(56)केशव, गोविंद, जनार्दन किसके नाम हैं?
“गीता में किसके महावाक्य हैं? | भगवान कौन है? | श्रीकृष्ण या शिव? |
“गीता में किसके महावाक्य हैं?”
(गीता का भगवान कौन? श्रीकृष्ण या निराकार शिव?)
1. भूमिका: गीता का रहस्य खुलता है
गीता — एक दिव्य ग्रंथ जिसे पूरे विश्व में “भगवान की वाणी” माना गया।
परंतु क्या हमने कभी सोचा…
वो “भगवान” कौन है जिसने ये वाणी कही?
क्या वह श्रीकृष्ण हैं?
या कोई अदृश्य, निराकार सत्ता?
आज हम इस गूढ़ प्रश्न का उत्तर मुरली के प्रकाश में खोजेंगे।
2. गीता: भगवान की वाणी — पर कौन भगवान?
‘भगवत गीता’ — यानी भगवान द्वारा कही गई वाणी।
परंतु आज तक भ्रम बना रहा कि यह वाणी श्रीकृष्ण ने दी।
अगर वक्ता की पहचान ही गलत हो जाए,
तो पूरी गीता की व्याख्या बदल जाती है।
जैसे कोई गांधी जी की जगह किसी और के विचारों को “राष्ट्रपिता के विचार” कहे —
क्या वह सत्य होगा?
3. श्रीकृष्ण नहीं, अजन्मा परमात्मा
गीता अध्याय 10, श्लोक 3 में कहा गया है:
“यो माम अजं जानाति लोकमहेश्वरम्…”
“जो मुझे अजन्मा और सभी लोकों का महेश्वर जानता है, वही सच्चा ज्ञानी है।”
तो सोचिए —
श्रीकृष्ण तो जन्म लेते हैं, बालक बनते हैं,
देवकी-वासुदेव के पुत्र हैं।
फिर वो अजन्मा कैसे हो सकते हैं?
इसका स्पष्ट अर्थ है — गीता का वक्ता कोई और है।
4. ब्रह्माकुमारियों के अनुसार — गीता का वक्ता है शिव
ब्रह्माकुमारियों के अनुसार —
गीता के ज्ञान का वक्ता है निराकार शिव परमात्मा।
वे ज्योति बिंदु रूप में,
ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ये ज्ञान देते हैं।
जैसे वकील अपनी भाषा नहीं, कोर्ट की भाषा बोलता है,
वैसे ही —
ब्रह्मा मुख से वाणी है, पर ज्ञान शिव परमात्मा का है।
5. गीता का मुख्य उद्देश्य: “मन मना भव”
गीता का सबसे प्रसिद्ध वाक्य है:
“मन मना भव” —
“अपने मन को मुझ में लगाओ।”
अब सोचिए —
“मुझ” में मन लगाने योग्य कौन है?
एक देहधारी श्रीकृष्ण?
या देह रहित शिव परमात्मा, जो सर्वव्यापी, अजन्मा और कल्याणकारी है?
गीता का योग देवता श्रीकृष्ण से नहीं,
बल्कि परमात्मा शिव से है।
6. मुरली वाणी से प्रमाण
मुरली 6 जनवरी 1991:
“मैं आकर साकार तन में प्रवेश कर बच्चों को अपने जैसा बनाता हूँ।
मुझको ही याद करने से कल्याण होगा।”
मुरली 30 सितम्बर 1991:
“जो ज्ञान मैं कल्प पहले सुनाता था, वही अब फिर से सुनाता हूँ।”
मुरली 25 नवम्बर 1993:
“जो ज्ञान श्रीकृष्ण से जोड़ दिया, वो अब मैं फिर से तुम्हें दे रहा हूँ।
श्रीकृष्ण को वक्ता मानने से सच्चा मार्ग नहीं मिलता।”
ये स्पष्ट करता है —
गीता के महावाक्य आज फिर से मुरली रूप में गूंज रहे हैं।
7. नई चैतन्य गीता — ब्रह्मा मुख वाणी से
अब वही अजन्मा शिव परमात्मा —
ब्रह्मा के मुख से मधुबन में
नई चैतन्य गीता सुना रहे हैं।
जैसे पुराना सरकारी नोटिस रद्द होकर नया जारी होता है,
वैसे ही अब नया दिव्य ज्ञान प्रकाशित हो रहा है।
8. निष्कर्ष: गीता का असली वक्ता
-
श्रीकृष्ण — सतयुग के आदिदेव हैं, पूज्य हैं।
परंतु वे गीता के वक्ता नहीं हो सकते। -
शिव परमात्मा — निराकार, अजन्मा,
वही गीता ज्ञानदाता हैं।
वही आज भी मधुबन में ब्रह्मा के मुख से
“सच्चे महावाक्य” सुना रहे हैं।
“गीता में किसके महावाक्य हैं? | भगवान कौन है? | श्रीकृष्ण या शिव? |
Q&A Script: “गीता में किसके महावाक्य हैं?”
Q1: गीता को “भगवान की वाणी” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि यह स्वयं भगवान द्वारा कही गई वाणी है — जिसे “भगवत गीता” कहा जाता है। “भगवत” का अर्थ है “भगवान की”, और “गीता” का अर्थ है “गाई गई वाणी”। यह दिव्य ज्ञान है जो आत्मा के कल्याण के लिए कहा गया।
Q2: तो फिर यह “भगवान” कौन है? क्या वह श्रीकृष्ण हैं?
उत्तर:नहीं। गीता के श्लोकों में भगवान ने स्वयं को अजन्मा और लोकमहेश्वर कहा है (अध्याय 10, श्लोक 3)। श्रीकृष्ण तो जन्म लेते हैं, एक देहधारी बालक हैं। अतः वह अजन्मा भगवान नहीं हो सकते।
Q3: गीता अध्याय 10, श्लोक 3 में क्या स्पष्ट किया गया है?
उत्तर:“यो माम अजं जानाति लोकमहेश्वरम्…” — अर्थात, जो मुझे अजन्मा और सभी लोकों का स्वामी जानता है, वही सच्चा ज्ञानी है। इससे स्पष्ट होता है कि गीता का वक्ता जन्म लेने वाला नहीं, बल्कि अजन्मा परमात्मा है।
Q4: ब्रह्माकुमारियों के अनुसार गीता का असली वक्ता कौन है?
उत्तर:ब्रह्माकुमारियों के अनुसार गीता का वास्तविक वक्ता है — निराकार शिव परमात्मा, जो ज्योति बिंदु रूप में ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर ज्ञान देते हैं। वह देहधारी नहीं हैं, इसलिए वह अजन्मा हैं।
Q5: यदि ब्रह्मा बोलते हैं, तो भगवान की वाणी कैसे मानी जाती है?
उत्तर:जैसे वकील अदालत में जज की ओर से बोलता है, वैसे ही ब्रह्मा बाबा मुख हैं और वाणी शिव परमात्मा की है। मुरली ब्रह्मा के मुख से निकलती है, लेकिन उसमें ज्ञान शिव का होता है।
Q6: “मन मना भव” किसका आदेश है?
उत्तर:“मन मना भव” — “अपने मन को मुझ में लगाओ।” यह आज्ञा भी गीता में भगवान ने दी है। पर “मैं” कौन है?
अगर देहधारी श्रीकृष्ण हों, तो वह योग नहीं, भक्ति कहलाएगा।
इसलिए यह आदेश है — निराकार शिव परमात्मा का।
Q7: क्या मुरली में गीता ज्ञान का प्रमाण मिलता है?
उत्तर:हां। कुछ प्रमाण —
6 जनवरी 1991:
“मैं आकर साकार तन में प्रवेश कर बच्चों को अपने जैसा बनाता हूँ।”
30 सितम्बर 1991:
“जो ज्ञान मैं कल्प पहले सुनाता था, वही अब फिर से सुनाता हूँ।”
25 नवम्बर 1993:
“जो ज्ञान श्रीकृष्ण से जोड़ दिया, वो अब मैं फिर से तुम्हें दे रहा हूँ।”
इसका अर्थ: गीता का ज्ञान शिव परमात्मा आज फिर से मुरली के रूप में सुना रहे हैं।
Q8: क्या गीता का ज्ञान अभी भी दिया जा रहा है?
उत्तर:जी हां। यह नई चैतन्य गीता है — जो ब्रह्मा के मुख से मुरली रूप में सुनाई जा रही है।
जैसे पुरानी गीता के महावाक्य अब मुरली में पुनः जीवंत हो रहे हैं।
Q9: श्रीकृष्ण का स्थान फिर क्या है?
उत्तर:श्रीकृष्ण सतयुग के पहले राजकुमार हैं — पूज्य, सुंदर, मर्यादापुरुषोत्तम देवता।
परंतु वे ज्ञान का दाता नहीं, ज्ञान का फल हैं।
गीता का वक्ता वे नहीं, बल्कि शिव परमात्मा हैं।
Q10: आज हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: अब समय है:
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सत्य वक्ता को पहचानने का,
-
श्रीमत पर चलकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने का,
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और अजन्मा परमात्मा शिव से योग लगाकर आत्मा का कल्याण करने का।
डिस्क्लेमर:
इस वीडियो में प्रस्तुत सभी विचार और व्याख्याएं ब्रह्माकुमारी संस्था के आध्यात्मिक ज्ञान और मुरली वाणी पर आधारित हैं। हमारा उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागरूकता फैलाना है, किसी भी धर्म, आस्था, ग्रंथ या देवता का अपमान करना नहीं। यह प्रस्तुति आत्मिक दृष्टिकोण से गीता के वक्ता की पहचान स्पष्ट करने का प्रयास है। कृपया इसे अध्यात्मिक विचारों की तरह समझें और खुले मन से चिंतन करें।
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