13-07-2025/Read today’s Murli in big letters, listen and contemplate

13-07-2025/आज की मुरली बड़े-बड़े अक्षरों में पढ़े सुनें और मंथन करे

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“पवित्रता और पावनता में अंतर क्या है? | परम अवस्था की रहस्यपूर्ण पहचान | Brahma Kumaris Hindi Speech”


 प्रस्तावना: ओम् शांति

आज की साकार मुरली का विषय अत्यंत सुंदर और गहराई से आत्मा को छूने वाला है —
“परमात्म प्यार में संपूर्ण पवित्रता की ऐसी स्थिति बनाओ जिसमें व्यर्थ का नामोनिशान न हो।”

हम सभी प्रतिदिन सुबह और शाम मुरली मंथन करते हैं।
आप भी जुड़ सकते हैं — Google Meet और YouTube Live के लिंक डिस्क्रिप्शन में उपलब्ध हैं।


 1. पवित्रता की सच्ची पहचान

पवित्रता क्या है?
पवित्रता वह स्थिति है जिसमें आत्मा श्रीमत के अनुसार चलती है,
कोई भी मिलावट – न संकल्प में, न कर्म में, न वाणी में — नहीं होती।
यह यात्रा है जिसमें आत्मा स्वयं को सुधारती जाती है।

ब्रह्मा बाबा इसका श्रेष्ठ उदाहरण हैं —
1936-37 से उन्होंने पवित्रता की प्रतिज्ञा की और प्रतिदिन पावनता की ओर बढ़ते गए।


 2. पावनता क्या है?

पावनता का अर्थ है – चरम स्थिति।
100% पवित्रता, यानी बाप समान बन जाना।
यह वह अवस्था है जब आत्मा का रिजल्ट निकल जाता है और वह परमधाम की अधिकारी बन जाती है।

पावनता = परिणाम
पवित्रता = प्रक्रिया

ब्रह्मा बाबा को हम पावन कह सकते हैं क्योंकि उन्होंने संपूर्णता प्राप्त की।


 3. राधा–कृष्ण की स्थिति: पावन या पवित्र?

यहाँ एक सुंदर प्रश्न आता है —
क्या राधा पावन है या पवित्र?

उत्तर है — राधा भी पावन है, क्योंकि वह भी परमधाम से पावन बनकर आई।
पर उसकी पावनता ब्रह्मा बाबा से थोड़ी कम है।
जैसे परीक्षाफल में कोई 100% लाता है, कोई 99.99%, पर दोनों पास हुए — वैसे ही।


 4. कब कहेंगे ‘भगवान भगवती’?

भगवान भगवती की उपाधि आत्मा को कब मिलती है?
केवल उस क्षण जब आत्मा परम अवस्था में होती है — परमधाम में, या रिजल्ट निकलते समय।
जैसे ही आत्मा देह के संकल्प में आती है — पाँच तत्वों के प्रभाव में आ जाती है,
तब वह ‘भगवान भगवती’ नहीं कहलाती।


 5. ब्राह्मण से देवता और फिर गिरावट

जब आत्मा ब्राह्मण बनती है — तो वह रचना की सर्वश्रेष्ठ स्थिति में होती है।
जैसे कृष्ण — जब तक संगमयुगी ब्राह्मण है, शरीर नहीं लिया — तब तक परम अवस्था में है।
जैसे ही शरीर बनता है, आत्मा गिरना शुरू करती है — इसलिए उसे देवता कहा जाता है, भगवान नहीं।


 6. निष्कर्ष: आत्मा की यात्रा

हर आत्मा को पावन बनकर ही परमधाम लौटना है।
बिना पावनता प्राप्त किए कोई भी आत्मा परमधाम में नहीं जा सकती।
परंतु संपूर्ण पावनता की परतें अलग-अलग होती हैं, और वही आत्मा की मेरिट कहलाती है।

“पवित्रता और पावनता में अंतर क्या है?” | परम अवस्था की रहस्यपूर्ण पहचान | 


प्रश्न 1: पवित्रता क्या है?

उत्तर:पवित्रता वह स्थिति है जब आत्मा श्रीमत के अनुसार जीवन जीती है।
इसमें न संकल्पों में मिलावट होती है, न कर्म में, न वाणी में।
यह आत्मा की एक प्रक्रिया (journey) है जिसमें वह दिन-प्रतिदिन अपनी दृष्टि, वृत्ति और व्यवहार को शुद्ध करती जाती है।


प्रश्न 2: पावनता क्या है?

उत्तर:पावनता आत्मा की चरम अवस्था है —
जहाँ आत्मा 100% पवित्र, बाप समान, परम अवस्था में स्थित हो जाती है।
जब आत्मा का फाइनल रिजल्ट निकलता है और वह परमधाम लौटने के योग्य बन जाती है — तभी उसे पावन कहा जाता है।

पवित्रता = यात्रा
पावनता = परिणाम (Result)


प्रश्न 3: क्या ब्रह्मा बाबा को पवित्र कहेंगे या पावन?

उत्तर:ब्रह्मा बाबा को पावन कहेंगे क्योंकि उन्होंने 100% पवित्रता प्राप्त की।
उन्होंने पवित्रता की प्रतिज्ञा 1936–37 में ली और धीरे-धीरे संपूर्ण पवित्र बनते गए।
उनका जीवन दूसरों को भी पावन बनने की प्रेरणा देता है — यही उनकी पावनता की पहचान है।


प्रश्न 4: राधा को पवित्र कहेंगे या पावन?

उत्तर:राधा को भी पावन कहेंगे क्योंकि वह भी परमधाम से पावन बनकर आई थी।
परंतु उसकी पावनता की परसेंटाइल ब्रह्मा बाबा से थोड़ी कम है —
जैसे कोई विद्यार्थी 100% लाता है और कोई 99.99%, फिर भी दोनों पास हैं।


प्रश्न 5: आत्मा को भगवान भगवती कब कहा जा सकता है?

उत्तर:आत्मा को ‘भगवान भगवती’ की उपाधि सिर्फ उस क्षण मिलती है जब वह परम अवस्था में होती है —
परमधाम में या जब उसका रिजल्ट निकल चुका होता है।
जैसे ही आत्मा देह धारण करने का संकल्प करती है — वह पाँच तत्वों के अधीन हो जाती है,
और फिर वह भगवान भगवती नहीं कहला सकती।


प्रश्न 6: क्या कृष्ण भगवान भगवती हैं?

उत्तर:संगम युग पर कृष्ण आत्मा ब्राह्मण है, और जब तक उसने देह नहीं ली — वह परम अवस्था में है।
परंतु जैसे ही वह शरीर बनाता है (देवता बनता है), गिरावट शुरू होती है।
इसलिए देवता तो कहलाएगा, परंतु भगवान भगवती नहीं।


प्रश्न 7: आत्मा की अंतिम यात्रा क्या है?

उत्तर:हर आत्मा को अंततः पावन बनकर ही परमधाम लौटना है।
बिना पावन बने कोई भी आत्मा परमधाम नहीं जा सकती।
हर आत्मा की संपूर्ण पावनता की गहराई और मेरिट अलग-अलग होती है —
और वही आत्मा के भविष्य के पद का निर्धारण करती है।

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