Brahma is the Trimurti: one soul with three forms

ब्रह्मा ही त्रिमूर्ति: एक आत्मा तीन रूप

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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ब्रह्मा ही त्रिमूर्ति: एक आत्मा तीन रूपों में कैसे कार्य करती है? | ब्रह्मा की आत्मा का अद्भुत रहस्य | BK Hindi Gyan


ओम शांति: प्रारंभिक निवेदन

सर्व आत्माओं को साकार बाप, त्रिमूर्ति शिव द्वारा जो परम सत्य गुप्त ज्ञान दिया गया है, आज हम उस रहस्य को उजागर करेंगे — कि ब्रह्मा की आत्मा ही त्रिमूर्ति के तीनों रूपों में कैसे कार्य करती है।


1. त्रिमूर्ति का वास्तविक अर्थ — शिव और ब्रह्मा का संबंध

  • बाबा कहते हैं: “मैं एक को ही रथ बनाता हूँ। अनेकों को नहीं।”

  • शिव बाबा स्वयं त्रिमूर्ति हैं, पर त्रिमूर्ति के तीन कार्यों को ब्रह्मा की आत्मा द्वारा ही संपन्न कराते हैं।

  • त्रिमूर्ति का अर्थ है:

    • ब्रह्मा – सृजनकर्ता

    • शंकर – संहारकर्ता (विनाश के संकल्प द्वारा)

    • विष्णु – पालक देवता (भविष्य के लिए सिद्ध स्वरूप)


2. मुरली वाक्य का गहरा अर्थ: “ब्रह्मा की आत्मा ही तीनों पार्ट बजाती है”

  • साकार मुरली में बाबा कहते हैं:

    “ब्रह्मा की आत्मा ही तीनों पार्ट बजाती है।”
    “मैं एक को ही रथ बनाता हूं, फिर उसी से तीनों कार्य कराता हूं।”

  • इसका अर्थ है कि शिव बाबा संगमयुग पर केवल ब्रह्मा की आत्मा को ही माध्यम बनाकर त्रिमूर्ति के तीनों कार्य कराते हैं।


3. साकार से अव्यक्त तक: तीन अवस्थाएं, एक आत्मा

(1936–1969): साकार ब्रह्मा रूप – सृजन का कार्य

  • 18 जनवरी 1936 को बाबा ने रूहानी ज्ञान की ‘विल’ बनाई – यह ज्ञान-यज्ञ का आरंभ है।

  • 33 वर्षों तक ब्रह्मा बाबा ने साकार देह में रहकर शिवबाबा की श्रीमत से यज्ञ रचा।

  • 18 जनवरी 1969 को ब्रह्मा बाबा ने देह का त्याग कर दिया।

(1969–2002): अव्यक्त शंकर रूप – संकल्प संहार का कार्य

  • 18 जनवरी 1969 से, ब्रह्मा बाबा अव्यक्त वतन में रहकर अव्यक्त शक्ति के रूप में कार्य करते रहे।

  • इसी समय को बाबा कहते हैं –

    “ब्रह्मा बाप ने स्वयं साकार जिम्मेवारियां मुरब्बी बच्चों को अर्पण की।”

  • यह समय है संकल्पों द्वारा पुरानी दुनिया के विनाश का — शंकर रूप।

(2002–Future): सिद्ध विष्णु रूप – साकार पालना का कार्य

  • अनुमानतः 2002 से ब्रह्मा बाबा की आत्मा सिद्ध अवस्था में स्थित हो जाती है —

    विष्णु रूप में, भविष्य की पालना का बीज रूप।

  • भविष्य में वही आत्मा श्रीकृष्ण रूप में अवतरित होकर पालन करता है।


4. गुप्त कालगणना: 100 वर्ष का संगमयुग और तीन भाग

  • संगमयुग = 100 वर्ष

    • 33 वर्ष – साकार ब्रह्मा रूप (1936–1969)

    • 33 वर्ष – अव्यक्त शंकर रूप (1969–2002)

    • 33 वर्ष – सिद्ध विष्णु रूप (2002–2035?)

    • 1 वर्ष – वापसी का वर्ष (2036)

  • यह अनुमान बाबा की मुरलियों और व्यवहारिक घटनाओं पर आधारित है, न कि ज्योतिष या भविष्यवाणी।


5. त्रिमूर्ति की एकात्मता: एक आत्मा, तीन कार्य

  • यह सबसे गहरा और मधुर ज्ञान है —

    एक आत्मा ब्रह्मा की, जो शिव के रथ बनी,
    वही आत्मा संगम पर तीनों कार्यों – सृजन, संहार और पालना – को पूर्ण करती है।

  • त्रिमूर्ति के नाम तो अलग हैं — पर रचना, विनाश और पालना में आत्मा एक ही है।

  • ब्रह्मा ही त्रिमूर्ति: एक आत्मा तीन रूपों में कैसे कार्य करती है? | ब्रह्मा की आत्मा का अद्भुत रहस्य | BK Hindi Gyan


    प्रश्नोत्तरी रूपांतरण: “ब्रह्मा ही त्रिमूर्ति” का गहन ज्ञान


    प्रश्न 1: त्रिमूर्ति का असली अर्थ क्या है? क्या शिव ही त्रिमूर्ति हैं?

    उत्तर:हाँ, त्रिमूर्ति वास्तव में शिव ही हैं।
    परन्तु शिव बाबा संगम युग पर अपने तीन कार्य —
    सृजन (ब्रह्मा), संहार (शंकर), और पालना (विष्णु)
    ब्रह्मा की आत्मा के माध्यम से ही कराते हैं।
    इसलिए त्रिमूर्ति के पीछे कार्यकर्ता एक ही आत्मा है — ब्रह्मा की आत्मा।


    प्रश्न 2: बाबा जब कहते हैं “मैं एक को ही रथ बनाता हूँ”, तो उसका क्या अर्थ है?

    उत्तर:इस मुरली वाक्य का अर्थ है कि शिव बाबा संगम युग पर केवल ब्रह्मा की आत्मा को ही माध्यम बनाते हैं।
    वह अनेकों आत्माओं से काम नहीं लेते, बल्कि त्रिमूर्ति के तीनों कार्य एक ही आत्मा (ब्रह्मा) से कराते हैं।


    प्रश्न 3: “ब्रह्मा की आत्मा ही तीनों पार्ट बजाती है” – इसका क्या गुप्त रहस्य है?

    उत्तर:इस वाक्य का अर्थ है कि ब्रह्मा की आत्मा ही साकार ब्रह्मा, अव्यक्त शंकर और भविष्य के विष्णु तीनों रूपों में कार्य करती है।
    यही त्रिमूर्ति का अद्भुत रहस्य है —
    तीनों देवता नहीं, बल्कि एक ही आत्मा द्वारा निभाए गए तीन रूप हैं।


    प्रश्न 4: ब्रह्मा की आत्मा तीन अवस्थाओं में कैसे कार्य करती है?

    उत्तर:

    1. (1936–1969): साकार ब्रह्मा रूप

      • सृष्टि की रचना — ज्ञान-यज्ञ का आरंभ

    2. (1969–2002): अव्यक्त शंकर रूप

      • संकल्पों द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश

    3. (2002–Future): सिद्ध विष्णु रूप

      • भविष्य की पालना के लिए संपूर्ण देवता स्वरूप में स्थित


    प्रश्न 5: संगमयुग की अवधि और तीन चरणों को कैसे समझें?

    उत्तर:
    संगमयुग = 100 वर्ष (अनुमानतः)

    • 33 वर्ष – ब्रह्मा रूप (1936–1969)

    • 33 वर्ष – शंकर रूप (1969–2002)

    • 33 वर्ष – विष्णु रूप (2002–2035?)

    • 1 वर्ष – वापसी का वर्ष (2036)

    यह कालगणना मुरली संकेतों व व्यवहारिक घटनाओं पर आधारित अनुमान है, न कि भविष्यवाणी।


    प्रश्न 6: क्या त्रिमूर्ति वास्तव में तीन आत्माएँ हैं या एक ही आत्मा के तीन रूप हैं?

    उत्तर:त्रिमूर्ति के नाम भिन्न हैं – ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
    परन्तु संगमयुग पर तीनों कार्यों को करने वाली आत्मा एक ही है — ब्रह्मा की आत्मा।
    यही कारण है कि बाबा कहते हैं:
    “ब्रह्मा की आत्मा ही तीनों पार्ट बजाती है।”


    प्रश्न 7: क्या यह ज्ञान भविष्य के श्रीकृष्ण के जन्म से भी जुड़ा है?

    उत्तर:हाँ।वही ब्रह्मा की आत्मा, जो संगम पर त्रिमूर्ति के तीनों कार्य करती है,
    भविष्य में ही श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेती है
    यानी पालनहार विष्णु रूप का साकार अवतरण।

    अंतिम संदेश:

    यह गुप्त रहस्य बाबा ने केवल आत्मिक बच्चों को दिया है।
    जो “एक को रथ” समझ लेता है, वह त्रिमूर्ति के गूढ़ ज्ञान को पा लेता है।
    ओम शांति।

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