(91)गीता का भगवान कौन है?

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गीता का भगवान कौन है?
आज हम इसका 91वा हिस्सा पाठ करेंगे।

भगवान का जन्म दिव्य है, श्री कृष्ण का नहीं

भगवान का जन्म दिव्य है। श्री कृष्ण का नहीं।

क्या श्री कृष्ण ही जगत पिता है? क्या श्री कृष्ण ही जगत के पिता हैं?

आज हम एक अत्यंत गूढ़ रहस्य जानेंगे –
गीता में वर्णित भगवान का जन्म कैसे दिव्य है।
और क्यों श्री कृष्ण का जन्म उसी प्रकार का नहीं था जैसा गीता में कहा गया है।

जो कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने गीता कही, जब वास्तव में गीता सुनाई जा रही थी, उसमें परमात्मा के जन्म के बारे में कहा गया है।
परंतु वैसा जन्म कृष्ण का नहीं हुआ।


भगवान का दिव्य जन्म क्या है?

गीता अध्याय 4 श्लोक 6
संस्कृत में:
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा
भूतानामीश्वरोपि सन्
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय
संभवाम्यात्ममायया॥

हिंदी में
यद्यपि मैं अजन्मा, अविनाशी और समस्त प्राणियों का ईश्वर हूं।
फिर भी अपनी प्रकृति पर नियंत्रण रखते हुए अपनी आत्म-माया से प्रकट होता हूं।

बाबा कह रहे हैं:
मैं अजन्मा हूं।
मैं जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता।
मैं अविनाशी हूं और आत्माओं का ईश्वर हूं।


दूसरा श्लोक

गीता अध्याय 4 श्लोक 9
“जन्म कर्म च मे दिव्यम्…”

हे अर्जुन, जो मेरे दिव्य जन्म और कर्मों को तत्व से जान लेता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनर्जन्म नहीं लेता बल्कि मेरे धाम को प्राप्त होता है।

इसका भाव है –
भगवान का जन्म साधारण मनुष्य जैसा नहीं।
वे माता के गर्भ से नहीं जन्म लेते।
बल्कि परमधाम से आकर किसी साधारण तन में प्रवेश करते हैं। इसे परकाया प्रवेश कहते हैं।


उदाहरण

जैसे बिजली बल्ब में आती है तो बल्ब नया नहीं बनता,
लेकिन प्रकाश से जगमगा उठता है।
ऐसे ही शिव आत्मा ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर गीता का ज्ञान देती है।

सत्यनारायण की आरती में भी कहा है –
“बूढ़ा ब्राह्मण बनके कंचन महल किए।”
अर्थात परमात्मा सामान्य रूप लेकर स्वर्णिम दुनिया का निर्माण करते हैं।


श्रीकृष्ण का जन्म

भागवत में वर्णन है कि कृष्ण का जन्म माता-पिता देवकी और वासुदेव से हुआ।
उनका जन्म देवताई सतोप्रधान शरीर से हुआ, साधारण काया से नहीं।


भगवान को कोई नहीं पहचानता

गीता 7.24 में कहा गया –
“अव्यक्तं व्यक्तिमापनं…”

मनुष्य अव्यक्त परमात्मा को शरीरधारी मानते हैं।
परंतु परमात्मा कहते हैं:
मैं अजन्मा, अविनाशी और अशरीरी हूं।
फिर भी मुझे व्यक्त रूप वाला मान लिया जाता है।

गीता 7.25 में –
“नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः…”
मैं योगमाया से आवृत होकर सबके लिए प्रकट नहीं होता।
केवल कुछ ही आत्माओं को प्रकट होता हूं।


अर्जुन का अनुभव

गीता अध्याय 10 श्लोक 12-14 में अर्जुन कहता है:
“आप परमब्रह्म, परमधाम, परमपवित्र हैं।
आप शाश्वत, दिव्य, आदिदेव, अजन्मा हैं।”

यह शब्द श्रीकृष्ण के लिए लागू नहीं होते, क्योंकि कृष्ण तो जन्मे और देहधारी थे।
यह केवल उस परमात्मा के लिए हैं जो परमधाम से अवतरित होता है।


👉 सार यही है कि गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं, शिव परमात्मा हैं
उनका जन्म साधारण नहीं बल्कि दिव्य, परकाया प्रवेश के रूप में होता है।

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