(51)The need to understand the knowledge of Gita properly – 15

(51)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने की आवश्यकता-15

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

गीता के गूढ़ रहस्य: श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं सच्चे ज्ञानदाता


 गीता — केवल ग्रंथ नहीं, आत्म-जागरण का माध्यम

हम सभी ने “श्रीमद्भगवद्गीता” का नाम सुना है — यह न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच का दिव्य संवाद है।
लेकिन आज का बड़ा प्रश्न यह है —
क्या गीता का ज्ञान वास्तव में श्रीकृष्ण ने दिया था?
या कोई और, जो निराकार है, और सच्चा त्रिकालदर्शी?


1. गीता में छिपे रहस्य – स्पष्ट Murli व्याख्या से

गीता के अध्यायों में आत्मा, परमात्मा, प्रकृति, तीनों गुणों, और कर्मों की गहराई से व्याख्या की गई है।
लेकिन इन श्लोकों का आध्यात्मिक अर्थ तब समझ आता है, जब मुरली वाक्यों के प्रकाश में उन्हें देखा जाए।

मुरली — वह वाणी है जो परमात्मा शिव ब्रह्मा के मुख द्वारा आत्माओं को प्रतिदिन सुनाते हैं।


2. श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं सच्चे ज्ञानदाता

18 जनवरी 2025 की मुरली में परमात्मा कहते हैं:

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।”
“मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर आत्माओं को त्रिकालदर्शी ज्ञान देता हूँ।”

श्रीकृष्ण सतयुग में जन्म लेने वाला देवता है —
परंतु गीता का ज्ञान संगमयुग पर दिया जाता है, जब परमात्मा शिव धरती पर आते हैं।


3. गीता के अध्यायों का सार – मुरली के प्रकाश में

 अध्याय 13 – क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग

“यह शरीर है क्षेत्र, आत्मा है क्षेत्रज्ञ। यह ज्ञान मैं परमात्मा ही आकर देता हूँ।”

 अध्याय 14 – गुणत्रय विभाग योग

“तीनों गुण – सतो, रजो, तमो – आत्मा को बांधते हैं। इन्हें पार करना ही मोक्ष का मार्ग है।”

Murli Quote:

“बच्चे, आत्मा को प्रकृति के इन गुणों से न्यारा बनना है — यह ज्ञान मैं देता हूँ।”

 अध्याय 15 – पुरुषोत्तम योग

“पुरुषोत्तम अर्थात् परमात्मा – सर्वोच्च आत्मा।”

Murli Insight:

“मैं ही पुरुषोत्तम हूँ — जो आत्माओं को पुरुषोत्तम बनाने आता हूँ।”


4. भक्तियोग से पुरुषोत्तम योग तक – भावना से अनुभव तक

गीता के अध्याय 12 में जहाँ भक्तियोग की चर्चा है, वहीं अध्याय 13 से 18 तक में ज्ञान, योग और वैराग्य द्वारा आत्मा की मुक्ति की विधि समझाई गई है।

भावना नहीं, बल्कि साक्षात्कार और स्वपरिवर्तन ही सच्चा योग है।


निष्कर्ष: गीता का रहस्य – मुरली से स्पष्ट

 श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं गीता के सच्चे ज्ञानदाता।
 गीता का ज्ञान संगमयुग का है, न कि द्वापर युग का।
 गीता और मुरली दोनों का मूल स्रोत एक ही है — परमपिता परमात्मा शिव।
 आज भी वही ज्ञान, मुरली के रूप में प्रतिदिन मिल रहा है — जो आत्मा को देवता बनने की विधि सिखाता है।

तो आइए, इस सत्य ज्ञान को आत्मसात करें, मुरली को जीवन में उतारें, और अपने जीवन को दैवी बनाएं।

प्रश्न–उत्तर: गीता का वास्तविक ज्ञानदाता कौन?


प्रश्न 1: क्या गीता केवल धार्मिक ग्रंथ है?

उत्तर:नहीं। गीता केवल एक धार्मिक या कर्मकांडी ग्रंथ नहीं है। यह आत्मा और परमात्मा के बीच हुआ दिव्य संवाद है, जो आत्म-जागरण, मोक्ष, और जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाता है।


प्रश्न 2: गीता का ज्ञान किसने दिया — श्रीकृष्ण या कोई और?

उत्तर:गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नहीं, बल्कि परमात्मा शिव ने दिया।
मुरली (18 जनवरी 2025) में परमात्मा स्पष्ट कहते हैं:
“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।”


प्रश्न 3: अगर श्रीकृष्ण गीता ज्ञानदाता नहीं हैं, तो उनका गीता से क्या संबंध है?

उत्तर:श्रीकृष्ण सतयुग के पहले जन्म लेने वाले देवता हैं — वे गीता ज्ञान के फल हैं, वक्ता नहीं।
गीता का ज्ञान संगमयुग पर दिया जाता है, जब परमात्मा शिव ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ज्ञान सुनाते हैं।


प्रश्न 4: गीता में ‘क्षेत्र’ और ‘क्षेत्रज्ञ’ का क्या अर्थ है?

उत्तर:क्षेत्र = शरीर
क्षेत्रज्ञ = आत्मा
अध्याय 13 में यह बताया गया है कि आत्मा शरीर की ज्ञाता है।
मुरली में परमात्मा समझाते हैं:
“यह ज्ञान मैं ही आकर आत्माओं को सिखाता हूँ।”


प्रश्न 5: गुणत्रय विभाग योग का वास्तविक अर्थ क्या है?

उत्तर: सतो, रजो, तमो – ये प्रकृति के तीन गुण हैं।
 आत्मा को इनसे मुक्त होना है — यही मोक्ष का मार्ग है।
 मुरली में कहा गया:
“बच्चे, आत्मा को प्रकृति के गुणों से न्यारा बनना है — यही सच्चा योग है।”


प्रश्न 6: पुरुषोत्तम योग का तात्पर्य क्या है?

उत्तर:अध्याय 15 में पुरुषोत्तम अर्थात् सर्वोच्च आत्मा — परमात्मा शिव का वर्णन है।
मुरली वचन:
“मैं ही पुरुषोत्तम हूँ — जो आत्माओं को पुरुषोत्तम बनाता हूँ।”


प्रश्न 7: भक्तियोग से आगे का मार्ग क्या है?

उत्तर:भक्तियोग भावना आधारित है, पर मुक्ति और जीवनमुक्ति के लिए आत्मा को साक्षात्कार और सच्चे ज्ञान की आवश्यकता होती है।
 अध्याय 13 से 18 तक आत्म-साक्षात्कार और वैराग्य पर बल दिया गया है।


प्रश्न 8: गीता और मुरली का क्या संबंध है?

उत्तर:गीता उस ज्ञान की स्मृति है, जो परमात्मा ने संगमयुग पर दिया था।
मुरली वही दिव्य ज्ञान है, जो आज भी प्रतिदिन ब्रह्मा के मुख द्वारा आत्माओं को मिल रहा है।


प्रश्न 9: गीता ज्ञानदाता मनुष्य क्यों नहीं हो सकता?

उत्तर:क्योंकि गीता का ज्ञान त्रिकालदर्शी, निराकार परमात्मा ही दे सकता है।
कोई मनुष्य या देवता आत्माओं को कर्म, गुणों और मोक्ष का पूर्ण ज्ञान नहीं दे सकता।

Disclaimer:

इस वीडियो का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है।
यह प्रस्तुति केवल आध्यात्मिक चिंतन, मुरली वचनों और गीता के गूढ़ अध्यायों के गहन अध्ययन पर आधारित है। कृपया इसे खुले मन और ज्ञान भावना से देखें।
सभी विचार ब्रह्मा कुमारिज़ द्वारा प्रतिदिन सुनाई जाने वाली मुरली पर आधारित हैं, न कि किसी व्यक्तिगत राय पर।

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