Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below
17-07-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – ऊंच बनना है तो अपना पोतामेल रोज़ देखो, कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे, आंखें बहुत धोखेबाज हैं इनसे सम्भाल करो” | |
प्रश्नः- | सबसे बुरी आदत कौन-सी है, उनसे बचने का उपाय क्या है? |
उत्तर:- | सबसे बुरी आदत है – जबान का स्वाद। कोई अच्छी चीज़ देखी तो छिपाकर खा लेंगे। छिपाना अर्थात् चोरी। चोरी रूपी माया भी बहुतों को नाक कान से पकड़ लेती है। इससे बचने का साधन जब भी कहाँ बुद्धि जाए तो खुद ही खुद को सज़ा दो। बुरी आदतों को निकालने के लिए अपने आपको खूब फटकार लगाओ। |
ओम शान्ति। आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो? हर एक बात अपने आपसे पूछनी होती है। हम आत्म-अभिमानी हो बैठे हैं और बाप को याद कर रहे हैं? गाया हुआ भी है शिव शक्ति पाण्डव सेना। यह शिवबाबा की सेना बैठी है ना। उस जिस्मानी सेना में सिर्फ जवान होते हैं, बूढ़े वा बच्चे आदि नहीं। इस सेना में तो बूढ़े, बच्चे, जवान आदि सब बैठे हैं। यह है माया पर जीत पाने के लिए सेना। हर एक को माया पर जीत पाकर बाप से बेहद का वर्सा लेना है। बच्चे जानते हैं माया बड़ी प्रबल है। कर्मेन्द्रियाँ ही सबसे जास्ती धोखा देती हैं। चार्ट में यह भी लिखो कि आज कौन-सी कर्मेन्द्रिय ने धोखा दिया? आज फलानी को देखा तो दिल हुई इनको हाथ लगायें, यह करें। आंखें बहुत नुकसान करती हैं। हर एक कर्मेन्द्रिय देखो, कौन-सी कर्मेन्द्रिय बहुत नुकसान करती है? सूरदास का भी इस पर मिसाल देते हैं। अपनी जांच रखनी चाहिए। आंखें बहुत धोखा देने वाली हैं। अच्छे-अच्छे बच्चों को भी माया धोखा दे देती है। भल सर्विस अच्छी करते हैं परन्तु आंखें धोखा देती हैं। इस पर बड़ी जांच रखनी होती है क्योंकि दुश्मन है ना। हमारे पद को भ्रष्ट कर देती है। जो सेन्सीबुल बच्चे हैं, उन्हों को अच्छी रीति नोट करना चाहिए। डायरी पॉकेट में पड़ी हो। जैसे भक्ति मार्ग में बुद्धि और तरफ भागती है तो अपने को चुटकी काटते हैं। तुमको भी सज़ा देनी चाहिए। बड़ी खबरदारी रखनी चाहिए। कर्मेन्द्रियाँ धोखा तो नहीं देती! किनारा कर लेना चाहिए। खड़ा होकर देखना भी नहीं चाहिए। स्त्री-पुरुष का ही बहुत हंगामा है। देखने से काम विकार की दृष्टि जाती है इसलिए सन्यासी लोग आंखें बन्द करके बैठते हैं। कोई-कोई सन्यासी तो स्त्री को पीठ देकर बैठते हैं। उन सन्यासियों आदि को क्या मिलता है? करके 10-20 लाख, करोड़ इकट्ठा करेंगे। मर गये तो खलास। फिर दूसरे जन्म में इकट्ठा करना पड़े। तुम बच्चों को तो जो कुछ मिलता है वह अविनाशी वर्सा हो जाता है। वहाँ धन की लालच होती ही नहीं। ऐसी कोई अप्राप्ति होती नहीं, जिसके लिए माथा मारना पड़े। कलियुग अन्त और सतयुग आदि में रात-दिन का फ़र्क है। वहाँ तो अपार सुख होता है। यहाँ कुछ भी नहीं। बाबा हमेशा कहते हैं – संगम अक्षर के साथ पुरुषोत्तम अक्षर जरूर लिखो। साफ-साफ अक्षर बोलने चाहिए। समझाने में सहज होता है। मनुष्य से देवता किये… तो जरूर संगम पर ही आयेगा ना देवता बनाने, नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाने। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। स्वर्ग क्या होता है, पता ही नहीं। और धर्म वाले तो स्वर्ग को देख भी नहीं सकते इसलिए बाबा कहते हैं तुम्हारा धर्म बहुत सुख देने वाला है। उनको कहते ही हैं हेविन। परन्तु यह थोड़ेही समझते हैं कि हम भी हेविन में जा सकते हैं। किसको भी पता नहीं है। भारतवासी यह भूल गये हैं। हेविन को लाखों वर्ष कह देते हैं। क्रिश्चियन लोग खुद कहते हैं 3 हज़ार वर्ष पहले हेविन था। लक्ष्मी-नारायण को कहते ही हैं गॉड-गॉडेज। जरूर गॉड ही गॉड-गॉडेज बनायेंगे। तो मेहनत करनी चाहिए। रोज़ अपना पोतामेल देखना चाहिए। कौनसी कर्मेन्द्रिय ने धोखा दिया? जबान भी कोई कम नहीं। कोई अच्छी चीज़ देखी तो छिपाकर खा लेंगे। समझते थोड़ेही हैं कि यह भी पाप हैं। चोरी हुई ना। सो भी शिवबाबा के यज्ञ से चोरी करना बहुत खराब है। कख का चोर सो लख का चोर कहा जाता है। बहुतों को माया नाक से पकड़ती रहती है। यह सब बुरी आदतें निकालनी हैं। अपने पर फटकार डालनी चाहिए। जब तक बुरी आदतें हैं तब तक ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। स्वर्ग में जाना तो बड़ी बात नहीं है। परन्तु कहाँ राजा-रानी कहाँ प्रजा! तो बाप कहते हैं कर्मेन्द्रियों की बड़ी जांच करनी चाहिए। कौन-सी कर्मेन्द्रिय धोखा देती है? पोतामेल निकालना चाहिए। व्यापार है ना। बाप समझाते हैं मेरे से व्यापार करना है, ऊंच पद पाना है तो श्रीमत पर चलो। बाप डायरेक्शन देंगे, उसमें भी माया विघ्न डालेगी। करने नहीं देगी। बाप कहते हैं यह भूलो मत। ग़फलत करने से फिर बहुत पछतायेंगे। कभी ऊंच पद नहीं पायेंगे। अभी तो खुशी से कहते हैं हम नर से नारायण बनेंगे परन्तु अपने से पूछते रहो – कहाँ कर्मेन्द्रियाँ धोखा तो नहीं देती हैं?
अपनी उन्नति करनी है तो बाप जो डायरेक्शन देते हैं उसे अमल में लाओ। सारे दिन का पोतामेल देखो। भूलें तो बहुत होती रहती हैं। आंखें बड़ा धोखा देती हैं। तरस पड़ेगा – इनको खिलाऊं, सौगात दूँ। अपना बहुत टाइम वेस्ट कर लेते हैं। माला का दाना बनने में बड़ी मेहनत है। 8 रत्न हैं मुख्य। 9 रत्न कहते हैं। एक तो बाबा, बाकी हैं 8, बाबा की निशानी तो चाहिए ना बीच में, कोई ग्रहचारी आदि आती है तो 9 रत्न की अंगूठी आदि पहनाते हैं। इतने ढेर पुरुषार्थ करने वालों से 8 निकलते हैं – पास विद् ऑनर्स। 8 रत्नों की बहुत महिमा है। देह-अभिमान में आने से कर्मेन्द्रियाँ बहुत धोखा देती हैं। भक्ति में भी चिंता रहती है ना, सिर पर पाप बहुत हैं – दान-पुण्य करें तो पाप मिट जाएं। सतयुग में कोई चिंता की बात नहीं क्योंकि वहाँ रावणराज्य ही नहीं। वहाँ भी ऐसी बातें हो फिर तो नर्क और स्वर्ग में कुछ फ़र्क ही न रहे। तुमको इतना ऊंच पद पाने के लिए भगवान बैठ पढ़ाते हैं। बाबा याद नहीं पड़ता है, अच्छा पढ़ाने वाला टीचर तो याद पड़े। अच्छा भला यह याद करो कि हमारा एक ही बाबा सतगुरू है। मनुष्यों ने आसुरी मत पर बाप का कितना तिरस्कार किया है। बाप अब सब पर उपकार करते हैं। तुम बच्चों को भी उपकार करना चाहिए। किसी पर भी अपकार नहीं, कुदृष्टि भी नहीं। अपना ही नुकसान करते हैं। वह वायब्रेशन फिर दूसरों पर भी असर करता है। बाप कहते हैं बहुत बड़ी मंजिल है। रोज़ अपना पोतामेल देखो – कोई विकर्म तो नहीं बनाया? यह है ही विकर्मी दुनिया, विकर्मी संवत। विकर्माजीत देवताओं के संवत का कोई को पता नहीं। बाप समझाते हैं, विकर्माजीत संवत को 5 हज़ार वर्ष हुए फिर बाद में विकर्म संवत शुरू होता है। राजायें भी विकर्म ही करते रहते हैं, तब बाप कहते हैं कर्म-अकर्म-विकर्म की गति मैं तुमको समझाता हूँ। रावण राज्य में तुम्हारे कर्म विकर्म बन जाते हैं। सतयुग में कर्म अकर्म होते हैं। विकर्म बनता नहीं। वहाँ विकार का नाम ही नहीं। यह ज्ञान का तीसरा नेत्र अभी तुमको मिला है। अभी तुम बच्चे बाप के द्वारा त्रिनेत्री-त्रिकालदर्शी बने हो। मनुष्य कोई बना न सके। तुमको बनाने वाला है बाप। पहले जब आस्तिक हो तब त्रिनेत्री-त्रिकालदर्शी बनें। सारा ड्रामा का राज़ बुद्धि में है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, 84 का चक्र सब बुद्धि में है। फिर पीछे और धर्म आते हैं। वृद्धि को पाते रहते हैं। उन धर्म स्थापकों को गुरू नहीं कहेंगे। सर्व की सद्गति करने वाला सतगुरू एक ही है। बाकी वह कोई सद्गति करने थोड़ेही आते हैं। वह धर्म स्थापक हैं। क्राइस्ट को याद करने से सद्गति थोड़ेही होगी। विकर्म विनाश थोड़ेही होंगे। कुछ भी नहीं। उन सबको भक्ति की लाइन में कहा जायेगा। ज्ञान की लाइन में सिर्फ तुम हो। तुम पण्डे हो। सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताते हो। बाप भी लिबरेटर, गाइड है। उस बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे।
अभी तुम बच्चे अपने विकर्म विनाश करने का पुरुषार्थ कर रहे हो तो तुम्हें ध्यान रखना है कि एक तरफ पुरुषार्थ, दूसरे तरफ विकर्म न होता रहे। पुरुषार्थ के साथ-साथ विकर्म भी किया तो सौगुणा हो जायेगा। जितना हो सके उतना विकर्म न करो। नहीं तो एडीशन भी होगी। नाम भी बदनाम करेंगे। जबकि जानते हो भगवान हमको पढ़ाते हैं तो फिर कोई विकर्म नहीं करना चाहिए। छोटी चोरी या बड़ी चोरी, पाप तो हो जाता है ना। यह आंखें बड़ा धोखा देती हैं। बाप बच्चों की चलन से समझ जाते हैं, कभी ख्याल भी न आये कि यह हमारी स्त्री है, हम ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं, शिवबाबा के पोत्रे हैं। हमने बाबा से प्रतिज्ञा की है, राखी बांधी है, फिर आंखें क्यों धोखा देती हैं? याद के बल से कोई भी कर्मेन्द्रियों के धोखे से छूट सकते हो। बड़ी मेहनत चाहिए। बाप के डायरेक्शन पर अमल कर चार्ट लिखो। स्त्री-पुरुष भी आपस में यही बातें करो – हम तो बाबा से पूरा वर्सा लेंगे, टीचर से पूरा पढ़ेंगे। ऐसा टीचर कभी मिल न सके, जो बेहद की नॉलेज दे। लक्ष्मी-नारायण ही नहीं जानते तो उनके पिछाड़ी आने वाले कैसे जान सकते हैं। बाप कहते हैं यह सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिर्फ तुम जानते हो संगम पर। बाबा बहुत समझाते हैं – यह करो, ऐसे करो। फिर यहाँ से उठे तो खलास। यह नहीं समझते कि शिवबाबा हमको कहते हैं। हमेशा समझो शिवबाबा कहते हैं, इनका फोटो भी नहीं रखो। यह रथ तो लोन लिया है। यह भी पुरुषार्थी है, यह भी कहते हैं मैं बाबा से वर्सा ले रहा हूँ। तुम्हारे सदृश्य यह भी स्टूडेन्ट लाइफ में है। आगे चल तुम्हारी महिमा होगी। अभी तो तुम पूज्य देवता बनने के लिए पढ़ते हो। फिर सतयुग में तुम देवता बनेंगे। यह सब बातें सिवाए बाप के कोई समझा न सके। तकदीर में नहीं है तो संशय उठता है – शिवबाबा कैसे आकर पढ़ायेंगे! मैं नहीं मानता। मानते नहीं तो फिर शिवबाबा को याद भी कैसे करेंगे। विकर्म विनाश हो नहीं सकेंगे। यह सारी नम्बरवार राजधानी स्थापन हो रही है। दास-दासियाँ भी तो चाहिए ना। राजाओं को दासियाँ भी दहेज में मिलती हैं। यहाँ ही इतनी दासियाँ रखते हैं तो सतयुग में कितनी होंगी। ऐसा थोड़ेही ढीला पुरुषार्थ करना चाहिए जो दास-दासी जाकर बनें। बाबा से पूछ सकते हो – बाबा अभी मर जायें तो क्या पद मिलेगा? बाबा झट बता देंगे। अपना पोतामेल आपेही देखो। अन्त में नम्बरवार कर्मातीत अवस्था हो जानी है। यह है सच्ची कमाई। उस कमाई में रात-दिन कितना बिज़ी रहते हैं। सट्टे वाले जो होते हैं वह एक हाथ से खाना खाते हैं, दूसरे हाथ से फोन पर कारोबार चलाते रहते हैं। अब बताओ ऐसे आदमी ज्ञान में चल सकेंगे? कहते हैं हमको फुर्सत कहाँ। अरे, सच्ची राजाई मिलती है। बाप को सिर्फ याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। अष्ट देवता आदि को भी याद करते हैं ना। उनकी याद से तो कुछ भी मिलता नहीं। बाबा बार-बार हर एक बात पर समझाते रहते हैं। जो फिर ऐसे कोई न कहे कि फलानी बात पर तो समझाया नहीं। तुम बच्चों को पैगाम भी सबको देना है। एरोप्लेन से भी पर्चे गिराने लिए कोशिश करनी चाहिए। उसमें लिखो शिवबाबा ऐसे कहते हैं। ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है। प्रजापिता है तो वह भी बाप, यह भी बाप। शिवबाबा कहने से भी बहुत बच्चों को प्रेम के आंसू आ जाते हैं। कभी देखा भी नहीं है। लिखते हैं बाबा कब आकर आपसे मिलेंगे, बाबा बन्धन से छुड़ाओ। बहुतों को बाबा का, फिर प्रिन्स का भी साक्षात्कार होता है। आगे चल बहुतों को साक्षात्कार होंगे फिर भी पुरुषार्थ तो करना पड़े। मनुष्य को मरने समय भी कहते हैं भगवान को याद करो। तुम भी देखेंगे पिछाड़ी में खूब पुरुषार्थ करेंगे। याद करने लगेंगे।
बाप राय देते हैं – बच्चे, जो समय मिले उसमें पुरुषार्थ कर मेकप कर लो। बाप की याद में रह विकर्म विनाश करो तो पीछे आते भी आगे जा सकते हो। जैसे ट्रेन लेट होती है तो मेकप कर लेते हैं ना। तुमको भी यहाँ समय मिलता है तो मेकप कर लो। यहाँ आकर कमाई करने लग जाओ। बाबा राय भी देते हैं – ऐसे-ऐसे करो, अपना कल्याण करो। बाप की श्रीमत पर चलो। एरोप्लेन से पर्चे गिराओ, जो मनुष्य समझें कि यह तो बरोबर ठीक पैगाम देते रहते हैं। भारत कितना बड़ा है, सबको मालूम पड़ना चाहिए जो फिर ऐसे न कहें कि बाबा हमको तो पता ही नहीं पड़ा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सेन्सीबुल बन अपनी जांच करनी है कि आंखें धोखा तो नहीं देती हैं। कोई भी कर्मेन्द्रिय के वश हो उल्टा कर्म नहीं करना है। याद के बल से कर्मेन्द्रियों के धोखे से छूटना है।
2) इस सच्ची कमाई के लिए समय निकालना है, पीछे आते भी पुरुषार्थ से मेकप कर लेना है। यह विकर्म विनाश करने का समय है इसलिए कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:- | बालक सो मालिक के पाठ द्वारा निरंहकारी और निराकारी भव बालक बनना अर्थात् हद के जीवन का परिवर्तन होना। कोई कितने भी बड़े देश का मालिक हो, धन वा परिवार का मालिक हो लेकिन बाप के आगे सब बालक हैं। तुम ब्राह्मण बच्चे भी बालक बनते हो तो बेफिकर बादशाह और भविष्य में विश्व के मालिक बनते हो। “बालक सो मालिक हूँ” – यह स्मृति सदा निरंहकारी-निराकारी स्थिति का अनुभव कराती है। बालक अर्थात् बच्चा बनना माना माया से बच जाना। |
स्लोगन:- | प्रसन्नता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है – तो सदा प्रसन्नचित रहो। |
अव्यक्त इशारे – संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
जो कार्य आज के अनेक पदमपति नहीं कर सकते हैं वह आपका एक संकल्प आत्मा को पदमापदमपति बना सकता है इसलिए श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति जमा करो। श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति को ऐसा स्वच्छ बनाओ जो जरा भी व्यर्थ की अस्वच्छता भी न हो तब यह शक्ति कमाल के कार्य करेगी।
“कर्मेन्द्रियों से धोखा न खाओ | पोतामेल से बने ऊंच पदाधिकारी | BK Sakar Murli 17-07-2025”
प्रश्नोत्तर (Questions & Answers):
प्रश्न 1:सबसे बुरी आदत कौन-सी मानी जाती है और उससे कैसे बचें?
उत्तर:सबसे बुरी आदत है जबान का स्वाद। अच्छी चीज़ देख कर छिपाकर खाना – यह चोरी रूपी माया है। इससे बचने का तरीका है: जब भी बुद्धि गलत तरफ जाए तो खुद को सज़ा दो, अपने पर फटकार लगाओ और सतत आत्म-जांच करो।
प्रश्न 2:कर्मेन्द्रियाँ किस प्रकार आत्मा को धोखा देती हैं?
उत्तर:आंखें सबसे अधिक धोखा देती हैं – देखने से कामविकार की दृष्टि जाती है। हाथ, जीभ आदि भी गलत कार्य कराते हैं। यह कर्मेन्द्रियाँ हमारी पदवी भ्रष्ट कर देती हैं, इसलिए सावधानीपूर्वक पोतामेल निकालते रहना चाहिए।
प्रश्न 3:सच्ची कमाई किसे कहा गया है और उसकी विधि क्या है?
उत्तर:सच्ची कमाई है – विकर्म विनाश कर ऊंच पद पाना। इसकी विधि है: बाबा की श्रीमत पर चलना, आत्म-अभिमानी बनना, और हर दिन का पोतामेल लिखना। जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतना ऊंच पद प्राप्त होगा।
प्रश्न 4:हमारी माला में मुख्य रत्न कौन हैं?
उत्तर:मुख्य 8 रत्न हैं, जिन्हें पास विद ऑनर्स माना जाता है। बाबा 9वां रत्न है। यह बनने के लिए देह-अभिमान छोड़कर गहन पुरुषार्थ करना होता है।
Disclaimer (अस्वीकरण):
यह वीडियो ब्रह्माकुमारिज की आधिकारिक शिक्षाओं एवं 17 जुलाई 2025 की साकार मुरली पर आधारित है। इसका उद्देश्य आत्मा की जागृति, आत्म-संशोधन और परमात्म याद को जीवन में उतारना है। इस ज्ञान को आध्यात्मिक मार्गदर्शन के रूप में लें, न कि किसी आलोचना या सामाजिक तुलना के रूप में।
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