MURLI 18-05-2025/BRAHMAKUMARIS

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(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

18-05-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 25-03-2005 मधुबन

“मास्टर ज्ञान सूर्य बन अनुभूति की किरणें फैलाओ, विधाता बनो, तपस्वी बनो”

आज बापदादा अपने चारों ओर के होलीहंस बच्चों से होली मनाने के लिए आये हैं। बच्चे भी प्यार की डोर में बंधे हुए होली मनाने के लिए पहुंच गये हैं। मिलन मनाने के लिए कितने प्यार से पहुंच गये हैं। बापदादा सर्व बच्चों के भाग्य को देख रहे थे – कितना बड़ा भाग्य, जितने ही होलीएस्ट हैं उतने ही हाइएस्ट भी हैं। सारे कल्प में देखो आप सबके भाग्य से ऊंचा भाग्य और किसी का नहीं है। जानते हो ना अपने भाग्य को? वर्तमान समय भी परमात्म पालना, परमात्म पढ़ाई और परमात्म वरदानों से पल रहे हो। भविष्य में भी विश्व के राज्य अधिकारी बनते हो। बनना ही है, निश्चित है, निश्चय ही है। बाद में भी जब पूज्य बनते हो तो आप श्रेष्ठ आत्माओं जैसी पूजा विधिपूर्वक और किसी की भी नहीं होती है। तो वर्तमान, भविष्य और पूज्य स्वरूप में हाइएस्ट अर्थात् ऊंचे ते ऊंचे हैं। आपके जड़ चित्र उन्हों की भी हर कर्म की पूजा होती है। अनेक धर्म पिता, महान आत्मायें हुए हैं लेकिन ऐसे विधिपूर्वक पूजा आप ऊंचे ते ऊंचे परमात्म बच्चों की होती है क्योंकि इस समय हर कर्म में कर्मयोगी बन कर्म करने की विधि का फल पूजा भी विधिपूर्वक होती है। इस संगम समय के पुरुषार्थ की प्रालब्ध मिलती है। तो ऊंचे ते ऊंचे भगवन आप बच्चों को भी ऊंचे ते ऊंची प्राप्ति कराते हैं।

होली अर्थात् पवित्रता, होलीएस्ट भी हो तो हाइएस्ट भी हो। इस ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन ही पवित्रता है। संकल्प मात्र भी अपवित्रता श्रेष्ठ बनने नहीं देती। पवित्रता ही सुख, शान्ति की जननी है। पवित्रता सर्व प्राप्तियों की चाबी है, इसलिए आप सबका स्लोगन यही है – “पवित्र बनो, योगी बनो।” जो होली भी यादगार है, उसमें भी देखो पहले जलाते हैं फिर मनाते हैं। जलाने के बिना नहीं मनाते हैं। अपवित्रता को जलाना, योग के अग्नि द्वारा अपवित्रता को जलाते हो, उसका यादगार वह आग में जलाते हैं और जलाने के बाद जब पवित्र बनते हैं तो खुशियों में मनाते हैं। पवित्र बनने का यादगार मिलन मनाते हैं क्योंकि आप सभी भी जब अपवित्रता को जलाते हो, परमात्म संग के रंग में लाल हो जाते हो तो सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना का मिलन मनाते हो। इसका यादगार मंगल मिलन मनाते हैं। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को यही स्मृति दिलाते हैं कि सदा हर एक से दुआयें लो और दुआयें दो। अपने दुआओं की शुभ भावना से मंगल मिलन मनाओ क्योंकि अगर कोई बद-दुआ देता भी है, वह तो परवश है अपवित्रता से लेकिन अगर आप बद-दुआ को मन में समाते हो तो क्या खुश रहते हो? सुखी रहते हो? या व्यर्थ संकल्पों का क्यों, क्या, कैसे, कौन… इस दु:ख का अनुभव करते हो? बद-दुआ लेना अर्थात् अपने को भी दु:ख और अशान्ति अनुभव कराना। जो बापदादा की श्रीमत है सुख दो और सुख लो, उस श्रीमत का उल्लंघन हो जाता है। तो अभी सभी बच्चे दुआ लेना और दुआ देना सीख गये हो ना! सीखा है?

प्रतिज्ञा और दृढ़ता, दृढ़ता से प्रतिज्ञा करो – सुख देना है और सुख लेना है। दुआ देनी है, लेनी है। है प्रतिज्ञा? हिम्मत है? जिसमें हिम्मत है आज से दृढ़ता का संकल्प लेते हैं – दुआ लेंगे, दुआ देंगे, वह हाथ उठाओ। पक्का? पक्का? कच्चा नहीं होना। कच्चे बनेंगे ना – तो कच्चे फल को चिड़िया बहुत खाती है। दृढ़ता सफलता की चाबी है। सभी के पास चाबी है? है चाबी? चाबी कायम है, माया चोरी तो नहीं कर लेती? उसको भी चाबी से प्यार है। सदैव संकल्प करते हुए यह संकल्प इमर्ज करो, मर्ज नहीं, इमर्ज। इमर्ज करो मुझे करना ही है। बनना ही है। होना ही है। हुआ ही पड़ा है। इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि, विजयन्ती। ड्रामा विजय का बना ही पड़ा है। सिर्फ रिपीट करना है। बना बनाया ड्रामा है। बना हुआ है, रिपीट कर बनाना है। मुश्किल है? कभी-कभी मुश्किल हो जाता है! मुश्किल क्यों होता है? अपने आप ही सहज को मुश्किल कर देते हो। छोटी सी गलती कर लेते हो – पता है कौन सी गलती करते हो? बापदादा को उस समय बच्चों पर बहुत रहम क्या कहें, प्यार आता है। क्या प्यार आता है? एक तरफ तो कहते हो कि बाप हमारे साथ कम्बाइन्ड है। साथ नहीं कम्बाइन्ड है। तो कम्बाइन्ड है? डबल फारेनर्स कम्बाइन्ड है? पीछे वाले कम्बाइन्ड है? गैलरी वाले कम्बाइन्ड है?

अच्छा – आज तो बापदादा को समाचार मिला कि मधुबन निवासी पाण्डव भवन, ज्ञान सरोवर और यहाँ वाले भी अलग हॉल में सुन रहे हैं। तो उन्हों से भी बापदादा पूछ रहे हैं कि बापदादा कम्बाइन्ड हैं? हाथ उठा रहे हैं। जब सर्व शक्तिवान बापदादा कम्बाइन्ड है फिर अकेले क्यों बन जाते? अगर आप कमजोर भी हो तो बापदादा तो सर्वशक्तिवान है ना! अकेले बन जाते हो तब ही कमजोर बन जाते हो। कम्बाइन्ड रूप में रहो। बापदादा हर एक बच्चे के हर समय सहयोगी हैं। शिव बाप परमधाम से आये क्यों हैं? किसलिए आये हैं? बच्चों के सहयोगी बनने के लिए आये हैं। देखो ब्रह्मा बाप भी व्यक्त से अव्यक्त हुए किसलिए? साकार शरीर से अव्यक्त रूप में ज्यादा से ज्यादा सहयोग दे सकते हैं। तो जब बापदादा सहयोग देने के लिए ऑफर कर रहे हैं तो अकेले क्यों बन जाते? मेहनत में क्यों लग जाते? 63 जन्म तो मेहनत की है ना! क्या वह मेहनत के संस्कार अभी भी खींचते हैं क्या? मुहब्बत में रहो, लव में लीन रहो। मुहब्बत मेहनत से मुक्त कराने वाली है। मेहनत अच्छी लगती है क्या? क्या आदत से मजबूर हो जाते हो? सहज योगी हैं, बापदादा विशेष बच्चों के लिए परमधाम से सौगात लाये हैं, पता है क्या सौगात लाये हैं? तिरी पर बहिस्त लाया है। (हथेली पर स्वर्ग लाये हैं) आपका चित्र भी है ना। राज्य भाग्य लाये हैं बच्चों के लिए, इसलिए बापदादा को मेहनत अच्छी नहीं लगती।

बापदादा हर बच्चे को मेहनत मुक्त, मुहब्बत में मगन देखने चाहते हैं। तो मेहनत वा माया की युद्ध से मुक्त बनने की आज संकल्प द्वारा होली जलायेंगे? जलायेंगे? जलाना माना नाम-निशान गुम। कोई भी चीज़ जलाते हैं तो नाम-निशान खत्म हो जाता है ना! तो ऐसी होली मनायेंगे? हाथ तो हिला रहे हैं। बापदादा हाथ देख करके खुश हो रहा है। लेकिन… लेकिन है? लेकिन बोलें क्या कि नहीं? मन का हाथ हिलाना। यह हाथ हिलाना तो बहुत इज़ी है। अगर मन ने माना करना ही है, तो हुआ ही पड़ा है। नये-नये भी बहुत आये हैं। जो पहले बारी मिलन मनाने के लिए आये हैं, वह हाथ उठाओ। डबल फारेनर्स में भी हैं।

अभी जो भी पहले बारी आये हैं, बापदादा विशेष उन्हों को अपना भाग्य बनाने की मुबारक दे रहे हैं, लेकिन यह मुबारक स्मृति में रखना और अभी सबको लास्ट सो फास्ट जाने का चांस है, क्योंकि फाइनल रिजल्ट आउट नहीं हुई है। तो लास्ट में आने वाले भी, पहले वालों से लास्ट में आये हो ना, तो लास्ट वाले लास्ट सो फास्ट और फास्ट सो फर्स्ट आ सकते हैं। छुट्टी है, जा सकते हो। तो सदा यह लक्ष्य याद रखना कि मुझे अर्थात् मुझ आत्मा को फास्ट और फर्स्टक्लास में आना ही है। हाँ, वी.आई.पी बहुत आये हैं ना, टाइटल वी.आई.पी का है। जो वी.आई.पी आये हैं वह लम्बा हाथ उठाओ। (करीब 150 भारत के मेहमान बापदादा के सामने बैठे हैं) वेलकम। अपने घर में आने की वेलकम, भले पधारे। अभी तो परिचय के लिए वी.आई.पी. कहते हैं लेकिन अभी वी.आई.पी से वी.वी.वी.आई.पी बनना है। देखो, देवतायें आपके जड़ चित्र वी.वी.वी.आई.पी हैं तो आपको भी पूर्वज जैसा बनना ही है। बापदादा बच्चों को देखकर खुश होते हैं। रिलेशन में आये। जो वी.आई.पी आये हैं उठो। बैठे-बैठे थक भी गये होंगे, थोड़ा उठो। अच्छा।

वर्तमान समय बापदादा दो बातों पर बार-बार अटेन्शन दिला रहे हैं – एक स्टॉप, बिन्दी लगाओ, प्वाइंट लगाओ। दूसरा – स्टॉक जमा करो। दोनों जरूरी हैं। तीन खजाने विशेष जमा करो – एक अपने पुरुषार्थ की प्रालब्ध अर्थात् प्रत्यक्ष फल, वह जमा करो। दूसरा – सदा सन्तुष्ट रहना, सन्तुष्ट करना। सिर्फ रहना नहीं, करना भी। उसके फल स्वरूप दुआयें जमा करो। दुआओं का खाता कभी-कभी कोई बच्चे जमा करते हैं लेकिन चलते-चलते कोई छोटी-मोटी बात में कन्फ्यूज़ हो करके, हिम्मतहीन हो करके जमा हुए खजाने में भी लकीर लगा देते हैं। तो दुआओं का खाता भी जमा हो। उसकी विधि सन्तुष्ट रहना, सन्तुष्ट करना। तीसरा – सेवा द्वारा सेवा का फल जमा करना या खजाना जमा करना और सेवा में भी विशेष निमित्त भाव, निर्मान भाव, निर्मल वाणी। बेहद की सेवा। मेरा नहीं, बाबा। बाबा करावनहार मुझ करनहार से करा रहा है, यह है बेहद की सेवा। यह तीनों खाते चेक करो – तीनों ही खाते जमा हैं? मेरापन का अभाव हो। इच्छा मात्रम् अविद्या। सोचते हैं इस वर्ष में क्या करना है? सीजन पूरी हो रही है, अब 6 मास क्या करना है? तो एक तो खाते जमा करना, अच्छी तरह से चेक करना। कहाँ कोने में भी हद की इच्छा तो नहीं है? मैं और मेरापन तो नहीं है? लेवता तो नहीं है? विधाता बनो, लेवता नहीं। न नाम, न मान, न शान, किसी के भी लेवता नहीं, दाता, विधाता बनो।

अभी दु:ख बहुत-बहुत बढ़ रहा है, बढ़ता रहेगा, इसलिए मास्टर सूर्य बन अनुभूति की किरणें फैलाओ। जैसे सूर्य एक ही समय में कितनी प्राप्तियां कराता है, एक प्राप्ति नहीं कराता। सिर्फ रोशनी नहीं देता, पावर भी देता है। अनेक प्राप्तियां कराता है। ऐसे आप सभी इन 6 मास में ज्ञान सूर्य बन सुख की, खुशी की, शान्ति की, सहयोग की किरणें फैलाओ। अनुभूति कराओ। आपकी सूरत को देखते ही दु:ख की लहर में कम से कम मुस्कान आ जाये। आपकी दृष्टि से हिम्मत आ जाये। तो यह अटेन्शन देना है। विधाता बनना है, तपस्वी बनना है। ऐसी तपस्या करो जो तपस्या की ज्वाला कोई न कोई अनुभूति कराये। सिर्फ वाणी नहीं सुनें, अनुभूति कराओ। अनुभूति अमर होती है। सिर्फ वाणी थोड़ा समय अच्छी लगती है, सदा याद नहीं रहती, इसलिए अनुभव की अथॉरिटी बन अनुभव कराओ। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आ रहे हैं उन्हों को हिम्मत, उमंग-उत्साह अपने सहयोग से, बापदादा के कनेक्शन से दिलाओ। ज्यादा मेहनत नहीं कराओ। न खुद मेहनत करो न औरों को कराओ। निमित्त हैं ना! तो वायब्रेशन ऐसे उमंग-उत्साह का बनाओ जो गम्भीर भी उमंग-उत्साह में आ जाये। खुशी में मन नाचने लगे। सुना क्या करना है? देखेंगे रिजल्ट। किस स्थान ने कितनी आत्माओं को दृढ़ बनाया, खुद दृढ़ बने, कितनी आत्माओं को दृढ़ बनाया? साधारण पोतामेल नहीं देखेंगे, भूल नहीं की, झूठ नहीं बोला, कोई विकर्म नहीं किया, लेकिन कितनी आत्माओं को उमंग-उत्साह में लाया, अनुभूति कराई, दृढ़ता की चाबी दी? ठीक है ना, करना ही है ना। बापदादा भी क्यों कहे कि करेंगे! नहीं, करना ही है। आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा? पीछे आने वाले? आप ही कल्प-कल्प बाप से अधिकारी बने थे, बने हैं और हर कल्प बनेंगे। ऐसा दृढ़ता पूर्वक बच्चों का संगठन बापदादा को देखना ही है। ठीक है ना! हाथ उठाओ, बनना ही है, मन का हाथ उठाओ। दृढ़ निश्चय का हाथ उठाओ। यह तो सब पास हो गये हैं। पास हैं ना? अच्छा।

चारों ओर के दिलतख्तनशीन बच्चों को, दूर बैठे भी परमात्म प्यार का अनुभव करने वाले बच्चों को, सदा होली अर्थात् पवित्रता का फाउण्डेशन दृढ़ करने वाले, स्वप्न मात्र भी अपवित्रता के अंशमात्र से भी दूर रहने वाले महावीर, महावीरनी बच्चों को, सदा हर समय सर्व जमा का खाता, जमा करने वाले सम्पन्न बच्चों को, सदा सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने वाले बाप समान बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दुआयें और नमस्ते।

दादियों से:- दादियां तो गुरू भाई हैं ना, तो साथ में बैठो। भाई साथ में बैठते हैं। अच्छा है। बापदादा रोज़ स्नेह की मालिश करते हैं। निमित्त है ना! यह मालिश चला रही है। अच्छा है – आप सभी का एक्जैम्पुल देख करके सभी को हिम्मत आती है। निमित्त दादियों के समान सेवा में, निमित्त भाव में आगे बढ़ना है। अच्छा है, आप लोगों का यह जो पक्का निश्चय है ना – करावनहार करा रहा है, चलाने वाला चला रहा है। यह निमित्त भाव सेवा करा रहा है। मैं पन है? कुछ भी मैं पन आता है? अच्छा है। सारे विश्व के आगे निमित्त एक्जैम्पुल है ना। तो बापदादा भी सदा विशेष प्यार और दुआयें देते ही रहते हैं। अच्छा। बहुत आये हैं तो अच्छा है ना! लास्ट टर्न फास्ट गया है। अच्छा।

डबल विदेशी मुख्य टीचर्स बहिनों से:- सभी मिलके सभी की पालना करने के निमित्त बनते हो यह बहुत अच्छा पार्ट बजाते हो। खुद भी रिफ्रेश हो जाते हो और दूसरों को भी रिफ्रेश कर देते हो। अच्छा प्रोग्राम बनाते हो। बापदादा को पसन्द है। खुद रिफ्रेश होंगे तब तो रिफ्रेश करेंगे। बहुत अच्छा। सभी ने रिफ्रेशमेंट अच्छी की। बापदादा खुश है। बहुत अच्छा। ओम् शान्ति।

वरदान:- नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव
रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल-अडोल भव के वरदानी बनो। क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नालेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है – लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नालेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।
स्लोगन:- शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।

 

अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो

प्युरिटी की पर्सनौलिटी के आधार पर ब्रह्मा बाप आदि देव वा पहला प्रिन्स बनें। ऐसे आप भी फालो फादर कर वन नम्बर की पर्सनैलिटी की लिस्ट में आ जाओ क्योंकि ब्राह्मण जन्म के संस्कार ही पवित्र हैं। आपकी श्रेष्ठता वा महानता ही पवित्रता है।

🌞 मास्टर ज्ञान सूर्य बन अनुभूति की किरणें फैलाओ, विधाता बनो, तपस्वी बनो

(Based on Avyakt BapDada’s Murli essence)

प्रश्न 1: ‘मास्टर ज्ञान सूर्य’ बनने का अर्थ क्या है?

उत्तर:‘मास्टर ज्ञान सूर्य’ वह आत्मा है जो स्वयं परमात्मा ज्ञान सूर्य शिवबाबा से ज्ञान की रोशनी और शक्ति प्राप्त कर, उसे और आत्माओं तक फैलाती है। जैसे सूर्य एक ही समय में रोशनी, गर्मी, ऊर्जा देता है, वैसे ही मास्टर ज्ञान सूर्य भी अनेक आत्माओं को अनुभूति, उमंग-उत्साह, शक्ति और दिशा प्रदान करता है। यह आत्मा स्वयं अनुभव की अथॉरिटी बनती है।

प्रश्न 2: अनुभव की किरणें फैलाने के लिए आत्मा को क्या स्थिति बनानी होती है?

उत्तर:इसके लिए आत्मा को ‘अनुभव स्वरूप’ बनना होता है, केवल ज्ञान सुनाना नहीं बल्कि ऐसा तपस्वी बनना जो अपने वायब्रेशन से, दृष्टि से, मुस्कान से भी सामने वाले को अनुभूति करा सके। ऐसा तभी संभव है जब आत्मा निरंतर परमात्मा के संग में, योगाग्नि में स्थित हो।

प्रश्न 3: विधाता बनो – इसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर:‘विधाता’ का अर्थ है ‘दाता’, ‘सृजनकर्ता’। ब्रह्मा बाप की तरह हम भी “दाता” बनें – न मान, न शान, न नाम की इच्छा, केवल देना। सुख दो, शान्ति दो, प्रेम दो। सेवा करते हुए भी “मैं नहीं, बाबा करावनहार है” का भाव रखें। जब हम लेवता नहीं, बल्कि दाता बनते हैं – तब हम विधाता कहलाते हैं।

प्रश्न 4: तपस्वी बनना क्यों आवश्यक है?

उत्तर:तपस्या ही वह शक्ति है जो आत्मा को जड़ संकल्पों, व्यर्थ विचारों और अपवित्रता के अंशमात्र से भी मुक्त कर देती है। तपस्वी आत्मा स्वयं को इतनी स्थिर स्थिति में स्थित कर लेती है कि उसका वायब्रेशन भी वातावरण को बदल दे। आज की दुनिया को ऐसे ही अनुभवी तपस्वियों की आवश्यकता है जो दूसरों को बोल से नहीं, अनुभव से परिवर्तन करें।

प्रश्न 5: अनुभव और वाणी में क्या अंतर है?

उत्तर:वाणी केवल कुछ समय के लिए सुनाई देती है, लेकिन अनुभव आत्मा में सदा के लिए छप जाता है। वाणी भूल सकती है, लेकिन अनुभूति कभी नहीं भूलती। इसलिए बापदादा कहते हैं – “सिर्फ सुनाओ नहीं, अनुभव कराओ। अनुभव अमर होता है।”

प्रश्न 6: दुआओं का खाता कैसे जमा करें?

उत्तर:सदा संतुष्ट रहो, और दूसरों को भी संतुष्ट करो। जहाँ संतुष्टि है, वहाँ से दुआ निकलती है। सेवा करो – निर्मल वाणी, निमित्त भाव और निर्मानता के साथ। तब हर आत्मा से सच्ची दुआ मिलती है, जो सबसे बड़ा खजाना है।

प्रश्न 7: ‘स्टॉप’ और ‘स्टॉक’ – दो विशेष बातें क्या हैं?

उत्तर:

  1. स्टॉप – किसी भी व्यर्थ, नकारात्मक संकल्प पर तुरन्त बिन्दी लगाओ, स्टॉप करो।

  2. स्टॉक – तीन खजाने जमा करो:

    • पुरुषार्थ की प्राप्ति,

    • संतुष्टि की दुआओं का खाता,

    • सेवा का फल।

प्रश्न 8: इस होली का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर:होली का अर्थ है ‘होलीएस्ट’ और ‘हाइएस्ट’। पहले अपवित्रता को योगाग्नि में जलाना (जैसे होलिका दहन), फिर पवित्रता में, परमात्म रंग में रंग जाना – यह होली मनाना है। जब आत्मा परमात्म रंग में रंग जाती है, तो वह आनंद, मिलन और खुशियों का प्रतीक बन जाती है।


प्रश्न 9: बापदादा हमें किस आत्मिक स्थिति का लक्ष्य दे रहे हैं?

उत्तर:

  • दुआ लेने और देने वाले बनो।

  • कम्बाइन्ड रहो – अकेले नहीं।

  • मेहनत मुक्त, मुहब्बत में मगन रहो।

  • अनुभव स्वरूप बनो – बोल नहीं, प्रभाव दो।

  • मास्टर विधाता और तपस्वी बनो।

  • हर आत्मा को मुस्कान और हिम्मत देने वाले बनो।


प्रश्न 10: अगले 6 मासों का मुख्य पुरुषार्थ क्या होना चाहिए?

उत्तर:

  • तीन खजानों को भरपूर जमा करना।

  • मास्टर सूर्य बनकर अनुभूति की किरणें फैलाना।

  • स्वयं दृढ़ बनना, और दूसरों को भी दृढ़ बनाना।

  • सेवा में निमित्त भाव, निर्मलता और निर्विकारी स्थिति बनाए रखना।

  • बाप समान विधाता, तपस्वी, और सदा संतुष्ट आत्मा बनना।

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