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“सृष्टि चक्र का हम अध्ययन कर रहे हैं। आज हम सृष्टि चक्र का आठवां पाठ करेंगे। हर युग की अवधि 1250 वर्ष क्यों तय है? इस 5000 वर्ष का रहस्य क्या है? यह प्रश्न हर जिज्ञासु मन में उठता है — क्या वास्तव में हर युग की एक निश्चित अवधि होती है? क्या सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग हमेशा समान समय तक चलते हैं? शिव बाबा की मुरली में इसका बहुत सुंदर उत्तर मिलता है। क्या उत्तर मिलता है? इसका उत्तर है — हाँ। तो इस “हाँ” को हम समझेंगे। सत्य के अंदर यह जो आप देख रहे हैं — जो सातिया है, जो हम हर धार्मिक अनुष्ठान में बनाते हैं, किसी भी धार्मिक काम में यह सातिया बनाया जाता है। यह केवल सनातन धर्म में ही नहीं, बल्कि जैन धर्म, बौद्ध धर्म और अन्य धर्मों में भी इसका प्रचलन है। नाम भले ही अलग हों, परंतु यह आकृति समान बनाई जाती है। यह आकृति स्पष्ट करती है कि चारों युग बराबर होते हैं। यह पहली लाइन, जो आप देख रहे हैं, जीरो से जहां सुईयां हैं, वहां से ऊपर जितनी जाती है, उतनी ही नीचे और दाएं-बाएं जाती है। यह दर्शाता है कि चारों भाग बराबर हैं। जो लाइन राइट हैंड की ओर जा रही है, वह बताती है कि हम राइटियस थे — पवित्र और धर्मयुक्त। हमारे कर्म बिल्कुल एक्यूरेट थे। फिर त्रेता के बाद हमने नीचे गिरना शुरू किया — हमारा डाउनफॉल हुआ। जब हम करैक्टर में 50% तक गिर गए, तो हमारे कर्म उल्टे हो गए, हम बाएं मार्ग पर चल पड़े — शास्त्रों में लिखा है — देवता वाम मार्ग में चले गए। हमारे दिव्य गुण पतन के कारण कमजोर पड़ गए, और हम लेफ्टिस्ट बन गए। फिर भी जितना सत्य बचा, उतना हमने निभाया। जब हम तमोप्रधान हो जाते हैं, तो परमात्मा आकर हमें पुनः पावन बनाते हैं। जब परमात्मा आकर हमें संपूर्ण बना देते हैं, तो हम फिर से इस चक्र में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार चारों युग समान अवधि के होते हैं। संगमयुग — कलयुग और सतयुग का मिलनकाल — भी इसी 5000 वर्षों के भीतर ही होता है। शिवबाबा की मुरली से प्रमाण: मुरली 15 अक्टूबर 2025 — “मधुर बच्चे, यह विश्व नाटक 5000 वर्ष का अचूक ड्रामा है, जिसमें एक सेकंड भी आगे-पीछे नहीं हो सकता।” अर्थ — यह 5000 वर्ष का विश्व नाटक चार युगों में विभाजित है — सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग — प्रत्येक की अवधि 1250 वर्ष है। इन चारों का योग 5000 वर्ष होता है, और फिर यही सृष्टि चक्र ज्यों का त्यों दोहराया जाता है। मुरली 1 जुलाई 2023: “सतयुग की आयु लाखों वर्ष नहीं है। प्रत्येक युग समान अवधि का है — 1250 वर्ष। शास्त्रों में लाखों वर्ष बताने का कारण था देवताओं के एक दिन को मनुष्य का एक वर्ष मानना।” बाबा ने स्पष्ट किया — 5000 वर्ष का यह चक्र चार बराबर हिस्सों में बंटा है। मुरली 16 अगस्त: “समय कभी रुकता नहीं। यह साइकिल या घड़ी की तरह निरंतर घूमता रहता है।” जैसे दिन-रात का क्रम निश्चित है, वैसे ही युगों का क्रम भी निश्चित है। घड़ी की सुई जैसे 12 घंटे के बाद वही चक्र दोहराती है — वैसे ही यह 5000 वर्ष का चक्र बार-बार घूमता रहता है — अनादि काल से और अनंत काल तक। मुरली 10 सितंबर 2025: “युग परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कलयुग का अंत और सतयुग का आरंभ एक ही क्षण में होता है।” जैसे रात के तुरंत बाद सूरज उग आता है, वैसे ही युग परिवर्तन सहज रूप से होता है। 2036–2037 तक यह परिवर्तन की प्रक्रिया पूर्ण रूप से घटने वाली कही जाती है। यह संगमयुग — दो युगों का संगम — शिव बाबा द्वारा आत्माओं के पुनर्जागरण और विश्व परिवर्तन का समय है। उदाहरण: जैसे ऋतुएं — बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद — हर साल समान कालखंड में आती हैं, वैसे ही युगों का क्रम और समय भी स्थिर है। यह कायनात का ज्योतिषीय संतुलन है — ईश्वर के समय की सटीक रचना। मुरली 20 अक्टूबर 2025: “समय ठीक चलता है, मेरे बच्चे। यह नाटक रिपीट है, इसलिए एक सेकंड भी बदल नहीं सकता।” अर्थ — यह सृष्टि चक्र पूर्ण गणितीय नियमों पर आधारित है। आत्माएं अपनी बारी पर आती हैं, भूमिका निभाती हैं, फिर वही 5000 वर्ष बाद पुनः दोहराती हैं। निष्कर्ष: हर युग की अवधि निश्चित है — क्योंकि यह ड्रामा शाश्वत और सटीक (स्टीक) है। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग हर 5000 वर्ष में समान समय में दोहराते हैं। यह सिद्ध करता है कि यह सृष्टि कोई अराजक घटना नहीं, बल्कि ईश्वर की दिव्य रचना है। समापन संदेश: समय के इस रहस्य को जानकर वर्तमान संगमयुग के हर क्षण का सदुपयोग करना चाहिए — यही समय आत्म-सुधार और भावी स्वर्ग की तैयारी का है। अगर आपको यह 5000 वर्ष का चक्र और युगों की अवधि समझ में आई — तो कमेंट करें, और यह वीडियो शेयर करें ताकि हर आत्मा इस रहस्य को जान सके। अगला विषय: “क्यों आत्मा बार-बार वही 84 जन्म लेती है? — जन्मों का रहस्य।”

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