्रश्न 3: ‘क्षेत्र’ और ‘क्षेत्रज्ञ’ का अर्थ क्या है?

उत्तर: गीता अध्याय 13:

  • क्षेत्र = शरीर

  • क्षेत्रज्ञ = आत्मा
    मुरली कहती है:

“यह शरीर क्षेत्र है। इसमें रहने वाली आत्मा ही क्षेत्रज्ञ है। मैं परमात्मा आत्मा को आत्म-स्मृति देता हूँ।”


प्रश्न 4: ‘गुणत्रय’ क्या हैं और उनसे कैसे मुक्त हों?

उत्तर: अध्याय 14 – सतो, रज, तम — ये प्रकृति के तीन गुण हैं।
मुरली कहती है:

“सतोप्रधान से तमोप्रधान तक गिरावट आती है। मैं तुम्हें फिर से सतोप्रधान बनाता हूँ।”


प्रश्न 5: भक्तियोग का वास्तविक अर्थ क्या है?

उत्तर: अध्याय 12 – भक्तियोग का चरम रूप योगबल है, जिससे आत्मा परमात्मा से मिलती है।
मुरली कहती है:

“भक्ति का फल अब मिलना है। योगबल से ही विकर्म विनाश होंगे।”


प्रश्न 6: अध्याय 11 में ‘विश्वरूप’ किसका है?

उत्तर: “विश्वरूप दर्शन योगो नामैकादशोऽध्यायः॥”
मुरली अनुसार, यह परमात्मा का नहीं, आत्मा का दिव्य स्वरूप है, जो योगबल से अनुभव होता है।


प्रश्न 7: क्या गीता का ज्ञान केवल कथा या भावना है?

उत्तर:नहीं, गीता का ज्ञान पूर्ण आत्मिक विज्ञान है।
मुरली बताती है:

“यह ज्ञान मैं आकर आत्माओं को देता हूँ। यह भक्ति नहीं, राजयोग की पढ़ाई है।”


प्रश्न 8: गीता का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर:

  • आत्मा का परमात्मा से मिलन

  • आत्मा को पुनः सतोप्रधान बनाना

  • माया पर जीत
    यही सच्चा राजयोग है, जो जीवनमुक्ति की ओर ले जाता है।

Disclaimer (डिस्क्लेमर):

यह वीडियो किसी भी धर्म, संप्रदाय या परंपरा का विरोध नहीं करता। इसका उद्देश्य भगवद गीता और ब्रह्माकुमारियों द्वारा दिए गए मुरली ज्ञान के माध्यम से आध्यात्मिक सत्य को उजागर करना है। प्रस्तुत विचार मुरली महावाक्यों और गीता श्लोकों के गहन अध्ययन पर आधारित हैं। कृपया इसे शोध और आत्म-चिंतन की दृष्टि से देखें।

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