(07)”कर्मेन्द्रिय जी ही विश्र्व राज्य अधिकारी” रिवाइज:14-01-1982
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
कर्मेन्द्रिय जीत की गहराई
ओम् शांति।
आज का यह दिव्य संदेश हमें स्मृति दिलाता है कि कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना कोई साधारण साधना नहीं, बल्कि विश्व राज्य के सिंहासन पर बैठने की पहली शर्त है। आवाज़ में आने के लिए साधन अपनाते हैं, लेकिन आवाज़ से परे स्थित आत्मा, स्वयं को सहजता से परम स्थिति में स्थित कर सकती है।
आवाज़ से परे की स्थिति – संकल्पों की महारत
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बापदादा स्वयं भी इस साकार शरीर में आकर आवाज़ का सहारा लेते हैं।
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लेकिन सच्चा योगी वह है जो आवाज़ से परे, साधनों से परे, स्थिति में स्थित हो जाता है।
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क्या हमारी संकल्प शक्ति इतनी सशक्त है कि जब चाहें, संकल्प को विस्तार में लाएं और जब चाहें, फुलस्टॉप लगा दें?
कर्मेन्द्रियों पर राज्य – प्रजापति बनने की तैयारी
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हे आत्मा, क्या आपकी हर कर्मेन्द्रिय “जी हज़ूर” करती है?
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यदि आंख, कान, जिह्वा आदि पर इतना नियंत्रण हो कि केवल इशारे से चल सकें, तभी आत्मा को कहा जाएगा – कर्मेन्द्रिय जीत।
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जब कर्मेन्द्रियों पर विजय है, तब ही प्रकृति जीत, और अंततः विश्व राज्य अधिकारी बनना संभव है।
राज्य अधिकारी या दास-दासी?
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क्या आप अपने आंतरिक राज्य के संस्कारों की जांच करते हैं?
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यदि कोई परिस्थिति हमें उदास कर देती है, तो समझो – अभी भी दासत्व बाकी है।
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आत्मा जो सच्चा स्वराज्य अधिकारी है, वह सदा प्रसन्न और संतुष्ट रहती है।
साहूकार या अधिकारी?
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कई आत्माओं के पास ज्ञान है, पुण्य है, खजाना है… पर कन्ट्रोलिंग पावर और रुलिंग पावर नहीं है।
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उनके पास शस्त्र हैं, पर इस्तेमाल नहीं कर सकते।
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ज्ञान है, पर अनुभव और प्रयोग का बल नहीं है।
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याद रखो – पॉवरफुल बनना ही अधिकारी बनना है।
विदेश सेवाओं का गौरव – ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका
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ऑस्ट्रेलिया के भाई-बहन बापदादा को प्रिय क्यों हैं?
क्योंकि उन्होंने छिपे रूप से बाप को पहचानने में नम्बरवन रिकॉर्ड बनाया। -
अमेरिका से बापदादा को अपेक्षा है कि वहाँ से आत्मिक बम चले जो अंधकार को नष्ट कर दे।
आत्मिक बम और स्थापना की गति
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जैसे एक सेकंड में विनाश की तैयारी है, वैसे ही क्या हम एक सेकंड में दृष्टि से सृष्टि रच सकते हैं?
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स्थापना की स्पीड विनाश से तेज होनी चाहिए।
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यह तभी संभव है जब हम नॉलेजफुल के साथ पावरफुल भी बनें।
भाग्य की गिनती और अनुभव का बल
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बापदादा हर बच्चे के भाग्य की लकीर देखते हैं – क्या वह अखण्ड और अटूट है?
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हर कर्मेन्द्रिय का भी अपना भाग्य है – क्या हम उसका उपयोग बाप के संग कर रहे हैं?
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अनुभव ही सबसे बड़ा शस्त्र है।
बोलने वाले तो बहुत हैं, पर अनुभव की शक्ति अद्वितीय है।
अंत – डबल लाइट स्वरूप और सहज सेवा
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बापदादा डबल लाइट स्वरूप आत्माओं से प्रसन्न रहते हैं।
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सहज सेवा करने वाले, सहज योगी बनने वाले ही सेवा में फास्ट रफ्तार से चल पाते हैं।
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बापदादा हमें कहते हैं – अभी भी समय है। अब नहीं तो कब नहीं?
कर्मेन्द्रिय जीत वह पहला सोपान है जो आत्मा को कर्मातीत, मायाजीत और फिर विश्व राज्य अधिकारी बनाता है।
तो आज स्वयं से एक प्रश्न करें –
“क्या मेरी कर्मेन्द्रियाँ मेरे राज्य में हैं, या मैं उनकी प्रजा हूँ?”
प्रश्नोत्तर श्रृंखला: कर्मेन्द्रिय जीत की गहराई
प्रश्न 1:कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना विश्व राज्य के अधिकारी बनने की पहली शर्त है। जब आत्मा की सभी कर्मेन्द्रियाँ (जैसे आंख, कान, जिह्वा आदि) आदेश पर चलती हैं और “जी हज़ूर” कहती हैं, तब ही आत्मा को स्वराज्य अधिकारी कहा जाता है। तभी वह आगे चलकर प्रकृति जीत और फिर विश्व राज्य अधिकारी बन सकती है।
प्रश्न 2:सच्चे योगी की पहचान क्या है?
उत्तर:सच्चा योगी वह है जो आवाज़ से परे, साधनों से परे, संकल्पों में स्थिर रह सकता है। जब चाहे संकल्प को विस्तार दे और जब चाहे फुलस्टॉप लगा दे। इसमें संकल्पों पर महारत और स्थिर स्थिति की शक्ति होती है।
प्रश्न 3:कर्मेन्द्रिय जीत किसे कहा जाता है?
उत्तर:जब आत्मा अपनी हर कर्मेन्द्रिय को सिर्फ इशारे से नियंत्रित कर सके, जैसे आंख से देखना, जिह्वा से बोलना, पांव से चलना आदि— सब कुछ आत्म-आदेश से हो, तो इसे ही कर्मेन्द्रिय जीत कहा जाता है।
प्रश्न 4:राज्य अधिकारी और दास-दासी में क्या अंतर है?
उत्तर:राज्य अधिकारी आत्मा संतुष्ट, स्वस्थ, और स्वराज्य सम्पन्न होती है। जबकि जो आत्मा परिस्थितियों, भावनाओं या संस्कारों के अधीन होकर उदास हो जाती है, वह अभी भी दासत्व में है। उदासी, दास-दासी बनने की निशानी है।
प्रश्न 5:ज्ञान रत्न होने के बाद भी कई आत्माएं अधिकारी क्यों नहीं बन पातीं?
उत्तर:क्योंकि उनके पास शक्तियों की प्रयोगात्मक सत्ता नहीं होती। वे ज्ञानवान तो होते हैं लेकिन कन्ट्रोलिंग और रुलिंग पावर नहीं होने के कारण, समय पर ज्ञान को प्रयोग में नहीं ला पाते। ऐसे आत्माएं साहूकार तो होती हैं, पर अधिकारी नहीं।
प्रश्न 6:बापदादा ने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की सेवा के बारे में क्या विशेष बातें कहीं?
उत्तर:बापदादा ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के बच्चों ने बाप को छिपे रूप में पहचानने में नम्बरवन रिकॉर्ड बनाया है।
अमेरिका से अपेक्षा है कि वहाँ से “आत्मिक बम” चलेगा जो अंधकार का नाश करेगा और आत्माओं को बाप का सच्चा परिचय देगा।
प्रश्न 7:स्थापना की गति तेज करने के लिए आत्मा को क्या करना चाहिए?
उत्तर:आत्मा को नॉलेजफुल के साथ पावरफुल भी बनना चाहिए। तभी आत्मा एक सेकंड में दृष्टि से सृष्टि रच सकती है। स्थापना की गति तभी तेज होगी जब आत्मा सशक्त स्थिति में रहे।
प्रश्न 8:हर कर्मेन्द्रिय का ‘भाग्य’ क्या है?
उत्तर:हर कर्मेन्द्रिय का भाग्य है – बाप की सेवा में लगना। आंखें बाप को देखने के लिए, कान बाप को सुनने के लिए, पांव बाप की आज्ञा अनुसार चलने के लिए। जब हर इन्द्रिय बाप के संग सहयोगी बनती है, तो यही उसका परम भाग्य है।
प्रश्न 9:अनुभव की शक्ति क्यों सबसे बड़ी मानी जाती है?
उत्तर:क्योंकि अनुभव ही साक्षात ज्ञान का रूप है। बोलने वाले तो बहुत हैं, पर अनुभव करने वाला ही प्रभावशाली बनता है। अनुभव आत्मा को शक्तिशाली, स्थिर और सहज योगी बनाता है।
प्रश्न 10:‘डबल लाइट’ स्वरूप आत्मा की पहचान क्या है?
उत्तर:जो आत्मा हर परिस्थिति को सहजता से पार कर लेती है, वह डबल लाइट स्वरूप होती है। वह न केवल शारीरिक रूप से हल्की होती है, बल्कि मानसिक रूप से भी मुक्त और स्वच्छ होती है। ऐसी आत्माएं ही सेवा में तेज़ गति से आगे बढ़ती हैं।
प्रश्न 11:बापदादा का अंतिम प्रेरक संदेश क्या है?
उत्तर:“अब नहीं तो कब नहीं?”
अब भी समय है, फाइनल सीट की सीटी अभी नहीं बजी है। इसलिए आत्मा को अभी ही स्वराज्य अधिकारी, मायाजीत और कर्मेन्द्रिय जीत बनकर विश्व राज्य अधिकारी बनने का चांस लेना चाहिए।
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