अध्याय: सच्चा करवा चौथ व्रत — शरीर का नहीं, मन का उपवास
परिचय – व्रत का अर्थ समझो
हर साल करोड़ों स्त्रियाँ करवा चौथ पर सूर्योदय से लेकर चंद्र दर्शन तक अन्न और जल का त्याग करती हैं,
अपने पति की दीर्घायु और सौभाग्य की कामना के लिए।
पर क्या यह व्रत केवल शरीर का उपवास है या मन का भी?
शिव बाबा (साकार मुरली, 19 अक्टूबर 2015):
“बच्चे, मैं शरीर का उपवास नहीं कहता। मैं मन का उपवास कहता हूँ —
और वो भी कौन सा उपवास? व्यर्थ संकल्पों से उपवास। व्यर्थ संकल्प अपने में नहीं आने दो।”
अर्थ:
सच्चा करवा चौथ व्रत भोजन छोड़ने का नहीं,
बल्कि व्यर्थ और नकारात्मक विचारों को त्यागने का है।
बाहरी व्रत बनाम आंतरिक व्रत
शरीर का व्रत एक दिन का होता है,
पर मन का व्रत अगर सच्चे अर्थों में रखा जाए,
तो वह सम्पूर्ण जीवन को बदल सकता है।
शिव बाबा (साकार मुरली, 21 अक्टूबर 1981):
“सच्चा व्रत वही है जिसमें आत्मा अपने परम सुहाग शिव बाप को नहीं भूले —
यही है सदा सुहागन बनने का रहस्य।”
उदाहरण:
यदि कोई महिला दिनभर भूखी रहे लेकिन मन में क्रोध, ईर्ष्या या दुख हो,
तो क्या वह वास्तव में पवित्र कहलाएगी?
वास्तविक व्रत है — मन को शुद्ध और शांत रखना।
सच्ची व्रत विधि — वृत्ति को एक में स्थिर करना
व्रत का अर्थ ही है — “वृत्ति को एक में स्थिर करना।”
शिव बाबा (साकार मुरली, 19 अक्टूबर 2015):
“व्रत का अर्थ है — वृत्ति को एक में स्थिर करना।”
जब हमारी वृत्ति परमात्मा शिव में लग जाती है,
तब आत्मा अपनी ज्योति-स्वरूप स्थिति में पहुँच जाती है।
उदाहरण:
जैसे दर्पण पर धूल जम जाए तो चेहरा नहीं दिखता।
उसी प्रकार मन पर विकारों की धूल हो तो आत्मा का प्रकाश मंद पड़ जाता है।
व्रत का अर्थ है — उस धूल को हटाना,
ताकि आत्मा का प्रकाश फिर से चमक सके।
क्या व्रत में जल लेना दोष है?
कई लोग पूछते हैं —
“अगर हम फल या जल ले लें तो क्या व्रत टूट जाएगा?”
शिव बाबा (साकार मुरली, 24 अक्टूबर 2016):
“मैं भूख का उपवास नहीं कहता। मन को पवित्र रखना ही असली उपवास है।”
अर्थ:
यदि शरीर असमर्थ है, तो जल या फल लेना दोष नहीं है।
मुख्य व्रत तो स्मृति और भावना का है, भोजन का नहीं।
उदाहरण:
जैसे दीपक में तेल न हो तो ज्योति नहीं जलती,
वैसे ही यदि शरीर कमजोर हो तो मन स्थिर नहीं रह सकता।
इसलिए शरीर को समर्थ रखो और योग की ज्योति को निरंतर जलाए रखो।
व्रत का उद्देश्य – सदा सुहागन बनना
करवा चौथ में हर स्त्री सौभाग्य की कामना करती है,
पर आत्मिक दृष्टि से हर आत्मा तब सदा सौभाग्यशाली बनती है
जब वह एक परमात्मा शिव को अपना सच्चा पति (सुहाग) मानती है।
शिव बाबा (मुरली, 17 अक्टूबर 1979):
“सच्ची सौभाग्यवती आत्मा वही है जो देहधारी को नहीं,
एक शिव बाप को अपना सच्चा पति माने।”
उदाहरण:
जैसे सूरज से जुड़ा दीपक कभी बुझता नहीं,
वैसे ही जो आत्मा परमात्मा से जुड़ी रहती है,
उसका सौभाग्य कभी समाप्त नहीं होता।
निष्कर्ष – सच्चा करवा चौथ व्रत क्या है?
प्रिय आत्माओं,
सच्चा करवा चौथ व्रत यह नहीं कि आप दिनभर भूखे-प्यासे रहें,
बल्कि यह है कि आप दिनभर परमात्म स्मृति में रहें।
शिव बाबा (मुरली, 25 अक्टूबर 2018):
“हर दिन याद में रहना ही सच्चा करवा चौथ है।”
जब आत्मा यह अनुभव करती है —
“मुझे एक परमात्मा ही प्रिय है,”
तभी वह सदा सुहागन और सदा सौभाग्यशाली बन जाती है।
संदेश:
इस बार जब आप करवा चौथ का व्रत रखें —
तो केवल शरीर का नहीं, मन का उपवास रखें।
भूख से नहीं, विकारों से विराम लें।
फिर देखिए — परमात्मा शिव की शीतल याद आपके मन,
आपके घर और जीवन को सच्चे सौभाग्य से भर देगी।
व्रत शरीर का नहीं, वृत्ति का है।
प्रश्न 1:
करवा चौथ का व्रत क्या केवल शरीर का उपवास है?
उत्तर:
नहीं, करवा चौथ का व्रत केवल शरीर का नहीं, बल्कि मन का उपवास है।
शिव बाबा कहते हैं —
🕊 (साकार मुरली, 19 अक्टूबर 2015):
“बच्चे, मैं शरीर का उपवास नहीं कहता। मैं मन का उपवास कहता हूँ — और वो भी व्यर्थ संकल्पों से उपवास।”
अर्थ:
सच्चा व्रत भोजन त्यागने का नहीं, बल्कि व्यर्थ और नकारात्मक विचारों से दूर रहने का है।
उदाहरण:
जैसे कोई महिला अन्न-जल का त्याग करे, पर मन में ईर्ष्या, क्रोध या चिंता भरी हो — तो क्या वह शुद्ध कहलाएगी?
नहीं। सच्चा व्रत है मन की पवित्रता और शांति।
प्रश्न 2:
बाहरी और आंतरिक व्रत में क्या अंतर है?
उत्तर:
शरीर का व्रत एक दिन का होता है,
पर मन का व्रत आत्मा को स्थायी सौभाग्यशाली बनाता है।
(साकार मुरली, 21 अक्टूबर 1981):
“सच्चा व्रत वही है जिसमें आत्मा अपने परम सुहाग शिव बाप को नहीं भूले — यही सदा सुहागन बनने का रहस्य है।”
उदाहरण:
जैसे फूल एक दिन में मुरझा जाता है, पर उसकी खुशबू लंबे समय तक रहती है —
वैसे ही शरीर का व्रत अस्थायी है, पर मन का व्रत आत्मा को स्थायी सौभाग्य देता है।
प्रश्न 3:
सच्ची व्रत विधि क्या है?
उत्तर:
व्रत का अर्थ है वृत्ति को एक परमात्मा में स्थिर करना।
(साकार मुरली, 19 अक्टूबर 2015):
“व्रत का अर्थ है — वृत्ति को एक में स्थिर करना।”
उदाहरण:
जैसे दर्पण पर धूल जम जाए तो चेहरा नहीं दिखता,
उसी प्रकार मन पर विकारों की धूल जमने से आत्मा का प्रकाश मंद पड़ जाता है।
व्रत का अर्थ है — उस धूल को हटाकर मन को निर्मल बनाना।
प्रश्न 4:
क्या व्रत में जल या फल लेना दोष है?
उत्तर:
नहीं। यदि शरीर असमर्थ हो तो जल या फल लेना दोष नहीं है।
मुख्य व्रत तो स्मृति और भावना का है, भोजन का नहीं।
(साकार मुरली, 24 अक्टूबर 2016):
“मैं भूख का उपवास नहीं कहता। मन को पवित्र रखना ही असली उपवास है।”
उदाहरण:
जैसे दीपक में तेल न हो तो ज्योति नहीं जलती,
वैसे ही शरीर कमजोर हो तो मन भी स्थिर नहीं रह सकता।
इसलिए शरीर को समर्थ रखकर योग की ज्योति को जलाए रखना ही बुद्धिमानी है।
प्रश्न 5:
व्रत का वास्तविक उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
सच्चे अर्थों में व्रत का उद्देश्य है — सदा सुहागन बनना, अर्थात् सदा परमात्मा से जुड़ना।
(मुरली, 17 अक्टूबर 1979):
“सच्ची सौभाग्यवती आत्मा वही है जो देहधारी को नहीं, एक शिव बाप को अपना सच्चा पति माने।”
उदाहरण:
जैसे सूरज से जुड़ा दीपक कभी बुझता नहीं,
वैसे ही जो आत्मा परमात्मा शिव से जुड़ी है, उसका सौभाग्य भी कभी समाप्त नहीं होता।
प्रश्न 6:
सच्चा करवा चौथ व्रत क्या है?
उत्तर:
सच्चा करवा चौथ व्रत यह नहीं कि दिनभर भूखे-प्यासे रहें,
बल्कि यह है कि दिनभर परमात्म स्मृति में स्थिर रहें।
(मुरली, 25 अक्टूबर 2018):
“हर दिन याद में रहना ही सच्चा करवा चौथ है।”
संदेश:
इस बार करवा चौथ पर केवल शरीर का नहीं, मन का उपवास रखें।
भूख से नहीं, विकारों से विराम लें।
फिर देखिए — शिव बाप की शीतल याद आपके मन, घर और जीवन को सच्चे सौभाग्य से भर देगी।
सारांश (Conclusion):
व्रत शरीर का नहीं — वृत्ति का है।
भोजन का नहीं — भावना का है।
शरीर को नहीं — आत्मा को पवित्र बनाना ही सच्चा करवा चौथ व्रत है।
Disclaimer:यह वीडियो ब्रह्मा कुमारीज की आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित है।
इसका उद्देश्य किसी धार्मिक परंपरा की आलोचना करना नहीं,
बल्कि व्रत के गहरे आध्यात्मिक अर्थ को समझाना है —
ताकि हम बाहरी रीति-रिवाजों के साथ-साथ आत्मिक शुद्धता को भी अपनाएं।
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