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करवा चौथ का आध्यात्मिक रहस्य
20वां पाठ आज हम कर रहे हैं।

सच्चा करवा चौथ, सच्चा सौभाग्य क्या है?
क्या शिव बाबा सिखाते हैं कि वास्तविक सौभाग्य आत्मा की पवित्रता में है?
भक्ति में सौभाग्य का अर्थ होता है पति के साथ का संबंध, दीर्घ आयु, वैवाहिक स्थिरता और पारिवारिक सुख।
इसलिए स्त्रियां कहती हैं सदा सुहागिन रहूं, अखंड सौभाग्य प्राप्त हो, विधवा ना बनो।

लेकिन ज्ञान मार्ग में शिव बाबा समझाते हैं:
साकार मुरली 18 अक्टूबर 1969 – शिव बाबा कहते हैं सच्चा सौभाग्य शरीर से नहीं, आत्मा की स्थिति से होता है।

आत्मा का सौभाग्य ईश्वर से संबंध में है।
शिव बाबा सिखाते हैं कि सच्चा सुहाग तब मिलता है जब आत्मा का संबंध एक परमात्मा शिव से जुड़ता है।
यह संबंध कभी टूटता नहीं – ना मृत्यु से, ना समय से।

मुरली 9 फरवरी 1971 – शिव बाबा कहते बच्चे, यह योग विवाह है।
आत्मा और परम आत्मा का यह सुहाग अमर है, जो कभी ना छूटे।

उदाहरण: जैसे लौकिक संसार में पत्नी अपने पति के साथ कुछ वर्षों का साथ पाती है, वैसे ही आत्मा परमात्मा का संबंध 84 जन्मों तक कल्याणकारी बनाती है।

पवित्रता ही सौभाग्य का मूल है।
23 जनवरी 1970 को शिव बाबा कहते: पवित्रता ही सौभाग्य की माता है।
बिना पवित्रता के सौभाग्य आ नहीं सकता। जन्म ही नहीं ले सकता।
जहां काम विकार है, वहां सच्चा सौभाग्य नहीं रह सकता।

पवित्रता – पवित्र आत्मा ही ईश्वर से शक्ति और शांति प्राप्त करती है।
पवित्रता आत्मा की सौंदर्य, सामर्थ्य और सौभाग्य तीनों की जननी है।

उदाहरण: जैसे जल में कमल पवित्र रहकर भी खिलता है, वैसे ही आत्मा विकारी संसार में रहते हुए भी पवित्र रहकर ईश्वर से जुड़ती है।
यही सच्चा सौभाग्य है।
सच्चा सुहाग = एक शिव से अटूट प्रेम।

भक्ति में सुहाग शरीर का होता है।
ज्ञान में आत्मा का।
अव्यक्त मुरली 7 फरवरी 1985 – शिव बाबा कहते हैं, मुझसे योग विवाह करने वाले बच्चे कभी विधवा नहीं हो सकते।

जब आत्मा एक शिव को अपना परम पति मानती है और अन्य किसी देह, व्यक्ति या वस्तु से आसक्त नहीं होती, तभी वे सदा सुहाग कहलाती है।

सौभाग्य का आध्यात्मिक मापदंड:
सौभाग्य अब सोने-गहनों से नहीं, बल्कि संस्कारों की शुद्धता से है।
सच्चा सौभाग्य वे हैं जहां आत्मा ईश्वर की संतान और योगिनी बनकर जीवन जीती है।

साकार मुरली 21 मई 1972 – शिव बाबा कहते हैं बच्चे, सौभाग्यशाली वे हैं जो मुझे पहचान कर मेरी याद में रहते हैं। उनकी आत्मा पवित्र बन जाती है और जीवन मुक्ति का अधिकारी बनती है।

आत्मा की पवित्रता से उत्पन्न सौभाग्य।
पवित्र आत्मा जहां जाती है, वहां शुभ वातावरण और कल्याणकारी तरंगे फैलाती है।
वह स्वयं के साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी सौभाग्य लाती है।

अव्यक्त मुरली 15 जून 1988 – शिव बाबा कहते हैं, जहां पवित्रता है वहां सौभाग्य अपने आप आता है।
पवित्र आत्मा सौभाग्य का चुंबक है।

उदाहरण: जैसे सूर्य के प्रकाश से सभी फूल खिल जाते हैं, वैसे ही पवित्र आत्मा के संपर्क से अन्य आत्माएं भी सुखी हो जाती हैं।

निष्कर्ष:
सच्चा सौभाग्य आत्मा की पवित्रता में है।
भक्ति में सौभाग्य = बाहरी वस्तु।
ज्ञान में सौभाग्य = आत्मिक शक्ति और ईश्वरीय संबंध।
जो आत्मा पवित्र है, वही सदा सुहागिन, निडर और सौभाग्यशाली रहती है।
अव्यक्त मुरली 12 अक्टूबर 1986 – शिव बाबा कहते हैं बच्चे, जो आत्मा पवित्र रहती है वही सच्ची भाग्यशाली है। वही मेरे साथ सदा का संबंध रखती है।

समापन संदेश:
सच्चा सौभाग्य किसी संबंध या वस्त्र में नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता और ईश्वर की याद में रहने की स्थिति में है।
शिव बाबा हमें यही सिखाते हैं – सदा याद में रहो, सदा पवित्र रहो।
बी योगी, बी होली, जय सच्चा अखंड सो मच।

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