(76)18 January 1969: When Brahma became a god

(76)18 जनवरी 1969: जब ब्रह्मा बना देवता

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“18 जनवरी 1969 – जब ब्रह्मा बना देवता | ब्रह्मा बाबा की दिव्य यात्रा और अंतिम दृश्य का रहस्य”


 एक सामान्य दिन नहीं, दिव्यता का आरंभ

18 जनवरी 1969 सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख नहीं थी,
यह वह पावन क्षण था जब एक साधारण मनुष्य आत्मा ने देवता स्वरूप धारण किया।

मुरली स्मृति:
“ब्रह्मा ने जीवन भर पढ़ाई कर वह पद प्राप्त किया, जो सभी आत्माओं का लक्ष्य है।”
(अव्यक्त मुरली, फरवरी 1969)


1. ब्रह्मा बाबा — जिसे शिव बाबा ने सबसे पहले चुना

  • 33 वर्षों तक लगातार पढ़ाई, तपस्या और सेवा।

  • जिन्होंने “स्व” को मिटाकर, परमात्मा को स्वीकार किया।

  • और जो “रचता” बन, सृजन में निमित्त बन गए।

उदाहरण:
जैसे कोई फिल्म का हीरो शुरू से लेकर अंत तक बना रहता है,
वैसे ही ब्रह्मा बाबा इस विश्व-नाटक में प्रारंभ से अंत तक मुख्य पात्र रहे।


2. देह छोड़ना नहीं, नई सेवा की शुरुआत

18 जनवरी 1969 — देह त्याग का दिन नहीं था,
बल्कि सूक्ष्म दुनिया से सेवा की शुरुआत थी।

21 जनवरी 1969 — पहली अव्यक्त मुरली के माध्यम से बाबा का नया अवतरण।
अब वे “बापदादा” के रूप में आते हैं।

उदाहरण:
जैसे कोई मास्टर ट्रेनिंग देने के बाद पीछे हटकर विद्यार्थियों को रिमोट सहयोग देता है,
वैसे ही ब्रह्मा बाबा अब नजर न आकर भी हर सेवा में शक्ति रूप में उपस्थित हैं।


3. फरिश्ता बनने की राह: देह और कर्म से न्यारा बनो

ब्रह्मा बाबा ने देहधारी रहते भी देही-अभिमानी अवस्था अपनाई।
अब वही हमें सिखा रहे हैं — कैसे बनें फरिश्ता?

मुरली संकेत:
“फरिश्ता वही जो देह और कर्म से न्यारा हो, आत्मिक दृष्टि से देखे और सबका शुभचिंतक हो।”
(अव्यक्त मुरली, फरवरी 1969)

उदाहरण:
जैसे एक मोमबत्ती खुद जलती है पर औरों को प्रकाश देती है —
वैसे ही ब्रह्मा बाबा ने अपने तप से दूसरों को रास्ता दिखाया।


4. संगम युग का अंतिम दृश्य — ट्रांसफर का समय

अब वह समय है जिसे कहा गया है —
“अंतिम दृश्य” — जब सभी आत्माएं ब्रह्मा समान फरिश्ता बनेंगी।

उदाहरण:
जैसे परीक्षा के अंतिम दिन छात्र रिवीजन मोड में आ जाते हैं,
वैसे ही हमें भी अब आत्मिक फाइनल तैयारी में लगना है।

ब्रह्मा बाबा ने पास होकर दिखाया।
अब हमें भी बनना है — कर्मयोगी, निर्विकारी, स्नेहमय फरिश्ता।


5. 18 जनवरी — शोक नहीं, विजय पर्व

18 जनवरी की मुरली में बाबा ने कहा:
“यह दिन विदाई का नहीं, संगम का है।”

स्पष्टीकरण:
ब्रह्मा बाबा ने देह छोड़ी, परंतु बापदादा बन कर लौटे।
अब वे संयुक्त रूप में आत्माओं का मार्गदर्शन करते हैं।

उदाहरण:
जैसे हम स्वतंत्रता दिवस पर शहीदों को याद कर जश्न मनाते हैं,
वैसे ही 18 जनवरी — एक शोक सभा नहीं,
बल्कि ब्रह्मा की विजय गाथा है।


6. प्रेरणा — अगर ब्रह्मा बन सकता है, तो मैं क्यों नहीं?

स्पिरिचुअल इनसाइट:
“अगर ब्रह्मा बन सकता है, तो मैं क्यों नहीं?”

जरूरत है केवल:

  • निर्मलता

  • निरहंकारिता

  • और पूर्ण समर्पण की।

मुरली संकेत:
“बच्चे! अब अंतिम सीन में सबको ब्रह्मा समान बनना है।”
(18 जनवरी विशेष मुरली)


 क्या आप बनेंगे अंतिम दृश्य के नायक?

  • ट्रेन चल चुकी है,

  • स्टेशन है — संगम युग,

  • गाइड हैं — बापदादा,

  • पहला यात्री — ब्रह्मा बाबा

अब निर्णय आपका है —
क्या आप बनेंगे संगम युग के अंतिम दृश्य के हीरो?

समापन:

ओम् शांति।
यदि आप आत्मा और परमात्मा की इस दिव्य यात्रा को और गहराई से समझना चाहते हैं,
तो निकटतम ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र से संपर्क करें।

18 जनवरी 1969 – जब ब्रह्मा बना देवता | ब्रह्मा बाबा की दिव्य यात्रा और अंतिम दृश्य का रहस्य


प्रश्न 1: 18 जनवरी 1969 को क्या विशेषता है?

उत्तर:18 जनवरी 1969 कोई सामान्य दिन नहीं था।
इस दिन ब्रह्मा बाबा ने देह त्याग कर फरिश्ता रूप में प्रवेश किया और सूक्ष्म दुनिया से सेवा की शुरुआत की।
यही वह दिन था जब एक मनुष्य आत्मा ने देवता स्वरूप धारण किया।


प्रश्न 2: ब्रह्मा बाबा को शिव बाबा ने क्यों और कैसे सबसे पहले चुना?

उत्तर:क्योंकि ब्रह्मा बाबा ने अपने 33 वर्षों के जीवन में पूर्ण समर्पण, स्व को मिटाना और सेवा का भाव दिखाया।
शिव बाबा ने कहा:
“मैंने पहले-पहले ब्रह्मा को अपनाया।”
(मुरली संदर्भ)


प्रश्न 3: क्या 18 जनवरी को सेवा समाप्त हो गई?

उत्तर:नहीं। सेवा का नई दुनिया से नया अध्याय शुरू हुआ।
21 जनवरी 1969 को पहली अव्यक्त मुरली चली।
अब बापदादा का संयुक्त रूप मुरली व अनुभूति के माध्यम से सेवा करता है।


प्रश्न 4: फरिश्ता बनने का अर्थ क्या है?

उत्तर:देह और कर्म से न्यारा बनना,
निर्मल, निरहंकारी और शुभचिंतक होना ही फरिश्तापन है।
बाबा कहते हैं:
“फरिश्ता वह, जो आत्मिक दृष्टि से देखे और देह के बंधन से मुक्त हो।”
(अव्यक्त मुरली, फरवरी 1969)


प्रश्न 5: ब्रह्मा बाबा ने फरिश्तापन कैसे सिखाया?

उत्तर:उन्होंने स्वयं देहधारी रहते हुए भी देही-अभिमानी अवस्था अपनाई।
जैसे मोमबत्ती खुद जलती है और सबको रोशनी देती है,
वैसे ही उन्होंने अपने तप से दूसरों को मार्ग दिखाया।


प्रश्न 6: “अंतिम दृश्य” किसे कहा गया है?

उत्तर:जब सभी आत्माएं ब्रह्मा समान फरिश्ता बन जाएंगी —
उसे ही संगम युग का अंतिम दृश्य कहा गया है।
यह ट्रांसफर का समय है, जब आत्मा देवता बनने के लिए तैयार होती है।


प्रश्न 7: क्या 18 जनवरी एक शोक दिवस है?

उत्तर:बिलकुल नहीं।
यह कोई शोक सभा नहीं, बल्कि ब्रह्मा बाबा की विजय गाथा है।
जैसे स्वतंत्रता दिवस शहीदों की याद के साथ उत्सव है,
वैसे ही 18 जनवरी एक दिव्य परिवर्तन का पर्व है।


प्रश्न 8: ब्रह्मा बाबा से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर:अगर ब्रह्मा बन सकता है — तो हम क्यों नहीं?
बस चाहिए:

  • निर्मलता

  • निरहंकारिता

  • और पूर्ण समर्पण।

मुरली स्मृति:
“अब बच्चों को ब्रह्मा समान बनना है।”
(18 जनवरी विशेष मुरली)


प्रश्न 9: संगम युग के अंतिम दृश्य का नायक कौन बन सकता है?

उत्तर:हर वह आत्मा जो फरिश्ता बनने की ट्रेन में सवार हो जाए।
गाइड हैं — बापदादा,
स्टेशन है — संगम युग,
पहला यात्री — ब्रह्मा बाबा।
अब निर्णय हमारा है।


प्रश्न 10: आगे कैसे बढ़ें?

उत्तर:अगर आप भी इस आत्मिक सफर पर चलना चाहते हैं,
तो निकटतम ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र पर संपर्क करें।
वहाँ से आपको मार्गदर्शन, मुरली सुनना और फरिश्तापन की यात्रा आरंभ करने की शक्ति मिलेगी।


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