आगे बढ़ने की रेस में किन बातों पर ध्यान दे-4
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
शांति की राह में भोलेपन का सही अर्थ समझें
1. सच्ची शांति की रेस में — ‘भोलेपन’ का क्या स्थान है?
बाबा ने 8 अप्रैल 1992 को बेहद गहराई से समझाया कि —
बहुत भोले बन जाते हैं और कहते हैं,
“मैं जो हूं, जैसी हूं — आपकी हूं, बाबा!”
तो बाबा भी कहता है, “तुम जो हो, जैसे हो — मेरे हो!”
लेकिन साथ में एक ‘लेकिन’ जुड़ जाता है।
प्रश्न उठता है — क्या ये भोलेपन की बात हमें आगे ले जाती है, या कहीं रोक देती है?
2. दिल से भोले बनो — बातों और कर्मों में नहीं
दिल से भोले बनना श्रेष्ठ है —
ऐसे भोले भोलानाथ के प्यारे बनते हैं।
लेकिन बातों में भोले?
स्वयं को भी धोखा देते हैं, दूसरों को भी।
कर्मों में भोले?
नुकसान करते हैं — स्वयं का भी और सेवा का भी।
उदाहरण:
“बोलना नहीं था, लेकिन बोल दिया” —
यह त्रिकालदर्शी बनने की कमी दर्शाता है।
3. ज्ञान का भोला मत बनो — अज्ञान का भोला बनो
बाबा ने स्पष्ट कहा:
“ज्ञान का भोला बनकर कर्म के परिणामों को न जान पाना — यह नुकसानदायक है।”
ज्ञान का अर्थ है —
हर कर्म के परिणाम को जानकर कर्म करना।
धारणा:
-
भोला बनना है? — दिल का भोला बनो।
-
ज्ञान में भोला? — नहीं, त्रिकालदर्शी और नॉलेजफुल बनो।
4. विकर्मों के प्रति स्नेही नहीं, कठोर दृष्टि रखो
12 अप्रैल 1984 की मुरली में बाबा ने कहा:
“पवित्रता के भिन्न-भिन्न रूपों को जानो। स्वयं पर कड़ी दृष्टि रखो।”
यह धारणा जरूरी है कि —
सेवा के नाम पर भी कोई प्रभावित कर रहा है, तो वह भी विकर्म है।
“सेवा का साधन है”, “मदद कर रहा है” — ये सब बहाने बन जाते हैं,
और फिर अंत में बाप को भूल जाते हैं।
बाबा ने स्पष्ट किया:
“बाप को भूले तो धर्मराज के रूप में बाप मिलेगा।”
5. विकारों के प्रति सख्त बनो — रहमदिल नहीं
“मृगतृष्णा के आकर्षण में धोखा मत खाओ।”
काम विकार — नर्क का द्वार।
कामना और वासना — धोखे का द्वार।
बाबा कहता है —
“इस पर काली रूप बनो, स्नेह रूप नहीं।”
उदाहरण:
“अच्छा है, थोड़ा-थोड़ा है, ठीक हो जाएगा” — नहीं!
यह सोच आत्मा को नीचे गिरा देती है।
6. स्वयं को जांचो: योग नहीं लगता तो कारण क्या है?
बाबा कहता है —
“ब्राह्मण आत्मा और योग न लगे — यह हो नहीं सकता।”
यदि योग नहीं लग रहा —
तो कोई छिपा विकर्म हमें खींच रहा है।
अंतर्मंथन:
-
मेरी बुद्धि कहाँ-कहाँ खिंचती है?
-
क्या कहीं कोई अल्पकालिक कामना है?
-
क्या मैं ज्ञान का भोला बनकर स्वयं को ढक रहा हूं?
7. निष्कर्ष: भोलेपन को गुण बनाओ, कमजोरी नहीं
दिल से भोले बनो — प्यारे बनो।
बातों में, कर्म में भोले बनकर स्वयं को धोखा मत दो।
याद रखो:
“जो जैसा करेगा, वैसा फल पाएगा” — इसलिए हर कर्म के प्रति जिम्मेदार बनो।
प्रश्न 1: सच्ची शांति की रेस में ‘भोलेपन’ का क्या स्थान है?
उत्तर:बाबा ने 8 अप्रैल 1992 को कहा — बहुत भोले बनकर कहते हैं, “मैं जो हूं, जैसी हूं — आपकी हूं बाबा।”
बाबा भी स्वीकार करता है, पर साथ में ‘लेकिन’ जोड़ देता है।
भोलेपन का स्थान तभी श्रेष्ठ है जब वह आत्मिक सच्चाई और समर्पण से भरा हो — न कि लापरवाही से।
प्रश्न 2: बाबा ‘दिल से भोले’ और ‘बातों/कर्म में भोले’ में क्या फर्क बताते हैं?
उत्तर: दिल से भोले — अर्थात सच्चे, सरल और निष्कपट — ये भोलानाथ के प्यारे होते हैं।
लेकिन बातों में भोले — धोखा देना या बहाना बनाना हो जाता है।
कर्म में भोले — अनजाने में नुकसान कर बैठते हैं।
उदाहरण:
“बोलना नहीं चाहिए था, पर बोल दिया” — यह त्रिकालदर्शी न बनने का संकेत है।
प्रश्न 3: ज्ञान में भोला बनना क्या सही है?
उत्तर:हीं। बाबा कहते हैं — “ज्ञान का भोला बनकर कर्म करोगे, तो नुकसान होगा।”
ज्ञान के अनुसार हर कर्म के परिणाम को जानकर ही कर्म करना चाहिए।
ज्ञान का भोला बनना = जिम्मेदारी से भागना।
प्रश्न 4: विकार या कामना के प्रति क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए?
उत्तर:बाबा कहते हैं — “स्नेह रूप नहीं, काली रूप बनो।”
थोड़ा-थोड़ा सोचकर रहम मत दिखाओ।
मृगतृष्णा के समान कोई भी कामना, चाहे सेवा के नाम पर हो, आत्मा को नीचे गिरा देती है।
प्रश्न 5: सेवा में भी जब हम ‘प्रभावित’ होते हैं, तो वो विकर्म क्यों कहलाता है?
उत्तर:क्योंकि उसमें ‘बाप’ को भूलकर किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भरता आ जाती है।
“वो मदद कर रहा है, इसलिए हम प्रभावित हैं” — यह भी विकार की शुरुआत है।
बाबा कहते हैं: “बाप को भूले — तो धर्मराज के रूप में मिलेगा।”
प्रश्न 6: यदि योग नहीं लगता तो क्या संकेत समझें?
उत्तर:बाबा ने कहा — ब्राह्मण आत्मा और योग न लगे — यह हो ही नहीं सकता।
यदि योग नहीं लग रहा, तो कोई छिपा हुआ विकर्म बुद्धि को खींच रहा है।
आत्म-जांच करें —
-
क्या कोई कामना है?
-
क्या कोई संबंध या बात मन को बार-बार खींच रही है?
प्रश्न 7: भोलेपन को कैसे गुण बनाएं, न कि कमजोरी?
उत्तर: दिल से भोले बनें — निष्कपट, सच्चे, समर्पित।
बातों में भोले बनकर बहाने मत बनाएं।
कर्मों में भोले बनकर त्रिकालदर्शीता न छोड़ें।
धारणा:
“जो जैसा करेगा, वैसा फल पाएगा” — इस ज्ञान के साथ हर कर्म को जिम्मेदारी से करें।
समाप्ति संदेश:
भोले बनो — लेकिन ज्ञानयुक्त भोले, दायित्वपूर्ण भोले, दिल से सच्चे भोले।
भोलेपन की आड़ में गलती करना, सेवा बिगाड़ना या कर्मफल से बचना — यह शांति की राह में रुकावट है।
दिल के भोले — भोलानाथ के प्यारे। ज्ञान के भोले — खुद को धोखा देने वाले।
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