अव्यक्त मुरली-06/“विश्व का उद्धार – आधारमूर्त आत्माओं पर निर्भर” रिवाइज: 12-01-1982
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
12-01-1982 “विश्व का उद्धार – आधारमूर्त आत्माओं पर निर्भर”
आज बापदादा विश्व की आधारमूर्त आत्माओं को देख रहे हैं। सर्वश्रेष्ठ आत्मा विश्व के आधारमूर्त हो। आप श्रेष्ठ आत्माओं की ही चढ़ती कला वा उड़ती कला होती है तो सारे विश्व का उद्धार करने के निमित्त बन जाते हो। सर्व आत्माओं की जन्म-जन्मान्तर की आशायें मुक्ति वा जीवनमुक्ति प्राप्त करने की, स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। आप श्रेष्ठ आत्मायें मुक्ति अर्थात् अपने घर का गेट खोलने के निमित्त बनती हो तो सर्व आत्माओं को स्वीट होम का ठिकाना मिल जाता है। बहुत समय का दु:ख और अशान्ति समाप्त हो जाती है क्योंकि शान्तिधाम के निवासी बन जाते हैं। जीवनमुक्ति के वर्से से वंचित आत्माओं को वर्सा प्राप्त हो जाता है। इसके निमित्त अर्थात् आधारमूर्त श्रेष्ठ आत्मायें, बाप आप बच्चों को ही बनाते हैं। बापदादा सदा कहते – पहले बच्चे पीछे हम। आगे बच्चे पीछे बाप। ऐसे ही सदा चलाते आये हैं। ऐसे विश्व के आधारमूर्त अपने को समझकर चलते हो? बीज के साथ-साथ वृक्ष की जड़ में आप आधारमूर्त श्रेष्ठ आत्माये हो। तो बापदादा ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं से मिलन मनाने के लिए आते हैं। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो जो निराकार और आकार को भी आप समान साकार रुप में लाते हो। तो कितने श्रेष्ठ हो गये! ऐसे अपने को समझते हुए हर कर्म करते हो? इस समय स्मृति स्वरुप से सदा समर्थ स्वरुप हो ही जायेंगे। यह एक अटेन्शन स्वत: ही हद के टेन्शन को समाप्त कर देता है। इस अटेन्शन के आगे किसी भी प्रकार का टेन्शन, अटेन्शन में परिवर्तित हो जायेगा और इसी स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन सहज हो जायेगा। यह अटेन्शन ऐसा जादू का कार्य करेगा जो अनेक आत्माओं के अनेक प्रकार के टेन्शन को समाप्त कर बाप तरफ अटेन्शन खिंचवायेगा। जैसे आजकल सांइस के अनेक साधन ऐसे हैं – स्विच ऑन करने से चारों ओर का किचड़ा, गंदगी अपने तरफ खींच लेते हैं। चारों ओर जाना नहीं पड़ता लेकिन पॉवर द्वारा स्वत: ही खिंच जाता है। ऐसे साइलेंस की शक्ति द्वारा, इस अटेन्शन के समर्थ स्वरुप द्वारा, अनेक आत्माओं के टेन्शन समाप्त कर देंगे अर्थात् वे आत्मायें अनुभव करेंगी कि हमारा टेन्शन जो अनेक प्रयत्न से बहुत समय से परेशान कर रहा था वह कैसे समाप्त हो गया। किसने समाप्त किया! इसी अनुभूति द्वारा अटेन्शन जायेगा – शिव शक्ति कम्बाइण्ड रुप की तरफ।
तो टेन्शन अटेन्शन में बदल जायेगा ना! अभी तो बार-बार अटेन्शन दिलाते हो “याद करो – याद करो” लेकिन जब आधारमूर्त शक्तिशाली स्वरुप में स्थित हो जायेंगे तो दूर बैठे भी अनेकों के टेन्शन को खींचने वाले, सहज अटेन्शन खिंचवाने वाले सत्य तीर्थ बन जायेंगे। अभी तो आप ढूंढने जाते हो। ढूंढने के लिए कितने साधन बनाते हो और फिर वे लोग आपको ढ़ूंढने आयेंगे, वा सदा आप ही ढूंढते रहेंगे?
साइंस भी श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ कार्य में सहयोगी है। थोड़ी-सी हलचल होने दो और स्वयं को अचल बना दो फिर देखो आप रुहानी चुम्बक बन अनेक आत्माओं को कैसे सहज खींच लेंगे क्योंकि दिन प्रतिदिन आत्मायें ऐसी निर्बल होती जायेंगी जो अपने पुरुषार्थ के पाँव से चलने योग्य भी नहीं होंगी। ऐसी निर्बल आत्माओं को आप शक्ति स्वरुप आत्माओं की शक्ति अपने शक्ति के पाँव दे करके चलायेगी अर्थात् बाप के तरफ खींच लेगी।
ऐसी सदा उड़ती कला के अनुभवी बनो तो अनेक आत्माओं को दु:ख, अशान्ति की स्मृति से उड़ाकर ठिकाने पर पहुंचा दो। अपने पंखो से उड़ना पड़ेगा। पहले स्वयं ऐसे समर्थ स्वरुप होंगे तब सत्य तीर्थ बन इन अनेकों को पावन बनाए मुक्ति अर्थात् स्वीट होम की प्राप्ति करा सकेंगे। ऐसे आधारमूर्त हो।
तो आज बापदादा ऐसे आधारमूर्त बच्चों को देख रहे हैं। अगर आधार ही हिलता रहेगा तो औरों का आधार कैसे बन सकेंगे। इसलिए आप अचल बनो तो दुनिया में हलचल शुरु हो जाए। और जरा-सी हलचल अनेकों को बाप तरफ सहज आकर्षित करेगी। एक तरफ कुम्भकरण जगेंगे, दूसरे तरफ कई आत्मायें जो सम्बन्ध वा सम्पर्क में भी आई हैं लेकिन अभी अलबेलेपन की नींद में सोई हुई हैं, तो ऐसे अलबेलेपन की नींद में सोई हुई आत्मायें भी जगेंगी। लेकिन जगाने वाले कौन? आप अचल मूर्त आत्मायें। समझा! सेवा का रुप ऐसे बदलने वाला है। इसके लिए सदा शिव शक्ति स्वरुप। अच्छा।
ऐसे सदा शान्ति और शक्ति स्वरुप, अपने समर्थ स्थिति द्वारा अनेकों को स्मृति दिलाने वाले, टेन्शन समाप्त कर अटेन्शन खिंचवाने वाले, ऐसे आधारमूर्त विश्व परिवर्तक बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
18 जनवरी स्मृति दिवस की सर्व बच्चों को यादप्यार देते हुए अव्यक्त बापदादा बोले:-
18 जनवरी की यादप्यार तो है ही 18 अध्याय का समर्थी स्वरुप। 18 जनवरी क्या याद दिलाती है? सम्पन्न फरिश्ता स्वरुप। फालो फादर का पाठ हर सेकेण्ड, हर संकल्प में स्मृति दिलाता है। ऐसे ही अनुभवी हो ना? 18 जनवरी के दिवस सब कहाँ होते हैं? साकार वतन में वा आकारी फरिश्तों के वतन में? तो 18 जनवरी सदा फरिश्ता स्वरुप, सदा फरिश्तों के दुनिया की स्मृति दिलाती है अर्थात् समर्थ स्वरुप बनाती है। है ही याद दिवस तो याद स्वरुप बनने का यह दिन है। तो समझा 18 जनवरी क्या है? ऐसे सदा बनना। यही स्मृति बार-बार दिलाती है। तो 18 जवनरी का यादप्यार हुआ – “बाप समान बनना”, सम्पन्न स्वरुप बनना। अच्छा, सभी को पहले से ही स्मृति की यादप्यार पहुंच ही जायेगी। अच्छा।
विश्व का उद्धार – आधारमूर्त आत्माओं पर निर्भर
18 जनवरी का यादप्यार — “बाप समान बनो, समर्थ स्वरुप बनो”
प्रस्तावना:
बापदादा आज विश्व कल्याण के आधारमूर्त आत्माओं से मिलन मनाने आए। ये वही श्रेष्ठ आत्माएँ हैं जिनके समर्थ स्वरुप से न केवल स्वयं का कल्याण होता है, बल्कि सारे विश्व का उद्धार भी संभव होता है।
1. श्रेष्ठ आत्माएँ – विश्व उद्धार की आधारशिला
“आप श्रेष्ठ आत्मायें ही उड़ती कला वाले बन विश्व उद्धार के निमित्त बनते हो।”
बापदादा ने कहा कि ऐसी श्रेष्ठ आत्माएँ ही वृक्ष की जड़ समान हैं, जो सबको शक्ति व सहारा देती हैं।
इनकी स्थिति जितनी अडोल और अचल होगी, उतनी ही तीव्र गति से विश्व का परिवर्तन होगा।
उदाहरण: जैसे बीज मजबूत होता है, तो पूरा वृक्ष फलदायी होता है।
वैसे ही ये आत्माएँ आधार बन पूरे विश्व को शान्तिधाम और जीवनमुक्ति की ओर ले जाती हैं।
2. टेन्शन को अटेन्शन में बदलने वाली शक्ति
“अटेन्शन ऐसा जादू करेगा जो अनेक आत्माओं के टेन्शन को समाप्त कर बाप की ओर खींच लाएगा।”
जब ये आत्माएँ स्मृति स्वरुप बनती हैं, तो उनमें साइलेंस की शक्ति उत्पन्न होती है।
यह शक्ति दूर-दराज की आत्माओं के मानसिक तनाव को समाप्त कर देती है।
साइंस का उदाहरण: जैसे कोई मशीन गंदगी को खींच लेती है, वैसे ही आत्मा की शक्ति भी मानसिक गंदगी को खींच लेती है।
3. सत्य तीर्थ – दूर से सेवा करने वाले आत्माएँ
“जब आप समर्थ स्वरुप में स्थित हो जाते हैं, तो दूर बैठे आत्माओं को भी सहज अटेन्शन खिंच जाता है।”
इन आत्माओं को फिर किसी को ढूंढने की आवश्यकता नहीं रहती — आत्माएँ स्वयं खिंचकर इनके पास आती हैं।
ये आत्माएँ “चलते-फिरते तीर्थ” बन जाती हैं।
4. उड़ती कला का अनुभव – शक्ति स्वरुप बनो
“अनेक आत्माओं को दु:ख और अशान्ति की स्मृति से उड़ाकर ठिकाने पर पहुँचाना – यही उड़ती कला है।”
स्वयं की स्थिति जितनी हल्की, जितनी उन्नत, उतनी ही दूसरों को उठाने की शक्ति।
व्यक्तिगत अभ्यास:
अपने पंख स्वयं फैलाओ – संकल्प, स्मृति, संकल्प शक्ति के पंख।
तभी दूसरों को भी उड़ने में सहायता कर सकोगे।
5. अचल आधार बनो – हलचल को आकर्षण में बदलो
“अगर आधार ही हिलता रहेगा तो औरों का आधार कैसे बनोगे?”
आज की सेवा की मांग है – स्थिर चुम्बक बनना।
संकट में भी अचल रहना — यही सबसे बड़ा आकर्षण है।
कुम्भकरण आत्माओं को जगाने के लिए स्वयं को जाग्रत और अडोल बनाओ।
6. शिव शक्ति कम्बाइन्ड स्वरुप की सेवा
“बाप स्वयं पीछे और बच्चों को आगे चलाते हैं।”
स्मृति में रहो कि बापदादा बच्चों को आगे रखकर कार्य कराते हैं।
तो आपको भी बाप समान बन उनके कम्बाइन्ड स्वरुप का अनुभव कराते चलना है।
7. 18 जनवरी – स्मृति का समर्थ स्वरुप
“18 जनवरी याद दिलाती है सम्पन्न फरिश्ता स्वरुप की। हर संकल्प में फॉलो फादर की स्मृति।”
18 जनवरी न केवल स्मृति दिवस है, यह बाप समान बनने का दिवस है।
यह दिन याद दिलाता है कि हम सदा फरिश्ता स्वरुप में रहें — संकल्प, स्वरुप और सेवा सभी में।
प्रश्न:
18 जनवरी को कहाँ होते हैं?
— उत्तर: साकार वतन में नहीं, बल्कि फरिश्तों के वतन में।
अर्थात् सदा समर्थ स्थिति में।
निष्कर्ष:
“समर्थ स्वरुप बनो तो अनेक आत्माओं के टेन्शन को अटेन्शन में बदल सकोगे।”
18 जनवरी की याद केवल एक भावनात्मक मिलन नहीं, बल्कि एक संकल्पिक क्रान्ति है —
“अब मुझे बाप समान समर्थ बनना है। यही सच्चा यादप्यार है।”
मूल भावना:
“बापदादा कहते हैं – पहले बच्चे, पीछे बाप।”
अब समय है, समर्थ स्थिति में स्थित होकर शिव शक्ति कम्बाइन्ड स्वरुप में सेवा करने का।
संदेश:
“18 जनवरी का यादप्यार – 18 अध्याय की तरह सम्पूर्णता की याद दिलाए।”
बाप समान समर्थ बनो — यही सच्चा श्रद्धा-सुमन है।
प्रश्न 1: आधारमूर्त आत्माएँ किन्हें कहा गया है?
उत्तर: वे श्रेष्ठ आत्माएँ जो समर्थ स्थिति में स्थित होकर विश्व का उद्धार करती हैं।
प्रश्न 2: श्रेष्ठ आत्माएँ किसके समान मानी गई हैं?
उत्तर: वृक्ष की जड़ या बीज के समान, जो सम्पूर्ण वृक्ष को आधार देती हैं।
प्रश्न 3: उड़ती कला किसे कहा गया है?
उत्तर: स्वयं हल्का बनकर, दूसरों को भी दु:ख और अशान्ति से मुक्त कर ठिकाने तक पहुँचाना।
प्रश्न 4: टेन्शन को अटेन्शन में कैसे बदला जा सकता है?
उत्तर: स्मृति स्वरुप बनने से उत्पन्न साइलेंस की शक्ति से मानसिक तनाव समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 5: सत्य तीर्थ बनने का अर्थ क्या है?
उत्तर: समर्थ स्थिति में स्थित होकर दूर से आत्माओं को खींचना, स्वयं तीर्थ स्वरुप बन जाना।
प्रश्न 6: विज्ञान की कौन-सी विशेषता को आत्मा की शक्ति से जोड़ा गया है?
उत्तर: जैसे स्विच ऑन करते ही मशीन गंदगी खींचती है, वैसे ही साइलेंस की शक्ति आत्माओं का टेन्शन खींच लेती है।
प्रश्न 7: सच्चा आधार बनने के लिए कौन-सी स्थिति जरूरी है?
उत्तर: अचल और अडोल स्थिति ही सच्चा आधार बनाती है।
प्रश्न 8: 18 जनवरी किस स्वरुप की स्मृति दिलाता है?
उत्तर: सम्पन्न फरिश्ता स्वरुप की स्मृति।
प्रश्न 9: 18 जनवरी को आत्माएँ कहाँ स्थित होती हैं?
उत्तर: फरिश्तों के वतन में — अर्थात् सदा समर्थ स्थिति में।
प्रश्न 10: बापदादा “पहले बच्चे, पीछे बाप” क्यों कहते हैं?
उत्तर: क्योंकि बाप बच्चों को आगे रखकर स्वयं पीछे चलकर कार्य कराते हैं — यही कम्बाइन्ड स्वरुप की पहचान है।
प्रश्न 11: 18 जनवरी को मनाना क्या दर्शाता है?
उत्तर: यह स्मृति दिलाने का दिन है — “अब मुझे बाप समान समर्थ स्वरुप बनना है।”
प्रश्न 12: सेवा के रूप में आज की सबसे बड़ी आवश्यकता क्या है?
उत्तर: स्थिर चुम्बक बनना — अचल रहकर हलचल वाली आत्माओं को खींचना।
प्रश्न 13: आत्मा के कौन-से “पंख” उड़ने में सहायक हैं?
उत्तर: संकल्प, स्मृति और संकल्प-शक्ति के पंख।
प्रश्न 14: समर्थ स्वरुप की सेवा का परिणाम क्या होता है?
उत्तर: अनेक आत्माओं का टेन्शन समाप्त होकर उनका अटेन्शन परमात्मा की ओर खिंच जाता है।
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