(05)What are the four yugas? The journey from Satya Yuga to Kali Yuga

सृष्टि चक्र :-(05)चारों युग क्या हैं? सत्ययुग से कलियुग तक का सफर

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अध्याय 1 : चारों युग क्या हैं? — सत्ययुग से कलियुग तक का सफर

हमारा यह सृष्टि चक्र 5000 वर्षों का है, जो चार युगों में बँटा हुआ है। हर युग मानवता की अवस्था को — आत्मिक शक्ति से पतन की दिशा में — दर्शाता है।
आज हम शिव बाबा की मुरली के आधार पर इन चारों युगों को गहराई से समझेंगे और जानेंगे कि कैसे यह चक्र सदा-सर्वदा चलता रहता है।


1. सत्ययुग – स्वर्ण युग (1250 वर्ष)

Murli 15 अक्टूबर 2025:

“मधुर बच्चे, सत्ययुग में देवी-देवता 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी और सम्पूर्ण अहिंसक होते हैं।”

 विशेषताएँ:

  • पूर्ण पवित्रता: कोई भी विकार — काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार — नहीं।

  • सम्पूर्ण सुख: न कोई बीमारी, न अकाल मृत्यु, न दुःख का नामोनिशान।

  • प्रकृति सतोप्रधान: प्रकृति हीरे जैसी चमकदार, सुन्दर और संतुलित।

  • एक ही धर्म: सनातन देवी-देवता धर्म, कोई धर्म-संघर्ष नहीं।

  • राज्य व्यवस्था: लक्ष्मी-नारायण का निष्कलंक राज्य।

 उदाहरण:

जैसे किसी घर में नया सामान सबसे अच्छा होता है —
वैसे ही सत्ययुग नई दुनिया का “हीरे जैसा युग” है, जहाँ सब कुछ सर्वोत्तम और दिव्य है।


2. त्रेतायुग – रजत युग (1250 वर्ष)

Murli 18 सितम्बर 2025:

“त्रेतायुग में राम-सीता का राज्य, 14 कला। थोड़ी कमी आ जाती है, पर फिर भी सुखी दुनिया।”

 विशेषताएँ:

  • 14 कला: पूर्णता से थोड़ी कमी, पर आत्मिक शांति बरकरार।

  • सुख प्रधान: दुःख बहुत कम, सुख ही प्रधानता में।

  • राम-राज्य: धर्म और मर्यादा पर आधारित शासन।

  • प्रकृति अभी भी सुंदर: किंतु सतोप्रधानता कुछ घटती है।

  • व्यापारिक शुरुआत: लेन-देन और व्यापार की प्रणाली प्रारंभ।

 उदाहरण:

जैसे 24 कैरट सोना थोड़ी मिलावट से 22 कैरट हो जाए,
वैसे ही त्रेतायुग में थोड़ी कमी आ जाती है, पर चमक अभी भी बनी रहती है।


3. द्वापरयुग – ताम्र युग (1250 वर्ष)

Murli 22 सितम्बर 2025:

“द्वापरयुग से भक्ति मार्ग शुरू होता है। ज्ञान समाप्त, भक्ति आरंभ। राजा-प्रजा दोनों भक्त बन जाते हैं।”

 विशेषताएँ:

  • भक्ति मार्ग का आरंभ: आत्मज्ञान समाप्त, ईश्वर-भक्ति की शुरुआत।

  • अनेक धर्मों का उदय: अनेक संप्रदाय, विविध मान्यताएँ।

  • विकारों का प्रवेश: काम, क्रोध, लोभ आदि प्रवेश करते हैं।

  • राज्य परिवर्तन: धर्मराज्य की जगह राजनीति और विभाजन।

  • दुःख की शुरुआत: आत्मबल घटता है, मानसिक अस्थिरता बढ़ती है।

 उदाहरण:

जैस वृक्ष में फल आने के बाद पत्तियाँ सूखने लगती हैं —
वैसे ही द्वापरयुग में आध्यात्मिकता घटनी शुरू होती है।


4. कलियुग – लौह युग (1250 वर्ष)

Murli 25 सितम्बर 2025:

“कलियुग अंत में सबसे जास्ती दुःख होता है। सब विकारी बन जाते हैं। यह है तमोप्रधान दुनिया।”

 विशेषताएँ:

  • तमोप्रधानता चरम पर: हर आत्मा विकारों से भरी।

  • धर्म का ह्रास: अधर्म और पाखंड का बोलबाला।

  • राक्षसी प्रवृत्ति: हिंसा, युद्ध, अन्याय और लालच का युग।

  • प्रकृति का पतन: प्रदूषण, आपदाएँ और पर्यावरण असंतुलन।

  • रिश्तों में कड़वाहट: मोह और स्वार्थ के कारण अस्थिर संबंध।

 उदाहरण:

जैसे लोहा सबसे भारी और गंदा धातु होता है —
वैसे ही कलियुग में आत्मा पापों से भारी और अंधकारमय बन जाती है।


5. युगों का संक्रमण क्यों होता है?

Murli 28 सितम्बर 2025:

“यह ड्रामा अनुसार नेचुरल प्रक्रिया है। जैसे फल पकने के बाद गिर जाता है, वैसे हर युग अपना समय पूरा करके अगले युग में बदल जाता है।”

 मझाइश:

यह परिवर्तन प्राकृतिक नियम है।
न कोई रोक सकता है, न तेज कर सकता है।
हर युग का समय — निश्चित, शाश्वत और सटीक है।


6. वर्तमान संगम युग की विशेषता (The Confluence Age)

Murli 30 सितम्बर 2025:

“अभी है पुरुषोत्तम संगमयुग। कलियुग का अंत, सत्ययुग की आदि। इस समय ही शिव बाबा आते हैं नई दुनिया स्थापना करने।”

 विशेषताएँ:

  • ईश्वरीय ज्ञान: स्वयं परमात्मा शिव ज्ञान का दान देते हैं।

  • पुरुषार्थ का समय: आत्म-सुधार, पवित्रता और योग का अभ्यास।

  • राजयोग का अभ्यास: प्राचीन भारत का ईश्वरीय योग।

  • विश्व परिवर्तन: आत्म परिवर्तन से विश्व परिवर्तन।

  • श्रेष्ठ कर्म संचय: भविष्य के सत्ययुग के लिए पुण्य खाता तैयार।


7. निष्कर्ष: चार युगों का यह चक्र शाश्वत है

जैसे दिन-रात और ऋतुएँ बदलती रहती हैं —
वैसे ही युगों का चक्र भी अनादि काल से घूमता आ रहा है।

वर्तमान संगम युग ही वह समय है जब हम
“मनुष्य से देवता” बनने का दिव्य अवसर पा रहे हैं।


8. बापदादा का अंतिम संदेश

Murli 5 अक्टूबर 2025:

“चारों युगों को जानने वाला ही त्रिकालदर्शी बनता है। अभी पुरुषार्थ का समय है, प्राप्ति का नहीं।”

 समापन संदेश:

चारों युगों का यह ज्ञान हमें जीवन की सच्चाई सिखाता है —
आज का यह संगम युग है, जहाँ
ज्ञान, योग और धारणा से स्वयं को सत्ययुगी देवता बनाने की तैयारी करनी है।


अगला विषय झलक:

“सत्ययुग को ‘स्वर्ग’ और कलियुग को ‘नरक’ क्यों कहा जाता है?”
इसके रहस्य को हम अगले अध्याय में समझेंगे।


YouTube Eye-Catching Title:

 “चारों युगों का रहस्य: सत्ययुग से कलियुग तक आत्मा का 5000 वर्ष का सफर | Brahma Kumaris Gyan” 

प्रश्न 1: सृष्टि चक्र कितने वर्षों का होता है और इसमें कितने युग आते हैं?

उत्तर:
सृष्टि चक्र 5000 वर्षों का होता है, जिसमें चार युग —

  1. सत्ययुग (स्वर्ण युग)

  2. त्रेतायुग (रजत युग)

  3. द्वापरयुग (ताम्र युग)

  4. कलियुग (लौह युग)
    — सम्मिलित हैं।

यह चक्र अनादि काल से बार-बार दोहराता है।
Murli (5 अक्टूबर 2025):

“चारों युगों को जानने वाला ही त्रिकालदर्शी बनता है। अभी पुरुषार्थ का समय है, प्राप्ति का नहीं।”


सत्ययुग – स्वर्ण युग (1250 वर्ष)

प्रश्न 2: सत्ययुग को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

उत्तर:
क्योंकि इस युग में आत्माएँ 16 कला सम्पन्न, पूर्ण पवित्र, निर्विकारी और अहिंसक होती हैं।
कोई दुःख, बीमारी या मृत्यु नहीं होती।
यह युग पूर्ण सुख और समरसता का युग है।

Murli (15 अक्टूबर 2025):

“मधुर बच्चे, सत्ययुग में देवी-देवता 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी और सम्पूर्ण अहिंसक होते हैं।”

उदाहरण:

जैसे किसी नए घर का हर सामान चमकदार और नया होता है —
वैसे ही सत्ययुग “नई सृष्टि का प्रथम युग” है, जहाँ सब कुछ श्रेष्ठ और दिव्य होता है।


त्रेतायुग – रजत युग (1250 वर्ष)

प्रश्न 3: त्रेतायुग में क्या परिवर्तन आता है?

उत्तर:
सत्ययुग की तुलना में आत्माओं की दो कलाएँ घटकर 14 रह जाती हैं।
सुख तो है, पर पूर्णता नहीं रहती।
धर्म और मर्यादा पर आधारित शासन — राम-राज्य — स्थापित होता है।

Murli (18 सितम्बर 2025):

“त्रेतायुग में राम-सीता का राज्य, 14 कला। थोड़ी कमी आ जाती है, पर फिर भी सुखी दुनिया।”

उदाहरण:

जैसे 24 कैरट सोना थोड़ी मिलावट से 22 कैरट हो जाता है —
वैसे ही त्रेतायुग में थोड़ी कमी आ जाती है, पर अभी भी चमक बनी रहती है।


द्वापरयुग – ताम्र युग (1250 वर्ष)

प्रश्न 4: द्वापरयुग में क्या परिवर्तन होता है?

उत्तर:
यही वह समय है जब आत्मा ज्ञान भूलकर भक्ति मार्ग पर उतर आती है।
अनेक धर्म और संप्रदाय उत्पन्न होते हैं।
राजा और प्रजा दोनों भक्त बन जाते हैं।

Murli (22 सितम्बर 2025):

“द्वापरयुग से भक्ति मार्ग शुरू होता है। ज्ञान समाप्त, भक्ति आरंभ। राजा-प्रजा दोनों भक्त बन जाते हैं।”

उदाहरण:

जैसे वृक्ष पर फूल खिलने के बाद पत्तियाँ सूखने लगती हैं —
वैसे ही द्वापरयुग में आध्यात्मिकता घटनी शुरू हो जाती है।


कलियुग – लौह युग (1250 वर्ष)

प्रश्न 5: कलियुग को लौह युग क्यों कहा जाता है?

उत्तर:
क्योंकि यह युग तमोप्रधानता का चरम बिंदु है।
विकार (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) चरम पर पहुँच जाते हैं।
धर्म का ह्रास, भ्रष्टाचार, युद्ध, हिंसा और प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता है।

Murli (25 सितम्बर 2025):

“कलियुग अंत में सबसे जास्ती दुःख होता है। सब विकारी बन जाते हैं। यह है तमोप्रधान दुनिया।”

उदाहरण:

जैसे लोहा सबसे भारी और गंदा धातु होता है —
वैसे ही कलियुग में आत्मा भी भारी और विकारों से भर जाती है।


संगम युग — विशेष युग (Confluence Age)

प्रश्न 6: संगम युग का क्या महत्व है?

उत्तर:
यह युग कलियुग के अंत और सत्ययुग की शुरुआत का संगम है।
इस समय स्वयं परमात्मा शिव आते हैं आत्माओं को ज्ञान देने और नई सृष्टि की स्थापना करने।
यह युग पुरुषार्थ, राजयोग अभ्यास और स्वयं-सुधार का समय है।

Murli (30 सितम्बर 2025):

“अभी है पुरुषोत्तम संगमयुग। कलियुग का अंत, सत्ययुग की आदि। इस समय ही शिव बाबा आते हैं नई दुनिया स्थापना करने।”

उदाहरण:

जैसे रात और दिन के बीच एक उजाला आता है —
वैसे ही संगम युग अंधकार (कलियुग) से प्रकाश (सत्ययुग) में ले जाने वाला संक्रमण है।


प्रश्न 7: युगों का संक्रमण कैसे होता है?

उत्तर:
हर युग अपना समय पूरा होने पर प्राकृतिक रूप से बदल जाता है।
यह परिवर्तन ड्रामा अनुसार नियत है — न इसे कोई रोक सकता है, न तेज कर सकता है।

Murli (28 सितम्बर 2025):

“यह ड्रामा अनुसार नेचुरल प्रक्रिया है। जैसे फल पकने के बाद गिर जाता है, वैसे हर युग अपना समय पूरा करके अगले युग में बदल जाता है।”


प्रश्न 8: वर्तमान समय में हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर:
यह संगम युग का समय है —
हमें राजयोग, ज्ञान, और पवित्रता से स्वयं को सत्ययुगी देवता बनने की तैयारी करनी चाहिए।
अभी “पुरुषार्थ का समय है, प्राप्ति का नहीं।

Murli (5 अक्टूबर 2025):

“चारों युगों को जानने वाला ही त्रिकालदर्शी बनता है। अभी पुरुषार्थ का समय है, प्राप्ति का नहीं।”


प्रश्न 9: चारों युगों का यह चक्र क्यों शाश्वत कहा जाता है?

उत्तर:
क्योंकि जैसे दिन-रात या ऋतुएँ बार-बार आती हैं,
वैसे ही यह युग चक्र भी बार-बार घूमता है।
सृष्टि न कभी आरंभ होती है, न कभी समाप्त —
बस दोहराव (Repetition) होता रहता है।


समापन संदेश:

चारों युगों का ज्ञान हमें आत्म-जागृति का सन्देश देता है।
वर्तमान संगम युग वह समय है जब आत्मा स्वयं को बदलकर स्वर्ण युग की अधिकारी बन सकती है।
आज ही निर्णय लें —

“मुझे भी सत्ययुग की दिव्य आत्माओं में स्थान पाना है।”


अगले अध्याय की झलक:

“सत्ययुग को ‘स्वर्ग’ और कलियुग को ‘नरक’ क्यों कहा जाता है?”
यह रहस्य अगले अध्याय में विस्तार से जानेंगे।


Disclaimer:

यह वीडियो शिव बाबा की मुरली और ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है।
इसका उद्देश्य किसी धर्म या व्यक्ति की आलोचना नहीं, बल्कि
आत्मज्ञान और विश्व शांति का सन्देश फैलाना है।
सभी धर्म और मतों का सम्मान सहित यह ज्ञान प्रस्तुत किया गया है।

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