(11)बधाई और विदाई दो
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“बधाई और विदाई दो | कमज़ोरियों को सदा के लिए अलविदा कहने की विधि | Avyakt Murli 22 Jan 1982 | Brahma Kumaris”
Spiritual Speech Script: “बधाई और विदाई दो”
ओम् शांति।
आज बापदादा की वह बेहद प्यारी मुरली है — “बधाई और विदाई दो”।
एक ऐसा दिव्य संदेश जिसमें आत्मा को बधाई देकर, उसकी विशेषता को पहचानकर, सहज रूप से कमज़ोरियों को विदाई देने की विधि बताई गई है।
1. हर ब्राह्मण आत्मा विशेष है
बापदादा आज सभी बच्चों को देख-देख कर खुश हो रहे हैं।
क्योंकि इस ब्राह्मण परिवार की सबसे बड़ी विशेषता यही है —
“कोई भी आत्मा साधारण नहीं है, सबके पास कोई न कोई विशेषता है।”
आपका जन्म ही अलौकिक है, आपका कर्म, आपका सोच, आपका संगमयुगी जीवन — सब कुछ विशेष है।
2. विशेषता को बधाई दो, न कि ‘मेरी’ समझो
बाबा कहते हैं —
“यह विशेषता मेरी नहीं, बाप की दी हुई गिफ्ट है।”
लेकिन जब हम कहते हैं — “मेरी विशेषता को कोई पहचानता नहीं”,
तो वहाँ अहंकार का अंश प्रवेश कर जाता है।
विशेषता को बधाई दो, लेकिन ‘मेरी’ मत बनाओ।
जब ‘मेरी’ बनती है, तो वरी (चिंता), हरी (भय), करी (मनमानी) की रेखा शुरू हो जाती है।
3. रावण के रॉयल अंश: काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार
बाबा आज बहुत गहराई से बताते हैं कि—
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काम का अंश: जब स्नेह “एक्स्ट्रा” हो जाता है
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क्रोध का अंश: जब किसी आत्मा के संस्कारों को देखकर दूरी बना लेते हैं
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लोभ का अंश: जब आवश्यकता सीमाओं को पार कर जाती है
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मोह का अंश: जब कोई वस्तु या व्यक्ति “बहुत अच्छा” लगने लगता है
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अहंकार का अंश: जब हम ‘मेरी’ विशेषता कहकर मान बढ़ाना चाहते हैं
यह सब रावण के वंश हैं। इन्हें विदाई देने का समय आ गया है।
4. बधाई दो, और कमज़ोरियों को सहज विदाई दो
बाबा की आज की रूहानी लाइन याद रखिए —
“जहाँ बधाई होगी, वहाँ विदाई हो ही जायेगी।”
जब हम दूसरों की विशेषताओं को बधाई देते हैं,
तो भीतर का द्वेष, सूक्ष्म ईर्ष्या, तुलना — सब स्वत: विदाई ले लेते हैं।
“संगमयुग का हर दिन विशेष है, हर कर्म अलौकिक है।”
5. विशेष बनो, विशेषता देखो, गिराओ नहीं – बचाओ
बापदादा एक और गहरी बात कहते हैं —
“दूसरे को गिराकर खुद को बचाना ब्राह्मण धर्म नहीं है।”
हमें खुद को भी बचाना है, और दूसरों को भी।
यह तभी होगा जब हम श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना से चलते हैं।
न्यारे बनें, लेकिन किनारे न करें।
6. बाप के साथ खाओ, पियो, मौज करो — लेकिन लकीर में
बाबा कहते हैं:
“खाओ, पियो, मौज करो — लेकिन बाप के साथ-साथ।”
बिना बाप के नहीं।
बिना मर्यादा के नहीं।
फिर हर बात मनोरंजन लगेगी,
हर परिस्थिति खुशहाल अनुभव होगी।
7. डबल विदेशियों को विशेष यादगार: सदा मनोरंजन
बाबा विशेष रूप से डबल विदेशियों से कहते हैं —
“आपका यह सीजन बधाई मनाने और कमज़ोरियों को विदाई देने का है।”
हर सेकेण्ड स्वयं को और सबको बधाई देते चलो,
तो आत्मा हर्षित, हल्की और शक्तिशाली बनती जाएगी।
8. सेवाधारियों और मधुबनवासियों की डबल सौगात
सेवाधारियों को आज बापदादा से डबल गिफ्ट मिली —
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प्रत्यक्षफल: खुशी और योग-अभ्यास
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प्रालब्ध: भविष्य का भाग्य
“सी फादर” यानी सदा फादर को देखो।
जो “सी ब्रदर-सिस्टर” करते हैं, वे समीप नहीं होते।
Follow Father ही सबसे मजबूत foundation है।
9. बाप ही संसार है: एक बाप से ही सब कुछ प्राप्त
बाबा कहते हैं —
“संसार में दो चीज़ें हैं: व्यक्ति और वस्तु। और दोनों की प्राप्ति एक ही बाप से होती है।”
तो फिर बाप ही संसार हो गया।
जब उठना, बैठना, सोचना, बोलना — सब कुछ बाप के साथ हो जाए
तो हर दिन, हर पल, सतयुगी स्वाद देता है।
10. संकल्प: मायाजीत बनना और बनाना
अब सोचने का समय नहीं, संकल्प का समय है।
बाबा कहते हैं:
“मायाजीत बनो और बनाओ।”
जिस तरह सेवा केन्द्रों का संकल्प लिया तो खुल गए,
उसी तरह माया से जीत का भी संकल्प लो — वह भी पूरा होगा।
समापन: बधाई और विदाई — जीवन का नया दृष्टिकोण
तो आज बापदादा की तरफ़ से सभी विशेष आत्माओं को
“पद्म-पद्म विदाई की बधाई”।
हर दिन को बधाईमय बनाइए
हर अंश को विदाई देकर मुक्त बन जाइए
और सदा बापदादा से वरदानी आत्मा की तरह जियो।
ओम् शांति।
“बधाई और विदाई दो | कमज़ोरियों को सदा के लिए अलविदा कहने की विधि | Avyakt Murli 22 Jan 1982 | Brahma Kumaris”
प्रश्न 1: “बधाई और विदाई दो” मुरली का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर:इस मुरली का सार यह है कि आत्मा को बधाई देकर उसकी विशेषता को पहचानो और उसी आत्मिक नशे से अपनी कमज़ोरियों को सहज रूप से विदाई दो। संगमयुग की हर आत्मा विशेष है, और इस विशेषता का अनुभव ही कमज़ोरियों को समाप्त करने की शक्ति देता है।
प्रश्न 2: बापदादा ने ब्राह्मण आत्माओं की कौन-सी विशेषता बताई?
उत्तर:बापदादा ने कहा कि ब्राह्मण आत्माएं साधारण नहीं होतीं — वे अलौकिक जन्मधारी हैं और उनमें कोई-न-कोई विशेषता अवश्य होती है। इसी विशेषता के आधार पर हर आत्मा विश्व सेवा में भाग लेती है।
प्रश्न 3: “मेरी विशेषता” सोचने से क्या नुकसान होता है?
उत्तर:जब हम अपनी विशेषता को “मेरी” मानते हैं, तो वहाँ अहंकार का अंश आ जाता है। इसके बाद चिंता (वरी), डर (हरी), और मनमानी (करी) जैसी अवस्थाएँ पैदा हो जाती हैं। विशेषता को बाप की दी हुई गिफ्ट समझो, तभी वह आत्मा को ऊँचाई पर ले जाती है।
प्रश्न 4: रावण के ‘रॉयल अंश’ कौन-कौन से हैं?
उत्तर:बाबा ने पांच विकारों के सूक्ष्म रूप बताए:
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काम का अंश: किसी आत्मा से “एक्स्ट्रा” स्नेह
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क्रोध का अंश: किसी के संस्कार से दूरी बनाना या सूक्ष्म घृणा
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लोभ का अंश: आवश्यकता की सीमा पार करना
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मोह का अंश: किसी वस्तु या व्यक्ति का विशेष अच्छा लगना
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अहंकार का अंश: अपनी विशेषता का मान और अपेक्षा
प्रश्न 5: हम बधाई देकर कमज़ोरियों को कैसे विदाई दे सकते हैं?
उत्तर:जब हम स्वयं की और दूसरों की विशेषताओं को पहचानकर दिल से बधाई देते हैं, तो द्वेष, तुलना, ईर्ष्या जैसी कमज़ोरियाँ स्वत: ही दूर हो जाती हैं। “जहाँ बधाई होती है, वहाँ विदाई हो ही जाती है।”
प्रश्न 6: ब्राह्मण जीवन में “गिराना नहीं, बचाना” क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:बाबा कहते हैं कि ब्राह्मणों की विशेषता है – स्वयं को भी बचाना और दूसरों को भी। दूसरों को गिराकर अपना बचाव करना ब्राह्मण जीवन का धर्म नहीं है। श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना ही सच्ची सेवा है।
प्रश्न 7: “खाओ, पियो, मौज करो – लेकिन लकीर में” का क्या अर्थ है?
उत्तर:इसका अर्थ है – बाप के साथ रहकर मर्यादित तरीके से जीवन का आनंद लेना। बाप के संग हर बात आनंददायक होती है, लेकिन बाप से अलग होकर किया गया भोग आत्मा को अशांत और भारी बना देता है।
प्रश्न 8: डबल विदेशियों को बापदादा ने कौन-सा विशेष संदेश दिया?
उत्तर:बाबा ने कहा — “यह सीजन है बधाई मनाने और कमज़ोरियों को विदाई देने का।”
विदेशी आत्माओं को विशेष बधाई दी गई कि वे हर सेकंड स्वयं को और दूसरों को बधाई देते रहें, जिससे आत्मा हल्की, सशक्त और आनंदित बनी रहे।
प्रश्न 9: “सी फादर” और “सी ब्रदर-सिस्टर” में क्या फर्क है?
उत्तर:“सी फादर” का अर्थ है – हर आत्मा में केवल बाप को देखना।
“सी ब्रदर-सिस्टर” कहने का मतलब है — संबंध की धारणा में फँस जाना।
“सी फादर” करने वाले समीपवर्ती बच्चे होते हैं, जबकि अन्य दूर हो जाते हैं।
प्रश्न 10: “बाप ही संसार है” — इसका आध्यात्मिक भाव क्या है?
उत्तर:बाबा ने कहा — संसार में दो चीज़ें होती हैं: व्यक्ति और वस्तु।
जब हर व्यक्ति से संबंध और हर वस्तु से संतुष्टि केवल बाप से मिलती है, तो बाप ही मेरा सम्पूर्ण संसार बन जाता है।
प्रश्न 11: माया पर विजय पाने का मूल संकल्प क्या है?
उत्तर:बाबा ने स्पष्ट कहा — अब सोचने का नहीं, संकल्प करने का समय है।
जिस प्रकार सेवा केन्द्रों का संकल्प लिया और वे खुले, वैसे ही यदि माया जीतने का संकल्प कर लिया जाए, तो सफलता निश्चित है।
प्रश्न 12: समापन में बाबा ने क्या बधाई दी?
उत्तर:बाबा ने कहा —
“पद्म-पद्म विदाई की बधाई।”
हर दिन को विशेष समझकर, हर कमज़ोरी को सदा के लिए विदाई देकर आत्मा को मुक्त और बधाईमय बनाना ही इस मुरली का मुख्य उद्देश्य है।
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