23-07-2025/Read today’s Murli in big letters, listen and contemplate

23-07-2025/आज की मुरली बड़े-बड़े अक्षरों में पढ़े सुनें और मंथन करे

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“क्या आप आत्म-अभिमानी हो बैठे हैं? | मुख्य ज्ञान से मिलती है याद की सच्ची यात्रा | 


“मीठे-मीठे बच्चे, आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो?”
(मुख्य ज्ञान, याद की यात्रा, और पुरुषोत्तम बनने का रहस्य)


आज हम एक बेहद गूढ़ और अमूल्य ज्ञान पर चिंतन करेंगे। यह ज्ञान स्वयं परमात्मा शिवबाबा द्वारा हमें दिया जा रहा है—जो हमें देही-अभिमानी स्थिति में टिकाकर, जीवनमुक्ति की अवस्था में ले जाते हैं।


 1. आत्म-अभिमान बनाम देह-अभिमान

  • आधाकल्प हम आत्मा को भूल, देह-अभिमान में रहे।

  • अब बाप कहते हैं—”बच्चे, अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो।”

  • अगर देह-अभिमान में रहेंगे, तो बाप की याद नहीं आएगी।

  • याद नहीं आएगी, तो यात्रा नहीं होगी। यात्रा नहीं होगी, तो पाप कटेंगे कैसे?


 2. याद की यात्रा ही मुख्य साधना है

  • यह यात्रा है—आत्मा की परमात्मा के साथ।

  • सेकंड में जीवनमुक्ति का रास्ता केवल याद की यात्रा से ही खुलता है।

  • बाप कहते हैं—”घड़ी-घड़ी मुझे याद करो, यही है सच्चा पुरुषार्थ।”


 3. भक्ति और ज्ञान का अंतर

  • भक्ति मार्ग में यज्ञ, तप, स्नान, व्रत… सब बाह्य साधन हैं।

  • बाप कहते हैं—”यह सब उल्टी महिमा है।”

  • ज्ञानमार्ग में हम आत्मा के स्वरूप को पहचानकर सीधा परमात्मा से जुड़ते हैं।


 4. त्रिलोकीनाथ कौन? – भ्रांति का समाधान

  • लोग श्रीकृष्ण को त्रिलोकीनाथ कहते हैं, पर वास्तव में वह स्वर्ग का मालिक है।

  • त्रिलोकी (मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन) के मालिक हैं शिवबाबा और तुम आत्माएं।

  • श्रीकृष्ण त्रेता/सतयुग में हैं, जबकि यह ज्ञान संगमयुग का है।


 5. सच्चा चिंतन एकान्त में होता है

  • जैसे छात्र पढ़ाई के लिए एकान्त चुनते हैं, वैसे ही हमें आत्म चिंतन के लिए समय निकालना है।

  • बाबा कहते हैं—”तुम्हें किताब नहीं, ज्ञान की पॉइंट्स को मनन करना है।”


 6. पुरुषोत्तम संगमयुग और श्रेष्ठाचारी जीवन

  • यही वह युग है जहाँ तुम श्रेष्ठ आत्माएं बनते हो।

  • संगमयुग पर तुम पुरुषोत्तम बनते हो—सर्वोत्तम देवता लक्ष्मी-नारायण की तरह।

  • नई दुनिया का मुहूर्त आज तुम्हारे पुरुषार्थ से हो रहा है।


 7. सच्चा पुरुषार्थ क्या है?

  • “जो नसीब में होगा वही मिलेगा” ऐसा कहना गलत है।

  • भाग्य के लिए पुरुषार्थ अनिवार्य है।

  • बाप कहते हैं—”माताओं को मैं कितना ऊँचा बनाता हूँ!”

  • अबला से सबला—साक्षात् लक्ष्मी बनने का वरदान इस युग में मिलता है।


 8. शान्ति और सुख का सच्चा स्रोत

  • विश्व में शान्ति थी देवताओं के राज्य में।

  • मूलवतन आत्माओं की दुनिया है, लेकिन विश्व की शान्ति यहां पृथ्वी पर ही होती है।

  • लक्ष्मी-नारायण के चित्र द्वारा यह शान्ति और पवित्रता स्पष्ट होती है।


 9. सेवा की युक्ति और व्यवहारिक उपाय

  • सेवा ऐसे नहीं कि बस चिल्ला दो—“भगवान आया है।”

  • सेवा में युक्तियाँ लगानी हैं—चित्र सजाओ, बाहर एक अच्छा बोर्ड लगाओ:
    “बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है? तो आइये हम आपको समझायें।”


 10. सेवा में सहनशक्ति और न थकने की भावना

  • सेवा में मान-अपमान, ठंडी-गर्मी, भूख-प्यास सब सहन करना होता है।

  • बाप कभी थकते नहीं, तुम क्यों थको?

  • किसको हीरे जैसा बनाना, यह कोई साधारण कार्य नहीं।


 11. यात्रा की परिपूर्णता = कर्मातीत अवस्था

  • जब हमारी कोई भी कर्मेन्द्रियाँ धोखा नहीं देतीं, तब याद की यात्रा पूरी मानी जाती है।

  • अभी हमें पूर्ण पुरुषार्थ करना है, नाउम्मीद नहीं बनना है।

  • जितना विनाश पास आता जायेगा, उतनी ताकत आती जायेगी।


 12. सभी आत्माएँ ब्रह्मा की संतान हैं

  • प्रजापिता ब्रह्मा को ग्रेट ग्रैन्डफादर कहा जा सकता है।

  • शिवबाबा सभी आत्माओं के निराकार बाबा हैं।

  • हम सब भाई-भाई हैं, ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण।


 13. विश्व परिवर्तन की जिम्मेदारी तुम्हारी है

  • तुम बच्चे सृष्टि चक्र को जानकर चक्रवर्ती राजा बनते हो।

  • सवेरे का क्लास, मुरली सुनना, रिविज़न करना—यह सब अमूल्य कमाई है।

  • सच्चा पुरुषार्थ = सच्चा भाग्य।

“क्या आप आत्म-अभिमानी हो बैठे हैं? | मुख्य ज्ञान से मिलती है याद की सच्ची यात्रा | 
(एक प्रश्नोत्तरी जो आत्मिक स्थिति, सच्चे पुरुषार्थ, और सेवा के रहस्यों को उजागर करती है)


Q1: आत्म-अभिमान और देह-अभिमान में क्या अंतर है?

 A1:आत्म-अभिमान का अर्थ है — अपने को ‘आत्मा’ समझना और परमात्मा को याद करना।
देह-अभिमान का अर्थ है — अपने शरीर या शरीर के संबंधों को ही सत्य समझना।
आधाकल्प हम देह-अभिमानी रहे, इसलिए परमात्मा से दूर हो गए। अब संगमयुग में आत्मा बन, परमात्मा को याद करने का अभ्यास ही सच्चा पुरुषार्थ है।


Q2: बाप ने याद की यात्रा को मुख्य क्यों बताया है?

 A2:याद की यात्रा ही आत्मा को पवित्र बनाती है।
बिना याद के पाप नहीं कटेंगे, जीवनमुक्ति नहीं मिलेगी।
यही वह यात्रा है जिसमें आत्मा अपने कर्म बन्धनों से मुक्त होती है और सच्चे सुख का अधिकारी बनती है।


Q3: भक्ति और ज्ञान में मुख्य फर्क क्या है?

 A3:भक्ति मार्ग में बाह्य क्रियाएँ होती हैं—यज्ञ, व्रत, तप आदि।
ज्ञानमार्ग में आत्मा अपने स्वरूप को जानकर परमात्मा से सीधा जुड़ती है।
भक्ति उल्टी महिमा है, जबकि ज्ञान सही समझ है।


Q4: क्या श्रीकृष्ण को त्रिलोकीनाथ कहा जा सकता है?

 A4:नहीं। त्रिलोकीनाथ वो है जो तीनों लोक—मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूलवतन—का ज्ञान रखता है।
शिवबाबा और ब्रह्मा द्वारा तुम आत्माएँ ही यह सच्चा ताज पहनती हो।
श्रीकृष्ण तो केवल स्वर्ग के मालिक हैं, त्रिलोकी के नहीं।


Q5: चिंतन के लिए एकान्त क्यों आवश्यक है?

 A5:जैसे विद्यार्थी एकान्त में पढ़ाई करते हैं, वैसे ही आध्यात्मिक मंथन के लिए भी एकान्त ज़रूरी है।
बाबा कहते हैं—“तुम्हें किताब नहीं, ज्ञान की पॉइंट्स को रिवाइज़ करना है।”
यही अभ्यास आत्मिक स्थिति को दृढ़ करता है।


Q6: पुरुषोत्तम संगमयुग का क्या महत्व है?

 A6:यही वह युग है जहाँ आत्माएं श्रेष्ठाचारी बनती हैं।
यहीं पर हम लक्ष्मी-नारायण जैसे पुरुषोत्तम बनने का बीजारोपण करते हैं।
नई दुनिया का शुभारम्भ इस युग में आत्म-पुरुषार्थ द्वारा ही होता है।


Q7: क्या भाग्य के लिए पुरुषार्थ आवश्यक है?

 A7:हां, “जो तकदीर में होगा वो मिलेगा” यह सोच गलत है।
बिना पुरुषार्थ के भाग्य नहीं बनता।
बाप कहते हैं—“तुम्हें पुरुषार्थ कर लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना है।”


Q8: विश्व की सच्ची शान्ति कहाँ थी और कहाँ होगी?

A8:विश्व की शान्ति देवताओं के राज्य में थी।
मूलवतन आत्माओं की दुनिया है, लेकिन पृथ्वी पर ही ‘विश्व शान्ति’ का राज्य होता है।
लक्ष्मी-नारायण के राज्य में ही शान्ति, पवित्रता और सम्पन्नता थी।


Q9: सेवा कैसे प्रभावशाली हो सकती है?

 A9:सेवा के लिए युक्तियाँ लगानी होंगी।
जैसे चित्रों को व्यवस्थित करो, बाहर लिखो:
“बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है? तो आइये समझें।”
इससे लोग स्वतः आकर्षित होंगे। चिल्लाने से सेवा नहीं होती।


Q10: सेवा में थकान क्यों नहीं आनी चाहिए?

 A10:बाप स्वयं वृद्ध तन से सेवा कर रहे हैं, पर थकते नहीं।
हमें भी उनकी तरह निःस्वार्थ सेवा करनी है।
किसी आत्मा को हीरा बनाने के लिए सहनशक्ति अनिवार्य है।


Q11: कर्मातीत अवस्था कब आती है?

 A11:जब कोई भी कर्मेन्द्रियाँ आत्मा को धोखा नहीं देतीं, तब आत्मा कर्मातीत बनती है।
यही याद की यात्रा की पूर्णता है।
इस अवस्था तक पहुँचने के लिए निरंतर पुरुषार्थ आवश्यक है।


Q12: हम सब ब्रह्मा की संतान कैसे हैं?

 A12:प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा हम ब्राह्मण बनते हैं।
हम आत्माएँ ब्रह्मा की मुखवंशावली हैं।
शिवबाबा हमारे निराकार बाबा हैं, इसलिए सब आत्माएं भाई-भाई हैं।


Q13: विश्व परिवर्तन की जिम्मेदारी किनकी है?

 A13:यह जिम्मेदारी हम ब्राह्मण बच्चों की है।
हमें सृष्टि चक्र की समझ लेकर, सर्व आत्माओं तक ज्ञान पहुँचाना है।
सवेरे की मुरली, रिवाइज़िंग, और स्वधर्म में स्थित रहना—यही सच्चा पुरुषार्थ है।

Disclaimer (डिस्क्लेमर)

इस वीडियो का उद्देश्य ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान को सरल प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्रस्तुत करना है। यह कोई प्रचार, व्यक्तिगत राय, या किसी अन्य धर्म/संस्था की आलोचना नहीं है। यह चैनल केवल आध्यात्मिक जागृति और आत्म-चिंतन के उद्देश्य से संचालित है। हम BK संगठन की मूल शिक्षाओं के अनुरूप जानकारी साझा करते हैं। सभी विचार आध्यात्मिक आत्माओं के कल्याण हेतु साझा किए गए हैं।

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