अव्यक्त मुरली-(29)22-04-1984 “विचित्र बाप द्वारा विचित्र पढ़ाई तथा विचित्र प्राप्ति”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
22-04-1984 “विचित्र बाप द्वारा विचित्र पढ़ाई तथा विचित्र प्राप्ति”
आज रुहानी बाप अपने रुहानी बच्चों से मिलने आये हैं। रुहानी बाप हर-एक रुह को देख रहे हैं कि हरेक में कितनी रुहानी शक्ति भरी हुई है! हर एक आत्मा कितनी खुशी स्वरुप बनी है! रुहानी बाप अविनाशी खुशी का खजाना बच्चों को जन्म-सिद्ध अधिकार में दिया हुआ देख रहे हैं कि हरेक ने अपना वर्सा, अधिकार कहाँ तक जीवन में प्राप्त किया है! खजाने के बालक सो मालिक बने हैं? बाप दाता है, सभी बच्चों को पूरा ही अधिकार देते हैं। लेकिन हर एक बच्चा अपनी-अपनी धारणा की शक्ति प्रमाण अधिकारी बनता है। बाप का तो सभी बच्चों के प्रति एक ही शुभ संकल्प है कि हर एक आत्मा रुपी बच्चा सदा सर्व खजानों से सम्पन्न अनेक जन्मों के लिए सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी बन जाए। ऐसे प्राप्ति करने के उमंग-उत्साह में रहने वाले बच्चों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। हर एक छोटा-बड़ा, बच्चा, युवा वा वृद्ध, मीठी-मीठी मातायें, अनपढ़ या पढ़े हुए, शरीर से निर्बल फिर भी आत्मायें कितनी बलवान हैं! एक परमात्मा की लगन कितनी है! अनुभव है कि हमने परमात्मा बाप को जाना, सब कुछ जाना। बापदादा भी ऐसे अनुभवी आत्माओं को सदा यही वरदान देते हैं – हे लगन में मगन रहने वाले बच्चे, सदा याद में जीते रहो। सदा सुख शान्ति की प्राप्ति में पलते रहो। अविनाशी खुशी के झूले में झूलते रहो और विश्व की सभी आत्माओं रुपी अपने रुहानी भाईयों को सुख-शान्ति का सहज साधन सुनाते हुए, उन्हों को भी रुहानी बाप के रुहानी वर्से के अधिकारी बनाओ। यही एक पाठ सभी को पढ़ाओ – हम सब आत्मायें एक बाप के हैं, एक ही परिवार के हैं, एक ही घर के हैं। एक ही सृष्टि मंच पर पार्ट बजाने वाले हैं। हम सर्व आत्माओं का एक ही स्वधर्म शान्ति और पवित्रता है। बस इसी पाठ से स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन कर रहे हो और निश्चित होना ही है। सहज बात है ना। मुश्किल तो नहीं। अनपढ़ भी इस पाठ से नॉलेजफुल बन गये हैं क्योंकि रचयिता बीज को जान, रचयिता द्वारा रचना को स्वत: ही जान जाते। सभी नॉलेजफुल हो ना! सारी पढ़ाई रचता और रचना की सिर्फ तीन शब्दों में पढ़ ली है। आत्मा, परमात्मा और सृष्टि चक्र। इन तीनों शब्दों से क्या बन गये हो! कौन-सा सर्टीफिकेट मिला है? बी.ए., एम.ए. का सर्टिफिकेट तो नहीं मिला। लेकिन त्रिकालदर्शी, ज्ञान स्वरुप यह टाइटल तो मिले हैं ना। और सोर्स आफ इनका क्या हुआ? क्या मिला? सत शिक्षक द्वारा अविनाशी जन्म-जन्म सर्व प्राप्ति की गैरन्टी मिली है। वैसे टीचर गैरन्टी नहीं देता कि सदा कमाते रहेंगे वा धनवान रहेंगे। वह सिर्फ पढ़ाकर योग्य बना देते हैं। तुम बच्चों को वा गॉडली स्टूडेन्ट को बाप शिक्षक द्वारा, वर्तमान के आधार से 21 जन्म सतयुग त्रेता के सदा ही सुख, शान्ति, सम्पत्ति, आनन्द, प्रेम, सुखदाई परिवार मिलना ही है। मिलेगा नहीं, मिलना ही है। यह गैरन्टी है क्योंकि अविनाशी बाप है, अविनाशी शिक्षक है। तो अविनाशी द्वारा प्राप्ति भी अविनाशी है। यही खुशी के गीत गाते हो ना कि हमें सत बाप, सत शिक्षक द्वारा सर्व प्राप्ति का अधिकार मिल गया। इसी को ही कहा जाता है – विचित्र बाप, विचित्र स्टूडेन्टस और विचित्र पढ़ाई वा विचित्र प्राप्ति। जो कोई भी कितना भी पढ़ा हुआ हो लेकिन इस विचित्र बाप और शिक्षक की पढ़ाई वा वर्से को जान नहीं सकते। चित्र निकाल नहीं सकते। जाने भी कैसे। इतना बड़ा ऊंचे ते ऊंचा बाप, शिक्षक और पढ़ाता कहाँ और किसको है! कितने साधारण हैं! मानव से देवता बनाने की, सदा के लिए चरित्रवान बनाने की पढ़ाई है और पढ़ने वाले कौन हैं? जिसको कोई नहीं पढ़ा सकते उनको बाप पढ़ाते हैं। जिसको दुनिया पढ़ा सकती, बाप भी उन्हों को ही पढ़ावे तो क्या बड़ी बात हुई! ना उम्मींद आत्माओं को ही उम्मींदवार बनाते हैं। असम्भव को सम्भव कराते हैं, इसलिए ही गायन है तुम्हारी गत मत तुम ही जानो। बापदादा ऐसे नाउम्मींद से उम्मीदवार बनने वाले बच्चों को देख खुश होते हैं। भले आये। बाप के घर के श्रृंगार भले पधारे। अच्छा।
सदा स्वयं को श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, एक जन्म में अनेक जन्मों की प्राप्ति कराने वाले ज्ञान स्वरुप बच्चों को, सदा एक पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाले श्रेष्ठ बच्चों को, सदा वरदाता बाप के वरदानों में पलने वाले भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
बापदादा के सम्मुख इन्कम टैक्स ऑफीसर बैठे हैं, उनके प्रति उच्चारे हुए मधुर महावाक्य :-
यह तो समझते हो ना कि अपने घर में आये हैं? यह घर किसका है? परमात्मा का घर सबका घर हुआ ना? तो आपका भी घर हुआ ना! घर में आये यह तो बहुत अच्छा किया – अब और अच्छे ते अच्छा क्या करेंगे? अच्छे ते अच्छा करना और ऊंचे ते ऊंचा बनना – यह तो जीवन का लक्ष्य होता ही है। अब अच्छे ते अच्छा क्या करना है? जो पाठ अभी सुनाया – वह एक ही पाठ पक्का कर लिया तो इस एक पाठ में सब पढ़ाई समाई हुई है। यह वण्डरफुल विश्व विद्यालय है, देखने में घर भी है लेकिन बाप ही सत शिक्षक है, घर भी है और विद्यालय भी है। इसलिए कई लोग समझ नहीं सकते हैं कि यह घर है या विद्यालय है। लेकिन घर भी है और विद्यालय भी है क्योंकि जो सबसे श्रेष्ठ पाठ है, वह पढ़ाया जाता है। कॉलेज में वा स्कूल में पढ़ाने का लक्ष्य क्या है? चरित्रवान बनें, कमाई योग्य बनें, परिवार को अच्छी तरह से पालना करने वाला बनें, यही लक्ष्य है ना। तो यहाँ यह सब लक्ष्य पूरा हो ही जाता है। एक-एक चरित्रवान बन जाता है।
भारत देश के नेतायें क्या चाहते हैं? भारत का बापू जी क्या चाहता था? यही चाहता था ना कि भारत लाइट हाउस बने। भारत दुनिया के आध्यात्मिक शक्ति का केन्द्र बनें। वही कार्य यहाँ गुप्त रुप से हो रहा है। अगर एक भी राम सीता समान बन जाए तो एक राम सीता के कारण रामराज्य हुआ और इतने सब राम सीता के समान बन जाएं तो क्या होगा? तो यह पाठ मुश्किल नहीं है, बहुत सहज है। इस पाठ को पक्का करेंगे तो आप भी सत टीचर द्वारा रुहानी सर्टीफिकेट भी लेंगे और फिर गैरन्टी भी ले लेंगे – सोर्स ऑफ इनकम की। बाकी वण्डरफुल जरुर है। दादा भी, परदादा भी यहाँ ही पढ़ते हैं तो पोत्रा धोत्रा भी यहाँ ही पढ़ता है। एक ही क्लास में दोनों ही पढ़ते हैं क्योंकि आत्माओं को यहाँ पढ़ाया जाता है, शरीर को नहीं देखा जाता है, आत्मा को पढ़ाया जाता है – चाहे पांच साल का बच्चा है, वह भी यह पाठ तो पढ़ सकता है ना। और बच्चा ज्यादा काम कर सकता है। और जो बुजुर्ग हो गये उन्हों के लिए भी यह पाठ जरुरी है, नहीं तो जीवन से निराश हो जाते हैं। अनपढ़ मातायें उन्हों को भी श्रेष्ठ जीवन तो चाहिए ना। इसलिए सत शिक्षक सभी को पढ़ाता है। चाहे कितना भी वी.वी.वी.आई.पी. हो लेकिन सत शिक्षक के लिए तो सब स्टूडेन्ट हैं। यह एक ही पाठ सबको पढ़ाता है। तो क्या करेंगे? पाठ पढ़ेंगे ना, फायदा आपको ही होगा। जो करेगा वो पायेगा। जितना करेंगे उतना फायदा होगा क्योंकि यहाँ एक का पदमगुणा होकर मिलता है। वहाँ विनाशी में ऐसा नहीं है। अविनाशी पढ़ाई में एक का पदम हो जायेगा क्योंकि दाता है ना। अच्छा।
राजस्थान ज़ोन से बापदादा की मुलाकात:- राजस्थान जोन की विशेषता क्या है? राजस्थान में ही मुख्य केन्द्र है। तो जैसे ज़ोन की विशेषता है वैसे राजस्थान निवासियों की भी विशेषता होगी ना। अभी राजस्थान में कोई विशेष हीरे निकलने हैं या आप ही विशेष हीरे हो? आप तो सबसे विशेष हो ही लेकिन सेवा के क्षेत्र में दुनिया की नजरों में जो विशेष हैं, उन्हों को भी सेवा के निमित्त बनाना है। ऐसी सेवा की है? राजस्थान को सबसे नम्बरवन होना चाहिए। संख्या में, क्वालिटी में, सेवा की विशेषता में, सबमें नम्बरवन। मुख्य केन्द्र नम्बरवन तो है ही लेकिन उसका प्रभाव सारे राजस्थान में होना चाहिए। अभी नम्बरवन संख्या में महाराष्ट्र, गुजरात को गिनती करते हैं। अभी यह गिनती करें कि सबसे नम्बरवन राजस्थान है। अभी इस वर्ष तैयारी करो। अगले वर्ष महाराष्ट्र और गुजरात से भी नम्बरवन जाना। निश्चय बुद्धि विजयी। कितने अच्छे-अच्छे अनुभवी रत्न हैं। सेवा को आगे बढ़ायेंगे, जरुर बढ़ेगी।
अध्याय : विचित्र बाप द्वारा विचित्र पढ़ाई तथा विचित्र प्राप्ति
प्रस्तावना : विचित्र बाप और उनकी अद्भुत यूनिवर्सिटी
आज रुहानी बाप, शिव बाबा, अपने रुहानी बच्चों से मिलते हुए पूछते हैं —
“बच्चों, तुम्हारी आत्मा में कितनी रुहानी शक्ति है? कितनी खुशी का खजाना है?”
यह दृश्य ही विचित्र है —
एक अविनाशी बाप अपने बच्चों को अविनाशी खुशी, अविनाशी शान्ति, और अविनाशी वर्सा देते हुए देख रहा है।
शिव बाबा कहते हैं —
“बाप दाता है, सभी बच्चों को पूरा ही अधिकार देता है; लेकिन हर बच्चा अपनी धारणा अनुसार अधिकारी बनता है।”
(Murli – 22.04.1984)
1. विचित्र बाप – जो नाउम्मीद को उम्मीदवार बनाता है
सामान्य शिक्षकों की शिक्षा सीमित होती है —
वे केवल एक जन्म का ज्ञान देते हैं।
परन्तु यह अविनाशी बाप,
अविनाशी शिक्षक,
एक जन्म में इक्कीस जन्मों की गैरन्टी देता है!
“अविनाशी बाप है, अविनाशी शिक्षक है, इसलिए अविनाशी द्वारा प्राप्ति भी अविनाशी है।”
(Murli – 22.04.1984)
ब्रह्मा बाबा स्वयं अनुभव करते थे —
“जिसको कोई नहीं पढ़ा सकता, उनको बाप पढ़ाते हैं।”
अनपढ़ माताएँ, बच्चे, वृद्ध — सबको यह बाप देवता बना देता है।
2. विचित्र पढ़ाई — तीन शब्दों की यूनिवर्सिटी
बाबा कहते हैं —
“सारी पढ़ाई तीन शब्दों में है — आत्मा, परमात्मा और सृष्टि चक्र।”
(Murli – 22.04.1984)
इस तीन शब्दों की पढ़ाई से आत्मा बन जाती है —
त्रिकालदर्शी, ज्ञानस्वरूप, देवता समान।
यह है “विचित्र पढ़ाई” —
जो आत्मा को हीरे समान बना देती है।
उदाहरण:
जैसे कोई बीज को समझ लेता है तो पूरा वृक्ष जान जाता है,
वैसे ही आत्मा और परमात्मा को जानने से सृष्टि का रहस्य स्वतः खुल जाता है।
3. विचित्र प्राप्ति — जो कभी समाप्त नहीं होती
सामान्य शिक्षक कहता है – “मैं गारंटी नहीं दे सकता।”
लेकिन यह ईश्वरीय शिक्षक कहता है –
“मिलना ही है, क्योंकि मैं अविनाशी शिक्षक हूँ।”
(Murli – 22.04.1984)
यह गैरन्टी है —
सतयुग और त्रेता के 21 जन्मों तक सुख-शान्ति-सम्पत्ति का अधिकार।
उदाहरण:
एक साधारण अनपढ़ माता भी अगर “मैं आत्मा हूँ” का पाठ पक्का कर ले,
तो वह देवता समान बन जाती है — यही इस पढ़ाई का चमत्कार है।
4. यह घर ही विश्वविद्यालय है
बापदादा कहते हैं —
“यह घर भी है और विद्यालय भी है।”
(Murli – 22.04.1984)
यहाँ आत्माओं को चरित्रवान, कमाई योग्य, सुखी पारिवारिक जीवन जीने वाला बनाया जाता है।
यही सच्ची शिक्षा है — जो आत्मा को सदा के लिए सफल बनाती है।
5. विचित्र बाप की विचित्र पद्धति
बापदादा कहते हैं —
“जो नाउम्मीद हैं, उन्हें उम्मींदवार बनाते हैं।
असम्भव को सम्भव कराते हैं, इसलिए ही कहा गया – ‘तुम्हारी गतमत तुम ही जानो।’”
(Murli – 22.04.1984)
उदाहरण:
ब्रह्मा बाबा ने देखा —
जिसे दुनिया ‘असंभव’ कहती थी, वही शिवबाबा के बल से ‘संभव’ हुआ।
एक कमरे से शुरू हुई यह यूनिवर्सिटी आज विश्व में प्रकाश फैला रही है।
6. एक पाठ में सब पढ़ाई समाई
बापदादा कहते हैं —
“बस एक ही पाठ पक्का करो — हम सब आत्माएँ एक बाप की हैं, एक परिवार की हैं।”
(Murli – 22.04.1984)
यह एक पाठ ही स्व-परिवर्तन और विश्व-परिवर्तन का आधार है।
जो इस पाठ को पक्का कर लेता है, वह जीवन में हर परीक्षा में पास विद ऑनर होता है।
7. राजस्थान ज़ोन का वरदान – विश्व सेवा में नम्बरवन बनो
मुलाकात में बापदादा ने राजस्थान जोन से कहा —
“जैसे मुख्य केन्द्र नम्बरवन है, वैसे ही राजस्थान सेवा में भी नम्बरवन बने।”
(Murli – 22.04.1984)
“निश्चय बुद्धि विजयी” — यह नारा बापदादा ने दिया,
जो हर आत्मा को प्रेरित करता है कि सेवा, निश्चय और विशेषता में आगे बढ़ो।
धारणा बिंदु (Points for Practice)
1️⃣ सदा स्मृति रखो — मैं आत्मा, अविनाशी बाप की संतान हूँ।
2️⃣ तीन शब्दों की पढ़ाई – आत्मा, परमात्मा, सृष्टि चक्र – को जीवन में उतारो।
3️⃣ हर सेवा में यह निश्चय रखो – “यह बाबा की सेवा है, मैं निमित्त हूँ।”
4️⃣ स्व-परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का संकल्प रखो।
वरदान (Blessing)
“सदा स्वयं को श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्माएँ,
एक जन्म में अनेक जन्मों की प्राप्ति कराने वाली बनती हैं।
वे सदा वरदाता बाप के वरदानों में पलने वाली भाग्यवान आत्माएँ हैं।”
(Murli – 22.04.1984)
स्लोगन (Slogan)
“विचित्र बाप की विचित्र पढ़ाई — जो आत्मा को हीरे से भी अधिक मूल्यवान बना दे।”
विचित्र बाप द्वारा विचित्र पढ़ाई तथा विचित्र प्राप्ति
प्रस्तावना : विचित्र बाप और उनकी अद्भुत यूनिवर्सिटी
आज रुहानी बाप, शिव बाबा, अपने रुहानी बच्चों से मिलते हुए पूछते हैं —
“बच्चों, तुम्हारी आत्मा में कितनी रुहानी शक्ति है? कितनी खुशी का खजाना है?”
यह दृश्य ही विचित्र है — एक अविनाशी बाप अपने बच्चों को अविनाशी खुशी, अविनाशी शान्ति, और अविनाशी वर्सा देते हुए देख रहा है।
बापदादा कहते हैं —
“बाप दाता है, सभी बच्चों को पूरा ही अधिकार देता है; लेकिन हर बच्चा अपनी धारणा अनुसार अधिकारी बनता है।”
(Murli – 22.04.1984)
प्रश्नोत्तर (Q&A Series)
प्रश्न 1: शिव बाबा को “विचित्र बाप” क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि यह बाप ऐसा शिक्षक है जो नाउम्मीद आत्माओं को उम्मीदवार बना देता है।
सामान्य शिक्षक केवल एक जन्म की शिक्षा देते हैं,
परन्तु यह अविनाशी बाप, एक जन्म में इक्कीस जन्मों की गैरन्टी देता है।
“अविनाशी बाप है, अविनाशी शिक्षक है, इसलिए अविनाशी द्वारा प्राप्ति भी अविनाशी है।”
(Murli – 22.04.1984)
प्रश्न 2: यह ईश्वरीय पढ़ाई किस प्रकार विचित्र है?
उत्तर: यह पढ़ाई केवल तीन शब्दों की है — आत्मा, परमात्मा, और सृष्टि चक्र।
इन तीन शब्दों का गूढ़ अर्थ समझने से आत्मा बन जाती है —
त्रिकालदर्शी, ज्ञानस्वरूप और देवता समान।
“सारी पढ़ाई तीन शब्दों में है — आत्मा, परमात्मा और सृष्टि चक्र।”
(Murli – 22.04.1984)
उदाहरण: जैसे कोई बीज को समझ लेता है तो पूरा वृक्ष जान जाता है,
वैसे ही आत्मा और परमात्मा को जानने से सृष्टि का रहस्य खुल जाता है।
प्रश्न 3: इस पढ़ाई की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर: इसकी प्राप्ति कभी समाप्त नहीं होती।
यह अविनाशी बाप की दी हुई ऐसी शिक्षा है जो सतयुग और त्रेता के 21 जन्मों तक सुख, शान्ति और सम्पत्ति देती है।
“मिलना ही है, क्योंकि मैं अविनाशी शिक्षक हूँ।”
(Murli – 22.04.1984)
उदाहरण: एक साधारण अनपढ़ माता भी “मैं आत्मा हूँ” का पाठ पक्का कर ले,
तो वह देवता समान बन जाती है — यही इस पढ़ाई का चमत्कार है।
प्रश्न 4: बापदादा ने इस यूनिवर्सिटी को “घर-विद्यालय” क्यों कहा?
उत्तर: क्योंकि यहाँ शिक्षा केवल पुस्तकों की नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण की है।
यह घर भी है जहाँ प्रेम और मर्यादा सिखाई जाती है,
और विद्यालय भी है जहाँ आत्मा को कमाई योग्य और सदा सफल बनाया जाता है।
“यह घर भी है और विद्यालय भी है।”
(Murli – 22.04.1984)
प्रश्न 5: विचित्र बाप की पद्धति किस प्रकार विचित्र है?
उत्तर: यह बाप असंभव को सम्भव कर देता है।
जो नाउम्मीद हैं, उन्हें उम्मींदवार बना देता है।
इसकी रीति ही अलौकिक है —
“जो नाउम्मीद हैं, उन्हें उम्मींदवार बनाते हैं। असम्भव को सम्भव कराते हैं।”
(Murli – 22.04.1984)
उदाहरण: ब्रह्मा बाबा ने देखा —
एक कमरे से शुरू हुई यह यूनिवर्सिटी आज विश्व में प्रकाश फैला रही है।
प्रश्न 6: इस पढ़ाई का मुख्य पाठ क्या है?
उत्तर: केवल एक ही पाठ —
“हम सब आत्माएँ एक बाप की हैं, एक परिवार की हैं।”
(Murli – 22.04.1984)
जो इस एक पाठ को जीवन में उतार लेता है,
वह स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन कर देता है और
हर परीक्षा में पास विद ऑनर बनता है।
प्रश्न 7: बापदादा ने राजस्थान ज़ोन को कौन-सा वरदान दिया?
उत्तर:
बापदादा ने कहा —
“जैसे मुख्य केन्द्र नम्बरवन है, वैसे ही राजस्थान सेवा में भी नम्बरवन बने।”
(Murli – 22.04.1984)
और साथ ही यह नारा दिया —
“निश्चय बुद्धि विजयी।”
अर्थात् निश्चय, सेवा और विशेषता में सदा आगे बढ़ो।
धारणा बिंदु (Points for Practice)
1️⃣ सदा स्मृति रखो — मैं आत्मा, अविनाशी बाप की संतान हूँ।
2️⃣ तीन शब्दों की पढ़ाई – आत्मा, परमात्मा, सृष्टि चक्र – को जीवन में उतारो।
3️⃣ हर सेवा में यह निश्चय रखो – “यह बाबा की सेवा है, मैं निमित्त हूँ।”
4️⃣ स्व-परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का संकल्प रखो।
वरदान (Blessing)
“सदा स्वयं को श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्माएँ,
एक जन्म में अनेक जन्मों की प्राप्ति कराने वाली बनती हैं।
वे सदा वरदाता बाप के वरदानों में पलने वाली भाग्यवान आत्माएँ हैं।”
(Murli – 22.04.1984)
स्लोगन (Slogan)
“विचित्र बाप की विचित्र पढ़ाई — जो आत्मा को हीरे से भी अधिक मूल्यवान बना दे।”
विचित्र बाप, विचित्र पढ़ाई, विचित्र प्राप्ति, शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा, ईश्वरीय यूनिवर्सिटी, अविनाशी बाप, अविनाशी शिक्षक, आत्मा परमात्मा सृष्टि चक्र, संगमयुग की पढ़ाई, ब्रह्माकुमारी मुरली, मुरली आज की, ब्रह्मा बाबा अनुभव, शिवबाबा का ज्ञान, बापदादा की मुरली, आत्मा का ज्ञान, परमात्मा का ज्ञान, सृष्टि चक्र ज्ञान, ब्रह्माकुमारी यूनिवर्सिटी, राजस्थान जोन मुरली, निश्चय बुद्धि विजयी, मुरली वरदान, मुरली स्लोगन, ईश्वरीय शिक्षा, संगमयुग यूनिवर्सिटी, स्व परिवर्तन, विश्व परिवर्तन, आत्मिक अध्ययन, शिवबाबा की कक्षा, ब्रह्माकुमारी प्रवचन, आध्यात्मिक ज्ञान, सच्चा शिक्षक, मुरली क्लास, ईश्वरीय वरदान, आत्मा और परमात्मा, बाबा की यूनिवर्सिटी, ब्रह्माकुमारी राजस्थान, मुरली पॉइंट्स, ब्रह्माकुमारी विचार, मुरली दीपक, मुरली स्पष्टीकरण, शिवबाबा के वरदान, अव्यक्त बापदादा, दिव्य पढ़ाई, आत्मा का विकास, संगमयुग का रहस्य,Unique Father, unique study, unique attainment, Shiv Baba, Brahma Baba, Divine University, Eternal Father, Eternal Teacher, Soul, Supreme Soul, World Cycle, Confluence Age Study, Brahma Kumaris Murli, Today’s Murli, Brahma Baba Experience, Shiv Baba’s Knowledge, BapDada’s Murli, Knowledge of the Soul, Knowledge of the Supreme Soul, World Cycle Knowledge, Brahma Kumaris University, Rajasthan Zone Murli, Faithful Intellect is Victorious, Murli Blessing, Murli Slogan, Divine Education, Confluence Age University, Self-Transformation, World Transformation, Spiritual Study, Shiv Baba’s Class, Brahma Kumaris Discourse, Spiritual Knowledge, True Teacher, Murli Class, Divine Blessing, Soul and Supreme Soul, Baba’s University, Brahma Kumaris Rajasthan, Murli Points, Brahma Kumaris Thoughts, Murli Deepak, Murli Explanation, Shiv Baba’s Blessing, Avyakt BapDada, Divine Study, Soul Development, Secret of the Confluence Age,

