What is the real meaning of the word ‘Kali’?

(35)‘कलि’ शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“क्या ‘कलियुग’ सच में 4 लाख वर्ष का है? | युगों की असली गणना | 


1. शब्दमूल (Etymology): ‘कलि’ का अर्थ क्या है?

‘कलि’ शब्द संस्कृत के ‘कल’ (काल) से बना है, जिसका अर्थ है “काल का अंश”।
यह ‘प्रथम’ भी कहलाता है – जैसे पाँसे के खेल में ‘एक’ को ‘कलि’ कहा जाता है।

निष्कर्ष:
‘कलि’ वास्तव में कोई युग नहीं, बल्कि गणना की एक काल-इकाई है, जिससे समय को मापा जाता है।


 2. क्या सभी युगों की आयु एक जैसी होती है या भिन्न-भिन्न?

धार्मिक मान्यताओं में युगों की आयु इस प्रकार मानी जाती है:

  • कलियुग = 4,32,000 वर्ष

  • द्वापर = 8,64,000 वर्ष

  • त्रेता = 12,96,000 वर्ष

  • सतयुग = 17,28,000 वर्ष

लेकिन यह गणना धर्म के ‘पादों’ (धार्मिक स्थिरता) पर आधारित है, न कि तर्क या अनुभव पर।
धर्म का घटाव युगों की लंबाई नहीं तय कर सकता।


 3. उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें:

यदि हम मानें कि मनुष्य की आयु:

  • कलियुग में 40 वर्ष

  • द्वापर में 80 वर्ष

  • त्रेता में 120 वर्ष

  • सतयुग में 160 वर्ष

तो क्या इससे युगों की लंबाई तय हो सकती है?
नहीं। यह केवल जीवन-स्तर का संकेत है, न कि युगों की कालगणना।


 4. क्या यह युगगणना ईश्वर द्वारा दी गई है?

नहीं।
प्राचीन गणितज्ञ जैसे आर्यभट्ट, वराहमिहिर आदि ने खगोलीय गणनाओं के आधार पर युगों की काल-कल्पनाएँ कीं।

उदाहरण:
आर्यभट्ट के अनुसार:

  • एक युगपाद = 432 वर्ष

  • चतुर्युगी = 1728 वर्ष

  • प्रथम कलियुग = 3102 BCE

 लेकिन इन गणनाओं से महाभारत युद्ध आज से केवल 1400 वर्ष पहले सिद्ध होता है – जो असंभव है।


 5. ‘कलि’, ‘द्वापर’, ‘त्रेता’, ‘सतयुग’ का क्रम क्या है?

इनका क्रम अतीत की ओर है:
कलियुग → द्वापर → त्रेता → सतयुग

हम युगों को इतिहास देखकर बाँटते हैं, न कि सतयुग में युगों का ज्ञान पहले से था।


 6. तो यथार्थ ज्ञान कहाँ से मिलता है?

साकार मुरली 06-03-1973:

“यह ज्ञान तो एक कल्प के अन्त में ही मिलता है, जब स्वयं परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में प्रवेश कर सृष्टि चक्र का रहस्य बताते हैं।”

साकार मुरली 18-07-1971:

“दुनिया वाले तो कल्प-कल्पांत कालगणना में ही फँसे रह जाते हैं।”

सत्य युग-ज्ञान केवल संगमयुग में परमात्मा शिव से ही मिलता है।


 7. ब्रह्माकुमारी ज्ञान अनुसार युगों की यथार्थ गणना:

युग अवधि धर्म की स्थिति आत्मा की कला
सतयुग 1250 वर्ष 100% 16 कला
त्रेता 1250 वर्ष 75% 14 कला
द्वापर 1250 वर्ष 50% 8 कला
कलियुग 1250 वर्ष 25% 4 कला

चतुर्युगी = 5000 वर्ष
और अब है संगमयुग – 100 वर्ष का अलौकिक युग, जब ईश्वर स्वयं ज्ञान देते हैं।


 8. भगवान का अवतरण कब होता है?

अव्यक्ष मुरली 18-01-1973:

“भगवान का अवतरण द्वापर व कलियुग के संधिकाल में होता है।”

 लेकिन यह BK ज्ञान अनुसार द्वापर-कलि है, न कि लाखों वर्ष वाली मान्यताओं पर आधारित।


 9. अंतिम निष्कर्ष:

  • ‘कलि’, ‘द्वापर’ आदि कालगणनाएँ खगोल विज्ञान पर आधारित हैं, न कि दिव्य ज्ञान पर।

  • सच्चा कालज्ञान केवल परमात्मा शिव संगमयुग में बतलाते हैं – चारों युग बराबर: 1250-1250 वर्ष।

  • आज का समय ही संगमयुग है – जब आत्मा को पुनः 16 कला का बनाकर सतयुग की स्थापना की जा रही है।

प्रश्न 1: ‘कलि’ शब्द का मूल अर्थ क्या है?

उत्तर:‘कलि’ संस्कृत के ‘कल’ (काल) से बना है, जिसका अर्थ है – काल का अंश
यह ‘प्रथम’ भी कहलाता है – जैसे पाँसे में ‘एक’ को ‘कलि’ कहते हैं।
 इसलिए ‘कलि’ कोई युग नहीं, बल्कि काल-गणना की एक छोटी इकाई है।


प्रश्न 2: क्या सभी युगों की आयु अलग-अलग होती है?

उत्तर:धार्मिक मान्यताओं के अनुसार:

  • कलियुग = 4,32,000 वर्ष

  • द्वापर = 8,64,000 वर्ष

  • त्रेता = 12,96,000 वर्ष

  • सतयुग = 17,28,000 वर्ष

 लेकिन यह गणना ‘धर्म के पादों’ पर आधारित है – जैसे कलियुग में 1 पाद, त्रेता में 3 पाद।
 यह युगों की सही आयु नहीं बता सकती, केवल धर्म की स्थिति को दर्शाती है।


प्रश्न 3: क्या जीवन स्तर से युग की लंबाई तय की जा सकती है?

उत्तर:उदाहरण के लिए, यदि:

  • कलियुग में आयु 40 वर्ष हो,

  • द्वापर में 80 वर्ष,

  • त्रेता में 120 वर्ष,

  • सतयुग में 160 वर्ष,

 तो इससे युगों की लंबाई नहीं तय की जा सकती।
यह केवल जीवन-स्तर का संकेत है, काल-गणना नहीं।


प्रश्न 4: क्या यह युगगणना भगवान ने दी है?

उत्तर:नहीं।
यह युगगणना ज्योतिर्विदों जैसे आर्यभट्ट, वराहमिहिर आदि ने दी थी – अपने खगोलीय शोधों के अनुसार।

उदाहरण:
आर्यभट्ट के अनुसार:

  • एक युगपाद = 432 वर्ष

  • चतुर्युगी = 1728 वर्ष

  • प्रथम कलियुग = 3102 BCE

 परंतु इस आधार पर महाभारत युद्ध आज से केवल 1400 वर्ष पहले सिद्ध होता है – जो तर्कसंगत नहीं।


प्रश्न 5: ‘सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग’ का क्रम क्या है?

उत्तर:वास्तव में यह क्रम अतीत की ओर जाता है:

कलियुग → द्वापर → त्रेता → सतयुग

 हम इतिहास के आधार पर युगों को बाँटते हैं,
सतयुग में कोई नहीं जानता कि यह सतयुग है – क्योंकि वह स्वाभाविक, स्वर्णिम जीवन होता है।


प्रश्न 6: तो फिर सत्य युग-ज्ञान कहाँ से मिलता है?

उत्तर:साकार मुरली 06-03-1973:
“यह ज्ञान तो एक कल्प के अन्त में ही मिलता है, जब परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में आकर सृष्टि चक्र समझाते हैं।”

साकार मुरली 18-07-1971:
“दुनिया वाले तो कल्प-कल्पांत कालगणना में ही फँसे रहते हैं।”

 इसलिए सच्चा ज्ञान संगमयुग में ही मिलता है, जब परमात्मा शिव स्वयं ज्ञान देते हैं।


प्रश्न 7: ब्रह्माकुमारी ज्ञान अनुसार युगों की सही गणना क्या है?

उत्तर:

युग अवधि धर्म की स्थिति आत्मा की कला
सतयुग 1250 वर्ष 100% 16 कला
त्रेता 1250 वर्ष 75% 14 कला
द्वापर 1250 वर्ष 50% 8 कला
कलियुग 1250 वर्ष 25% 4 कला

चतुर्युगी = 5000 वर्ष
और अब है संगमयुग – 100 वर्षों का, जहाँ ईश्वर स्वयं ज्ञान दे रहे हैं।


प्रश्न 8: भगवान का अवतरण कब होता है?

उत्तर:अव्यक्त मुरली 18-01-1973:
“भगवान का अवतरण द्वापर और कलियुग के संधिकाल में होता है।”

 लेकिन यह BK ज्ञान अनुसार द्वापर और कलियुग हैं – न कि लाखों वर्ष वाली मान्यताओं के अनुसार।


प्रश्न 9: अंतिम निष्कर्ष क्या है?

उत्तर:‘कलियुग = 4,32,000 वर्ष’ जैसी गणनाएँ ज्योतिर्विदों की खगोलीय कल्पनाएँ हैं।
सच्चा कालज्ञान, युगों की समान अवधि, धर्म की स्थिति – यह सब केवल परमात्मा शिव संगमयुग में बतलाते हैं।

आज का समय ही संगमयुग है, जब आत्मा को फिर से 16 कला बनाकर सतयुग की स्थापना हो रही है।

Disclaimer (अस्वीकरण):

यह वीडियो आध्यात्मिक शिक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है, जो ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ज्ञानधारा पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत विचार शास्त्रों, खगोलशास्त्र, और आत्मिक अनुभूतियों के आध्यात्मिक विश्लेषण पर आधारित हैं। यह किसी भी धर्म, व्यक्ति या पंथ की मान्यताओं का खंडन नहीं करता, अपितु सत्य ज्ञान के दृष्टिकोण को जाग्रत करने का विनम्र प्रयास है।

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