विश्व नाटक :-(04)बिग बैंग या ईश्वर की योजना।क्या वैज्ञानिकों का उत्तर सचमुच संतोषजनक है?
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
भूमिका: सृष्टि की शुरुआत का प्रश्न
मनुष्य के मन में सबसे प्राचीन और रहस्यमयी प्रश्न यही रहा है —
“यह संसार कैसे आरंभ हुआ?”
विज्ञान कहता है — एक महा विस्फोट (Big Bang) से ब्रह्मांड बना।
जबकि ईश्वर की शिक्षा कहती है — यह सृष्टि ईश्वर की योजना से बनी है, जो हर 5000 वर्षों में पुनः दोहराई जाती है।
अब प्रश्न यह है —
क्या वैज्ञानिकों का उत्तर वास्तव में संतोषजनक और पूर्ण है?
क्या वह “रचयिता” के बिना “सृष्टि” की व्याख्या कर सकता है?
बिग बैंग से सृष्टि या ईश्वर की योजना?
विज्ञान कहता है —
सृष्टि एक “विस्फोट” से शुरू हुई।
ईश्वर कहते हैं —
सृष्टि मेरे “संकल्प” से चलती है।
दोनों दृष्टिकोणों के बीच यही सबसे बड़ा अंतर है —
एक में अंधकार (Explosion), दूसरे में प्रकाश (Realisation)।
विज्ञान के अनुत्तरित रहस्य
विज्ञान ने सृष्टि के आरंभ को समझाने का प्रयास किया —
कहा कि एक अत्यंत पतली गैस थी,
जिसका गुरुत्वाकर्षण बढ़ता गया, तापमान बढ़ा,
और अंततः विस्फोट हुआ — बिग बैंग।
परंतु प्रश्न वहीं रह गया —
वह गैस कहां से आई?
वह स्वयं सिकुड़ने क्यों लगी?
और वह विस्फोट अचानक क्यों हुआ?
विज्ञान का मौन
विज्ञान केवल इतना कहता है — “यह सब हुआ होगा।”
पर यह नहीं बताता कि “क्यों” और “किसने कराया”।
उदाहरण:
अगर एक कमरे में हवा भरी है और कोई बाहरी बल न लगे,
तो हवा स्थिर रहेगी।
न्यूटन का नियम कहता है —
“जो वस्तु स्थिर है, वह स्थिर ही रहेगी जब तक उस पर कोई बल न लगे।”
तो फिर उस गैस को किसने हिलाया?
कौन सी अदृश्य शक्ति ने उस विस्फोट को जन्म दिया?
विज्ञान के पास इसका कोई उत्तर नहीं।
विज्ञान की सीमाएं
विज्ञान केवल दृश्य और मापनीय वस्तुओं तक सीमित है।
परंतु सृष्टि का मूल कारण — चेतन शक्ति (Conscious Power) —
विज्ञान की पहुँच से परे है।
विज्ञान प्रक्रिया को बताता है,
पर रचयिता को नकार देता है।
ब्रह्मा कुमारी दृष्टिकोण — ईश्वर ही बीज रूप
ईश्वर शिव कहते हैं —
“मैं ही इस सृष्टि का बीज हूं। मेरे संकल्प से यह चक्र पुनः चलता है।”
यह सृष्टि कोई एक बार बनी नहीं,
बल्कि यह अनादि-अविनाशी नाटक (Eternal Drama) है,
जो हर 5000 वर्ष बाद समान रीति से रिपीट होता है।
बिग बैंग का विस्फोट विनाशकारी था,
पर ईश्वर का ज्ञान-विस्फोट सृजनकारी है।
उदाहरण द्वारा समझें
जैसे एक फिल्म रील खत्म होती है और फिर से उसी तरह चलती है,
क्या हम कहेंगे कि वह “नई” फिल्म बनी?
नहीं।
वह पहले से रिकॉर्ड थी — बस पुनः चली।
वैसे ही यह सृष्टि भी —
पुनरावृत्ति (Repetition) है,
नई नहीं।
मुरली प्रमाण
14 फरवरी 1966 (साकार मुरली):
“बच्चे, यह सृष्टि कोई नई नहीं है।
यह अनादि-अविनाशी नाटक है जो रिपीट होता रहता है।
मनुष्य विस्फोट की बातें कहकर खुद भ्रम में पड़ जाते हैं।”
25 जनवरी 1970 (साकार मुरली):
“मनुष्य कहते हैं ब्रह्मांड विस्फोट से बना,
पर विस्फोट से निर्माण नहीं, विनाश होता है।
मैं ज्ञान से नई सृष्टि रचता हूं।”
10 जुलाई 1977 (अव्यक्त वाणी):
“सृष्टि चक्र की कोई शुरुआत नहीं।
जब-जब कलियुग आता है, मैं संगम पर आकर
फिर से सतयुग की नींव रखता हूं।”
निष्कर्ष — सत्य कहां है?
| विज्ञान का दृष्टिकोण | ईश्वर का दृष्टिकोण |
|---|---|
| सृष्टि गैस से बनी | सृष्टि ज्ञान से बनी |
| विस्फोट से जीवन | संकल्प से सृष्टि |
| कारण अज्ञात | कारण — परमात्मा शिव |
| प्रारंभ सीमित | चक्र अनादि-अविनाशी |
विज्ञान बताता है “कैसे हुआ”,
पर ईश्वर बताते हैं “किसने और क्यों किया।”
मुख्य संदेश
-
सृष्टि की कोई शुरुआत नहीं — यह अनादि-अविनाशी चक्र है।
-
विस्फोट नहीं, ईश्वर का ज्ञान-विस्फोट ही वास्तविक सृजन है।
-
विज्ञान का उत्तर अधूरा है क्योंकि उसमें “बीज रूप रचयिता” का ज्ञान नहीं।
-
ईश्वर ही उस “Conscious Power” हैं, जिससे सृष्टि-संस्कारों की शुरुआत होती है।

