(59)भगवान का दिव्य रूप कौन-सा हैं?
गीता का भगवान कौन है? | भगवान का दिव्य स्वरूप क्या है? |
स्पीच: भगवान का दिव्य स्वरूप कौन सा है?
(59वां विषय – गीता का भगवान कौन?)
ओम शांति
आज हम गीता के एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा करेंगे –
“भगवान का दिव्य स्वरूप कौन सा है?”
हमारा यह 59वां विषय है –
गीता का भगवान कौन है?
श्रीकृष्ण: गीता का भगवान?
संसार में आज अनेक स्वरूपों की पूजा होती है।
विशेषकर मोर मुकुटधारी श्रीकृष्ण को गीता का भगवान मान लिया गया है।
परंतु गीता स्वयं भगवान के दिव्य स्वरूप को विस्तार से समझाती है।
तो प्रश्न यह है –
यदि श्रीकृष्ण भगवान नहीं, तो फिर भगवान का निज स्वरूप क्या है?
गीता क्या कहती है?
गीता अध्याय 13 में भगवान स्वयं स्पष्ट करते हैं:
“भगवान देह नहीं है, देह का स्वामी है।”
“भगवान क्षेत्रज है, न कि क्षेत्र।”
यहाँ “क्षेत्र” का अर्थ है शरीर, और “क्षेत्रज्ञ” का अर्थ है आत्मा – जो शरीर का ज्ञाता है।
उदाहरण – आकाश की तरह आत्मा
गीता श्लोक 13.33 में कहा गया:
“जैसे आकाश सर्वत्र व्याप्त होते हुए भी किसी से लिप्त नहीं होता,
वैसे ही आत्मा शरीर में स्थित होते हुए भी लिप्त नहीं होती।”
आकाश कहीं भी चिपकता नहीं –
वैसे ही आत्मा भी शरीर से अलग, पर शरीर में निवास करती है।
उदाहरण – सूर्य जैसा आत्मा का प्रकाश
गीता श्लोक 13.34 में कहा गया:
“जैसे एक सूर्य सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करता है,
वैसे ही आत्मा संपूर्ण शरीर को चेतना देती है।”
ध्यान दें:
सूर्य एक जगह स्थिर है, परंतु उसकी किरणें सब जगह जाती हैं।
वैसे ही आत्मा भृकुटि (forehead) में स्थित होकर पूरे शरीर को ऊर्जा देती है।
मुरली प्रमाण – आत्मा और परमात्मा दोनों ही बिंदु
26 अप्रैल 1971 की मुरली में बाबा कहते हैं:
“आत्मा एक तारे समान बिंदु है। भृकुटि में निवास करती है। शरीर को वही चलाती है।”
“आत्मा जैसी सूक्ष्म है, वैसी परमात्मा भी सूक्ष्म है।”
18 दिसंबर 1985 की मुरली:
“बच्चे, आत्मा और परमात्मा दोनों ही दिव्य ज्योति बिंदु हैं।”
“जैसे आत्मा शरीर को प्रकाशित करती है, वैसे ही परमात्मा सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान प्रकाश देता है।”
आत्मा और परमात्मा: समानताएं
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दोनों ही निर्लिप्त हैं
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दोनों अकारण कारण हैं
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दोनों को किसी भी सूक्ष्मदर्शी यंत्र से नहीं देखा जा सकता
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दोनों प्रकाश स्वरूप हैं
शरीर और आत्मा का संबंध
27 जून 1994 की मुरली में बाबा कहते हैं:
“बच्चे, तुम आत्मा हो, शरीर नहीं। शरीर भोग की वस्तु है।”
“आत्मा शरीर के लिए कर्म करती है। शरीर को आत्मा ही चलाती है।”
जब आत्मा शरीर से जुड़ी होती है, तो वही सुख-दुख का अनुभव करती है।
परंतु आत्मा स्वयं में निर्लिप्त रहती है।
आत्मा = भोक्ता | परमात्मा = अभोक्ता
हम आत्मा शरीर द्वारा कर्म करते हैं,
इसलिए भोग के पात्र बनते हैं।
परंतु परमात्मा शिव बाबा –
अभोक्ता है, क्योंकि उसके पास शरीर नहीं है।
निष्कर्ष: भगवान कौन?
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भगवान देही नहीं है, देही का जानने वाला है।
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भगवान स्वयं गीता में कहते हैं – मैं अजन्मा, अविनाशी, सर्वव्यापी, दिव्य बिंदु हूँ।
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भगवान श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा शिव है – दिव्य ज्योति स्वरूप।
गीता का भगवान कौन है? | भगवान का दिव्य स्वरूप क्या है? |
उत्तर सहित प्रश्नोत्तरी
प्रश्न 1: गीता में किसे भगवान कहा गया है – श्रीकृष्ण को या किसी और को?
उत्तर:गीता में भगवान श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा शिव को भगवान कहा गया है।
भगवान श्रीकृष्ण देहधारी थे, जबकि गीता का भगवान स्वयं कहता है –
“मैं अजन्मा हूँ, अविनाशी हूँ, देहधारी नहीं हूँ।”
प्रश्न 2: यदि श्रीकृष्ण गीता का भगवान नहीं हैं, तो फिर गीता में कौन बोल रहा है?
उत्तर:गीता में स्वयं परमात्मा शिव बोल रहे हैं, जो श्रीकृष्ण के माध्यम से बोलते हैं।
वह दिव्य ज्योति बिंदु स्वरूप हैं –
देह का स्वामी हैं, पर देहधारी नहीं।
प्रश्न 3: गीता में भगवान ने अपने स्वरूप को कैसे समझाया है?
उत्तर:गीता अध्याय 13 के अनुसार:
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“भगवान क्षेत्रज्ञ है, न कि क्षेत्र”
(यानी आत्मा है, शरीर नहीं) -
“भगवान आकाश की तरह लिप्त रहित है”
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“सूर्य की तरह शरीर को चेतना देने वाला है”
इन सबका अर्थ है – भगवान सूक्ष्म आत्म स्वरूप है।
प्रश्न 4: आत्मा और परमात्मा में क्या समानताएं हैं?
उत्तर:
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दोनों निर्लिप्त हैं
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दोनों अकारण कारण हैं
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दोनों प्रकाश स्वरूप बिंदु हैं
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दोनों को किसी भी यंत्र से नहीं देखा जा सकता
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दोनों भृकुटि में टिके रहते हैं (परमात्मा स्थाई रूप से नहीं, पर प्रवेश में आते हैं)
प्रश्न 5: गीता में आत्मा को कैसे वर्णित किया गया है?
उत्तर:
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आत्मा शरीर में होते हुए भी लिप्त नहीं होती (13.33)
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आत्मा पूरे शरीर को जैसे सूर्य चेतना देता है, वैसे प्रकाशित करती है (13.34)
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आत्मा भृकुटि में स्थित दिव्य बिंदु है – यह बात मुरली में भी आई है
प्रश्न 6: परमात्मा को किस रूप में माना गया है?
उत्तर:
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परमात्मा दिव्य ज्योति बिंदु है
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वह अभोक्ता है, क्योंकि उसके पास देह नहीं है
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वह ज्ञान, प्रेम, शक्ति और शांति का स्रोत है
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मुरली प्रमाण (18 दिसंबर 1985):
“जैसे आत्मा शरीर को प्रकाशित करती है, वैसे ही परमात्मा सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करता है।”
प्रश्न 7: श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव में क्या अंतर है?
| विशेषता | श्रीकृष्ण | परमात्मा शिव |
|---|---|---|
| देह | है | नहीं |
| जन्म | होता है | नहीं होता |
| भोक्ता | हैं | नहीं |
| रूप | मोर मुकुटधारी | ज्योति बिंदु |
| स्थान | सतयुग | संगमयुग में आता है |
| ज्ञानदाता | नहीं | गीता ज्ञानदाता |
प्रश्न 8: मुरली में आत्मा और परमात्मा के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
-
26 अप्रैल 1971:
“आत्मा एक तारे समान बिंदु है। शरीर को वही चलाती है।” -
18 दिसंबर 1985:
“आत्मा और परमात्मा दोनों दिव्य ज्योति बिंदु हैं।”
प्रश्न 9: गीता का असली ज्ञानदाता कौन है?
उत्तर:स्वयं परमात्मा शिव, जो संगम युग पर ब्रह्मा के माध्यम से ज्ञान देते हैं।
वे ही गीता का असली ज्ञानदाता हैं –
न श्रीकृष्ण, न कोई मानव, बल्कि परम प्रकाश बिंदु।
प्रश्न 10: निष्कर्ष रूप में, गीता का भगवान कौन है?
उत्तर:
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गीता का भगवान कोई मनुष्य नहीं
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वह अजन्मा, अविनाशी, निर्लिप्त परमात्मा शिव है
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उनका स्वरूप है – दिव्य ज्योति बिंदु, जो ब्रह्मा के माध्यम से ज्ञान सुनाते हैं
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वे ही सच्चे अर्थों में “गीता ज्ञानदाता भगवान” हैं
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
इस वीडियो का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक शिक्षा देना है। इसमें व्यक्त विचार ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान और मुरली वाणी पर आधारित हैं। यह किसी भी धार्मिक, सामाजिक या व्यक्तिगत भावना को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं है। कृपया इसे आत्म-चिंतन और सुधार की दृष्टि से देखा जाए।
The purpose of this video is to share the spiritual essence of Avyakta Murli messages of Brahma Kumaris. It does not criticize any person, institution or religion. This knowledge is presented only for the upliftment of the soul, positive thinking and staying connected to the divine. Please watch it from the point of view of self-experience and self-reflection.
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