(82)Where is the end, is there the beginning of heaven?

(82)जहाँ अंत है, वहीं से शुरूआत है स्वर्ग की ?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“जहां अंत है, वहीं से शुरुआत है | संगम युग का रहस्य | ब्रह्मा बाबा की दिव्य यात्रा | Brahma Kumaris Speech”

ओम् शांति।
हर अंत के पीछे एक नई शुरुआत छुपी होती है।
ब्रह्मा बाबा की जीवन यात्रा इसका साक्षात उदाहरण है —
जहां देह का अंत हुआ, वहीं से स्वर्ग की नींव रखी गई।
आज हम जानेंगे:
“संगम युग का रहस्य — ना अंत, ना शुरुआत, केवल परिवर्तन का फल”


 1. संगम युग: परिवर्तन का समय, न अंत, न शुरुआत

जब आत्मा में परिवर्तन होने लगता है, तब संगम युग शुरू हो जाता है।
यह युग कोई कालगणना नहीं, बल्कि एक अंतर्यात्रा का बिंदु है।

 उदाहरण:

जैसे दो नदियाँ मिलती हैं और कुछ दूरी तक एक साथ बहती हैं —
कोई नहीं कह सकता कि कहां एक नदी खत्म हुई और दूसरी शुरू।

 मुरली रेफरेंस:

साकार मुरली 1976
“यह चक्र ऐसा है जहां अंत और आरंभ मिलते हैं।”


 2. संगम: पुल है दो युगों के बीच

संगम युग वह ब्रिज है जो कलियुग की अंधकारमय दुनिया से
सतयुग की दिव्य दुनिया तक पहुँचाता है।

 उदाहरण:

जैसे टूटी हुई पुल से कोई आगे नहीं बढ़ सकता,
पर जब पुल जुड़ जाए तो मिलन संभव हो जाता है —
संगम वही ब्रिज है।


 3. ब्रह्मा बाबा का अंतिम दृश्य — अंत नहीं, एक दिव्य आरंभ

18 जनवरी 1969 — ब्रह्मा बाबा ने देह छोड़ी।
लेकिन क्या यह अंत था?

नहीं। यह तो अव्यक्त विश्व सेवा की शुरुआत थी।

 मुरली रेफरेंस:

अव्यक्त मुरली 18 जनवरी 1969
“आज ब्रह्मा बाबा फरिश्ता बन गए। यह कोई अंत नहीं था, बल्कि शुरुआत थी अव्यक्त दुनिया की।”

 उदाहरण:

जैसे दीपक बुझने से पहले आखिरी बार चमकता है —
बाबा का जीवन भी अंत तक प्रकाश देने वाला बना रहा।


 4. संगम = अंत + शुरुआत

यह छोटा-सा युग सबसे ऊँचा युग है।
यहीं से स्वर्ग की स्थापना होती है,
यहीं से मनुष्य से देवता बनने की यात्रा शुरू होती है।

 उदाहरण:

जैसे रात और दिन के बीच का भोर का समय
सबसे शांत, सबसे शुभ —
वैसा ही है संगम युग।


 5. संगम युग: बीज रूप परिवर्तन का काल

सतयुग में फल, लेकिन संगम युग में बीज बोया जाता है।
पुराना मन, दृष्टि, शरीर समाप्त होते हैं और
नई दृष्टि, नया भविष्य, नया संसार आरंभ होता है।

 मुरली रेफरेंस:

अव्यक्त मुरली 1980
“पुराना शरीर, मन और संस्कार — सबका अंत। यही संगम पर वरदान है।”


 6. अभ्यास: हर दिन का आत्म निरीक्षण

प्रश्न:
“मैं संगम युग में क्या समाप्त कर रहा हूँ, और स्वर्ग के लिए क्या आरंभ कर रहा हूँ?”

 उदाहरण:

  • क्रोध का अंत → सहनशीलता की शुरुआत

  • व्यर्थ विचारों का अंत → शिव बाबा की याद की शुरुआत


 7. संगम युग = ट्रांजिशन पॉइंट

यह एक फिल्म की तरह है —
जब पुरानी फिल्म का क्लाइमेक्स चलता है,
उसी समय अगली फिल्म का ट्रेलर शुरू होता है।
यही है संगम युग।

जहां पुराना मन, जीवन, दृष्टि समाप्त होती है,
वहीं आत्मा को मिलता है नया जन्म, नई अनुभूति,
और एक दिव्य भविष्य की झलक।

 मुख्य विचार:

संगम युग = अंत का आशीर्वाद + शुरुआत की वरदानमय बेला
ब्रह्मा बाबा ने अंत को सुंदर बनाया
अब हमारी बारी है — सुंदर शुरुआत की नींव रखने की।


 समापन संदेश:

यदि आप इस परिवर्तन यात्रा को और गहराई से समझना चाहते हैं,
तो नजदीकी ब्रह्मा कुमारी सेवा केंद्र पर अवश्य संपर्क करें।
ओम् शांति।

“जहां अंत है, वहीं से शुरुआत है | संगम युग का रहस्य | ब्रह्मा बाबा की दिव्य यात्रा | Brahma Kumaris Q&A”


प्रश्न 1: संगम युग को ना अंत और ना शुरुआत वाला युग क्यों कहा जाता है?

उत्तर:संगम युग एक परिवर्तनकाल है।
जब आत्मा में अंतरिक रूप से बदलाव शुरू होता है,
तभी संगम युग आरंभ होता है।
यह ना तो कलियुग का पूर्ण अंत है,
और ना ही सतयुग की स्पष्ट शुरुआत —
बल्कि यह दोनों के बीच परिवर्तन का बिंदु है।

साकार मुरली 1976:
“यह चक्र ऐसा है जहां अंत और आरंभ मिलते हैं।”


प्रश्न 2: संगम युग को पुल (ब्रिज) क्यों कहा जाता है?

उत्तर:संगम युग एक सेतु (Bridge) है —
जो अंधकारमय कलियुग और दिव्य सतयुग के बीच स्थित है।
यह वही रास्ता है जिससे आत्मा नर से नारायण बनती है।

उदाहरण:
जैसे टूटा हुआ पुल दो दिशाओं को जोड़ नहीं पाता,
लेकिन जुड़ा हुआ पुल मिलन संभव करता है।
संगम वही मिलन कराता है।


प्रश्न 3: क्या ब्रह्मा बाबा का देह छोड़ना अंत था?

उत्तर:बिल्कुल नहीं।
18 जनवरी 1969 को ब्रह्मा बाबा ने देह छोड़ी,
लेकिन उसी दिन से अव्यक्त दुनिया की सेवा शुरू हुई।
वह कोई अंत नहीं, एक दिव्य आरंभ था।

अव्यक्त मुरली – 18 जनवरी 1969:
“आज ब्रह्मा बाबा फरिश्ता बन गए। यह कोई अंत नहीं था, बल्कि शुरुआत थी अव्यक्त दुनिया की।”


प्रश्न 4: संगम युग सबसे ऊँचा युग क्यों कहलाता है?

उत्तर:क्योंकि इसी युग में आत्मा को अपना सच्चा स्वरूप,
परमात्मा की पहचान,
और राजयोग की सिखलाई मिलती है।
यहीं से मनुष्य से देवता बनने की यात्रा शुरू होती है।

उदाहरण:
जैसे रात और दिन के बीच का भोर सबसे शांत,
शुद्ध और परिवर्तनकारी समय होता है —
वैसा ही है संगम युग।


प्रश्न 5: संगम युग में “बीज रूप परिवर्तन” का क्या अर्थ है?

उत्तर:संगम युग में आत्मा बीज रूप में अपने संस्कारों को
बदलने का संकल्प लेती है।
यहां पुराना मन, दृष्टि और देह-अभिमान समाप्त होता है —
और नई जीवन यात्रा शुरू होती है।

अव्यक्त मुरली – 1980:
“पुराना शरीर, मन और संस्कार — सबका अंत। यही संगम पर वरदान है।”


प्रश्न 6: संगम युग में आत्म निरीक्षण कैसे करें?

उत्तर:हर आत्मा को रोज़ अपने आप से एक सवाल करना चाहिए:

“मैं संगम युग में क्या समाप्त कर रहा हूँ, और स्वर्ग के लिए क्या आरंभ कर रहा हूँ?”

उदाहरण:

  • क्रोध का अंत → सहनशीलता की शुरुआत

  • व्यर्थ विचारों का अंत → शिव बाबा की याद की शुरुआत


प्रश्न 7: संगम युग को ट्रांजिशन पॉइंट (Transition Point) क्यों कहते हैं?

उत्तर:यह वह काल है जहां आत्मा एक अवस्था से
दूसरी अवस्था में प्रवेश करती है।

उदाहरण:
जैसे एक फिल्म के अंत में अगली फिल्म का ट्रेलर दिखाई देता है —
संगम युग भी अंत और शुरुआत के बीच की कड़ी है।


प्रश्न 8: संगम युग का अंतिम सार क्या है?

उत्तर:जहां पुराना मन, दृष्टि और जीवन समाप्त होता है,
वहीं से आत्मा को मिलता है नया जन्म,
नई अनुभूति और दिव्य भविष्य

मुख्य विचार:
संगम युग = अंत का आशीर्वाद + शुरुआत की वरदानमय बेला
ब्रह्मा बाबा ने अंत को सुंदर बनाया
अब हमारी बारी है सुंदर शुरुआत की नींव रखने की।


 अंतिम संदेश:

यदि आप भी इस परिवर्तनकाल को समझना चाहते हैं,
तो नजदीकी ब्रह्मा कुमारी सेवा केंद्र पर संपर्क करें।
ओम् शांति।

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